१९८७, कनाट प्लेस का एक सिनेमा हॉल, शायद प्लाज़ा की एक घटना ....
दो वर्षीया गुडिया को गोद में लेकर, बालकनी में घुस ही रहा था कि अचानक अँधेरे में एक अजीब आवाज और धुआं उठने के साथ साथ शोर, भागो बम फट गया ...बाहर भागो ......
और लोग एक दूसरे को धक्का देते हुए, बाहर भागने लगे ! बालकनी के एक कोने से तेज धुआं निकलने से सिनेमा हॉल में आग लगने का अंदेशा , भीड़ को दौड़ाने के लिए काफी था !
तुरंत फुर्ती से, गुडिया को सबसे अंत की सीट पर बैठा कर,भागते लोगों के विपरीत, मैं धुएं की स्रोत ( भीड़ का बम ) की ओर भागा , मन में यह चिंता थी कि अगर इस सिलेंडर को तुरंत बाहर नहीं फेंका तो हॉल में धुआं भर जाने के कारण , शो रद्द न हो जाए ! अँधेरे और दम घोंटू धुएं में आँखें बंद ,टटोल कर, आखिर जमीन पर गिरा, तेजी के साथ धुआं फेंकता वह सिलेंडर उठा कर बाहर भागा !
बाहर खड़ी तमाशबीनों की भीड़, मुझे अपनी ओर भागते देख, मुझे रास्ता देने की वजाय मेरे आगे आगे भागने लगी ! तेज आवाज के साथ धुआं फेंकते इस सिलिंडर को , सीढियों फलांगते हुए ,जब बाहर खुले में पटका तब गुडिया की याद आयी कि उसे अकेला हाल में बैठा कर आया हूँ !
उत्सुक लोगों और तालियाँ बजाते तमाशबीनो को फिर धक्का देते हुए उसी स्पीड से सीढियाँ चढ़ते हुए हाल में दुबारा पंहुचा तो बुरी तरह हांफ रहा था , मगर बेटी को उसी सीट पर पाकर जान में जान आई !
अपनी बेटी को लेकर जब बाहर आया तो लोग और सिनेमा हॉल के कर्मचारी तालियाँ बजा रहे थे ! जब उसे गोद में लिया तो वह बहादुर लड़की बिना रोये बैठी हुई थी ! १० मिनट देर से वह शो शुरू हो पाया !
अक्सर किसी भी प्रकार की दुर्घटना होने पर हम लोग तमाशबीनों की भूमिका छोड़, अगर मदद के लिए पहल करें तो और लोग भी आगे आते देखे जाते हैं ! पहल कौन करे ? नाज़ुक मौकों पर ,तुरंत फैसला कर कार्यवाही न कर पाने की हमारी कमी, किसी की जान ले सकती है !
दो वर्षीया गुडिया को गोद में लेकर, बालकनी में घुस ही रहा था कि अचानक अँधेरे में एक अजीब आवाज और धुआं उठने के साथ साथ शोर, भागो बम फट गया ...बाहर भागो ......
और लोग एक दूसरे को धक्का देते हुए, बाहर भागने लगे ! बालकनी के एक कोने से तेज धुआं निकलने से सिनेमा हॉल में आग लगने का अंदेशा , भीड़ को दौड़ाने के लिए काफी था !
तुरंत फुर्ती से, गुडिया को सबसे अंत की सीट पर बैठा कर,भागते लोगों के विपरीत, मैं धुएं की स्रोत ( भीड़ का बम ) की ओर भागा , मन में यह चिंता थी कि अगर इस सिलेंडर को तुरंत बाहर नहीं फेंका तो हॉल में धुआं भर जाने के कारण , शो रद्द न हो जाए ! अँधेरे और दम घोंटू धुएं में आँखें बंद ,टटोल कर, आखिर जमीन पर गिरा, तेजी के साथ धुआं फेंकता वह सिलेंडर उठा कर बाहर भागा !
