किन्हीं गुरुजन के सम्मान में जवाब के कुछ अंश :
आप विद्वान् हैं , मैं विद्वान नहीं हूँ और न विद्वता खोजने निकला हूँ , साहित्य को आगे ले जाना मेरा लक्ष्य नहीं है भाई जी , मेरा लक्ष्य है समाज के पाखण्ड और अपने चेहरों पर लगे मुखौटे उतार कर , सिर्फ इंसान बन पाने की तमन्ना ! अपना कार्य कर रहा हूँ और बिना नाम चाहने की इच्छा के ! सो मुझे यश नहीं चाहिए हाँ सरल भाषा के जरिये अगर कुछ लोग भी इन्हें आत्मसात कर पाए तो लेखन सफल मानूंगा !
मुखौटे उतारने होंगे |
भाव अभिव्यक्ति के लिए कवि किसी शैली का दास नहीं हो सकता , कविता सोंच कर नहीं लिखी जाती उसका अपना प्रवाह है बड़े भाई , अगर उसमें बुद्धि लगायेंगे तब भाव विनाश निश्चित होगा ! तुलसी और कबीर ने किस नियम का पालन किया था ! आज भी, कुछ उनके शिष्य हो सकते हैं !
आज गीत और कवितायें खो गए हैं समाज से , मैं अकिंचन अपने को इस योग्य नहीं मानता कि साहित्य में अपना स्थान तलाश करू और न साहित्य से, अपने आपको किसी योग्य समझते हुए, किसी सम्मान की अभिलाषा रखता हूँ ! बिना किसी के पैर चाटे और घटिया मानसिकता के गुरुओं के पैरों पर हाथ लगाए , अंत समय तक इस विश्वास के साथ लिखता रहूंगा कि देर सवेर लोग इन रचनाओं को पढ़ेंगे जरूर !
जहाँ तक गद्य की बात है मैंने लगभग ४५० रचनाएं की हैं उनमें कविता और ग़ज़ल लगभग २०० होंगी बाकी सब लेख हैं जो समाज के मुखौटों के खिलाफ लिखे हैं , आपसे बहुत छोटा हूँ मगर कोई धारणा बनाने से पूर्व हो सके तो इन्हें पढियेगा अगर बड़ों का आशीर्वाद मिल सका तो धन्य मानूंगा !!
बहुत ज़ल्द ही ढोंग, मिटाने जागेंगे ,दुनिया वाले,
खुला रास्ता देना होगा , जंग में जाने वालों को !
खुला रास्ता देना होगा , जंग में जाने वालों को !
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ज़ख़्मी दिल का दर्द,तुम्हारे
शोधग्रंथ , कैसे समझेंगे ?
हानि लाभ का लेखा लिखते ,
कवि का मन कैसे जानेंगे ?
ह्रदय वेदना की गहराई, तुमको हो अहसास, लिखूंगा !
तुम कितने भी अंक घटाओ,अनुत्तीर्ण का दर्द लिखूंगा !
शोधग्रंथ , कैसे समझेंगे ?
हानि लाभ का लेखा लिखते ,
कवि का मन कैसे जानेंगे ?
ह्रदय वेदना की गहराई, तुमको हो अहसास, लिखूंगा !
तुम कितने भी अंक घटाओ,अनुत्तीर्ण का दर्द लिखूंगा !
