सामाजिक परिवेश में रहते हुए हमारे अपनों को, बहुत कम मौकों पर एक दूसरे की तरफ ,याचना युक्त द्रष्टि से देखा जाता है, हर हालत में इस नज़र का सम्मान किया जाना चाहिए ! अपने ही घर में, महज अपनी आत्मसंतुष्टि के लिए, अपनों को निराश करने की प्रवृत्ति , मानवीय प्रवृत्ति नहीं कही जा सकती निस्संदेह ऐसी प्रवृत्तियों को समाज, समय के साथ ऐसा ही जवाब देगा मगर शायद तब तक समझने में, बहुत देर हो चुकी होगी !
किसी से भी आदर पाने के लिए स्नेह और आदर देना आवश्यक होता है ! और यही मजबूत घर की बुनियाद होती है !हमारे होते , अपनों की आँख से आंसू नहीं गिरने चाहिए ,इन आँखों से गिरता हर आंसू, स्नेहमाला के टूटते हुए मोती हैं ....
गंभीर और कष्टकारक स्थितियों में, हमें अपने बड़ों का साथ देना चाहिए न कि हम उनका उपहास करें और उनकी कमियां गिनाते हुए उपदेश दें , ऐसे उदाहरण, मात्र क्रूरता माना जायेंगे ! ममता भरे आंसुओं को न पहचान सकने वाले अभागे हैं , भविष्य और इतिहास ऐसे लोगों को कभी प्यार नहीं करेगा !
जब मुस्काए, तलवार कभी,
जब शक होगा, निज बाँहों पर ,
जब इंगित करती आँख कहीं
जब बिना कहे दुनिया जाने, कृतियाँ, जीवित कैकेयी की !
हम बिलख बिलख जब रोये थे, परिहास तुम्हारे चेहरे पर !
निरंतर परिवर्तनशील समाज, किसी को भी, लगातार राज करने की स्वीकृति नहीं देता है ! जो आज ताकतवर है वह कल कमजोर होगा और जो आज कमजोर है वह कल राज करेगा ! वे मूर्ख हैं जो आज कमजोर की याचना का मान नहीं रखते ! गर्व को हमेशा झुकना पड़ा है और जीत विनम्रता की ही होती आई है!
साजिश है आग लगाने की
कोई रंजिश, हमें लड़ाने की
वह रंज लिए, बैठे दिल में
हम प्यार, बांटने निकले हैं!
इक सपना पाले बरसों से,लम्बी यात्रा पर जाने को
हम आशा भरी नज़र लेकर, उम्मीद लगाए बैठे हैं !
तुम शंकित, कुंठित मन लेकर,
कुछ पत्थर हम पर फ़ेंक गए,
हम समझ नही पाए, हमको
तुम शंकित, कुंठित मन लेकर,
कुछ पत्थर हम पर फ़ेंक गए,
हम समझ नही पाए, हमको
फिर भी आँखों में अश्रु भरे, देखें तुमको उम्मीदों से !
हम चोटें लेकर भी दिल पर, अरमान लगाये बैठे हैं !
भाई बहिन के मध्य स्नेह को मैं बहुत महत्व देता हूँ , विवाह उपरान्त बहिन अपने पूरे जीवन, भाई की ओर आशान्वित निगाहों से देखती है जिसमें अपने प्रति भाई के प्यार का भरोसा रहता है ! यही भरोसा उसके जन्मस्थान से उसको जोड़े रहने में सहायक होता है ! जो लोग इस विश्वास स्नेह भरी नज़र को सम्मान नहीं दे पाते वे सच्चे प्यार को शायद ही कभी समझ पायेंगे !
किस घर को अपना बोलूं माँ
किस दर को , अपना मानूं !
भाग्यविधाता ने क्यों मुझको
जन्म दिया है , नारी का,
बड़े दिनों के बाद, आज भैया की याद सताती है
पता नहीं क्यों सावन में पापा की यादें आती है !
अक्सर नारी ही कष्ट क्यों उठाती है ? उसे ही समझने में क्यों भूल की जाती है ? पुरुष प्रधान समाज में पुरुषों का अहम् , कोमल और स्नेही स्वभाव, माँ और बहिन को अक्सर रुलाता है !
इस सम्बन्ध में बेटी से मेरा कहना है ....
सभी सांत्वना, देते आकर
जहाँ लेखनी , रोती पाए !
आहत मानस, भी घायल
हो सच्चाई पहचान न पाए !
