मेरा बेटा जब जब देश से बाहर गया हर बार उसका अनुरोध रहता कि पापा एक बार आप जरूर आ जाओ आपको अच्छा लगेगा ! हर बार मना करते हुए असली बात नहीं बता पाता था ! मुख्य कारण दो ही थे, विदेशियों से बात करने में आत्मविश्वास की कमी एवं बहुत खर्चा होने का डर ....
अगर दो माह पहले, किसी भी देश की फ्लाईट टिकिट बुक करायेंगे तो लगभग आधी कीमत में मिल जाती है ! दिल्ली से पेरिस अथवा स्वित्ज़रलैंड जाने का सामान्य आने जाने का एक टिकट, लगभग ३० हज़ार का पड़ता है जबकि यही टिकट तत्काल लेने पर ६० हज़ार का आएगा ! सामान्यता एक अच्छा टूरिस्ट होटल ३००० रूपये प्रति दिन में आराम से मिल सकता है !
अगर आपकी ट्रिप ४ दिन की है तो एक आदमी के आने जाने का खर्चा लगभग मय होटल ४२०००.०० तथा भोजन और पब्लिक ट्रांसपोर्ट मिलकर ५०००० रुपया में ! अगर आप यही ट्रिप किसी अच्छे टूर आपरेटर के जरिये करते हैं तो आपका कुछ भी सिरदर्द नहीं, साल दो साल में ५० - ६० हज़ार रुपया बचाइए और ४ दिन के लिए पेरिस, मय गाइड घूम कर आइये !
जहाँ तक खर्चे की बात है , हर परिवार में पूरे साल घूमने फिरने और बाहर खाने पर जो खर्चा होता है ,उसमें हर महीने कटौती कर पैसा बचाना शुरू करें तो एक वर्ष में ही आधा पैसा बच जायेगा, बाकी का इंतजाम करने में बाधा नहीं आएगी ! मेरा अगर आप लोग यकीन करें तो एक बार विदेश जाने के बाद आपके और बच्चों के आत्मविश्वास में जो बढोतरी आप पायेगे, उसके मुकाबले यह खर्चा कुछ भी नहीं खलेगा ! मेरा अपना सिद्धांत है कि जब तक जियेंगे, हँसते मुस्कराते जियेंगे ! एक बात हमेशा याद रखता हूँ कि
" न जाने किस गली में जिन्दगी की शाम हो जाए ..."
विदेश जाकर अच्छी इंग्लिश न बोल पाने के लिए न बिलकुल न डरें , आप वहाँ पंहुच कर पायेंगे कि अधिकतर जगह पर, इंग्लिश जानने वाले बहुत कम हैं ! आपको लगेगा कि आप ही सबसे अच्छी अंगरेजी बोलते हैं :-))
हा हा हा ! यह बात सही है कि वहां हम ही सबसे अच्छी अंग्रेजी बोलने वाले नज़र आते हैं ।
ReplyDeleteलेकिन भाई हमें तो समझने में बड़ी दिक्कत हुई थी ।
वैसे एक आध बार घूम कर ज़रूर आना चाहिए ।
इस उपयोगी श्रृखला को आगे बढायें -अरे हमसे भी खराब अंगरेजी है कई यूरोपीय देशो की भी ....बस वही इग्लैंड छोड़कर !
ReplyDeleteअरे, महाराज ... ५०००० - ६०००० बचाए कैसे यह तो बताया ही नहीं आपने !!
ReplyDeleteजब तक नामा नहीं होगा ... जाना नहीं होगा !!
बहुत खूब अच्छी जानकारी दी है सतीश जी. डर तभी तक, जब तक आप बाहर न निकलें.
ReplyDeleteनया साल आपको मुबारक.
अच्छी जानकारी दी है. वैसे किसी ब्लोगर को तो ज्यादा सोचने की जरुरत नहीं अब तो लगभग हर देश में एक हिंदी ब्लोगर है.खाना रहना भी टेंशन नहीं बस टिकट खरीदिए और चले आइये :)
ReplyDeleteहिम्मत बढ़ाने का आभार।
ReplyDeleteबहुत अच्छी पोस्ट है...
ReplyDeleteनववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं...
पासपोर्ट के नवीनीकरण में मुझे एक महीने लगे वह भी तत्काल के अंतर्गत. पिछले may माह में Newzealand जाने का कार्यक्रम रद करना पड़ा. वैसे आपकी पोस्ट लोगों को सुखदायी लगेगी. यदि आप फ्रांस, स्पेन, पुर्तगाल, जर्मनी या इंग्लॅण्ड में कई महीनों रहना पड़े तो निश्चित ही स्थानीय लोगों के संपर्क में आयेंगे और भाषा समस्या बन सकती है. परन्तु यदि आप महज एक पर्यटक हैं तो फिर नो प्रॉब्लम.