कविता, कहानी, उपन्यास,नाटक, लेख, निबंध वगैरा वगैरा सब अभिव्यक्ति के साधन हैं। आप के पास कुछ है जिसे आप कहना चाहते हैं। ऐसा कुछ, जिस से सुनने, पढ़ने वाले के दिल में दिमाग में कोई असर होने वाला है। यदि आप का कहा बेअसर हो तो आप कहेंगे क्यों? चुप्पी क्यों न साध लेंगे? इस लिए आप के पास कहने को कुछ है जो सुनने वाले या पढ़ने वाले पर असर करने वाला है। जब असर की बात एक बार पैदा हो गई तो कहने वाला यह भी सोचेगा ही कि बात को वह ऐसे तरीके से कहे जिस से उस का असर बढ़े द्विगुणित-बहुगुणित हो जाए। तब वह कलात्मक रूपों को तलाश करता है। उस की यह तलाश खुद के लिए नहीं बल्कि उस के पास जो कहे जाने वाली बात है उस के लिए होती है। अब बच्चे के लिए कपड़े बनवाने हैं जिस से वह सुन्दर दिखे, लोग उसे पसंद करें तो कपड़े बच्चे के नाप के होने चाहिए और उन का डिजायन भी ऐसा होना चाहिए जो उस बच्चे पर फबे। तो कलारूप का निर्धारण करने का श्रेय भले ही कलाकार क्यों न ले ले, पर वास्तव में कलारूप का निर्धारण सदैव ही बात किया करती है।
ReplyDeleteहम अपने यहाँ देखें तो ऋग्वेद सब से पुरानी पुस्तक है। उस में कुछ कलारूप निकल कर सामने आए। वे कलारूप ऐसे थे जो कंठस्थ किए जा सकें। अर्थात बात निकले तो उसे दूर तक जाने के लिए उस के पैरों में स्केट्स लग जाएँ। जब लिखने की सुविधा हुई, बढ़ी तो गद्य भी सामने आने लगा। छपाई की तकनीक हुई तो बड़े बड़े उपन्यास लिखे जाने लगे। यदि यह सुविधा 2500 साल पहले मिल गई होती तो महाभारत और रामायण गद्य में ही लिखे गए होते।
आभार भाई जी !
Deleteबहुत सटीक विश्लेषण...जब भीतर कहने को कुछ उमड़ता है तो कविता स्वयं को लिखवा लेती है. विधा कोई भी हो जो दिल से निकलता है वह किसी न किसी के दिल तक अवश्य पहुँचता है
ReplyDeleteजो मन में जब जब आये उसे शब्दों में उतार देने में कुछ बुराई नहीं ...
ReplyDeleteजब कोई दावा ही नहीं किया तो फिर कैसी शिकायत ...
कितना सही लिखा है.....हमें जरुरत नहीं साहित्य में अपना स्थान ढूंढने की..नाम कमाने की..हम तो इतना भी नहीं चाहते है कि कोई रोज याद करे.....पांखड और दो मुंही बातों का विरोध सामर्थ्यनुसार हम सतत करते रहेंगे....
ReplyDeleteजो आपको जानते हैं उनके लिये तो इतना कुछ कहा-सुना भी बहुत कम है भाई साहब... और जिन्हें आपकी पहचान नहीं, उन्हें कुछ भी कहे पर यकीन नहीं आने वाला... आपकी साधना हमने भी देखी है चार सालों में! साधुवाद के पात्र हैं आप!
ReplyDeleteआप जैसे लोग और सोच जिंदा रहे आमीन । मुर्दों के शहर में कुछ हलचल जरूरी है ।
ReplyDeleteमेरे लिए कविता किसी के लिए कम उपयोगी और मेरे लिए सार्थक ज्यादा है ! अगर इसी सूत्र को ध्यान में रखकर लिखेंगे तो तकलीफ कम होती है ! वैसे भी कोई हमारी कविता पढ़कर दो सेकंद से ज्यादा याद नहीं रखता सो बेफिक्र होकर लिखिए ! सरल लेखन सबसे ज्यादा प्रभावित करता है जैसा की आपका है और हम सब पाठक मुरीद है आपके गीतों के :) कविता ह्रदय की अनुभूति है जिसमे शैली छंद व्याकरण गौण है ! किसी की आलोचना से दुखी होंगे तो लिख नहीं पायेंगे कोई तथ्यपरक आलोचक मिलना भाग्य की बात है इसे सकारात्मक लेंगे तो खुद को तराशने में मदद ही मिलेगी !
ReplyDeleteअंतर्मन से निकली पुकार स्वयं में इतनी प्रखर और प्रभावी होती है कि कलाओं के ऊपरी आवरण उसके आगे निरर्थक हो जाते हैं .साहित्य का उद्देश्य ही है सत्य-शिव-सुन्दर की साधना .आप सत्य का आधार लिए हैं कल्याण की साधना कर रहे हैं और जहाँ तक सुन्दर का प्रश्न है सामाजिक विकृतियों को रेशम मे लपेटने से क्या लाभ - उन कुरूपताओं को सामने आने दीजिए जिससे कि जन मन में उनके निवारण की तीव्र इच्छा उत्पन्न हो जो विकृत -विरूपित हो गया है उसे सुधारने की भावना जागे .
