Friday, June 26, 2020

पंहुचेंगे कहीं तक तो प्यारे,ये कपोत दिलेर,हमारे भी -सतीश सक्सेना

खस्ता शेरों को देख उठे, कुछ सोते शेर हमारे भी !
सुनने वालों तक पंहुचेंगे, कुछ देसी बेर हमारे भी !

पढ़ने लिखने का काम नहीं बेईमानों की बस्ती में !
बाबा-गुंडों में स्पर्धा , घर में हों , कुबेर हमारे भी !


चोट्टे बेईमान यहाँ आकर बाबा बन घर को लूट रहे 
जनता को समझाते हांफे, पुख्ता शमशेर हमारे भी !

जाने क्यों वेद लिखे हमने, हँसते हैं हम अपने ऊपर
भैंसे भी, कहाँ से समझेंगे, यह गोबर ढेर, हमारे भी !


फिर भी कुछ ढेले फेंक रहे ,शायद ये नींदें खुल जाएँ ! 
पंहुचेंगे कहीं तक तो प्यारे,ये कपोत दिलेर,हमारे भी !

3 comments:

  1. फेंके ढेले सब लपक रहे चिकने घड़े बाज ना आयें
    वापस उल्टा खींच कर मारेंं फर्जी शेर हुँकारें भी।

    वाह लाजवाब।

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  2. चोट्टे बेईमान यहाँ आकर बाबा बन घर को लूट रहे
    जनता को समझाते हांफे, पुख्ता शमशेर हमारे भी !
    वाह!!! बहुत ख़ूब!!!

    ReplyDelete
  3. बड़ी विनम्रता से कह रहा हूँ कि 'विज़िबल आफ़्टर अप्रूवल' हटा दीजिए। यह निरुत्साहित करता है, कॉमेंट करने के लिए और रचना धर्मिता के संस्कारों के भी विरुद्ध है। आलोचकों से रचनाकार डरता नहीं। साभार और सादर!!

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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