ReplyDeleteहम सोचते हैं कि पहले भारत ही पूरा भ्रमण कर लें। सारे गोरे यहीं घुमते रहते हैं,उसके बाद एशिया युरोप का नम्बर लगाया जाए।
ReplyDeleteहां वैसे टिकिट अभी से ले लेते हैं। ये ठीक रहेगा।
बढिया जानकारी दी है भाई साहब,
उपयोगी, सहज-सुगम अभिव्यक्ति. कह नहीं सकता कि यह टिप्पणी आपके पैमाने पर समाज व देश के लिए ईमानदार मानी जाएगी या नहीं.
ReplyDeleteअच्छी जानकारी दी आपने।
ReplyDeleteविदेश यात्रा अपने लिए तो शायद सपना ही रहेगा।
jankari ke liya dhanvyad----
ReplyDelete`बेबुनियाद भय, आत्मविश्वास को किस कदर कम करता है’........
ReplyDeleteयही तो इंडियन आईडेन्टिटी है :)
अब लगता है की इस साल बचत खाता खोलना ही पड़ेगा |
ReplyDeleteबाय बाय .........
ReplyDeleteएक अच्छी जानकारी जो लोगों को विदेश भ्रमण के पहले की बुनियादी विंदुओं से परिचित कराती है.
ReplyDeleteहां यह तो सुना है कि भारतियों की अंग्रेजी पर युरोपीयन बलिहारी जाते है।:)
ReplyDeleteवैरी गुड …………बढिया जानकारी।
ReplyDeleteजानकारी और आत्मविश्वास बढाती पोस्ट. इस चर्चा को आगे बढ़ायें.
ReplyDeleteअब तो अंग्रेज़ी सिखाने के लिए इंग्लैण्ड में भी भारतीय अध्यापक रखे जा रहे हैं...
ReplyDeleteबढ़िया जानकारी भरी पोस्ट
@ शिखा वार्ष्णेय ,
ReplyDeleteक्या इसे आमंत्रण समझ लूं ....:-)
@ राहुल सिंह ,
टिप्पणी नोटिस बोर्ड पढने के लिए आपका धन्यवाद ! यकीन मानें आधे लोग उसे नहीं पढ़ते और पढ़ लिया तो परवाह नहीं :-)
आपका स्वागत है !
बेबुनियाद भय, आत्मविश्वास को किस कदर कम करता है’........
ReplyDeleteachchhi baat kahi aapne
आपके इस पोस्ट में निहित जानकारी न केवल ब्लोगर समुदाय वरन् बहुत से सामान्य पाठकों के भीतर आत्मविश्वास जगाने वाली है!
ReplyDeleteजानकारी के लिए धन्यवाद!
अच्छी जानकारी दी है सतीश जी
ReplyDeleteपोस्ट को थोड़ा विस्तार और मिलना श्रेयस्कर होता... अच्छी जानकारी दी सक्सेना जी...
ReplyDeleteवैसे शिवम मिश्रा जी की बात पर भी गौर किया जाना चाहिए :)
राहुल सिंह जी पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहित होके अपनी श्रद्धा अनुसार इस पोस्ट को पढ़ लिया है , कुछ पैसे बचा पाये तो , तदनुसार आचरण भी कर लेंगे :)
ReplyDelete@ शिवम् मिश्र,
ReplyDeleteमैनपुरी आकर २ - ३ दिन साथ रहा तो यह भी बता दूंगा :-))
@ दीपक सैनी ,
हर साल इस मद में कुछ पैसा बचाते रहें , फिर यह सपना साकार होते देर नहीं लगेगी !
@जी के अवधिया,
आपका स्वागत है भाई जी !
@ शिवम् मिश्र,
ReplyDeleteमैनपुरी आकर २ - ३ दिन साथ रहा तो यह भी बता दूंगा :-))
@ दीपक सैनी ,
हर साल इस मद में कुछ पैसा बचाते रहें , फिर यह सपना साकार होते देर नहीं लगेगी !
@जी के अवधिया,
आपका स्वागत है भाई जी !
बहुत ही उपयोगी जानकारी के साथ ...आपने कई लोगों का हौसला बुलन्द किया है इस प्रस्तुति के माध्यम से ।
ReplyDelete@ पद्मसिंह,
ReplyDeleteविस्तार देने पर भी प्रतिक्रियाएं आती हैं कि लोग बैग यूरोप घूमने के बाद वहीँ कि पोस्ट लगाते रहते हैं :-)
मगर यह बहुत महत्वपूर्ण विषय है जिसपर लोग ध्यान नहीं दे पाते !
@ अली सर ,
आचरण करने कि गति थोडा तेज करिए तो हम अपना लिखा सफल मान लेंगे भाई जी :-))
अच्छी जानकारी दी है...आपको नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं...
ReplyDeleteghumna alag baat hai, par apne desh se doosre desh ki kalpna matra se sab avyavasthit ho jata hai...
ReplyDeleteसतीश भाई,
ReplyDeleteजैसे अपनी कार पर लिफ्ट देकर भारत में सैर कराते रहते हैं, ऐसे ही कभी विदेश भ्रमण पर भी ले चलिएगा...आपने फोकट में घूमने की आदत जो डाल दी है...