ऎसी ज़ज्बाती ग़ज़लों को , ढूंढें अवसरवादी गीत !
मौकों का फायदा उठाने, दरवाजे पर तत्पर गीत !
भाई बहिन के मध्य स्नेह को मैं बहुत महत्व देता हूँ , विवाह उपरान्त बहिन अपने पूरे जीवन, भाई की ओर आशान्वित निगाहों से देखती है जिसमें अपने प्रति भाई के प्यार का भरोसा रहता है ! यही भरोसा उसके जन्मस्थान से उसको जोड़े रहने में सहायक होता है ! जो लोग इस विश्वास स्नेह भरी नज़र को सम्मान नहीं दे पाते वे सच्चे प्यार को शायद ही कभी समझ पायेंगे !
किस घर को अपना बोलूं माँ
किस दर को , अपना मानूं !
भाग्यविधाता ने क्यों मुझको
जन्म दिया है , नारी का,
बड़े दिनों के बाद, आज भैया की याद सताती है
पता नहीं क्यों सावन में पापा की यादें आती है !
अक्सर नारी ही कष्ट क्यों उठाती है ? उसे ही समझने में क्यों भूल की जाती है ? पुरुष प्रधान समाज में पुरुषों का अहम् , कोमल और स्नेही स्वभाव, माँ और बहिन को अक्सर रुलाता है !
सभी सांत्वना, देते आकर
जहाँ लेखनी , रोती पाए !
आहत मानस, भी घायल
हो सच्चाई पहचान न पाए !
ऎसी ज़ज्बाती ग़ज़लों को , ढूंढें अवसरवादी गीत !
मौकों का फायदा उठाने, दरवाजे पर तत्पर गीत !
अन्याय और क्रूरता सहती ये महिलायें, कष्ट इसलिए सह रही हैं कि वे हमें प्यार करती हैं और इसी स्नेही और कोमल स्वभाव की सजा, अक्सर महिलायें भोगती आई हैं !
हम पुरुष कब तक इस स्नेह को बिना पहचाने, आदिकालीन भावनात्मक शोषण जारी रखेंगे ?
कई बार मुझे लगता है कि विद्रोह का समय आ गया है ...
भविष्य की मजबूत बुनियाद के लिए, इन लड़कियों को मज़बूत होना चाहिए...
इन्हें समझना होगा कि प्यार की भीख नहीं मांगी जाती !
बुनियादों की बात करती हुई सारगर्भित पोस्ट!
ReplyDeleteबेटी को संबोधित कर कही गयी आपकी पंक्तियाँ आँखें नम कर गयी!
पुरुष जब तक पुरुष होने के दंभ में जीते रहेंगे और अपने चारो और फैले इस आभामंडल को ध्वस्त नहीं करेंगे तब तक ऐसा चलता ही रहेगा. आवश्यकता गभीर प्रयासों की है.
ReplyDeleteआप जैसे स्वस्थ परिपक्व विचार हो जायं लोगो के तो यह संसार -ब्लोगजगत स्वर्ग न बन जाय ....
ReplyDeleteजो विश्वास, स्नेह भरी नज़र को सम्मान नहीं दे पाते वे सच्चे प्यार को शायद ही कभी समझ पायेंगे !
ReplyDelete............
परम पिता परमात्मा उन्हें कभी माफ़ नहीं करेगा !
'हम बिलख बिलख जब रोये थे, परिहास तुम्हारे चेहरे पर !'
ReplyDeleteयह पंक्ति बहुत प्रभावित करती है.
बेटी के बहाने नारी के लिए आपकी सोच अभिनंदनीय है.दिल के भाव कागज पर उतारना एक मंझे हुए कवि के ही बूते की बात है !
आखिरी पंक्तियाँ भावुक कर देती हैं !
सारा जीवन किया समर्पित
ReplyDeleteपरमार्थ में नारी ही ने ,
विधि ने ऐसा धीरज लिखा
केवल भाग्य तुम्हारे में ही
सब कुछ अभिव्यक्त कर दिया आपने इन पंक्तियों में ...!
सारा जीवन किया समर्पित परमार्थ में नारी ही ने ,
ReplyDeleteविधि ने ऐसा धीरज लिखाकेवल भाग्य तुम्हारे में ही
उठो चुनौती लेकर बेटी , शक्तिमयी सी तुम्ही दिखोगी !
पहल करोगी अगर नंदिनी, घर की रानी तुम्ही रहोगी !
kya baat hai sir !
ap ke geet to hamesha hi prabhavshali hote hain aur is bar to ek alag hi chhata bikhar rahi hai
nari ke prati ap ki aadarpoorn bhavnaon ko naman !!