बाहर खड़ी तमाशबीनों की भीड़, मुझे अपनी ओर भागते देख, मुझे रास्ता देने की वजाय मेरे आगे आगे भागने लगी ! तेज आवाज के साथ धुआं फेंकते इस सिलिंडर को , सीढियों फलांगते हुए ,जब बाहर खुले में पटका तब गुडिया की याद आयी कि उसे अकेला हाल में बैठा कर आया हूँ !
उत्सुक लोगों और तालियाँ बजाते तमाशबीनो को फिर धक्का देते हुए उसी स्पीड से सीढियाँ चढ़ते हुए हाल में दुबारा पंहुचा तो बुरी तरह हांफ रहा था , मगर बेटी को उसी सीट पर पाकर जान में जान आई !
अपनी बेटी को लेकर जब बाहर आया तो लोग और सिनेमा हॉल के कर्मचारी तालियाँ बजा रहे थे ! जब उसे गोद में लिया तो वह बहादुर लड़की बिना रोये बैठी हुई थी ! १० मिनट देर से वह शो शुरू हो पाया !
अक्सर किसी भी प्रकार की दुर्घटना होने पर हम लोग तमाशबीनों की भूमिका छोड़, अगर मदद के लिए पहल करें तो और लोग भी आगे आते देखे जाते हैं ! पहल कौन करे ? नाज़ुक मौकों पर ,तुरंत फैसला कर कार्यवाही न कर पाने की हमारी कमी, किसी की जान ले सकती है !
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ReplyDeleteसचमुच ऐसे अनुभव जरूर बाँटने चाहिए, प्रेरणा मिलती है.
धैर्य और बुद्धि इन विकट स्थितियों में प्रायः साथ छोड़ देते हैं.
लेकिन आपने दोनों को साथ रखा और एक बड़ी दुर्घटना होने से बचा लिया,
हिम्मत को सराहने से अधिक इस पूरे वाकया से सीख ले रहा हूँ.
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समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध,
ReplyDeleteजो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध!
तटस्थता के तटबधं जीवन के हर आयाम में तोड़े बिना हम एक स्वस्थ समाज नहीं बना सकेंगें।
सवाल यह भी है कि हर बार श्री सतीश सक्सेना जैसे जीवट वाले लोग आगे बढ़्कर जलता हुआ सिलेंडर बाहर कब तक फैकेंगे?
दूसरा सवाल यह भी है कि समाज की तटस्थता के कारण ही सिनेमा हाल की सुरक्षा व्यवस्था घास चरने गयी हुयी थी। और सुविधाभोगिता का इससे बढ़्कर उदाहरण क्या होगा कि न सतीश जी को किसी ने धन्यवाद दिया, न उन सिनेमा मालिकों के खिलाफ रपट लिखायी कि उन्होने जनता की जान जोखिम में डाली?
यही कारण है कि इसके लगभग दस साल बाद साकेत के उपहार सिनेमा हाल में भीषण अग्नि कांड हुया!
आपकी हिम्मत की दाद देनी पडेगी और बुद्धि की भी जो उस वक्त इतनी समझदारी से काम लिया।
ReplyDelete
ReplyDeleteप्रतुल वशिष्ठ और संवेदना के स्वर की टिप्पणियों ने इस लेख को सम्पूर्णता प्रदान कर दी !
लेखन के उद्देश्य को समझ अगर एक भी मन उद्वेलित हो जाए तो लेखन सार्थक और मेहनत सफल हो जाती है !
मैं आभारी हूँ चैतन्य आलोक और प्रतुल वशिष्ठ का कि उन्होंने इसके मंतव्य को उभारने में मदद की !
The presence of mind in you is tremendous. A personality figure like you , not even bothering about your own daughter.... saved a lot of ppl.You are indeed a Gr8 person & a good soul & human. Thanks to this blog to you introduce to us.
ReplyDeleteप्रेरणादायक संस्मरण ...
ReplyDeleteइस कलयुगी समाज मै सुकर्मों का मूल्य कोई नहीं आंकता , यंहा तो आदमी सिर्फ अपने लिए जिए जा रहा है , कुछ आप जैसे लोगों की वजह से समाज मै नैतिकता का अंश विद्यमान है | हो सकता है कुछ लोगों के दिलों मै इस घटना से नैतिकता का जन्म हो | धन्यवाद ............
