हिंदी के बदनाम जगत में , यारों मैं भी लिखता हूँ !
उजड़े घर में ध्यान दिलाने, कड़वी बातें लिखता हूँ !
तुम्हें बुलाने भारी मन से, धुंधली आँखों लिखता हूँ !
टूटा चश्मा, रोती राखी , माँ की धोती लिखता हूँ !
मां को चूल्हा नजर न आये, पापा लगभग टूट चुके
तेरा बचपन याद दिलाने को कुछ बातें लिखता हूँ !
क्रूर विसंगतियाँ समाज की आगत को बतलानी हैं
आसपास के खट्टे मीठे , कड़वे अनुभव लिखता हूँ !
मेरी कविता, गीत, लेख, साहित्य नहीं कहलायें, पर
मैं धीमी आवाजों को अभिव्यक्ति दिलाने लिखता हूँ
लाजवाब। लिखते चलें।
ReplyDeleteवाह। बस ऐसे ही लिखते रहिए।
ReplyDeleteतुम्हें पुरानी याद दिलाने को
ReplyDeleteकुछ बातें, लिखता हूँ !
बहुत खूब ! सरल हृदय से प्रवाहित निर्मल सी भावाभिव्यक्ति ।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 10 नवंबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteवाह! आप लिखते रहिए, वेदना किसी किसी की भी हो!
ReplyDeleteसमय के साथ सब कुछ दर्ज़ होना जरूरी है।
सादर
बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत उम्दा
ReplyDeleteवाह !बहुत सुंदर !
ReplyDeleteतुम्हें बुलाने आधे मन से, धुंधली आँखों लिखता हूँ !
ReplyDeleteटूटा चश्मा, रोती राखी , माँ की धोती लिखता हूँ !...वाह!बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति मन को छूती।
सादर
मां को चूल्हा नजर न आये, पापा लगभग टूट चुके
ReplyDeleteतेरा बचपन याद दिलाने को कुछ बातें लिखता हूँ !बहुत भावपूर्ण रचना सतीश जी। संवेदनशील भावों का प्रवाह मन को छूता है।
सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteवाह, बहुत ख़ूब
ReplyDelete