मानवों की बस्तियों में , बेजुबां मर जाएंगे !
दूध के बदले उन्हें हम प्लास्टिक खिलवाएंगे
दूध के बदले उन्हें हम प्लास्टिक खिलवाएंगे
हम जहाँ होंगे ,वहीँ कुछ गंदगी बिखरायेंगे !
आदतें पशुओं के जैसी, जानवर घबराएंगे !
आदतें पशुओं के जैसी, जानवर घबराएंगे !
हर मोहल्ले में,जिधर देखो, उधर कूड़ा पड़ा !
भिनभिनाती मख्खियों के साथ,बच्चे खायेंगे !
जाहिलों के द्वार, ये आये हैं खाना ढूंढते !
सडा खाना पन्नियों में डालकर खिलवाएंगे !
जूँठने , थैली में भरकर, घर के बाहर है रखी !
गाय देती दूध हमको, हम जहर खिलवाएंगे !
जाहिलों के द्वार, ये आये हैं खाना ढूंढते !
सडा खाना पन्नियों में डालकर खिलवाएंगे !
जूँठने , थैली में भरकर, घर के बाहर है रखी !
गाय देती दूध हमको, हम जहर खिलवाएंगे !
बढ़िया गीत -
ReplyDeleteआभार आपका-
कूड़ा कचरा कहीं भी कैसे भी फेकना हम भारतियों का जन्मसिद्ध अधिकार है
ReplyDeleteइसे मत छीनिये :)
भूखे , खाना ढूंढते , ये बेजुबां , मर जायेंगे !
वे पिलायें दूध,हम,प्लास्टिक उन्हें खिलवाएंगे !
सार्थक पंक्तियाँ सटीक रचना !
आपकी इस कविता को पढने के बाद सचमुच यह आत्मविश्लेषण का विषय है कि हम जिन्हें बेज़ुबान "जानवर" कहते हैं क्या सचमुच वे जानवर हैं, या वो जिनकी तस्वीर आपने दिखाई है! एक कहावत याद आ गई कि कुत्ता भी जहाँ बैठता है वहाम पूँछ से जगह साफ कर लेता है!
ReplyDeleteएक ज्वलंत सामाजिक मुद्दा उठाया है आपने!!
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (20.02.2014) को " "
ReplyDeleteजाहिलों की बस्ती में, औकात बतला जायेंगे
" ( चर्चा -1530 )" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है,धन्यबाद।
बहुत सुंदर ज्वलंत सामाजिक मुद्दे पर सटीक अभिव्यक्ति...!
ReplyDeleteRECENT POST - आँसुओं की कीमत.
हम हर ओर गंध फैलाते रहते हैं, काश हम सुधर जायें।
ReplyDeleteफिर भी कहते 'मेरा भारत महान'...
ReplyDeleteजय हिंद...
दूषण प्रदूषण के लिए लोग खुद जिम्मेवार हैं
ReplyDeleteजरुरत है संभलने की और सोचने की
इस तस्वीर की जगह पोस्ट में वर्णित जगह की तस्वीर कविता का असर कई गुना बढ़ा देती, हो सकता है कि मैं गलत होऊँ।
ReplyDelete"बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलया कोय ।
ReplyDeleteजो दिल खोजौं आपना मुझ सा बुरा न कोय॥"
कबीर
बहुत मार्मिक एवं यथार्थ परक भाव , हमें वास्तव में चेतने की आवश्यकता है .
ReplyDeletebilkul sach kaha hai aapne.......
ReplyDeleteसटीक .......
ReplyDeleteलेखनी अपने प्रवाह मैं कड़वे सच समेट लाई है - केवल पढ़ने भर को नहीं गुनने योग्य .उक्तियाँ हैं !
ReplyDeleteदिल को चोट करती रचना... बहुत सुंदर ..
ReplyDeletegandagi men jina bhartiyon kii ek sanskaar ban chuka hai
ReplyDeleteलेकिन बाहर जाते ही हम सुधर जाते हैं.
ReplyDeleteइतना गुस्सा ......... दर्द दिखती रचना ... !!
ReplyDeleteपान खायेंगे , यहीं थूकेंगे , छिलके डालेंगे !
ReplyDeleteकूड़ा, कचरा फेंकने , औरों के द्वारे जायेंगे !
यही संस्कार बचे हैं अब तो.:(
रामराम.
मुद्दे को उठाती सुन्दर कविता
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