"मेरे कुछ मित्र मुझे ईश्वर द्रोही, धर्म विरोधी, इस्लाम विरोधी, हिन्दू विरोधी, ईसाई विरोधी आदि आदि न जाने क्या क्या कहते हैं, जबकि असलियत में मैं केवल कुतर्क,अतार्किकता व अवैज्ञानिकता का विरोधी हूँ...जब तक आप कोई तार्किक या समझ आने वाली बात कह रहे हैं...मैं भी आपके साथ हूँ...पर, यदि आप कोई अतार्किक बात कह रहे हैं या ऐसा कुछ कह रहे हैं जिसका हकीकत में कोई अर्थ ही नहीं निकलता...(जब आप कुतर्क कर रहे हों, अवैज्ञानिक या अतार्किक बातें कह रहे हों तो आपकी बातों से कोई भी अर्थ नहीं निकलेगा, यह निश्चित है!)...तो जहाँ तक मुझसे बन पढ़ेगा मैं आपका विरोध करूँगा...और मेरे इस कृत्य के लिये आप मुझे कुछ भी कह सकते हैं ! "
उपरोक्त शब्द चित्र है प्रवीण शाह का, जो मुझे अपने तीखे लेखों से हमेशा आकर्षित करने में सफल रहे हैं ! आज उनकी एक रचना के कुछ भाव मुझे बहुत पसंद आये ! मुझे रचना पढ़ते ऐसा लगा कि जैसे मैं अपने बारे में कह रहा हूँ ! यकीनन हम समान विचारों से प्रभावित होते हैं और क़द्र भी करते हैं ...सो प्रवीण शाह की इस रचना का ,मेरे शब्दों में आनंद लें .....
"मैं हमेशा अपने दिमाग को खुला रखते हुए, अपने समान विचार मित्रों में ही रहना पसंद करता हूँ ! आसपास होते अन्याय का मरते दम तक विरोध करूंगा एवं अपनी सम्पूर्ण ईमानदारी के साथ अपने दिल की आवाज पर कार्य करना पसंद करूंगा !
ईश्वर न करे कि मुझे अपने बेहतरीन ह्रदय के साथ, कभी किसी स्वयम्भू महात्मा की स्तुति गान करना पड़े ! एक दो बार अनजाने में मूर्ख बनने के बाद, परमपिता परमात्मा से इन स्वयम्भू महात्माओं को, ठोकर मारने की शक्ति मांगता हूँ !
ईश्वर शक्ति दे कि मैं समाज में गन्दगी फ़ैलाने वाले , तुच्छ जाहिलों और और विकृत मानसिकता वाले लोगों का विरोध कर सकूं और उन्हें आगे बढ़ने से रोक सकूं !
`अगर यह गुटबंदी है तो मैं एक गुट बाज हूँ !
हँसते हुए प्रवीण शाह एक "बौने दोस्त " को संबोधित कहते हुए कहते हैं अगर यही गुटबाजी है तो मैं गुटवाज हूँ और अपनी सुविधानुसार परिभाषाओं वाला यह शब्द कोष तुझे मुबारक हो ! "
सो आज मैंने भी, प्रवीण शाह के गुट में अपने हस्ताक्षर कर दिए !
मेरी एक रचना की कुछ लाइनें पढ़ें ...
कुछ यहाँ शिखन्डी भी आए
तलवार चलाते हाथों से,
कुछ धन संचय में रमे हुए,
वरदान शारदा से लेते !,
कुछ पायल,कंगन,झूमर के
गुणगान सुनाते झूम रहे ,
मैं कहाँ आ गया, क्या करने, दिग्भ्रमित बहुत हो जाता हूँ !
अरमान लिए आए थे हम , अब अपनी राहें भूल चले !
कुछ प्रश्न बेतुके से सुनकर
पंडित पोथे, पढने भागें,
कुछ प्रगतिवाद, परिवर्तन
के सम्मोहन में ही डूब गए
कीकर, बबूल उन्मूलन की
सौगंध उठा कर आया था ,
मैं चिर-अभिलाषित, ममता का, रंजिश के द्वारे आ पहुँचा !
ऋग्वेद पढाने आए थे ! पर अपनी शिक्षा भूल चले !!