ReplyDeleteपरिस्थितियां जब विकट होती है, इसी समय विवेक का जाग्रत रहना दुर्लभ है। बुद्धि जब धेर्य से काम ले तो ऐसे जीवट भरे कार्य सम्भव है।
ReplyDeleteइस पूरी घटना से यही सीखना है, हम भीड वाला व्यवहार न करें, कुछ उपर उठकर सोचें।
इस जीवट भरे अनुभव को प्रस्तुत करने के लिये आभार।
सलाम सलाम सलाम। आपके जज्बे को सलाम। गुडि़या के धीरज को भी सलाम।
ReplyDeleteहट्स ऑफ ... सर जी !!
ReplyDeleteसचमुच आपने जो किया वह अनुकरणीय है .लोग तो अपनी जान लेकर ऐसे भागते हैं कि रास्ते में किसे धकेल रहे हैं यह भी होश नहीं रहता.
ReplyDeleteअभिनन्दन आपका !
सचमुच आपने जो किया वह अनुकरणीय है .लोग तो अपनी जान लेकर ऐसे भागते हैं कि रास्ते में किसे धकेल रहे हैं यह भी होश नहीं रहता.
ReplyDeleteअभिनन्दन आपका !
बहुत खूब... मैं ताली तो बजाऊँगी परन्तु इस बात के साथ कि मैं कभी उस छोर पर नहीं रहुइन्गीन जहाँ तमाशबीन होते हैं... मैं आपके और उस नन्हीं-सी जान के छोर पर रहूँगीं...
ReplyDeletethank you so much again to teach something very nice...
sir braeivry award ke liye aapka naam jana chaiye.
ReplyDelete........
ReplyDeletesab kuch kaha ja chuka hai...aisi baten kahne ki nahi apitu karne ki
hoti hai .....
a gr8 sallute to you bhaijee..
pranam.
बहुत साहस का कार्य किया था आपने। अपनी नन्हीं सी बेटी को उस भीड़ में बैठाकर आपात धर्म निबाहना किसी के भी बस का नहीं होता। आपको मेरा सेल्यूट।
ReplyDeleteसतीश जी,
ReplyDeleteऐसी स्थिति में जहाँ लोग केवल अपनी और अपनों की जान बचाने की फ़िक्र करते हैं वहां आपने अपनी दो वर्ष की छोटी बच्ची को अकेला छोड़कर लोगों के लिए अपनी जान की बाज़ी लगा दी , वास्तव में अनुकरणीय है !
मानवता की डूबती साँसों को आपने प्राणवान किया है !
हमें आप पर नाज़ है !
सार्थक एवं प्रेरणादायक पोस्ट !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
मकर संक्राति ,तिल संक्रांत ,ओणम,घुगुतिया , बिहू ,लोहड़ी ,पोंगल एवं पतंग पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं........
ReplyDeleteबेहद हिम्मती घटना का प्रसंग । भीड को तो ऐसे अवसरों पर हम प्रायः ऐसी भूमिका में ही देख पाते हैं । श्री सुज्ञजी की यह सोच कि-
ReplyDeleteइस पूरी घटना से यही सीखना है, हम भीड वाला व्यवहार न करें, कुछ उपर उठकर सोचें।
वास्तव में अपनाये जाने की आवश्यकता है ।
मेरे लेख पर आपके लिये रिटिप्पणी भी मैंने छोडी हुई है । धन्यवाद...
आपका साहस, बिटिया का पिता पर विश्वास अनुकरणीय है। काश, भीड़ भी थोड़ा धैर्य धर लेती।
ReplyDelete@ पूजा,
ReplyDeleteशाबाश ....यह अनुकरणीय होगा बहुत सी लडकियों के लिए ! अरे हाँ ! वह " नन्ही सी जान " अब तुम्हारी उम्र की है और एक कंपनी में मैनेजर है
:-)
आपने समझदारी , हिम्मत और बुद्धि से काम किया....