जिस दिन भारत अपनी पुरानी संस्कृति को धारण कर लेगा उस दिन से ही महिलाएं वास्तविक रूप से परिवार की स्वामिनी होंगी
ReplyDelete। हमारे यहाँ माँ गृहस्वामिनी थी लेकिन वर्तमान में पत्नी ने यह स्थान ले लिया है। इसलिए प्रत्येक महिला केवल नारी बनने पर ही तुल गयी है और पुरुष भी उसे माँ की दृष्टि से नहीं वरन केवल नारी की दृष्टि से देख रहा है।
भविष्य की मजबूत बुनियाद के लिए इन लड़कियों को मज़बूत होना चाहिए...
ReplyDeleteइन्हें समझना होगा कि प्यार की भीख नहीं मांगी जाती !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ... अपनी ही लिखी रचनाओं से एक सुन्दर और सार्थक पोस्ट आपने पढवाई और सोचने पर विवश भी किया ... आभार
जब समय लिखे इतिहास कभी
ReplyDeleteजब मुस्काए, तलवार कभी,
जब शक होगा, निज बाँहों पर ,
जब इंगित करती आँख कहीं
बेहतरीन शब्दों का संगम है यह अभिव्यक्ति ।
नारी के प्रति बहुत स्नेह और सम्मान है आपके ह्रदय में जो आपके लेखन से झलक रहा है. बेटी को संबोधित कर कही गयी आपकी पंक्तियाँ भावुक कर गयी... आपके जैसे विचार तो इस दुनिया को बहुत सुन्दर बना देंगे स्वर्ग से भी सुन्दर.... शुभकामनाये...
ReplyDeleteहमेशा की तरह एक सारगर्भित पोस्ट। आपको जितना अधिक जान रहा हूँ, आपके प्रति सम्मान की भावना उतनी ही बढती जाती है।
ReplyDeleteबहुत खूब सर .....आप की मर्म लेखनी ब्लॉग जगत में आपको भीड़ से अलग करती है.... सादर
ReplyDelete
ReplyDelete@ स्मार्ट इंडियन ( अनुराग शर्मा ) ,
ब्लॉग जगत में से मेरी नज़र में सम्मानित सदस्यों में, आप का उच्च स्थान पर हैं !
आपकी विद्वता और आदर्श मेरे लिए हमेशा न केवल सराहनीय रहे हैं बल्कि उनका अनुसरण करने का प्रयत्न करता हूँ !
यहाँ आपका अभिनन्दन है !
इन्हें समझना होगा कि प्यार की भीख नहीं मांगी जाती !
ReplyDelete्बिल्कुल सही कहा और आपने एक गंभीर मुद्दे को उठाया है पूरी संवेदनशीलता के साथ्…………बहुत सुन्दर्।
वह रंज लिए, बैठे दिल में
ReplyDeleteहम प्यार, बांटने निकले हैं!
bhawon se bhari bahut sunder rachna......
सुन्दर अभिव्यक्ति.....आभार
ReplyDeleteगीतों से रची आपकी यह पोस्ट निसंदेह
ReplyDeleteबहुत सार्थक सन्देश दे रही है !
विद्रोह अगर सकारात्मक होता तो हमारी
सारी सभ्यता हार्दिक हो सकती थी !
इस विद्रोह से बड़ी तेजी से घर परिवार
टूट रहे है यह भी एक सच्चाई है !
आभार अच्छी पोस्ट के लिये !
भूल के बीते दिन की बातें, नयी रोशनी लानी होगी !
ReplyDeleteपहल करोगी अगर नंदिनी,घर की रानी तुम्ही रहोगी
बहुत ही संवेदनशील......सारगर्भित रचना ...बधाई आपको सतीश जी ...
बदलाव तब आयेगा जब बहू और बेटी में फरक ख़तम होगा
ReplyDeleteबेटी अगर बहू बनेगी और अपने को असुरक्षित महसूस करेगी तो आप की क़ोई भी धर्य रखो जैसी शिक्षा काम नहीं आएगी
बेटी अपनी हो या दूसरे की { यानी बहू } जब तक दोनों बराबर नहीं होगी तब तक बदलाव की बात करना बेकार हैं .
हर पुरुष बेटी को विदा करते समय इतना सशंकित क्यूँ हो जाता हैं किस से उसको आशंका हैं और किस से वो अपनी बेटी को सुरक्षित करना चाहता हैं .
