आजकल अपने पुत्र के लिए एक योग्य पत्नी ढूंढ रहा हूँ !
-तलाश एक ऐसी बहू की जो मेरी डांट खा सके और मुझे अक्सर डांटने की हिम्मत भी रखे क्योंकि अपनी बेटी गरिमा की डांट खाते खाते लगता है कि मैं ही अधिक गलती करता हूँ !-मैं विरोध करता हूँ ऐसे दहेज़ न लेने वालों का ,जो अपने होने वाली बहू के माता पिता से यह कहते हैं कि हमें दहेज़ नहीं चाहिए हाँ आपके द्वारा, अपनी बेटी को जो कुछ देने की इच्छा हो उन पैसों को हमारे अनुसार ही खर्च करें ! और नवोदित बच्ची के घर आने से पहले ही, उसके घर बालों को निचोड़ कर, यह उम्मीद करते हैं कि यह बच्ची हमारे घर को स्वर्ग बनाने में पूरा योग देगी !
-मैं विरोध करता हूँ ऐसे माँ बाप का , जो अपने ही बच्चों की खुलकर आर्थिक मदद नहीं करते हैं और अपनी सामर्थ्य और पैसा अपने भविष्य के लिए उनसे छिपाकर रखते हैं !
- मैं विरोध करता हूँ ऐसे माँ बापों का , जो अपने बेटे को बी टेक और अन्य प्रोफेशनल डिग्री दिलाने के लिए हर जगह डोनेशन देने के लिए भागते दौड़ते देखे जाते हैं वही अपनी पुत्री को सामान्य डिग्री दिलवा कर अधिक से अधिक पैसा बचाते हैं !
- मुझे आनंद आता है जब मुसीबत में, अपने समर्थ पुत्र को मदद न करते देख, भला बुरा कहते समय लोगों को देखकर , उस समय केवल बेटी ही इनके पास मदद के लिए बैठी दिखाई देती है !
- मुझे अफ़सोस है ऐसी बुद्धि और दुहरी मानसिकता पर जो जीवन भर ,अपनी करनी को दोष न देकर, प्रारब्ध और बच्चों में दोष निकाल कर रोना रोते हैं !
" बोया पेड़ बबूल का आम कहाँ से होय "
" बोया पेड़ बबूल का आम कहाँ से होय "
ReplyDeleteसहमत हूँ आपसे ......आजकल यही देखने को मिलता है लगभग हर जगह बेटा अक्सर काम नहीं आता और बेटियाँ ही साथ देती दिखती है !!
भाई साहब,लड़का-लड़की में फ़र्क तो है।
ReplyDeleteये तो सबको मानना पड़ता है। अब शिक्षा देने के उपर है कि आप किस तरह की शिक्षा बेटियों को दे रहे हैं।
मैने तो बचपन से शुटिंग में डाल रखा है।
शादी के समय एक-एक गन दहेज में दे देंगे।
बस सब ठीक हो जाएगा-नो टेंशन,हा हा हा:)
मुझे इस बारें में ज्यादा अनुभव नहीं है, पर एक बुजुर्ग ने कहा है की किसी ऐसी लड़की को लाने से बचिए जो अपने माँ-बाप की इकलौती संतान हो, आपका इस बारे में क्या विचार है?
ReplyDeleteआपके विचार बहुत सुन्दर और अनुकरणीय हैं जी
ReplyDeleteकोशिश करूंगा इन बातों को अपनी जिन्दगी में उतार लेने की
प्रणाम स्वीकार करें
wah satish ji wah kiya vyang mara hai samaj par.
ReplyDeletewah satish ji wah kiya mast vyang mara hai.
ReplyDeleteललित भाई .......आईडिया बुरा नहीं है ......!! ;-)
ReplyDeleteबेटियां भावुक होती है और हरदम माता पिता की सेवा के लिए तत्पर रहती हैं .... आभार
ReplyDeleteWah! Wah! Man Gaye
ReplyDeleteपहला पेराग्राफ पढ़ते ही बस आनंद आ गया शायद मुझे सन 1981 के Dwarka Prasad Gupta (अशोक कुमार) और Manju (रेखा) की एक झलक सी याद आ गयी
ReplyDeleteसभी बातें बहुत अच्छी और सच्ची हैं
[बस एक से कुछ कम सहमत हूँ
@मैं विरोध करता हूँ ऐसे माँ बापों का , जो अपने बेटे को बी टेक और अन्य प्रोफेशनल डिग्री ...
क्योंकि अब स्थितियां काफी बदल गयीं है ]
हाँ जहां तक लड़के और लड़की समय पर काम आने की बात है , मैं लड़कियों के समर्पण को भी तभी पूर्ण मानता हूँ जब अपनी और से ससुराल और मायके में समान वयवहार रखती हो , सिर्फ माता पिता भक्ति पूर्णता की परिचायक नहीं है ]
बोया पेड़ बबूल का आम कहाँ से होय" ..... बिलकुल सही कहा संस्कार अगर अच्छे हैं तो क्या फर्क पड़ता है लड़का है या लड़की , ससुराल हो या मायका सब स्वर्ग बन जाते हैं
काश लोग ये समझ जाएँ की
संतान अगर संस्कारी है तो धन संचय का क्या फायदा
संतान अगर संस्कारहीन है तो भी धन संचय का क्या फायदा
अगर कोई बात अनावश्यक लगे तो छोटा समझ के माफ़ कर दीजियेगा
मेरी कामना है की आपकी ये खोज जल्द ही सफल हो
ReplyDeleteशुक्रिया गौरव अग्रवाल !
