न जाने कब के हम आज़ाद होते,
भुलाना भी उसे , आसान होता !
पहुँचते उसके दरवाजे भिखारी ,
बगावत का, वहीं ऐलान होता !
दिखाते भूख से, बच्चे तड़पते
भुलाना भी उसे , आसान होता !
पहुँचते उसके दरवाजे भिखारी ,
बगावत का, वहीं ऐलान होता !
दिखाते भूख से, बच्चे तड़पते
उसे कुछ भूल का अनुमान होता
नफ़रती अक्षरों को तब तो शायद !
सजा ए मौत का , फ़रमान होता !
लाजवाब
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteअगर इंसान होता तो कब का मार दिया गया होता
ReplyDeleteबेहतरीन गीत
ReplyDeleteआपने जो कहा, बेख़ौफ़ और दो टूक कहा सतीश जी।
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