Tuesday, October 1, 2013

प्यार न कोई बंदिश माने, कितने हैं आजाद कबूतर -सतीश सक्सेना

छत पर मुझे अकेला पाकर, करते कुछ संवाद कबूतर !
अक्सर गुड़िया को तलाशते, करते उसको याद कबूतर !

हमें धर्म की परिभाषाएँ, गुटुर गुटुर कर सिखला जाते !  
मंदिर मस्जिद रोज़ पहुँचते, करते नहीं जिहाद कबूतर !

कुल के मुखिया के कहने पर, आते,खाते,उड़ जाते हैं ! 
सामूहिक परिवार में कैसे ,करते अनहद नाद कबूतर !

मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे में, बिना डरे ही घुस जाते हैं  !
उलटे सीधे नियम न मानें , कितने हैं आजाद कबूतर !

खुद भी खाते साथ और कुछ बच्चों को ले जाते हैं ! 
परिवारों में, वचनबद्धता की रखते बुनियाद कबूतर !

24 comments:

  1. सुन्दर मनमोहक गीत ....

    ReplyDelete
  2. सीख देते कबूतर ..... वाकई बेहतरीन नजरिया

    ReplyDelete
  3. हमें धर्म की परिभाषाएं , गुटुर गुटुर से सिखला जाते !
    मंदिर मस्जिद रोज़ पंहुचते,करते नहीं जिहाद कबूतर !
    ...बेहद सुंदर ...कबूतर के माध्यम से समाज को एक अच्छा सन्देश..

    ReplyDelete
  4. सभी लाजवाब खासकर यह,
    मंदिर,मस्जिद,पंचायत के बिना ही, जीवित रहते हैं !
    प्यार न कोई बंदिश माने , कितने हैं आजाद कबूतर !

    आदमी की तरह नहीं रखते,मुख में राम बगल में छुरी
    अहिंसा का पाठ हमें पढाकर, शांति दूत कहलाते कबूतर !

    ReplyDelete
  5. प्यार न कोई बंदिश माने, कितने हैं आजाद कबूतर !
    वाह बहुत खूब ! क्या बात है ,,,

    RECENT POST : मर्ज जो अच्छा नहीं होता.

    ReplyDelete
  6. हमें धर्म की परिभाषाएं , गुटुर गुटुर से सिखला जाते !
    मंदिर मस्जिद रोज़ पंहुचते,करते नहीं जिहाद कबूतर !
    प्रभावशाली प्रस्तुति .....!!

    ReplyDelete
  7. सारी दुनिया नाज करे
    हैं शान्ति के वे दूत कबूतर

    ReplyDelete
  8. बहुत सुन्दर प्रस्तुति..

    ReplyDelete
  9. सुंदर संदेश कबूतरों के माध्यम से!

    ReplyDelete
  10. पंछी नदिया पवन के झोंके , कोई सरहद ना इन्हें रोके !
    सुविचारित कविता !

    ReplyDelete
  11. यह तो बहुत ही बढिया रचना है । मेरे पिताजी हमें आवश्यकताएं बहुत सीमित रखने के लिये कबूतरों के लिये लिखा गया एक दोहा अक्सर सुनाया करते थे---
    पट पाँखें ,भख काँकरे सपर परेई संग ।
    सुखिया या संसार में ,एकै तु ही विहंग ।
    यानी वस्त्रों के नाम पर तेरे पंख हैं ,खाने में कंकड तक चल जाते हैं यानी कि खाने-पीने में ज्यादा श्रम या चिन्ता करने की जरूरत नही । और सुन्दर पंखों वाली कबूतरी तेरे साथ है तू दुनिया में सबसे सुखी है ।

    ReplyDelete
  12. वाह ...
    आनंद आ गया , पिताजी के इन भावों को यहीं सहेज रहा हूँ अपनी भाषा में !!
    आभार आपका !

    ReplyDelete
  13. काश हम कबूतरों से ही कुछ सीख पाते, बहुत ही उत्कृष्ट रचना.

    रामराम.

    ReplyDelete
  14. सुकून भरी सीख दे जाते ये कबूतर

    ReplyDelete
  15. बहुत ही सुन्दर गीत ,इंसान से कितने अच्छे हैं कबूतर.सुन्दर कृति सतीश जी.

    ReplyDelete
  16. अहा! अति सुन्दर ..

    ReplyDelete
  17. कबूतरों के माध्यम से कितने खूबसूरत भाव और सार्थक सुझाव दिए हैं आपने।

    ReplyDelete
  18. प्यार न कोई बंदिश माने...
    उलटे सीधे नियम न मानें , कितने हैं आजाद कबूतर !
    बहुत सुन्दर

    ReplyDelete

एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

Related Posts Plugin for Blogger,