Tuesday, August 27, 2024

हिन्दी कवि -सतीश सक्सेना

कितनी ही रचनाएँ लोगों ने कॉपी करके अपने नाम से छपवायीं हैं , मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता !

कॉपी करने वाले से हमेशा मूल रचनाकार की रचना ही श्रेष्ठ होती है , अगर आप हिन्दी की जानकार हैं तब ध्यान से मेरी रचनाओं को पढ़िए और तुलना करें भौंडी रचनाओं से जो एक चाटुकार द्वारा लिखी गई हों आपको फ़र्क़ पता चल जाएगा !

फ़ेसबुक पर मेरे लगभग ७००० मित्र हैं उनमें आपको कवि नाम लगाये कोई नहीं मिलेगा , जो ख़ुद को कवि लिखता हो मैं उसे कविता के योग्य ही नहीं मानता , कविता लिखी नहीं जाती बल्कि अंतर्मन से उत्सर्जित होती है ! आज कल के हिन्दी कवि भांड और चाटुकार से अधिक कुछ नहीं जो पूँछ हिलाते मिलते हैं हर उस किसी के आगे , जो उन्हें धन या पद से पुरस्कृत कर सके !

मेरी लगभग ३५० रचनायें फ्री हैं सबके लिए , इन चोरों के लिए भी जो इन्हें अपने नाम से छपवाने चाहे , शौक़ से छपवायें , हाँ भोंडी पेरोडी छापना सिर्फ़ एक सस्ता मजाक है जो नहीं करना चाहिये ! मैंने जो कुछ लिखा समाज के लिए लिखा है अगर किसी काम आ जायें तो मेहनत सफल मानूँगा !

मंच कवियों की भौंडी रचनाओं ने हिन्दी को बर्बाद किया है , सस्ते हिन्दी प्रेमियों को सस्ती रचनायें सुनाते यह भांड गवैये, जब से इन्हें चाटुकारिता के बदले सरकारी पुरस्कार मिले हैं , ख़ुद को साहित्यकार कहने लगे हैं , विश्व में हिन्दी की प्रतिष्ठा धूल में मिला दी है !

काव्यमंच पर आज मसखरे छाये हैं !
शायर बनकर यहाँ , गवैये आये हैं !

पैर दबा, कवि मंचों के अध्यक्ष बने,
आँख नचाके,काव्य सुनाने आये हैं !

रजवाड़ों से,आत्मकथाओं के बदले
डॉक्टरेट मालिश पुराण में पाये हैं !

पूँछ हिलाए लेट लेटकर तब जाकर
कितने जोकर , पद्मश्री कहलाये हैं !

2 comments:

  1. आदरणीय सतीश जी, चाटुकार कवियों की एक बड़ी बारात
    रोज़ टी वी पर देखी जा सकती है, जिनको देखकर कवि धर्म पर लज्जा आती है! 'और दूसरी बात आपसे दो तीन वर्ष पहले भी कही थी कि हमारी कविताएँ ( हालांकि क्षमा प्रार्थी हूँ कि मैं भी जन्मजात कवियों की श्रेणी में नही आती) हमारी संततियों के समान है! उन्हेंलावारिस छोड़कर उनके साथ छेड़ छाड़ का अधिकार दे कर छद्म कवियों को अधिकार दे देते हैं कि वे हमारी बौद्धिक संपदा से मनमाना व्यवहार करें! जब आप पुस्तक छपवाने में सक्षम हैं तो क्यों अपनी इतनी सुंदर और सरस रचनाओं को संगृहीत नही करते! क्षमा करें मुझे आपकी बात से ज़रा भी खुशी नही हुई! हाँ एतराज अवश्य है! मैं इसे आपकी विनम्रता नहीं कहूँगी! आशा है आप मेरी बात पर गौर करेंगे! 🙏

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  2. जब भी सरकार के लिए गीत गाते चारण कवियों को देखती हूँ तो सोचती हूँ कि जब सरकार बदल जायेगी तब इनका क्या हश्र होगा, राम जाने 🙏😊

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- सतीश सक्सेना

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