ऐंठ छोड़िये, बातें करिये , जीने और जिलाने की !
कफ़न आ गया बाजारों में, बातें सबक सिखाने की
कफ़न आ गया बाजारों में, बातें सबक सिखाने की
अम्बर चाँद सितारे हम पर, नज़र लगाए रहते हैं,
कैसे नज़र इनायत होगी साक़ी औ मयखाने की !
सुबह सवेरे तौबा करते , अब न हाथ लगाएंगे !
रोज शाम आवाजें आतीं पीने और पिलाने की !
रंज भुलाकर साथ बैठकर, हँसते, खाते, पीते हैं !
यहाँ न ऐसी बातें होती , रोने और रुलाने की !
इश्क़, बेरुखी, रोने धोने, से भी कुछ आगे आयें
कर न पायीं बातें ग़ज़लें, हंसने और हंसाने की !
कैसे नज़र इनायत होगी साक़ी औ मयखाने की !
सुबह सवेरे तौबा करते , अब न हाथ लगाएंगे !
रोज शाम आवाजें आतीं पीने और पिलाने की !
रंज भुलाकर साथ बैठकर, हँसते, खाते, पीते हैं !
यहाँ न ऐसी बातें होती , रोने और रुलाने की !
इश्क़, बेरुखी, रोने धोने, से भी कुछ आगे आयें
कर न पायीं बातें ग़ज़लें, हंसने और हंसाने की !
ऐंठ नहीं छोड़ सकते
ReplyDeleteबात करिये कुछ और
जरा छुड़वाने की :)
बहुत सुंदर.
ReplyDeleteइश्क़,बेरुखी,रोने धोने , से भी कुछ आगे आयें
ReplyDeleteकर न पायीं बातें ग़ज़लें , हंसने और हंसाने की --वाह-ग़ज़ल विस्तार पा गई है,सार्थक रचना
वाह उम्दा प्रेरक रचना
ReplyDeleteरोज सुबह तौबा कर लेते अब न हाथ लगाएंगे
ReplyDeleteऔर शाम को बातें करते पीने और पिलाने की !
रंज भुलाकर साथ बैठकर,हँसते,खाते, पीते हैं !
यहाँ न ऐसी बातें होती , रोने और रुलाने की !
..बहुत सुन्दर ....
लेकिन इनकी हरकतों से घर वाले तो हैरान परेशान रहते ही हैं ..
सुंदर,भावभीनी प्रेरक रचना
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