उपरोक्त शब्द चित्र है प्रवीण शाह का, जो मुझे अपने तीखे लेखों से हमेशा आकर्षित करने में सफल रहे हैं ! आज उनकी एक रचना के कुछ भाव मुझे बहुत पसंद आये ! मुझे रचना पढ़ते ऐसा लगा कि जैसे मैं अपने बारे में कह रहा हूँ ! यकीनन हम समान विचारों से प्रभावित होते हैं और क़द्र भी करते हैं ...सो प्रवीण शाह की इस रचना का ,मेरे शब्दों में आनंद लें .....
"मैं हमेशा अपने दिमाग को खुला रखते हुए, अपने समान विचार मित्रों में ही रहना पसंद करता हूँ ! आसपास होते अन्याय का मरते दम तक विरोध करूंगा एवं अपनी सम्पूर्ण ईमानदारी के साथ अपने दिल की आवाज पर कार्य करना पसंद करूंगा !
ईश्वर न करे कि मुझे अपने बेहतरीन ह्रदय के साथ, कभी किसी स्वयम्भू महात्मा की स्तुति गान करना पड़े ! एक दो बार अनजाने में मूर्ख बनने के बाद, परमपिता परमात्मा से इन स्वयम्भू महात्माओं को, ठोकर मारने की शक्ति मांगता हूँ !
ईश्वर शक्ति दे कि मैं समाज में गन्दगी फ़ैलाने वाले , तुच्छ जाहिलों और और विकृत मानसिकता वाले लोगों का विरोध कर सकूं और उन्हें आगे बढ़ने से रोक सकूं !
`अगर यह गुटबंदी है तो मैं एक गुट बाज हूँ !
हँसते हुए प्रवीण शाह एक "बौने दोस्त " को संबोधित कहते हुए कहते हैं अगर यही गुटबाजी है तो मैं गुटवाज हूँ और अपनी सुविधानुसार परिभाषाओं वाला यह शब्द कोष तुझे मुबारक हो ! "
सो आज मैंने भी, प्रवीण शाह के गुट में अपने हस्ताक्षर कर दिए !
मेरी एक रचना की कुछ लाइनें पढ़ें ...
कुछ यहाँ शिखन्डी भी आए
तलवार चलाते हाथों से,
कुछ धन संचय में रमे हुए,
वरदान शारदा से लेते !,
कुछ पायल,कंगन,झूमर के
गुणगान सुनाते झूम रहे ,
मैं कहाँ आ गया, क्या करने, दिग्भ्रमित बहुत हो जाता हूँ !
अरमान लिए आए थे हम , अब अपनी राहें भूल चले !
कुछ प्रश्न बेतुके से सुनकर
पंडित पोथे, पढने भागें,
कुछ प्रगतिवाद, परिवर्तन
के सम्मोहन में ही डूब गए
कीकर, बबूल उन्मूलन की
सौगंध उठा कर आया था ,
मैं चिर-अभिलाषित, ममता का, रंजिश के द्वारे आ पहुँचा !
ऋग्वेद पढाने आए थे ! पर अपनी शिक्षा भूल चले !!
मेरी निजी राय है ,कि हमें इस तरह हर किसी की बात का जवाब दे कर जिसे हमारे जवाब से असर नहीं होगा अपना समय नहीं बर्बाद करना चाहिए | हा मैंने कहा है कि विरोध दर्ज करना चाहिए किन्तु ये भी देख लेना चाहिए कि सामने कौन है और उस पर इसका कुछ असर होगा भी कि नहीं |
ReplyDeleteye jo apko 'god giffted hardware' mila hai na use koi 'programmer' apni
ReplyDelete'software' se 'run' nahi kar sakta...
good stand....i regard it
pranam.
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteआपकी कविता सदैव के समान ही उत्तम प्रस्तुति है और श्री प्रवीणजी शाह की ये कविता भी पहली बार आपके लिंक से देखी जो आपकी ही सोच और आपके विचारों को प्रतिबिम्बित करते हुए ही दिख रही है ।
ReplyDeleteईश्वर न करे कि मुझे अपने बेहतरीन ह्रदय के साथ, कभी किसी स्वयम्भू महात्मा की स्तुति गान करना पड़े ! एक दो बार अनजाने में मूर्ख बनने के बाद, परमपिता परमात्मा से इन स्वयम्भू महात्माओं को, ठोकर मारने की शक्ति मांगता हूँ !
