जिससे घर का सम्मान बढ़े ,
कुछ कागज काले कर ऐसे,
जिससे आपस में प्यार बढ़े
रहमत चाचा से गले मिलें,
होली और ईद साथ आकर !
तो रक्त पिपासु दरिंदों को,नरसिंह बहुत मिल जायेंगे !
विध्वंसक भीड़ सामने हो ,
कोई साथी नज़र नही आए !
हर तरफ धधकते शोलों में,
शीतल जल नज़र नहीं आये !
कुछ नयी कहानी ऐसी लिख,
जिससे अंगारे ठन्डे हों !
मानवता के मतवालों को, हमदर्द बहुत मिल जायेंगे !
कुछ तान नयी छेड़ो ऐसी
झंकार उठे, सारा मंज़र ,
कुछ ऐसी, परम्परा जन्में ,
हंस गले मिलें फेंकें खंज़र,
होली पर, मोहिद रंग खेलें,
गौरव हों दुखी, मुहर्रम पर !
तब धर्म युद्ध में कंधे को , सारथी बहुत मिल जायेंगे !
वह दिन आएगा बहुत जल्द
नफरत के सौदागर ! सुनलें ,
जब माहे मुबारक के मौके,
जगमग होगा बुतखाना भी !
मुस्लिम बच्चे, प्रसाद लेते ,
मन्दिर में , देखे जायेंगे !
और ईद मुबारक के मौके, हमराह बहुत मिल जाएंगे !
ये जहर उगलते लोग हमें
जब माहे मुबारक के मौके,
जगमग होगा बुतखाना भी !
मुस्लिम बच्चे, प्रसाद लेते ,
मन्दिर में , देखे जायेंगे !
और ईद मुबारक के मौके, हमराह बहुत मिल जाएंगे !
ये जहर उगलते लोग हमें
आपस में, मरवा डालेंगे !
अपने घर की दीवारों में
रंजिश का बिरवा बोयेंगे !
चौकस रहना शैतानों से ,
जो हम लोगों के बीच रहें !
तू आँख खोल पहचान इन्हें,जयचंद बहुत मिल जायेंगे !
अपने घर की दीवारों में
रंजिश का बिरवा बोयेंगे !
चौकस रहना शैतानों से ,
जो हम लोगों के बीच रहें !
तू आँख खोल पहचान इन्हें,जयचंद बहुत मिल जायेंगे !
बहुत बहुत सुन्दर सतीश जी...
ReplyDeleteकाश आपकी कही हर बात सच हो जाए ....
ईद की मुबारकबाद कबूल करें.
सादर
अनु
काश आपकी बात सबकी समझ में आ सके..
ReplyDeleteक्या बात कही है आपने...
ReplyDeleteदरिंदे इधर भी हैं उधर भी... सबको सद्बुद्धि आये.... बस यही प्रार्थना है...
ReplyDeleteपहचानो ऐसे लोगो की जो रह कर गद्दारी कर जाते
कुछ ऐसा हो जाए अगर होली और ईद समझ पाते,,,,,
RECENT POST ...: जिला अनुपपुर अपना,,,
सतीश जी आप के इस जज़्बे को हमारा सलाम
ReplyDeleteसतीश जी आप के इस जज़्बे को हमारा सलाम
ReplyDeleteईद,होली संग मनाएं,
ReplyDeleteकाश ऐसा दिन बनायें !
इंशाल्लाह हम सब को वोह दिन जल्द ही देखने को मिले...ईद मुबारक हो..
ReplyDeleteचल उठा कलम कुछ ऐसा लिख मदन ..आपको मेरा सलाम मिले
ReplyDeleteइस हिंसा कि धधकती ज्वाला में ...शान्ति अमन का पैगाम मिले
बहुत ही यथार्थ रचना ... बहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पर आना हुआ..
आम हिंदू हर धर्म को मानने वाले को अपने परिवार वाले जैसे समझता है और इज़्ज़त करता है और यह बात सभी धर्मावलंबियों को समझना चाहिए.
सार्थक विचार लिए पंक्तियाँ...जाने हम कब जागेंगे ...?