जय हिंद...
bahut khub
ReplyDeletekabhi yaha bhi aaye
www.deepti09sharma.blogspot.com
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteयूरोप का भ्रमण शेष है, साथी नहीं मिल रहे हैं। कम्पनी भी तो अच्छी होनी चाहिए ना।
ReplyDeleteअब तो आप भी हो गये फ़ौरेन रिटर्न , बधाई भाई !सहज ढ़ंग से बताने के लिए धन्यवाद , कभी जायेंगे 'बिदेस' तो याद करेंगे आपकी बात । बढ़िया है। नववर्ष की शुभ कामनाएं ।
ReplyDelete@ अजित गुप्ता ,
ReplyDeleteएक पोस्ट निकालो मैम....
:-)
कब आ रहे है भाई साहब ... यह भी तो बता दीजिये ... हम तो इंतज़ार में बैठे है !
ReplyDeleteसतीश जी मै कई बार सोचता हुं कि मै यहां टूर गाईड बन जाऊ, ओर भारत से आने वाले लोगो को युरोप मे हर जगह घुमाऊ, उन के प्रोगराम के हिसाब से, ओर यह सब एक पकेट मे शामिल हो, होटल, खाना ओर घुमाना लेकिन अभी इस के बारे मुझे पुरा ग्याण नही कोई गाईड करे तो काम बन सकता हे.
ReplyDeleteवेसे ५०,६० हजार रुपये मे सिर्फ़ ओर सिर्फ़ युरोप मे चार दिन का खाना ओर होटल ही चल पायेगा, लेकिन यहां पहुचेगा केसे? बेलगाडी से? अजी उस के पेसे भी तो लगेगे ना
अच्छी जानकारी है ...!
ReplyDeleteसतीश जी ... सुन्दर जानकारी .... विदेश यात्रा कभी कभी देश में होने वाली यात्राओं से भी सस्ती हो जाती है ... उचित समय की बात है ..
ReplyDeletebahut hi upyogi post....kaphi achcha laga ...aapne mere blog ke baare me positive comment diya...thanks for it....aapka maargdarshan chaiye...
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट .
ReplyDeleteविदेश जाकर अच्छी इंग्लिश न बोल पाने के लिए न बिलकुल न डरें , आप वहाँ पंहुच कर पायेंगे कि अधिकतर जगह पर, इंग्लिश जानने वाले बहुत कम हैं ! आपको लगेगा कि आप ही सबसे अच्छी अंगरेजी बोलते हैं :-))
ReplyDeleteहा हा बहुत ही मार्के की बात बताई है आपने .... इस बात को ध्यान रखूंगा... आभार
अच्छी जानकारी है सतीश जी.आत्मविश्वास बढाती हुई अच्छी पोस्ट. आभार.
ReplyDeleteबहुत खूब अच्छी जानकारी दी है| धन्यवाद|
ReplyDeleteटाइम्स में आर.के. लक्ष्मण का एक कार्टून याद आया..
ReplyDeleteकलकत्ता से मुम्बई की एक फ्लाईट पर अचानक उद्घोषणा हुई कि सब अपनी जगह बैठे रहें, आपका विमान हाईजैक कर लिया गया है और अब यह मुबई के स्थान पर दुबई जाएगा.
इतना सुनना था कि सारे यात्री खुशी से झूम उठे! इसको कहते हैं हींग फिटकिरी के बिना चोखा रंग पाना!!
हर आम आदमी के मन की बात कह दी आपने।बहुत ही उपयोगी लेख । नव वर्ष की शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteअच्छी जानकारी.. अंग्रेजी का डर तो निरर्थक है... मेरे हिसाब से तो अगर घूमने ही जाएँ तो ऐसी जगह जाएँ जहां की भाषा आपको बिलकुल नहीं आती हो.. इटली, मिस्र, चीन टाइप... उस यात्रा का अलग ही आनंद होगा... एक अलग ही दुनिया.. वरना अमेरिका, यूरोप के शहरों और दिल्ली बंगलौर के शौपिंग मॉल्स में घूमने में ज्यादा अंतर कहाँ रह गया है अब :)
ReplyDeleteऔर गाइड के साथ क्या घूमना.. अकेले निकलिए.. महसूस कीजिये भाषा और संस्कृति के बंधनों से मुक्ति के आनंद को......
चलिए कोई पोस्ट मिली जो पापा को पढ़ाकर पटाया जा सकता है उनका पासपोर्ट बनवाने के लिए... और जब भी बुकिंग करवाएंगे तब ये दो महीने वाली बात याद रहेगी... परा पापा की नौकरी के कारण ऐसा संभव नहीं है, पर कोशिश तो की ही जा सकती है... thank you again...
ReplyDeleteआपका लेख पड़ कर कुछ तो आत्मविश्वास बड़ा ,धन्यवाद !
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