2008
जब आप ने ये कविता पहले पोस्ट की थी मैने कहा था जब भी कोई ख़त मेने पढ़ा हैं चाहे माँ लिखे या पिता , पुत्री को ही सीख और संस्कार दिये जाते हैं . क्या इसकी कोई ख़ास वजह हैं की कभी भी कोई ख़त किसी माँ या पिता नए अपनी पुत्र को नहीं लिखा हैं , ना कभी किसी पुत्र को संस्कार देने की बात की गयी हैं . क्यों ?? क्या इस लिये की लड़किया संस्कार विहीन पैदा होती हैं , या इसलिये की लड़के हमेशा सम्स्काओ के साथ दुनिया मे आते हैं ? या इस लिये की घर का मतलब हैं नारी की सारी जिम्मेदारी , फिर चाहे वोह माँ , हो या बेटी या सास या बहु ?? कभी कोई ख़त किसी पुत्र को भी लिखा जाता , चाहे माँ लिखती या पिता , या ससुर तो शायद भारतीये संस्कारो की गरिमा को कुछ आगे ले जाया जाता . http://satish-saxena.blogspot.com/2008/07/blog-post.html?showComment=1215355800000#c176490314890833262
तब आप का उत्तर फरक था और आज २०११ में आप की पोस्ट वो कह रही हैं जो मैने तब कहा था
कल 26/11/2011को आपकी किसी पोस्टकी हलचल नयी पुरानी हलचल पर हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
विचारणीय आलेख ,आपके विचार सराहनीय हैं ..
ReplyDeleteबहुत ही मर्मस्पर्शी रचनाएं...गद्द्य और पद्द्य दोनों ही...
ReplyDeleteहर एक पंक्ति सार्थक है..
ReplyDeleteनारी के प्रति सम्मान रखने वाले व्यक्ति को ..शत शत नमन ....
ReplyDeleteशब्दों से दिल को छू लेने वाले लेखन के लिए बधाई स्वीकार करें
भाव भरा उद्बोधन!!
ReplyDeleteमन को अन्दर तक आन्दोलित कर देती अभिव्यक्ति
आपके विचार कित्ते अछे लगते हैं ..और चित्र भी तो .
ReplyDeleteज़ाहिर है कि रचना पर आपसे व्यक्तिगत आलाप ही चाहूंगा !
ReplyDeleteकुछ बंदे ज़ज्बातों और गणित में भेद नहीं करते पर मैं आपको सारे गणित से ऊपर गिनूंगा ! अमूमन मित्रों को जितना ज्यादा जानों उतनी ही पोल खुलती है लेकिन आपके मसले पर यह स्मार्ट इन्डियन के कहन जैसी है :)
विचारणीय पोस्ट है- बहुत से प्रश्न उठाती हुई .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ज़ज़्बात ।
ReplyDeleteबेटी के लिए सही सीख है ।
बेटियों को भी आत्मनिर्भर होते हुए भी अपने संस्कारों का पालन करते हुए परिवार में परस्पर प्यार बनाये रखने में अपना सहयोग देना चाहिए ।
गीतों की सुन्दर पंक्तियाँ पहले भी पढ़ी हैं ।
और हाँ भाई जी , आप जो कहना चाहते थे , खुलकर कह सकते हैं । अब सब खुल रहा है । :)
ReplyDeleteमानवीय संबंधों और उनसे जुड़ी संवेदनाओं पर लिखी बहुत सुंदर पोस्ट. बहुत बढ़िया सक्सेना जी.
ReplyDeleteबड़े भाई!
ReplyDeleteये बुनियादी सीख... आपको जाना है, तब जाना है कि रिश्ते किसे कहते हैं और रिश्तों को निभाना क्या होता है!! जीवन के गणित में दोस्त उँगलियों पर नहीं धड़कनों में गिने जाते हैं!!
सादर!
कवितामयी विचारमयी सोच के लिए मजबूर करती पोस्ट॥
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन प्रस्तुती....
ReplyDeleteएक अर्थपूर्ण पोस्ट हर तरह से .. सुंदर आव्हान लिए और हमारी बुनियादों की बात करते हुए .....
ReplyDeleteबड़ी ही सारगर्भित सोच और पारदर्शी जीवनशैली, पढ़कर बहुत ही अच्छा लगा।
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति.....आभार
ReplyDeleteबहुत लाजबाब प्रस्तुति !
ReplyDeleteबधाई !