ReplyDeleteaapke iss statement ko padh kar aisa lag raha hai, kaash aisa main bhi ho pata...:)
par sayad sabke liye aisa sambhav nahi.............hai nna!!
सतीश जी,
ReplyDeleteमैं भी……
मैं चिर-अभिलाषित, करूणा का,
सदविचार जगाने आया था।
विद्रुप वचन के बाणों से,
मन-द्वेष के द्वारे आ पहुँचा॥
bahut hi khoob ...
ReplyDeletePlease visit my blog.
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गलत के प्रति विरोध दर्ज करना हर व्यक्ति का निजी अधिकारी है, लेकिन कभी कभी उसे लोग अपमान भी समझ लेते हैं। इसलिए विरोध व्यक्त करते हुए सावधानी जरूरी है।
ReplyDelete---------
डा0 अरविंद मिश्र: एक व्यक्ति, एक आंदोलन।
सांपों को दुध पिलाना पुण्य का काम है?
जो गलत है वो हर रूप में गलत होता है। चाहे हम उसके लिए कितने भी तर्क और कुतर्क का सहारा क्यो न ले।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसशक्त रचना ।
ReplyDeleteब्लोगिंग विचारों का अखाडा है ।
यह शब्दों का अखाडा न ही बने तो अच्छा है ।
किसी और को अपने जेसा बनाने के लिए हमे उसके रंग मै थोडा बहुत रंगना पड़ता है दोस्त और दुसरे को बदलना जितना मुश्किल काम है खुद को बदलना उतना मुश्किल नहीं पर प्यार सम्मान दे कर हम किसी दुसरे के दिल मै जगह तो जरुर बना सकते हैं जिससे हमारे आगे के काम मै आसानी हो जाये ! जिनती शक्ति प्यार मै है उतनी मेरे ख्याल से किसी और मै नहीं ये मेरा अपना मत है !
ReplyDeleteसुन्दर विचार !
विचारभिन्नता बनी रहे, विकास का इससे सशक्त आग्रह हो ही नहीं सकता है। आदर सबके विचारों का हो, हमारा गुट वसुधैव कुटुम्कम् पर जाकर रुकेगा।
ReplyDeleteमैं कहाँ आ गया, क्या करने, दिग्भ्रमित बहुत हो जाता हूँ !
ReplyDeleteअरमान लिए आए थे हम , अब अपनी राहें भूल चले !
प्रणाम
वैसे आजकल ब्लाग जगत में दो ही चीजें ज्यादा हो रही हैं एक तो गुट बाजी या फिर गुड बाजी।
ReplyDelete*
कोई हमें भी बताए कि हम कहां हैं।
*
15 January, 2011 16:17
@मैं समाज में गन्दगी फ़ैलाने वाले , तुच्छ जाहिलों और और विकृत मानसिकता वाले लोगों का विरोध कर सकूं और उन्हें आगे बढ़ने से रोक सकूं !
ReplyDeleteसक्सेना साहब,
ये लोग कबूतर के भेष में बाज़ है। साथ ही जानवर कमाल है। भलमनसाई का बे-फायदा उठाते है। इन्हें पता है एकता के नाम पर कोई कुछ नही बोलेगा। इस लिये ब्लेकमेल में अमन की दुहाई देते है। अब नकाब उतर जाना चाहिए।
प्रवीण सर की वो सुंदर कविता आज सुबह ही पढ़ी थी और टिप्पणी में आपकी ये मोहक पंक्ति की झलक देखकर प्रेरणा ले ही रहा था कि यहाँ से टीप कर कुछ लिख डालूं....कि अचानक आपके पोस्ट की अपडेट दिख गयी। खूबसूरत छंद !
ReplyDeleteगुटबाजी ये शब्द या इसके प्रति जुमलेबाजी, इस ब्लौग-जगत में, मुझे बड़ा अजीब सा लगता है। हर किसी की अपनी-अपनी पसंद है...इतने सारे ब्लौगों में से हर पर नजर डालना तो शायद ही किसी के लिये संभव होगा। तो उस नजारिये से ही मैंने अक्सर देखा है कि यहां इस गुटबाजी का आरोप-प्रत्यारोप चलते रहता। चलने दीजिये इसे...हमें आपको जो पसंद होगा वही पढ़ेंगे, जो अच्छा लगेगा वही लिखेंगे...
