आज कल राजनीतिक नेताओं के झंडेबरदार ,बहुत अधिक क्रियाशील हैं , देश में ४-५ प्रमुख पार्टियों के प्रचार के लिए,नेताओं के इन एजेंटों को, आप फेसबुक पर, मुंह से झाग निकालते हुए, विपक्षी नेता को गालियाँ देते देख सकते हैं ! जबतक किसी विशेष पार्टी की आप बुराई न कर रहे हों तब तक ठीक हैं अगर आपने कोई खामी बता दी तो ये तुरंत आपको विपक्षी पार्टी का आदमी बताकर, गाली गलौज पर उतर आयेंगे !
बदचलन, असंस्कारी एवं भ्रष्ट राजनीतिज्ञों की सम्मान रक्षा के लिए, यह झंडाबरदार, किसी भी हद को पार करते देखे जा सकते हैं ! पार्टी कार्यकर्ता का तमगा लगाए ये लोग, वास्तव में , पार्टी के झंडाबरदार हैं , जो दुम हिलाए अपने नेता के पैरों में, इस उम्मीद से बैठे रहते हैं कि कभी तो उनका हिस्सा उन्हें मिलेगा और वारे न्यारे होंगे ! इस बीच में अपने राजा को खुश करने के लिए, जब तब , विरोधी पक्ष की निकलती हुई गाडी के पीछे दौड़ते हुए, तब तक भौंकते हैं जब तक खुद राजा उन्हें चुप हो जाने के लिए न कह दे !
आज संतोष त्रिवेदी ने एक बयान दिया जिसमें उन्होंने दुःख व्यक्त किया कि इस कट्टरता के चलते कुछ मित्रों ने उनसे किनारा कर लिया , अपने संवेदन शील मित्र को, मेरा सुझाव था कि अच्छा हुआ जो इन राजभक्तों से तुम्हारी जान छुड गयी वे मित्र क्या जो वैचारिक मतभेद तक न स्वीकार कर सकें !
कट्टर समर्थन अथवा नफरत दोनों ही इन भक्तों में आम है , लगता है सड़क पर चलते वक्त, खाते पीते , परिवार में बैठे हो अथवा बाहर, इन्होने राजनैतिक आकाओं का नाम,अपनी पीठ पर गुदवा लिया है , वे किसी पार्टी के हो सकते हैं मगर उनकी अपनी व्यक्तिगत पहचान नष्ट हो चुकी है अतः वे चाहे कुछ भी हों पर वे संवेदनशील मित्र नहीं हो सकते !
राजनैतिक पार्टियों के इन झंडाबरदारों को यह खूब पता है कि राजनीति में नोट कैसे कमाए जाते हैं और सारे नेताओं का उद्देश्य, राजनीति में आने का क्या है ? करोड़ों रूपये दाव पर लगा, सौ गुना बापस , आने का इंतज़ार करते इन चमचों को, अपना हिस्सा मिलने की पूरी उम्मीद है ! अतः देश भक्ति , वीररस, धर्म और शहीदों के गीत गाते इन देश भक्तों ने कमर कस , अपने उस्तादों के लिए, जिताने हेतु जिहाद का आवाहन कर रखा है !
मूरख जनता खूब लुटी है, पाखंडी सरदारों से !
देश को बदला लेना होगा, इन देसी गद्दारों से !
पूंछ हिलाकर चलने वाले,सबसे पहले भागेंगे !
सावधान ही रहना होगा, इन झंडेबरदारों से !
मूरख जनता खूब लुटी है, पाखंडी सरदारों से !
देश को बदला लेना होगा, इन देसी गद्दारों से !
पूंछ हिलाकर चलने वाले,सबसे पहले भागेंगे !
सावधान ही रहना होगा, इन झंडेबरदारों से !
वे मित्र क्या जो वैचारिक मतभेद तक न स्वीकार कर सकें | बहुत दिनों के बाद कहीं कमेन्ट कर रहा हूँ क्यूँ की आपके यह उच्च विचार हैं लेकिन सभी कहते हैं ऐसा हकीकत में ऐसा होता नहीं है | यहाँ तो वैचारिक मतभेद में लोग अफवाहें फैलाने लगते हैं | ऐसे ही लिखते रहे |
ReplyDeleteकटु सत्य .....
ReplyDeleteलोकतंत्र के महापर्व में सबको इंतजार रहता है इन अवसरों का.
ReplyDeleteजी झंडे से नहीं बरदारों को देख कर ही तो मन करने लगता है जब ये झूठा है तो इसके वो को कैसे वोट दे दिया जाये :) और अगर हम पूँछ हिलाना भी चाहें तो भगा नहीं खदेड़ दिये जायेंगे ।
ReplyDeleteबहुत सही कहा....
