अक्सर गुड़िया को तलाशते, करते उसको याद कबूतर !
हमें धर्म की परिभाषाएँ, गुटुर गुटुर कर सिखला जाते !
मंदिर मस्जिद रोज़ पहुँचते, करते नहीं जिहाद कबूतर !
कुल के मुखिया के कहने पर, आते,खाते,उड़ जाते हैं !
सामूहिक परिवार में कैसे ,करते अनहद नाद कबूतर !
मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे में, बिना डरे ही घुस जाते हैं !
उलटे सीधे नियम न मानें , कितने हैं आजाद कबूतर !
खुद भी खाते साथ और कुछ बच्चों को ले जाते हैं !
परिवारों में, वचनबद्धता की रखते बुनियाद कबूतर !
वाह भाई जी।
ReplyDeleteसुन्दर मनमोहक गीत ....
ReplyDeleteसीख देते कबूतर ..... वाकई बेहतरीन नजरिया
ReplyDeleteहमें धर्म की परिभाषाएं , गुटुर गुटुर से सिखला जाते !
ReplyDeleteमंदिर मस्जिद रोज़ पंहुचते,करते नहीं जिहाद कबूतर !
...बेहद सुंदर ...कबूतर के माध्यम से समाज को एक अच्छा सन्देश..
नवीनतम पोस्ट मिट्टी का खिलौना !
ReplyDeleteनई पोस्ट साधू या शैतान
shabdo me gutrun goo karte pyare se kabootar........
ReplyDeleteसभी लाजवाब खासकर यह,
ReplyDeleteमंदिर,मस्जिद,पंचायत के बिना ही, जीवित रहते हैं !
प्यार न कोई बंदिश माने , कितने हैं आजाद कबूतर !
आदमी की तरह नहीं रखते,मुख में राम बगल में छुरी
अहिंसा का पाठ हमें पढाकर, शांति दूत कहलाते कबूतर !
प्यार न कोई बंदिश माने, कितने हैं आजाद कबूतर !
ReplyDeleteवाह बहुत खूब ! क्या बात है ,,,
RECENT POST : मर्ज जो अच्छा नहीं होता.
हमें धर्म की परिभाषाएं , गुटुर गुटुर से सिखला जाते !
ReplyDeleteमंदिर मस्जिद रोज़ पंहुचते,करते नहीं जिहाद कबूतर !
प्रभावशाली प्रस्तुति .....!!
सारी दुनिया नाज करे
ReplyDeleteहैं शान्ति के वे दूत कबूतर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteमनमोहक गीत.
ReplyDeleteसुंदर संदेश कबूतरों के माध्यम से!
ReplyDeleteपंछियों की बात ही कुछ और है
ReplyDeleteपंछी नदिया पवन के झोंके , कोई सरहद ना इन्हें रोके !
ReplyDeleteसुविचारित कविता !
यह तो बहुत ही बढिया रचना है । मेरे पिताजी हमें आवश्यकताएं बहुत सीमित रखने के लिये कबूतरों के लिये लिखा गया एक दोहा अक्सर सुनाया करते थे---
ReplyDeleteपट पाँखें ,भख काँकरे सपर परेई संग ।
सुखिया या संसार में ,एकै तु ही विहंग ।
यानी वस्त्रों के नाम पर तेरे पंख हैं ,खाने में कंकड तक चल जाते हैं यानी कि खाने-पीने में ज्यादा श्रम या चिन्ता करने की जरूरत नही । और सुन्दर पंखों वाली कबूतरी तेरे साथ है तू दुनिया में सबसे सुखी है ।
वाह ...
ReplyDeleteआनंद आ गया , पिताजी के इन भावों को यहीं सहेज रहा हूँ अपनी भाषा में !!
आभार आपका !
काश हम कबूतरों से ही कुछ सीख पाते, बहुत ही उत्कृष्ट रचना.
ReplyDeleteरामराम.
सुकून भरी सीख दे जाते ये कबूतर
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर गीत ,इंसान से कितने अच्छे हैं कबूतर.सुन्दर कृति सतीश जी.
ReplyDeleteअहा! अति सुन्दर ..
ReplyDeleteसुंदर कविता।
ReplyDeleteकबूतरों के माध्यम से कितने खूबसूरत भाव और सार्थक सुझाव दिए हैं आपने।
ReplyDeleteप्यार न कोई बंदिश माने...
ReplyDeleteउलटे सीधे नियम न मानें , कितने हैं आजाद कबूतर !
बहुत सुन्दर