ReplyDeleteवह अनुकरणीय है..... अनुभव को प्रस्तुत करने के लिये.... आपको हार्दिक शुभकामनाएं !
आप एक अच्छे गीतकार के साथ ही एक बेहतरीन नागरिक और इंसान भी हैं यह सिद्ध कर दिया आपने.
ReplyDeleteआपकी बेटी भी जाहिर है आपपर ही गई है बहादुरी और समझदारी में.
आज आपकी नन्ही सी जान बहुत गर्व करती होगी आप पर
इतना प्रेरक संस्मरण बांटने के लिए आभार.
आपकी हिम्मत को दाद देनी पड़ेगी..बहुत प्रेरणादायक संस्मरण..
ReplyDeleteआपकी हिम्मत प्रशंसनीय है, ऐसे वक्त मे तो लोग सिर्फ अपनी जान बचाने मे लग जाते है।
ReplyDeleteyahi jawani ka josh aur jagba hota hai------
ReplyDeleteकाश हम सब ऎसा करे तो भारत मे हादसो की संख्या कितनी कम हो जाये, धन्यवाद
ReplyDeleteअचानक आपातकाल में व्यक्ति का मूल प्रकट हो जाता है . कुछ गुण व्यक्ति के पास जन्म से ही होते है और वही उस का मूल स्वभाव होता है . आप के मूल में अदभुद साहस का गुण है जो उस वक्त प्रकट हो गया .बाकि अपने मूल से अनुसार डर कर भाग रहे थे .
ReplyDeletewakai aapki himmat & presence of mind ki dad deni hogi...aise samay me apne bachhe ko akele chhod kar yah karya karna sachmuch veerta ka karya hai...
ReplyDeleteआपकी हिम्मत की दाद देनी पडेगी| सचमुच आपने जो किया वह अनुकरणीय है| धन्यवाद|
ReplyDeleteआपको एक जोरदार सैल्यूट पैर बजा कर, फौजियों वाला
ReplyDeleteप्रणाम
बहुत प्रेरणादायक प्रसंग. ऐसे प्रसंग मनुष्य को याद दिलाते रहते हैं कि विपत्ति के समय धैर्य से काम लेना कितना आवश्यक है.
ReplyDeleteकमाल की हिम्मत दिखाई है आपने ... इतना presence of mind किसी किसी में ही होता है ... आपके जज़्बे को सलाम ... शुभकामनाएँ
ReplyDeleteरैड एंड ब्लैक पहनने वालों की बात ही कुछ और है ।
ReplyDeleteमियां डैशिंग लग रहे हो ।
बहुत प्रेरणात्मक प्रसंग ।
आपकी बहादुरी को सलाम ।
रोमांचकारी घटना
ReplyDeleteप्रेरणा देती हुई भी. हम दुर्घटना की आशंका से भागने की कोशिश करते तो हैं पर दुर्घटना को रोकने का प्रयास नही करते
aapki himmat ko salaam jo auro ke liye prerna de rahi hai.
ReplyDeletehamara blog apka intzar kar raha hai.
आपके जज़्बे को और आपकी बहादुर बेटी को सलाम ! मैं भी ऐसे समय पर भरसक कोशिश करती हूँ कि अपनी जान बचाकर भागने की जगह आपकी ही तरह दुर्घटना रोक सकूँ या कुछ लोगों की मदद कर सकूँ.
ReplyDeleteआपकी हिम्मत सर जी !!
ReplyDeleteप्रेरक संस्मरण बांटने के लिए आभार.
आपको और आपके परिवार को मकर संक्रांति के पर्व की ढेरों शुभकामनाएँ !"
ReplyDeleteसतीश भाई,
ReplyDeleteआपकी ज़िंदगी के फ़लसफ़े पर ये गीत बिल्कुल फिट बैठता है- अपने लिए जिए तो क्या जिए, तू जी ए दिल ज़माने के लिए...
काश उस वक्त भी रेड एंड व्हाईट बहादुरी का पुरस्कार होता...
