Friday, April 19, 2024

गढ़ दिया तुमने हमें अब, भाग्य अपना ख़ुद गढ़ेंगे -सतीश सक्सेना

आदरणीय रमाकान्त सिंह जी का अनुरोध पाकर, उनकी ही प्रथम पंक्तियों से, इस कविता की रचना हुई , आभार भाई  ! 

गढ़ दिया तुमने हमें अब, भाग्य अपना ख़ुद गढ़ेंगे !

धरा से सहनशीलता ले,
अग्नि का ताप सहा हमने 
पवन के ठन्डे झोंको संग 
सलिल से शीतलता पायी 
यही पर ज्ञान लिया तुमसे
परिश्रम की क्षमता आयी 
अब हुआ विश्वास सचमुच 
छू सकेंगे हम गगन ,अब 
ज्ञान पाकर शारदा से, 
भाग्य अपना खुद लिखेंगे !
गढ़ दिया तुमने हमें अब, भाग्य अपना खुद गढ़ेंगे !

अब हमें विश्वास अपना
रास्ता पाएंगे , हम भी  !
ज्ञान का आधार लेकर ,
विश्व को समझेंगे हम भी 
अपने विद्यालय से ही तो 
मिल सका है बोध हमको 
शक्तिशाली पंख पाकर 
छू सकेंगे चाँद हम ,अब 
प्रबल इच्छाशक्ति  लेकर, 
भाग्य अपना खुद बुनेंगे !
गढ़ दिया तुमने हमें अब , भाग्य अपना खुद गढ़ेंगे !

https://www.facebook.com/ramakant.singh.509

4 comments:

  1. बहुत सुन्दर . आत्मविश्वास से सशक्त कुछ नहीं .

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  2. यानि सीधे -सीधे रचियता को ही आँख दिखादी कविवर!!
    पर सच है कि खुद पर विश्वास और भाग्यवाद पर नहीं कर्मवाद पर विश्वास ही श्रेष्ठ है! खुद के भीतर उपजा ज्ञान और लक्ष्य के प्रति दृढता ही मनुष्य को
    धरती से आसमान तक ले जाती है! आदरणीय रामकांत जी को हार्दिक धन्यवाद मुखड़ा दिखाकर एक सार्थक सृजन के लिए प्रेरित करने के लिए! बड़ा अच्छा गीत बना है सतीश जी! आभार और प्रणाम 🙏😊

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- सतीश सक्सेना

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