ReplyDeleteआपके प्रयास सफल हों !
बेहतरीन प्रस्तुति...
ReplyDelete" मुझे तोड लेना वन - माली उस पथ पर तुम देना फेंक ।
ReplyDeleteमातृ - भूमि पर शीष चढाने जिस पथ जायें वीर अनेक ॥"
माखन लाल चतुर्वेदी
उचित जबाब!!
ReplyDeleteसृजनात्मकता का असर तो होता ही है.
ReplyDeleteअभिव्यक्ति के विपुल रूप हैं -
ReplyDeleteखुद की कविता तो अच्छी लगती ही है, मगर दूसरों के प्रति भी सम्मान भाव हो।
निज कवित्त केहिं लॉग न नीका सरस होऊ अथवा अति फीका
जे पर भनिति सुनहिं हरषाहीं ऐसे नर थोड़ेहु जग माही
मुझे आपकी कवितायें अच्छी लगती हैं मगर कभी कभी आलोचना और आत्म विह्वलता के भाव अधिक हो उठते हैं!
आप तो प्रबुद्ध रामायण वाचक हैं , यहाँ भी भावना का ही ख्याल होगा ! जाकी रही भावना जैसी … वैसे तारीफ़ के लिए शुक्रिया अरविन्द भाई !
Deleteप्रखर रचना
ReplyDeleteमेरे गीत कविताए मेरे अपने मन के भाव है,अपनी अभिरुची है,मन को हृदय को शांति,सूकुन-सांत्वना प्रदान करते है।
ReplyDeleteयदि उसकी सार्थकता किसी को प्रसन करे,तो हम किसी प्रकार ख्याति की अभिलाषा नहीं रखते। आलोचकों के प्रति भी हम अपना आभार व्यक्त करते है,वोह हमें प्रशष्ट पथ प्रदान करते है। हमारे मार्ग दर्शक है।
फेसबुक पर पुरुषोत्तम शर्मा :
ReplyDeleteसतीश भाई आपका कथन सत्य है किसी की स्तुति या वंदना करनेवाला कवि नहीं भांड/चारण हो सकता है. बिना भय या लालच के लिखना ही साहित्यकार की पहचान है. लिखिए लिखिए और लिखते रहिये बहुत से हैं जो ऐसा लिखा भी पढ़ते और सराहतें हैं.
शुक्रिया Purushottam Sharma जी ,
Deleteहिंदी का मजाक बनाकर रख दिया है इन तथाकथित साहित्यकारों ने !
राजनेताओं के सामने से शुरू हुई पंक्ति , हिंदी अधिकारीयों , सरकारी नौकरों ,हिंदी के दैदीप्यमान शब्दों को उपनाम के रूप में अपनी दुम में लगाकर अपनी विद्वता स्वयं घोषित करते धूमकेतुओं , हिंदी प्रतिष्ठानों पर गुरुओं को दारु पिला कब्ज़ा जमाये चोट्टे हिंदी मनीषीयों , राजनैतिक आकाओं की तारीफों में किताबें कवितायें लिख कर पुरस्कार पाए , दांत दिखाते विद्वानों से लेकर अख़बारों और पत्रिकाओं में रिश्वत देकर पंहुचे संपादकों एवं नाम व ईनाम के लिए भागते फेस्बुकियों और ब्लोगरों तक जाती है !
और इन सबके बीच सैकड़ों प्रतिभाशाली कवि और लेखक सुविधाओं के अभाव एवं इनकी लातों के मध्य दम तोड़ते नज़र आते हैं ! उन्हें कोई प्रोत्साहित करने वाला नहीं ……
किस की हिम्मत है कि हिंदी को बंधुआ बनाए इन चोट्टों के खिलाफ आवाज उठाये , उसे सब मिलकर उसे पागल डिक्लेयर करते देर नहीं लगायेंगे !
कुछ लोग पोस्ट बिना ध्यान से पढ़े, कमेन्ट करते हैं उससे अनावश्यक विवाद प्र्त्यावाद शुरू हो जाता है ! आशा है मित्रगण ध्यान रखेंगे !
ReplyDeleteDil ke udgaron ki imandar abhiwyakti....
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