अच्छा है दिखावे ख़त्म हुए , वे हमें कलावा क्या देते
मंदिर में घुसने योग्य नहीं , वे हमें चढ़ावा क्या देते !
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh81e2kVdX3gmm7FNSVh7ajyLfVNdQcKAvP_3goDGIMhR6Bh7AlugDcI1A1IWLW_8bEL_etwFy8AA245Ag7qWVVcOYGIt6dB8bxoeBtnZt8fDRjasBmkutbX-sflGdXUt8G0T63LX4odIVw/s200/DSCN1799.JPG)
जाते जाते,बातें करके,कुछ उखड़ा मन बहलाये थे !
वे अपने चेहरे दिखा गए , वे और छलावा क्या देते !
उसदिन तो हमारी तरफ देख ,वे हौले से मुस्काये थे !
राजा हैं वे,औ हम है प्रजा, वे और बढ़ावा क्या देते !
उस दिन देवों ने , उत्सव में, नर नारी भी बुलवाए थे !
बादल गरजे,बिजली चमकी,वे और बुलावा क्या देते !
रुद्राभिषेक करने हम तो,परिवार सहित जा पंहुचे थे !
भक्ति के बदले मुक्ति मिली,वे इसके अलावा क्या देते !
मंदिर में घुसने योग्य नहीं , वे हमें चढ़ावा क्या देते !
जाते जाते,बातें करके,कुछ उखड़ा मन बहलाये थे !
वे अपने चेहरे दिखा गए , वे और छलावा क्या देते !
उसदिन तो हमारी तरफ देख ,वे हौले से मुस्काये थे !
राजा हैं वे,औ हम है प्रजा, वे और बढ़ावा क्या देते !
उस दिन देवों ने , उत्सव में, नर नारी भी बुलवाए थे !
बादल गरजे,बिजली चमकी,वे और बुलावा क्या देते !
रुद्राभिषेक करने हम तो,परिवार सहित जा पंहुचे थे !
भक्ति के बदले मुक्ति मिली,वे इसके अलावा क्या देते !
छलावा ही छलावा
ReplyDeleteहमारी ओर भी आये थे
ReplyDeleteथोड़ा सा मुस्कुराये थे
उधारी वापस लाये
इससे ज्यादा क्या कहते !
सच को उजागर करती धारदार रचना .हार्दिक आभार
ReplyDeleteउसदिन तो हमारी तरफ देख ,वे थोड़े से मुस्काये थे !
ReplyDeleteराजा हैं वे, औ हम है प्रजा , वे और बढ़ावा क्या देते !
....सदियों से चला आ रहा राजा प्रजा का यूँ ही बदस्तूर खेला जा रहा है ...
बहुत सुन्दर ...
रुद्राभिषेक करने हमतो,परिवार सहित जा पंहुचे थे !
ReplyDeleteभक्ति के बदले मुक्ति मिली,वे और छलावा क्या देते !
वाह ! बहुत सुंदर प्रस्तुति.!
नवरात्रि की बहुत बहुत शुभकामनायें-
RECENT POST : पाँच दोहे,
आपकी लिखी रचना की ये चन्द पंक्तियाँ.........
ReplyDeleteअच्छा है दिखावे ख़त्म हुए,ये भूत कलावा क्या देते !
मंदिर में घुसने योग्य नहीं, ये लोग चढावा क्या देते !
आते, जाते, बातें करके , कुछ उखड़ा मन बहलाये थे !
वे अपने चेहरे दिखा गए,और इसके अलावा क्या देते !
बुधवार 09/10/2013 को
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
को आलोकित करेगी.... आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
लिंक में आपका स्वागत है ..........धन्यवाद!
मंदिर में घुसने योग्य नहीं, ये लोग चढावा क्या देते .........?? ......छल............????...
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति-
ReplyDeleteमंगल-कामनाएं आदरणीय-
स्वागत है कविवर आपका !!
Deleteरुद्राभिषेक करने हमतो,परिवार सहित जा पंहुचे थे !
ReplyDeleteभक्ति के बदले मुक्ति मिली,वे और छलावा क्या देते !
बहुत सुन्दर सटीक पंक्तियाँ …
bahut hi sundar sateek abhivyakti ...abhaar
ReplyDeleteवर्तमान परिदृश्य पर सुन्दर कटाक्ष । प्रवाह-पूर्ण प्रस्तुति । बधाई ।
ReplyDeleteरुद्राभिषेक करने हम तो ,परिवार सहित जा पंहुचे थे !
ReplyDeleteभक्ति के बदले मुक्ति मिली,वे और छलावा क्या देते ...
क्या बात है सतीश जी ... ये नियति तो नहीं हो सकती हां जबरदस्ती हो सकती है उनकी ... छलावा उनका ...
भक्ति के बदले मुक्ति मिली,वे और छलावा क्या देते !
ReplyDeleteकृपया इस पंक्ति को स्पष्ट करें मैं समझ नहीं पाया | भक्ति का उद्देश्य तो मुक्ति ही होगा तो इसमें छलावा क्या और कैसे ?????
यह केदार नाथ धाम की हाल की प्राकृतिक त्रासदी पर, परम पिता से शिकायत है इमरान..
Deleteक्या दोष था उन बच्चों का , आस्था पर प्रश्न चिन्ह है यह शेर..
:(
ohhhh.....thanks for reply.....
Deleteभाई जी ..वो भुलावा देते हैं ...और हम खाते हैं ....
ReplyDeleteछलावा तो था -- भगवान का भी और इंसान का भी !
ReplyDeleteदुष्ट इंसान , रुष्ट भगवान,
बलिष्ठ तूफान !
इस तूफान ने कर दी ,
सुन्दर जहांन की, ऐसी की तैसी !!
बहुत ही सशक्त और सार्थक रचना, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
सशक्त और उम्दा
ReplyDeleteमहाकवि दुरसा आढ़ा
नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteहँस बोलने वाले हँस बोल लेने वालों के प्रति क्या नजरिया रखते हैं , अच्छा तंज़ है :)
ReplyDeleteभला था, छला गया।
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