ReplyDeleteमंशा सबकी ऐसी ही होती है पर पता नहीं क्यों ,कभी कभी ऊपर वाला कुछ सिरफिरे पैदा कर देता है |
ReplyDeleteयह कवि आह्वान साकार हो जाये ...प्रतीक्षा के बाद एक जोरदार सामयिक रचना ,सद्भाव की रचना !
ReplyDeleteबहुत अच्छाहो,अगर ऐसा हो!
ReplyDeleteखूब साथ निभाया है कलम ने.
ReplyDeleteआपकी कलम ने कमाल किया
ReplyDeleteखूबसूरत यह आह्वान किया
सुनो सुनो ऐ दुनियावालो
सब ईश्वर- अल्लाह के बन्दे हैं
सब मिलजुल कर रहेंगे जब, देश हमारा स्वर्ग बनेगा
ना कोई हिन्दु- मुसलमाँ होगा, सब इंसान बन जाएँगे|
चल उठा कलम कुछ ऐसा लिख,
ReplyDeleteजिससे घर का सम्मान बढ़े ,
कुछ कागज काले कर ऐसे,
जिससे आपस में प्यार बढ़े
यही वह भावना है जिसके बल पर हमारा देश आगे बढ़ सकता है।
नफरत फ़ैलाने वाले एक धर्म /जाति के दुश्मन नहीं , मानवता के दुश्मन हैं !
ReplyDeleteसार्थक आह्वान !
ईद के मुबारक मौके पर बहुत सुंदर संदेश देती रचना..
ReplyDelete.........
ReplyDelete.........
pranam.
सार्थक गीत...आपके गीत समाज को सन्देश देते हैं.. स्वान्तः सुखाय नहीं हैं... भाईचारे के पर्व ईद पर हार्दिक शुभकामना...
ReplyDeleteसार्थक गीत...आपके गीत समाज को सन्देश देते हैं.. स्वान्तः सुखाय नहीं हैं... भाईचारे के पर्व ईद पर हार्दिक शुभकामना...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और प्रेरक प्रस्तुति.
ReplyDeleteप्रस्तुति के लिए हार्दिक आभार.
ईद की बधाई और शुभकामनाएँ.
कुछ नयी कहानी ऐसी लिख,जिससे अंगारे ठन्डे हों !
ReplyDeleteमानवता के मतवाले को, हमदर्द बहुत मिल जायेंगे !
..........सार्थक गीत
भाईचारे का सन्देश देती..
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन और सार्थक रचना...
ईद मुबारक !
ReplyDeleteजयचंदों के देश में शैतानों को पहचानना...भूंसे में सुई खोजने के सामान है...वोट और नोट ने सारे इमान खरीद रक्खे हैं...
ReplyDeleteएक दिन आएगा सतीश जी जब आपके ये बोल इंसानों के दिल में उतरेंगे.
ReplyDeleteआपकी इस सुन्दर प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार२१/८/१२ को http://charchamanch.blogspot.in/2012/08/977.html पर चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका स्वागत है
ReplyDeleteसुन्दर..सार्थक रचना...
ReplyDeleteह दिन आएगा बहुत जल्द
ReplyDeleteनफरत के सौदागर ! सुनलें ,
जब माहे मुबारक के मौके,
जगमग होगा बुतखाना भी
मुस्लिम बच्चे, प्रसाद लेते, मन्दिर में , देखे जायेंगे !
हम प्यार सिखाएं बच्चों को,हमराह बहुत मिल जायेंगे !
प्रणाम आपके ज़जब्बे को
सुन्दर दिल की सुन्दर अभिव्यक्ति!!
ReplyDelete@तो रक्त पिपासु दरिंदों को,नरसिंह बहुत मिल जायेंगे !
ReplyDeleteदद्दा अब तो 'मानवता' के मतवाले ही रक्त पिपासु बन बैठे हैं.
प्रणाम
बड़े भाई, कमाल की बात कही है आपने.. ये भावनाएं हमेशा ही नफ़रत फैलाने वालों की भावनाओं से ऊपर ही रहेंगी.. यही आधारशिला है हमारे देश की एकता की!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!!
बहुत सुन्दर......
