Tuesday, December 23, 2014

कर न पायीं बातें ग़ज़लें , हंसने और हंसाने की - सतीश सक्सेना

ऐंठ छोड़िये, बातें करिये , जीने और जिलाने की !
कफ़न आ गया बाजारों में, बातें सबक सिखाने की 

अम्बर चाँद सितारे हम पर, नज़र लगाए रहते हैं,
कैसे नज़र इनायत होगी साक़ी औ मयखाने की !

सुबह सवेरे तौबा करते , अब न हाथ लगाएंगे !
रोज शाम आवाजें आतीं पीने और पिलाने की !

रंज भुलाकर साथ बैठकर, हँसते, खाते, पीते हैं !
यहाँ न ऐसी बातें होती , रोने और रुलाने की ! 

इश्क़, बेरुखी, रोने धोने, से भी कुछ आगे आयें  
कर न पायीं बातें ग़ज़लें, हंसने और हंसाने की !

6 comments:

  1. ऐंठ नहीं छोड़ सकते
    बात करिये कुछ और
    जरा छुड़वाने की :)

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  2. इश्क़,बेरुखी,रोने धोने , से भी कुछ आगे आयें
    कर न पायीं बातें ग़ज़लें , हंसने और हंसाने की --वाह-ग़ज़ल विस्तार पा गई है,सार्थक रचना

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  3. वाह उम्दा प्रेरक रचना

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  4. रोज सुबह तौबा कर लेते अब न हाथ लगाएंगे
    और शाम को बातें करते पीने और पिलाने की !
    रंज भुलाकर साथ बैठकर,हँसते,खाते, पीते हैं !
    यहाँ न ऐसी बातें होती , रोने और रुलाने की !
    ..बहुत सुन्दर ....
    लेकिन इनकी हरकतों से घर वाले तो हैरान परेशान रहते ही हैं ..

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  5. सुंदर,भावभीनी प्रेरक रचना

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आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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