ReplyDeleteमाट्साब की व्यथा उचित है... लेकिन जैसा कि मैंने वहाम भी कहा था कि उसका कारण सिर्फ वह नहीं है जो उन्होंने बताया है... यदि हम यह मानकर चलें कि हर व्यक्ति की अपनी अपनी वैचारिक स्वतंत्रता है जिसमें राजनैतिक विचारधारा भी एक है और हमें उसका सम्मान करना चाहिये, तो कोई तकलीफ नहीं होती. उन्होंने कहा कि मोदी का विरोध करने पर उनके भाई उनके विरोध में खड़े हो जाते हैं.. तो उन्हें यह भी सोचना होगा कि काँग्रेस का विरोध करने पर वे भी उसी तरह बिफर पड़ते हैं. इन अवसरों पर आवश्यकता है संतुलन बनाए रखने की. तभी तो मतदान की पद्धति गुप्त मतदान कहलाती है!
ReplyDeleteअब हमें ही देख लीजिये, मैं और चैतन्य दिन के 24 घण्टों में कम से हर घण्ते में चार बार ज़रूर बात करते हैं, करीब हैं एक दूसरे के, जबकि राजनैतिक मुद्दों पर कई मतभेद हैं हम दोनों में. त्रिवेदी की चिंता जायज़ है, लेकिन उनके अकेलेपन का (हालाँकि मैं इसे नहीं मानता, उनका भ्रम है) कारण सिर्फ मोदी नहीं हैं!!
सहमत ! अभी थोड़े समय पहले ही उन्होंने काफी समय तक चाय पर बवाल किया था . जब छीछालेदर करने में आप स्वयम शामिल है तो दूसरों पर अंगुली कैसे उठा सकते हैं .
Deleteइस बात पर उनका पक्ष लिया जा सकता है कि वैचारिक मतभेद वर्षों की घनिष्ठ मित्रता पर हावी नहीं होने चाहिए !
सही कहा....
ReplyDeleteफेसबुक पर भी ऐसा बहुत देखने मिला है । ऐसे लोगों की समझदारी में भी सन्देह होता है क्योंकि वे दुराग्रह से भरे होते हैं ।
ReplyDeleteहमारे कई मित्र अलग अलग दलों से हैं, जिनमें ज्यादातर भाजपाई हैं पर दरअसल समस्या मोदीत्व की है। मैं कभी कट्टर कांग्रेसी हुआ करता था पर तब भी विरोधी के तर्क सुनता, समझता था। अब किसी खास दल से लगाव नहीं रहा।भाजपा तो कतई नहीं क्योंकि उसमें वे सारी बुराइयां तो समाहित ही हैं जो कांग्रेस में हैं बल्कि और अतिरिक्त भी।
ReplyDeleteरही बात सलिल जी की, मैं कांग्रेस या "आप" को लेकर भी मजबूती से उनकी वकालत करता हूं। बस जो विकल्प हैं उसी के हिसाब से सोचना पड़ता है।
मैं मोदी या भाजपा की कट्टरता के विरुद्ध हूँ रही बात भ्रष्टाचार की,उसमें किसी का दामन पाक-साफ नहीं है। इसलिए देश के लिए मोदी या भाजपा का फासीवाद कहीं ज्यादा खतरनाक है।
*मजबूत वकालत नहीं करता हूं।
Deleteबढ़िया प्रस्तुति सतीश सर , धन्यवाद !
ReplyDeleteInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
जब आलोचना सुनना बंद कर दी जाती है तो ये उदार फासीवाद की पहचान है...इसकी अगली स्टेज कट्टर फासीवाद है, जहां आलोचकों का मुंह ही बंद कर दिया जाता है...
ReplyDeleteजय हिंद...
सत्य वचन.. राजनीति के लिए गंभीर होना अच्छी बात है.. पर कट्टर होना पूरे समाज के लिए दुखदायी है..
ReplyDeleteहमारे यहाँ तो घर में ही डट कर बहस हो जाती है -पर घर तो घर है .
ReplyDeleteवाकई अब समय आ गया है इनसे मुक्ति पाने का। आपका आवहान प्रेरणीय है
ReplyDeleteलालची राजनैतिक झंडेबरदार इनके बारे में जितना कहे कम ही लगता है, वैचारिक मतभेद अपनी जगह मित्रता अपनी जगह है , सटीक पोस्ट आज के हालात पर !
ReplyDeleteराजनैतिक सोच से सामाजिक सोच को जोड़ने से भला नहीं होता। हम दो भिन्न राजनैतिक दलों को वोट दें फिर भी साथ रहें तब आनन्द है।
ReplyDeleteआपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ ... दोस्ती में कभी खटास नहीं आणि चाहिए .... मत भेद दिल भेद नहीं होना चाहिए ....
ReplyDeleteक्या हुआ इक बात पर बरसों का याराना गया,
ReplyDeleteइस बहाने दोस्तों का प्यार पहचाना गया
(आनंद बख्शी)
:(
(अनुराग शर्मा)
पब्लिक सब जानती है कह के नेता को मूर्ख बना रहे हैं...
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