ReplyDeleteसार्थक विचार लिए पंक्तियाँ...बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteचल उठा कलम कुछ ऐसा लिख,
ReplyDeleteजिससे घर का सम्मान बढ़े ,
कुछ कागज काले कर ऐसे,
जिससे आपस में प्यार बढ़े
काश सारे कागज कलम
आपके हाथ आ जायें
काले सफेद सब जितने हैं
इंद्र्धनुष बन बिखर जायें !
बहुत सुंदर रचना !
ये जहर उगलते लोग तुम्हे
ReplyDeleteआपस में, मरवा डालेंगे !
ना हिन्दू हैं,ना मुसलमान
ये मानवता के दुश्मन हैं !
पहचान करो शैतानों की, जो हम दोनों के बीच रहें !
तू आँख खोल पहचान इन्हें,जयचंद बहुत दिख जायेंगे !कौमी तराना लेकर आएं हैं सतीश भाई ,प्रतीक कोई "मीर जाफर" का भी बुरा नहीं हमारी कौमों के नासू र हैं ये जय चंद ..इन्हीं के बारे में कहा गया "घर का भेदी लंका ढावे",फिर मुखर हुए राष्ट्री स्वर ,दुन्दुभी वजाई लेखनी ने आपकी ,मुबारक . कृपया यहाँ भी पधारें -
मंगलवार, 21 अगस्त 2012
सशक्त (तगड़ा )और तंदरुस्त परिवार रहिए
सशक्त (तगड़ा )और तंदरुस्त परिवार रहिए
सतीश भाई, आपके इन शब्दों की जितनी भी तारीफ करूँ उतना ही कम है... धर्म के नाम पर अधर्मी ठेकेदारों ने पुरे समाज का जीना मुश्किल रखा है... ईद के मौके पर रब से दुआ है, मुल्क ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में अमन-ओ-अमान कायम हो...
ReplyDeleteईद की ढेरों मुबारकबाद क़ुबूल फरमाइए!
सार्थक संदेश देता हुआ गीत .....सुंदर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteकुछ तान नयी छेड़ो ऐसी
ReplyDeleteझंकार उठे, सारा मंज़र,
कुछ ऐसी परम्परा जन्में ,
हम ईद मनाएँ खुश होकर ..
वाह .. ईद के मुबारक मौके को सार्थक करती रचना ... ऐसी मीठी तान छिड जाए वतन में तो महक प्रेम की आने लगे ... लाजवाब गीत है सतीश जी ... बधाई ...
भाई सतीश जी बहुत उम्दा विचार से लिखी उम्दा कविता |जयहिन्द |
ReplyDeletebahut sundar, bahut positive message !!
ReplyDeletesaaadar .
आओ कुछ ऐसा भी सोचें
ReplyDeleteइ्र्रर्ष्या जो करते मनुष्य से
वे भी तो मनुष्य ही हैं
अतः कहूँ नर ही नर का अह
शत्रु बना फिरता है यों।
यह नर नर ही को कोस रहा
नर ही नर में जयचंद बना
नर ही नर को यों खंडित कर
अस्तित्व बचाना चाह रहा।
हम जरा ठहर रुक कर सोचें
हाबी प्रबृत्तियाँ हैं हम पर
हम इन्हें न जानना चाह रहे
आतुर अपने से लड़ने को।
सदियां बीत गयी ऐसे गीत गाते हुए लेकिन नफरत बढ़ती ही जा रही है।
ReplyDeleteये जहर उगलते लोग तुम्हे
ReplyDeleteआपस में, मरवा डालेंगे !
ना हिन्दू हैं,ना मुसलमान
ये मानवता के दुश्मन हैं !
पहचान करो शैतानों की, जो हम दोनों के बीच रहें !
तू आँख खोल पहचान इन्हें,जयचंद बहुत दिख जायेंगे !
Aamiin ............kash aisa ho
विध्वंसक भीड़ सामने हो ,
ReplyDeleteकोई साथी नज़र नही आए !
हर तरफ धधकते शोलों में
शीतल जल नज़र नहीं आये !
कुछ नयी कहानी ऐसी लिख,जिससे अंगारे ठन्डे हों !
मानवता के मतवाले को, हमदर्द बहुत मिल जायेंगे !
सार्थक सन्देश देती रचना ...
.
ReplyDelete.
.