बहुमूल्य प्रस्तुति.... अंतर को स्पर्श करती...
ReplyDeleteसादर आभार...
आप का लेखन अब आदरणीय स्थान हासिल कर चुका है सतीशजी| आपको कई नवलेखक अपना मार्गदर्शक मानते हैं और मुझे लगता है हमसब शत-प्रतिशत सही हैं|
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें आपके परिवार के लिए :]]]]
दादा ... आपके मन के जज्बातों को समझते हैं... और आपका लेखन दूसरों को सोचने पर मजबूर करता है... उन्ही में से एक है आज की ये पोस्ट...
ReplyDeleteसाधुवाद.
बहुत सारगर्भित प्रस्तुति...आप की सोच आज के समय बहुत प्रेरक और अनुकरणीय है...आभार
ReplyDeleteफिर आया हूँ -पहली बार से संतृप्ति नहीं ले पाया था -आज फिर से इस अनुपम गीतिका दर्शन को पढ़ा -
ReplyDeleteमहिलाओं को अंतिम उद्बोधन ठीक है मगर पुरुष के अपमान की बिना पर नहीं भाई साहब !:) बाकी तो यह पोस्ट नहीं
जीवन दर्शन की एक संदर्भिका है -आपसे बहुत आशाएं हैं !
गहन विचार मंथन
ReplyDeleteइन बातों को दोहराते रहना जरूरी है।
ReplyDeleteइस पोस्ट में कई बतें ऐसी हैं जो दिल को छु गईं और विचार मंथन के लिए छोड़ गईं।
ReplyDeleteसदियों से शोषित वर्ग के प्रति आपके चिन्ता मुखर है और प्रेरित करती हैं कि इसके विरुद्ध आवाज़ उठाया जाए।
कविता काफ़ी ओजपूर्ण और सुन्दर है।’बहुत अच्छी पोस्ट।
ऊपर से तो सब कुछ शुभ-शुभ चला आ रहा था। बस,लास्ट पैरा पढ़के टेंशन हो गया! हम तो ऐसे ही सुधरने को तैयार हैं,काहे भड़काते हैं हुजूर!
ReplyDeleteसारा जीवन किया समर्पित
ReplyDeleteपरमार्थ में नारी ही ने ,
विधि ने ऐसा धीरज लिखा
केवल भाग्य तुम्हारे में ही..
बहुत ही संवेदनशील,सारगर्भित रचना,बधाई आपको सतीश जी इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए ...
That is a lovely article. And I love the work too, courtesy the picture.
ReplyDeleteFrom everything is canvas
jab bhi ye padya padhate ho
ReplyDeleteankhon se ashru bahata hoon...
aap bhai bare yahan sabke.....
balak ko bhi bhaw de jate ho...
pranam.
अत्यन्त मार्मिक.....
ReplyDeleteबुनियादी बातों को उजागर करती आपकी प्रस्तुति बहुत ही भावपूर्ण और सार्थक है.
ReplyDeleteआपकी सुन्दर भावनाओं को नमन.
नमस्कार...
ReplyDeleteपहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ..इतना सुन्दर सार्थक ब्लॉग बनाने के लिए ह्रदय से बधाई..
आपकी लिखी कुछ रचनाये अभी पढ़ी है..बहुत सुन्दर.
किस घर को अपना बोलूं माँ
किस दर को , अपना मानूं !
भाग्यविधाता ने क्यों मुझको
जन्म दिया है , नारी का,
बड़े दिनों के बाद, आज भैया की याद सताती है
पता नहीं क्यों सावन में पापा की यादें आती है !
-सर कभी वक्त मिले तो आप मेरी कविताये भी पढियेगा.शायद आपको पसंद आये.
अच्छे संस्कार कभी धोखा नहीं देते। ईश्वर सबको सामर्थ्य दे कि सच्चे प्यार और विश्वास पर खरा उतरा जा सके।
ReplyDeletevah saxena ji ,...vah .
ReplyDeleteHm samajh nahi paye tumko kyun mara is bedardi se . bahut achhi rachana .
पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ.....इतना सुन्दर ब्लॉग बनाने के लिए बधाई..
ReplyDeleteआपकी लिखी कुछ रचनाये अभी पढ़ी है..बहुत सुन्दर.....
सुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteअच्छी लगी .
ReplyDeletesathish Ji samajh nahi aata ki itne din aapke blog se door kaise raha......khair der aayad durust aayad...........is post ke liye haits off.
ReplyDeleteदिल से निकली ईमानदार,खूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDelete