Thursday, February 20, 2014

आदतें पशुओं के जैसी, जानवर घबराएंगे ! - सतीश सक्सेना

मानवों की बस्तियों में , बेजुबां मर जाएंगे !
दूध के बदले उन्हें हम प्लास्टिक खिलवाएंगे

हम जहाँ होंगे ,वहीँ कुछ गंदगी बिखरायेंगे !
आदतें पशुओं के जैसी, जानवर  घबराएंगे !

हर मोहल्ले में,जिधर देखो, उधर कूड़ा पड़ा !
भिनभिनाती मख्खियों के साथ,बच्चे खायेंगे !

जाहिलों के द्वार, ये  आये हैं  खाना ढूंढते !

सडा खाना पन्नियों में डालकर खिलवाएंगे !

जूँठने , थैली में भरकर, घर के बाहर है रखी !

गाय देती दूध हमको, हम जहर खिलवाएंगे !

20 comments:

  1. बढ़िया गीत -
    आभार आपका-

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  2. कूड़ा कचरा कहीं भी कैसे भी फेकना हम भारतियों का जन्मसिद्ध अधिकार है
    इसे मत छीनिये :)

    भूखे , खाना ढूंढते , ये बेजुबां , मर जायेंगे !
    वे पिलायें दूध,हम,प्लास्टिक उन्हें खिलवाएंगे !
    सार्थक पंक्तियाँ सटीक रचना !

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  3. आपकी इस कविता को पढने के बाद सचमुच यह आत्मविश्लेषण का विषय है कि हम जिन्हें बेज़ुबान "जानवर" कहते हैं क्या सचमुच वे जानवर हैं, या वो जिनकी तस्वीर आपने दिखाई है! एक कहावत याद आ गई कि कुत्ता भी जहाँ बैठता है वहाम पूँछ से जगह साफ कर लेता है!
    एक ज्वलंत सामाजिक मुद्दा उठाया है आपने!!

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  4. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (20.02.2014) को " "

    जाहिलों की बस्ती में, औकात बतला जायेंगे

    " ( चर्चा -1530 )"
    पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है,धन्यबाद।

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  5. बहुत सुंदर ज्वलंत सामाजिक मुद्दे पर सटीक अभिव्यक्ति...!

    RECENT POST - आँसुओं की कीमत.

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  6. हम हर ओर गंध फैलाते रहते हैं, काश हम सुधर जायें।

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  7. फिर भी कहते 'मेरा भारत महान'...

    जय हिंद...

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  8. दूषण प्रदूषण के लिए लोग खुद जिम्मेवार हैं
    जरुरत है संभलने की और सोचने की

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  9. इस तस्वीर की जगह पोस्ट में वर्णित जगह की तस्वीर कविता का असर कई गुना बढ़ा देती, हो सकता है कि मैं गलत होऊँ।

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  10. "बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलया कोय ।
    जो दिल खोजौं आपना मुझ सा बुरा न कोय॥"
    कबीर

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  11. बहुत मार्मिक एवं यथार्थ परक भाव , हमें वास्तव में चेतने की आवश्यकता है .

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  12. bilkul sach kaha hai aapne.......

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  13. लेखनी अपने प्रवाह मैं कड़वे सच समेट लाई है - केवल पढ़ने भर को नहीं गुनने योग्य .उक्तियाँ हैं !

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  14. दिल को चोट करती रचना... बहुत सुंदर ..

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  15. gandagi men jina bhartiyon kii ek sanskaar ban chuka hai

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  16. लेकिन बाहर जाते ही हम सुधर जाते हैं.

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  17. इतना गुस्सा ......... दर्द दिखती रचना ... !!

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  18. पान खायेंगे , यहीं थूकेंगे , छिलके डालेंगे !
    कूड़ा, कचरा फेंकने , औरों के द्वारे जायेंगे !

    यही संस्कार बचे हैं अब तो.:(

    रामराम.

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  19. मुद्दे को उठाती सुन्दर कविता

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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