आप रेड एंड व्हाईट नहीं पीते तो क्या रेड शर्ट तो पहनते हैं...डॉ दराल की तरह मेरी भी इस डैशिंग शर्ट से नज़र नहीं हट रही...
जय हिंद...
समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध,
ReplyDeleteजो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध!
तटस्थता के तटबधं जीवन के हर आयाम में तोड़े बिना हम एक स्वस्थ समाज नहीं बना सकेंगें।
सवाल यह भी है कि हर बार श्री सतीश सक्सेना जैसे जीवट वाले लोग आगे बढ़्कर जलता हुआ सिलेंडर बाहर कब तक फैकेंगे?
दूसरा सवाल यह भी है कि समाज की तटस्थता के कारण ही सिनेमा हाल की सुरक्षा व्यवस्था घास चरने गयी हुयी थी। और सुविधाभोगिता का इससे बढ़्कर उदाहरण क्या होगा कि न सतीश जी को किसी ने धन्यवाद दिया, न उन सिनेमा मालिकों के खिलाफ रपट लिखायी कि उन्होने जनता की जान जोखिम में डाली?
यही कारण है कि इसके लगभग दस साल बाद साकेत के उपहार सिनेमा हाल में भीषण अग्नि कांड हुया!
shukria and salam 2 ur courage.
ReplyDeleteसक्रांति ...लोहड़ी और पोंगल....हमारे प्यारे-प्यारे त्योंहारों की शुभकामनायें......सादर
ReplyDeleteaapke is adamya sahas ki jitni prasansa ki jaye cum haibhai satishji bahut bahut badhai
ReplyDeleteफिलहाल कम्पनी के मैनेजर की उम्र की उस नन्ही सी जान के हौसलों के स्रोत , रेड एंड ब्लेक पहनने वाले मियां डेशिंग की बात ही कुछ और है :)
ReplyDeleteअत्यंत प्रेरक प्रसंग !
आपतकाल परखिए चारी में धरम, मित्र अरु नारी के साथ पहले नंबर पर तो धीरज ही है.
ReplyDeleteबहुत खूब! आपको तो वीरता पुरस्कार मिलना चाहिये था। खबर अखबार में छपनी चाहिये थी। ग्रेट!
ReplyDelete
ReplyDelete@ अनूप सुकुल जी ,
यार आपके इस कमेन्ट को मैं व्यंग्य मान लूं जिसे एक बडबोले के लिए आपने यहाँ चिपका दिया !
इस तरह की सामान्य पहल की घटनाएं वीरता पुरस्कार की हकदार नहीं हुआ करती ...औरों ने भी तारीफें की हैं यह घटना अनुकरणीय मानी जा सकती है मगर वीरता पुरस्कार सिर्फ आप जैसे गुरु ब्लागर ही दे सकते हैं ...
कभी कभी सीधा चलने की कोशिश भी किया करो यार !
आपका साहस,और धैर्य ने आपके व्यक्तित्व को और प्रभावी बना दिया है ,यक़ीनन जो भी आपके संपर्क में आएगा वो आपसे मिलकर जरूर खुश होगा और प्रभावित भी .
ReplyDeleteजैसी ही पहली टिप्पणी चिपकाई नेट कनेक्शन गोल हो गया और मैं दूसरी टिप्पणी पोस्ट ना कर पाया खैर अब लीजिए...
ReplyDeleteसच्ची बात ये कि दो क्यूट बच्चों के साथ खुद भी बेहद हसीन लग रहे हो जनाब !
सतीश जी, यह घटना कुछ लोगों की एक समाज जैविक प्रवृत्ति -एलट्रूइज्म -निज प्रजाति की रक्षा के लिए किये जाने वाले आत्मोत्सर्ग का ही सुन्दर उदाहरण है -और इसे आपके व्यक्तित्व में समाविष्ट होने का अंदेशा मुझे था और आपने आज मेरे अंदेशे के सच को उजागर भी कर दिया !यह प्रवृत्ति विरले लोगों में अधिक साधिक सक्रियता से होती है और आप उनमें से एक हैं!
