" आप खूने इश्क का अंजाम , अपने सर न लें !
आपका दामन सलामत अपने कातिल हम सही "
बचपन से किसी अनाम शायर का यह शेर मुझे बहुत पसंद है , और अपने जीवन में अक्सर चरितार्थ होते देखता आया हूँ ! कोई कितना ही बड़ा दोषी क्यों न हो मगर अपनी भूल अथवा किसी का दिल दुखाने की बात स्वीकार कर, कोई अपनी ही नज़र में छोटा नहीं बनना चाहता और ब्लाग जगत में तो खास तौर पर नहीं, जहाँ सारी दुनिया पढ़, समझ रही है !
यहाँ हर व्यक्ति के लिखने का उद्देश्य, बताना आसान नहीं मगर एक उद्देश्य देर सबेर सबका है कि लोग मुझे जान जाएँ और मेरी इज्ज़त करें ! ऐसे लोगों में मैं खुद भी शामिल हूँ और मैं इसे खराब नहीं मानता !
कई बार स्नेह अथवा प्यार वश ऐसी परिस्थितियाँ बन जाती है जिसमें अगर आप सच्चाई बयान करें तो आपका एक प्यारा फँस जाता है और न करें तो आप खुद लोगों से गाली खाते हैं ! ऐसे में क्या करेंगे आप ...? मुझे लगता है खुद गाली खा लेना बेहतर है न कि किसी अपने को नंगा कर देना !
यह बेहतर होगा कि ऐसे लोगों को वक्त ही समझाए ...सो कभी कभी चुप रहना बेहतर होता है ! मगर ऐसी घटना मेरे जीवन में बहुत कम आयी है, जब मुझे सच्चाई छिपानी पड़ी !
इससे बहुत सारे मित्रों की मुहब्बत के बारे में पता चला कि वक्त आने पर दुनिया के सामने यह "बहुत ईमानदार " लोग भी अपनी "असलियत " छिपा नहीं पाते हैं .....
खैर, कुछ अपनों को छोड़ना ही बेहतर होता है कम से कम और तो दिल नहीं दुखेगा !
"इंशा अब इन्ही अजनबियों में, चैन से सारी उम्र कटे !
जिनके खातिर बस्ती छोड़ी नाम न लो उन प्यारों का "
आपका दामन सलामत अपने कातिल हम सही "
बचपन से किसी अनाम शायर का यह शेर मुझे बहुत पसंद है , और अपने जीवन में अक्सर चरितार्थ होते देखता आया हूँ ! कोई कितना ही बड़ा दोषी क्यों न हो मगर अपनी भूल अथवा किसी का दिल दुखाने की बात स्वीकार कर, कोई अपनी ही नज़र में छोटा नहीं बनना चाहता और ब्लाग जगत में तो खास तौर पर नहीं, जहाँ सारी दुनिया पढ़, समझ रही है !
यहाँ हर व्यक्ति के लिखने का उद्देश्य, बताना आसान नहीं मगर एक उद्देश्य देर सबेर सबका है कि लोग मुझे जान जाएँ और मेरी इज्ज़त करें ! ऐसे लोगों में मैं खुद भी शामिल हूँ और मैं इसे खराब नहीं मानता !
कई बार स्नेह अथवा प्यार वश ऐसी परिस्थितियाँ बन जाती है जिसमें अगर आप सच्चाई बयान करें तो आपका एक प्यारा फँस जाता है और न करें तो आप खुद लोगों से गाली खाते हैं ! ऐसे में क्या करेंगे आप ...? मुझे लगता है खुद गाली खा लेना बेहतर है न कि किसी अपने को नंगा कर देना !
यह बेहतर होगा कि ऐसे लोगों को वक्त ही समझाए ...सो कभी कभी चुप रहना बेहतर होता है ! मगर ऐसी घटना मेरे जीवन में बहुत कम आयी है, जब मुझे सच्चाई छिपानी पड़ी !
इससे बहुत सारे मित्रों की मुहब्बत के बारे में पता चला कि वक्त आने पर दुनिया के सामने यह "बहुत ईमानदार " लोग भी अपनी "असलियत " छिपा नहीं पाते हैं .....
खैर, कुछ अपनों को छोड़ना ही बेहतर होता है कम से कम और तो दिल नहीं दुखेगा !
"इंशा अब इन्ही अजनबियों में, चैन से सारी उम्र कटे !
जिनके खातिर बस्ती छोड़ी नाम न लो उन प्यारों का "
दुख से इतनी दुश्मनी
ReplyDeleteसुख से नायाब यारी
दोनों को करो प्यार
तो दुख भी पहुंचाने
लगेगा सच्चा प्यार।
behtareen soch darshaati post.
ReplyDeleteregards
"इंशा अब इन्ही अजनबियों में,
ReplyDeleteचैन से सारी उम्र कटे !