ईश्वर कहते हैं कि मुझे अपने भक्तों में ज्ञानी बहुत प्रिय हैं -ग्यानिही प्रभुहिं बिसेषि पियारा (बालकाण्ड २१/४)..प्रवीण जी ज्ञानी है वे प्रभु को ही नहीं मुझे भी बहुत प्रिय हैं !
ReplyDeleteयद्यपि वे नास्तिक हैं (मगर चूंकि ज्ञानी हैं इसलिए ईश्वर भी उन्हें देर सबेर माफ़ कर ही देगें:) ! मैं अज्ञेयवादी हूँ बोले तो अग्नोस्तिक ....मेरी उनकी पटरी ठीक बैठती है ...वे भी दिव्याघात से आहत हुए लगते हैं , मैं भी! मगर मैं उफ़ नहीं करता वे कर जाते हैं -ये अच्छी बात नहीं है ! :)
सतीश जी आप अपनी यह अहर्निश ऊर्जा बनाये रखें ..युग युग जियें !
`अपने समान विचार मित्रों में ही रहना पसंद करता हूँ ! '
ReplyDeleteतो फिर....... आपके विचारों का विस्तार कैसे होगा :)
जिंदगी की राह में जैसे जैसे आगे बढ़ते गये और हमें कुछ शोहरत मिले नही की हम सब कुछ भूल गये की हम कहाँ से उठे थे और हमें वास्तव में किस चीज़ की ज़रूरत है...बहुत बढ़िया और प्रेरक रचना रच डाली है आपने...आपके इसी विचार ने तो आपको सबका चहेता बना दिया है....हमें भी बहुत कुछ सीखने को मिल जाता है...भतीजे का प्रणाम स्वीकारें...
ReplyDeleteजहां का सन्दर्भ है कि :
ReplyDeleteसते हुए प्रवीण शाह एक "बौने दोस्त " को संबोधित कहते हुए कहते हैं अगर यही गुटबाजी है तो मैं गुटवाज हूँ और अपनी सुविधानुसार परिभाषाओं वाला यह शब्द कोष तुझे मुबारक हो ! "
--- सीधे ही बोलना पड़ता है , वे अपनी धुच्च पर ही कायम रहते हैं ! साधो जग बौराना !
प्रवीण जी के साथ हूँ ! फिर कहूंगा सत्यमत ग्राह्य है , भीड़ जाए भाड़ में ! कोई न समझे तो क्या किया जा सकता है !
आपकी इस बात पर बहुत ठहरना हो रहा है :
'' कुछ यहाँ शिखन्डी भी आए
तलवार चलाते हाथों से,
कुछ धन संचय में रमे हुए,
वरदान शारदा से लेते !,
कुछ पायल,कंगन,झूमर के
गुणगान सुनाते झूम रहे ,
मैं कहाँ आ गया, क्या करने, दिग्भ्रमित बहुत हो जाता हूँ !
अरमान लिए आए थे हम , अब अपनी राहें भूल चले !''
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ReplyDelete.
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आदरणीय सतीश सक्सेना जी,
समझ नहीं आ रहा क्या कहूँ आपकी इस पोस्ट पर... क्या जरूरी था यह सब ?... आपका यह स्नेह एक बहुत बड़ा तोहफा है मेरे लिये...
आभार!
...
.
ReplyDelete.
.
@ आदरणीय अरविन्द मिश्र जी,
आहत ???... My foot !
आपने मेरी पोस्ट पर लगे चित्र पर गौर नहीं किया शायद... :)
...
तो फिर सतीश जी ,रवीन्द्र नाथ ठाकुर की ये पंक्तियाँ भी याद कर लीजिए -
ReplyDelete'यदि तोर डाक शुने केऊ न आशे
तबे एकला चलो रे !'
*
और हाँ ,अब मैंने अपने स्वयं को दो ब्लागों में सीमित कर लिया है-
1.शिप्रा की लहरें (कविता)
2.लालित्यम् ( गद्य).