ReplyDeleteआपकी समझ और संस्कार अनुकरणीय हैं !
इस पोस्ट पर भी आपके विचार जानने हैं
ReplyDeleteसमय मिले तो अवश्य प्रयत्न करें
यहाँ पर :
http://my2010ideas.blogspot.com/2010/08/blog-post_22.html
शिवम मिश्रा की धुम्रपान निषेध कविता पे आपके नारे पे मुस्कुराता हुआ इधर आ गया आपसे रूबरू होने...
ReplyDeleteबहु की गुहार के बहाने रोचक बातें। अपनी दोनों अग्रजाओं की शादी में पिता को टूटते देख चुका हूँ। वैसे आने वाली "जेन नेक्स्ट" पीढ़ी से बड़ी उम्मीदें हैं कि ढ़ाई साल की बेटी का पिता खुद भी हूं~....
सतीश सक्सेना जी
ReplyDeleteबहुत सही - सटीक विचार हैं आपके !
आपका हर अफ़सोस , विरोध जायज है ,और आनन्द उचित !
ससुराल में घुलने- मिलने में लड़कियों के माता पिता की भूमिका निर्णायक होती है ।
आपकी ख़ोज पूरी होने के लिए शुभकामनाएं हैं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत आदर्श विचार हैं सक्सेना जी ।
ReplyDeleteकाश सभी यह समझ सकें ।
आनंद दायक . हमारी शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर और सार्थक लिखा है आपने. बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
किसी अनाम शायर की एक रचना याद आ गई
ReplyDeleteनदिया के दो तीर हैं, बिटिया का संसार
आधा जीवन इस तरफ, आधा है उस पार.
बढिया है सतीश जी. बहुत सुन्दर तरीक से बेटियों की पैरवी कर गये आप.
ReplyDeleteऐसे विचार होने ही चाहिए ...ग्रहण करने योग्य ...
ReplyDeleteबिल्कुल सही है.
ReplyDeleteतलाश शीघ्र पूरी हो. शुभकामनाएँ.
विचार तो अच्छे हैं । बहू देख भाल कर लाइयेगा । आपको डांटने वाली तो मिल जावेगी डाँट खाने वाली ढूँढनी पडेगी । वैसे हम तो फारिग हो गये ढुंढाई से बच्चों ने हमारा काम आसान कर दिया ।
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDelete*** हिंदी भाषा की उन्नति का अर्थ है राष्ट्र की उन्नति।
अनुकरणीय !
ReplyDelete.
ReplyDeleteजिस घर में स्त्री की इज्ज़त होती है, वहीँ देवता निवास करते हैं।
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"बोया पेड़ बबूल का आम कहाँ से होय "
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने सतीश जी. वैसे आजकल लड़ियाँ किसी से भी पीछे नहीं हैं, पीछे तो पहले भी नहीं थी, लेकिन पता नही क्यों लोग समझते थे. अब धीरे-धीरे यह सोच समाप्त होती जा रही है और लड़कियों को भी लड़कों के सामान अवसर मिलने लगे हैं.
ऊपर वाले से उम्मीद करता हूँ, आपकी खोज जल्द पूर्ण हो, और आपको एक सुयोग्य और सुशिक्षिक्त बहुत मिले....
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ReplyDelete.
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"मैं लड़कियों के समर्पण को भी तभी पूर्ण मानता हूँ जब अपनी और से ससुराल और मायके में समान व्यवहार रखती हो , सिर्फ माता पिता भक्ति पूर्णता की परिचायक नहीं है"
एकदम सटीक ऑब्जर्वेशन है मित्र गौरव का...अपने इर्द गिर्द की आज के दौर की लड़कियों में मैंने अक्सर देखा है कि उनमें मातृ-पितृ भक्ति व समर्पण तो कूट-कूट कर भरा है परंतु अपने ससुराल के लोगों... जिनमें उसके पति के पिता-माता, भाई, बहिनें शामिल है... को अपने पति का व अपनी न्यूक्लियर फेमिली का अहितकामी समझती हैं... येन-केन प्रकारेण अपने पति को उसके परिवार से विमुख करना ही जीवन ध्येय हो जाता है उनका...
वैसे आदरणीय सतीश जी,
मेरी समझ की कमी है या वाकई में ऐसा है... परंतु मुझे पोस्ट से स्पष्ट नही हो पा रहा कि दहेज जैसी कुप्रथा के प्रति आपका नजरिया क्या है?
आभार!
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@ गौरव अग्रवाल,
ReplyDeleteआप इमानदारी से बात करते हैं अतः आपको सुनना और आपसे सीखना भी सुखकर है गौरव ! शुभकामनायें !
अच्छे , अनुकरणीय वीचार, आप की खोज जल्दी पूरी हो, शुभकामनाएँ.
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