इतने भी बदनाम नहीं हैं , गिनती हो आवारों में !
तुम लाखों में एक,तो हम भी जाते गिने,हजारों में!
माना तुम हो ख़ास,बनाया बैठ के,रब ने फुर्सत में !
हम भी ऐसे आम नहीं जो,बिकते गली बजारों में !
यूँ ही नहीं, हज़ारों बरसों से , ये मेले लगते हैं !
आखिर कुछ तो बात रही है , कंगूरों मीनारों में !
तुम लाखों में एक,तो हम भी जाते गिने,हजारों में!
माना तुम हो ख़ास,बनाया बैठ के,रब ने फुर्सत में !
हम भी ऐसे आम नहीं जो,बिकते गली बजारों में !
यूँ ही नहीं, हज़ारों बरसों से , ये मेले लगते हैं !
आखिर कुछ तो बात रही है , कंगूरों मीनारों में !
जनता का विश्वास जीतने , पाखंडी घर आये हैं !
नेताओं के मक्कारी , की चर्चा है ,अखबारों में !
यूँ ही राधा नहीं, किसी की धुन में,डूबी रहतीं थीं !
कुछ तो ख़ास बुलावा होगा,मोहन की मुस्कानों में !
कुछ तो ख़ास बुलावा होगा,मोहन की मुस्कानों में !
वाह! आनंददायक। बहुत बधाई।
ReplyDeleteबहुत ही रोचक...प्रयोगात्मक ग़ज़ल...
ReplyDeleteआदर प्रणाम
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत रचना |
मैं मानता हूँ दिल की गहराईयों से जब भी किसी कों पुकारा जाता हैं ,तो दौड़ा दौड़ा ...आता हैं ,चाहे भगवान ही क्यूँ न हों
अजय
यूँ ही राधा नहीं, किसी की धुन में,डूबी रहतीं थीं !
ReplyDeleteकुछ तो ख़ास बुलावा होगा,मोहन की मुस्कानों में !
....... वाह सतीश जी !
आपकी यह उत्कृष्ट रचना ‘ब्लॉग प्रसारण’ http://blogprasaran.blogspot.in पर कल दिनांक 6 अक्तूबर को लिंक की जा रही है .. कृपया पधारें ...
साभार सूचनार्थ
Very true n touching!
ReplyDeleteमुस्कानों में कैसे भेद हो ........मोहन के मुस्कान से राधा हो गई ढोंगी की मुस्कान से ........?
ReplyDeletewaah hamesha ki tarah khubsurat ...
ReplyDeleteसुन्दर गीत -
ReplyDeleteभाव कथ्य अनुपम
आभार आदरणीय-
अति सुन्दर ..
ReplyDeleteयूँ ही राधा नहीं, किसी की धुन में,डूबी रहतीं थीं !
ReplyDeleteकुछ तो ख़ास बुलावा होगा,मोहन की मुस्कानों में !
एक करोड़ की एक पक्की बात कोई किसी का यूँ ही नहीं हो जाता
एक से एक बहुत सुन्दर शेर है सभी !
ReplyDeleteइतने भी बदनाम नहीं हैं , गिनती हो आवारों में !
ReplyDeleteतुम लाखों में एक,तो हम भी जाते गिने,हजारों में i
वाह ! बहुत सुंदर
नवरात्रि की बहुत बहुत शुभकामनायें-
RECENT POST : पाँच दोहे,
यूँ ही राधा नहीं, किसी की धुन में,डूबी रहतीं थीं !
ReplyDeleteकुछ तो ख़ास बुलावा होगा,मोहन की मुस्कानों में !
बहुत सुन्दर...
बहुत सुन्दर ,हम भी है हजारों में !
ReplyDeletelatest post: कुछ एह्सासें !
बहुत सुन्दर और सटीक...
ReplyDeleteमाना तुम हो ख़ास,बनाया बैठ के,रब ने फुर्सत में !
ReplyDeleteहम भी ऐसे आम नहीं जो, टपके हों असमानों से !
आप तो बड़े "ख़ास" आम हैं :-)
बहुत बढ़िया शेर...
सादर
अनु
यूँ ही राधा नहीं, किसी की धुन में,डूबी रहतीं थीं !
ReplyDeleteकुछ तो ख़ास बुलावा होगा,मोहन की मुस्कानों में !
बहुत सुन्दर शेर
सुरेश राय
कभी यहाँ भी पधारें और टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें
http://mankamirror.blogspot.in
बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteसटीक और नायाब शेर, हार्दिक शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत ही उम्दा.....
ReplyDeleteमाना तुम हो ख़ास,बनाया बैठ के,रब ने फुर्सत में !
ReplyDeleteहम भी ऐसे आम नहीं जो, टपके हों असमानों से !
bahut sundar bhavpoorn prastuti ...abhaar
यूँ ही राधा नहीं, किसी की धुन में,डूबी रहतीं थीं !
ReplyDeleteकुछ तो ख़ास बुलावा होगा,मोहन की मुस्कानों में !
लाजबाब !
बात तो राधा में भी कुछ रही होगी जो मोहन के अधरों पर मुस्कान है !
ReplyDeleteखूबसूरत रचना !
सच कहा आपने ;)
Deleteमोहन की मुस्कान की तरह मनमोहक :-)
ReplyDeleteवाह, सच में सच मिल रहा है।
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