(ब्लाग-विधा से अनजान होने के कारण मैंने पुस्तक-संरचना के अनुरूप जो कई ब्लाग बना लिये थे उनसे सबको अ्सुविधा हो रही थी).
कृपया किसी का नाम लेकर इंगित न करें यह ब्लॉग किसी का अपमान नहीं करता और न ही किसी के अपमान को प्रोत्साहित करता है !
ReplyDeleteमेरा मंतव्य केवल सांकेतिक विरोध मात्र विरोध है न कि एक पक्ष को आगे प्रमोट करना ! अतः कुछ टिप्पणिया प्रकाशित करने में असमर्थ हूँ !
आशा है बुरा नहीं मानेंगे
मेरे चश्में नंबर बढ़ने वाला है शायद ...
ReplyDeleteरंजिश पे धोखा हुआ और फिर ममता पे तो होना ही था :)
मुझे भी प्रवीण शाह साहब अच्छे इंसान लगते हैं !
आपकी पोस्ट अच्छी लगी , राजेश उत्साही जी से सहमत हूँ .
ReplyDeletehttp://ahsaskiparten.blogspot.com/2011/01/like-cures-like.html
किसी भी चीज़ के लिए केवल उसका दावा ही काफ़ी नहीं हुआ करता बल्कि उसके लिए दलील भी ज़रूरी होती है। यह दुनिया का एक लाज़िमी क़ायदा है। एक आदमी तैराक होने का दावा करे तो लोग चाहते हैं कि वे उसे तैरते हुए भी देखें। यह मनुष्य का स्वभाव है। ऐसी चाहत उसके दिल में खुद ब खुद पैदा होती है, यह उसका जुर्म नहीं है। लेकिन अगर कोई आदमी कभी तैर कर न दिखाए और पानी में पैर डालने तक से डरे तो लोग उसे झूठा, फ़रेबी और डींग हांकने वाला समझते हैं लेकिन मैं जनाब सतीश सक्सेना जी को ऐसा बिल्कुल नहीं समझता। इसके बावजूद भी मैं चाहता हूं कि वे अपने दावे पर अमल किया करें। उनका दावा है कि वे ईमानदार हैं, कि वे अमन चाहते हैं, कि वे हिंदू-मुस्लिम में भेद नहीं करते। यह तो उनका दावा है लेकिन मैंने जब भी उन्हें देखा तो हमेशा इसके खि़लाफ़ ही अमल करते देखा।
...लेकिन ब्लागिँग तो आपके लिए एक नशा मात्र है। कृप्या नशे से मुक्ति पाईये और छोटों को राह सीधी दिखाईये ।
@ अनवर जमाल साहब ,
ReplyDeleteमैं एक सामान्य आदमी हूँ ! न साधू न संत न फकीर ....इन्सानों में पायी जाने वाली बहुत सारी कमजोरियां भी...आप मुझ पर यकीन करें न करें मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता !
आप मुझे एक साधारण ब्लागर और अपना एक पुराना परिचित मान लें यही बहुत है !
Saxena ji -शुक्र हैं कि आप हिंदुस्तान में हैं, अगर पाकिस्तान में होते तो ईस निंदा के चक्कर में सजाये मौत कि सजा सुन चुके होते.
ReplyDeleteye Anwar ji ke liye :-
अनवर भाई मैं कभी गुजरात नहीं गया. आप गये होंगे तो आप को पता होगा. मैं बात इंसानियत कि कर रहा हूँ.
अगर कोई धर्म या कोई धार्मिक तरीका इंसानियत का दुश्मन बन जाय तो वो कभी भी धर्म नहीं हो सकता. ऐसे धर्म से तो दुरी ही अच्छी हैं, बल्कि दुरी ही क्यों ऐसे धर्म से नफरत करनी चाहिए. मेरी पोस्ट में गुजरात या मोदी का कोई जिक्र नहीं था. रही बात गुजरात में मोदी कि तो गुजरात कि जनता मुझसे और आप से अच्छा जानती हैं. और में जंहा तक जनता हूँ गुजरात के बारे में तो ये कि - गुजरात दिल्ली और उत्तर प्रदेश से ज्यादे खुशहाल हैं.
आप अपनी राय सिर्फ मेरी पोस्ट पर दे.
आपकी राय का इंतजार रहेगा..........