जिनके खातिर बस्ती छोड़ी,
नाम न लो उन प्यारों का !"
बेहद उम्दा तरीके से कह डाली आपने दिल की बात !
सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति....
ReplyDeleteअच्छा विचार
ReplyDeleteसतीश भाई हम से बहुत सारे लोग नाराज हो जाते है, दुर हो जाते है, लेकिन हम ने कभी परवाह नही कि, हमेशा सच को आगे रखा है निजी जिन्दगी मै भी ओर ब्लांग जगत मै भी, कभी डर नही लगा लोगो का कि लोग क्या कहेगे?, लोगो का डर कभी नही लगा, जितना डर अपने आप से लगा ...
ReplyDeleteसच को झूठ के कवच की जिस दिन आवश्यकता पड़ेगी वह सच अपनी कान्ति खो देगा।
ReplyDeleteसच यह है कि जो कुछ कहा आपने वह बिलकुल सच है।
ReplyDeleteसर जी!
ReplyDeleteओशो कहते हैं कि,
जब दो लोग मिलते हैं तो दरअसल दो नहीं छ: लोग मिलते हैं.
कैसे?
एक तो मैं, जो मै सोचता हूँ मैं हूँ.
एक जो वास्तव में मैं हूँ.
एक वह जो दूसरा सोचता है मेरे बारे में
इसी तरह तीन प्रकार वह, जो दूसरे का मेरे सन्दर्भ में है.
अब दो लोगों का मिलना भी इतना भीड़ भरा है, सम्वाद में गड़्बड होनी ही है.
मनुष्य होना बहुत बहुत सीमाओं मे बन्धा है. नेकी कर दरिया में फेंक, आप ही के ब्लोग पर आखिरी बार पड़ा था शायद!
दोनों अशार बहुत खूबसुरत हैं सर!
भाई जी ,थोडा और खुला सा करते तो संदर्भ और स्पष्ट होते ...बहरहाल विरोधाभासों को मुस्कुरा के झेल जाने वाला व्यक्ति साक्षात शिव है,सती श है !
ReplyDeleteबहुत ही सशक्त ढंग से आपने बात को कह दिया. बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
गलतियाँ सबसे होती हैं । जो अपनी गलती मान ले , वही बड़ा है ।
ReplyDeleteगुरुदेव,
ReplyDelete“लोग मुझे जान जाएँ और देर सबेर मेरी इज्जत करें”… माफी चाहते हैं हमरा (जानकर जातिवाचक बहुवचन सब्द नहीं बोल रहे हैं) न तो कभी ई उद्देस था ना कभी कोई ख्वाहिस... जब ई ख्वाहिस त्यागकर लिखना सुरू किए तो लोग बेनामी कहने लगा...लोग चैन से जीने कहाँ देता है..घोड़ा पर बईठ जाइए त अत्याचार कहेगा अऊर घोड़ा को अपना ऊपर बईठा लीजिए त पागल... ई अलग बात है कि कोई बदनाम भी होंगे त नाम न होगा वाला फिलोसफी अपनाता है...अऊर कोई राखी सावंत टाइप नौटंकी...
इसके बाद त रहस्यबाद का छाप देखाई देता है...लेकिन सच बोलने से कोई अपना नंगा नहीं होने का ब्रत के कारन महाभारत हो गया… अब का बोलें...बोलें...जब आपने चुप्पी लगा रखी है त जरूर कोनो कारन होगा.
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ReplyDelete.
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आदरणीय सतीश सक्सेना जी,
कोई संदर्भ तो आप दिये नहीं, पर साफ दिख रहा है कि किसी 'ऐसे' ने जिसे आप 'अपना' मानते थे, आपका दिल दुखाया है...
जाने दीजिये... हम लोग कालेज में अक्सर कहते थे...
रहिमन इस संसार में, भांत-भांत के लोग
कुछ तो _____ हैं, कुछ बहुत ही _____
इस ब्लैंक में क्या भरा जा सकता है ? सोचिये... मुस्कुराहट आयेगी।
आभार!
...
दुख से इतनी दुश्मनी
ReplyDeleteसुख से नायाब यारी
दोनों को करो प्यार
तो दुख भी पहुंचाने
लगेगा सच्चा प्यार।
avinash jee ke ye shavd bahut vazanee hai.........
Dukh aaj to ye bhogte kum hai aur iska dikhava jyada hone laga hai.......karan anginat samvedanae jo aapke dware aa jatee hai......apana sath dene.......
satish jee mujhe lagta hai agar aapse koi galtee huee hai aur aap mafee mang lete hai to koi maf kare ya na kare aap bada halka mahsoos karane lagte hai......
aur sukh kee neebd sote hai.
kal aapkee post tak pahuchana mushkil ho gaya tha........blog gayab tha..........?