ReplyDeletemere geet safal aur sakar lagen. sabhi ki bhawanaye paropakari hi honi chahiye. good memory. thank you..
ReplyDeleteमुझे बहुत अच्छा लगा..की आपने अपने कीमती समय में मुझे कुछ कहा....और मेरी भलाई के लिए कहा......स्कूल का विवरण इसलिए क्यों की कल तक मेरे पास सियाव मेरे स्कूल colege के कुछ और था नही मेरे पास बताने को...हाल ही...सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया में as a PO मेरा सेलेक्टिओं हुआ हैं....!
ReplyDeleteमें हटा दूंगी विवरण जल्दी ही.....
आभार..
डिम्पल राठी
मुझे बहुत अच्छा लगा..की आपने अपने कीमती समय में मुझे कुछ कहा....और मेरी भलाई के लिए कहा......स्कूल का विवरण इसलिए क्यों की कल तक मेरे पास सियाव मेरे स्कूल colege के कुछ और था नही मेरे पास बताने को...हाल ही...सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया में as a PO मेरा सेलेक्टिओं हुआ हैं....!
ReplyDeleteमें हटा दूंगी विवरण जल्दी ही.....
आभार..
डिम्पल राठी
Great person, great personality, Great spirit & quick think act situation., above all I liked the pic with your lil ones. without forget to mention the shirt is a eye catchy one ;)Very informative post
ReplyDeleteऐसी विकत परिस्थिति में बिना घबराए..समय की मांग के अनुसार कार्य करना...सबके वश की बात नहीं...आप की सूझ-बूझ से इतनी बड़ी दुर्घटना टल गयी....इसके आत्मिक संतोष से बढ़कर कोई पुरस्कार क्या होगा.
ReplyDeleteविचलित ना होने के गुण, बिटिया को आपसे ही मिले होंगे...उस छोटी सी उम्र में ही यह ज़ाहिर हो गया...आगे भी उसका यही ज़ज्बा कायम रहेगा ...शुभकामनाएं
bahut prerana dayak sansmaran.......
ReplyDeleteaaj bhee aapka AC ke chakkar me car me baithne wala sansmaran rongte khade kardeta hai....
ine anubhavo se kaiyo ko labh milega .......
ab bitiya kaisee hai ?
लोहड़ी,पोंगल और मकर सक्रांति उत्तरायण की ढेर सारी शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteबढिया अनुभव, संस्मरण के लिए आभार॥
ReplyDeleteप्रेरणादायक अनुभव सांझा करने के लिये आभार। कुछ तो सबक सीखेंगे ही हम सब।
ReplyDeletesahi kaha......hum sab tamaashbeen hone se jyada koi bhumika kahi nahi nibhaate shaayaddddddd..................
ReplyDeleteprernadayak lagaa...
आपात् स्थिति में अपनी जान सुरक्षित रखना भी एक चुनौती होती है। अगर वह तय हो,तो अवश्य ही सार्वजनिक हित में आगे आना चाहिए।
ReplyDelete.
ReplyDelete.
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सर,
सही बोले तो दुनिया में दो तरह का आदमी होता है... एक तरह का आदमी का तादाद जियादा होता है, पर होता वो 'भीड़' है, वो 'भीड़' बन कर पैदा होता है, जीता है और भीड़ के जइसे ही मर भी जाता है... दूसरी तरह का आदमी बहुत कम मिलता है, वो 'भीड़' नहीं होता, ज्यादा कुछ हमेशाइच अपना सेफ्टी-वेफ्टी के बारे में नहीं सोचता, रिस्क लेता है और वही करता है जो मुसीबत के मौके पर 'आदमी' को करना चाहिये...कुछ लोग ऐसे आदमी को हीरो भी बोलता है...
आप दूसरी तरह के आदमी हो...
I salute you !
...
इस प्रेरक प्रसंग के लिए आभार!
ReplyDeleteप्रणाम स्वीकारें!
कितनी साहस और सूझबूझ आपने दिखलाया---नमन आपको
ReplyDelete