सार्थक,सामयिक संदेश...
आभार आपका...
...
वह दिन आएगा बहुत जल्द
ReplyDeleteनफरत के सौदागर ! सुनलें ,
जब माहे मुबारक के मौके,
जगमग होगा बुतखाना भी
मुस्लिम बच्चे, प्रसाद लेते, मन्दिर में , देखे जायेंगे !
हम प्यार सिखाएं बच्चों को,हमराह बहुत मिल जायेंगे !
सतीश जी कमाल का लिखा है । आमीन ।
वाह ! क्या बात कही ! आपकी भावनाओं को शत शत नमन !
ReplyDeleteचल उठा कलम कुछ ऐसा लिख,
ReplyDeleteजिससे घर का सम्मान बढ़े ,
bahut khub sir..........
बस एक ही शब्द हैं कहने को .........बहुत खूब
ReplyDeleteये जहर उगलते लोग तुम्हे
ReplyDeleteआपस में, मरवा डालेंगे !
ना हिन्दू हैं,ना मुसलमान
ये मानवता के दुश्मन हैं !
एक सच्चाई को सुघड़ता से गीत में पिरोया है आपने।
कौमी तराने लिख नए इकबाल से ,पहचान तेरी मेरी कौमी एक हो ...बढ़िया लिखते रहें आप ऐसे ही तराने कौम के लिए ,कौमी एतबार के लिए .....शुक्रिया हमारे घर आने का ,टिपियाने का ,आते रहिए ...
ReplyDeleteकाश..! कलम की ये ख्वाइश पूरी हो जाए |
ReplyDeleteअतिसुंदर रचना
मेरा ब्लॉग आपके इंतजार में-
"मन के कोने से..."
आभार...
आपकी किसी पुरानी बेहतरीन प्रविष्टि की चर्चा मंगलवार २८/८/१२ को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी मंगल वार को चर्चा मंच पर जरूर आइयेगा |धन्यवाद
ReplyDeleteअहो! साधुवाद..साधुवाद..
ReplyDeleteकुछ तान नयी छेड़ो ऐसी
ReplyDeleteझंकार उठे, सारा मंज़र,
कुछ ऐसी परम्परा जन्में ,
हम ईद मनाएँ खुश होकर
होली पर,मोहिद रंग खेलें,गौरव हों दुखी ! मुहर्रम पर
इस धर्मयुद्ध में संग देने, सारथी बहुत मिल जायेंगे
बहुत अच्छी बात कही है आपने.भगवान करे पूर्ण हो जाये.तुम मुझको क्या दे पाओगे?
ये जहर उगलते लोग तुम्हे
ReplyDeleteआपस में, मरवा डालेंगे !
ना हिन्दू हैं,ना मुसलमान
ये मानवता के दुश्मन हैं !
पहचान करो शैतानों की, जो हम दोनों के बीच रहें !
तू आँख खोल पहचान इन्हें,जयचंद बहुत दिख जायेंगे !
पारस्परिक सद्भावनाओं को प्रगाढ़ करने के सुन्दर भाव को समेटे राष्ट्रीय प्रेम एवं सद्भावनाओं को जीवंत करती प्रेरणादायी प्रस्तुति ....सादर अभिनन्दन !!!
ये जहर उगलते लोग तुम्हे
ReplyDeleteआपस में, मरवा डालेंगे !
ना हिन्दू हैं,ना मुसलमान
ये मानवता के दुश्मन हैं !
पहचान करो शैतानों की, जो हम दोनों के बीच रहें !
तू आँख खोल पहचान इन्हें,जयचंद बहुत दिख जायेंगे !
....अप्रतिम भावमयी रचना...लाज़वाब प्रवाह और सम्प्रेषण...बधाई
ऊर्जा से भरी सार्थक और सशक्त रचना ,बहुत कुछ सन्देश देती हुई ...
ReplyDeleteऊर्जा से भरी सार्थक और सशक्त रचना ,बहुत कुछ सन्देश देती हुई ...
ReplyDeleteऊर्जा से भरी सार्थक और सशक्त रचना ,बहुत कुछ सन्देश देती हुई ...
ReplyDeleteAman chain ki sarthak sandesh deti hui aapki rachna....
ReplyDelete