हमेशा ही अभावों में सभी ने व्यस्त पाया है !
मुसीबत में सदा सबने हमें आश्वस्त पाया है !
हमें कुछ भी नहीं उम्मीद, ऐसे वक्त में तुमसे !
ज़रुरत में, हमेशा ही तुम्हें, ऋणग्रस्त पाया है !
अभी तो कोशिशें करते हैं, सबसे दूर रहने की !
भरोसा ही सदा हमने,यहाँ क्षतिग्रस्त पाया है !
मुसीबत में सदा सबने हमें आश्वस्त पाया है !
हमें कुछ भी नहीं उम्मीद, ऐसे वक्त में तुमसे !
ज़रुरत में, हमेशा ही तुम्हें, ऋणग्रस्त पाया है !
जरा सी चोट में कैसे ये आंसू छलछला उठे
हमें लोगों ने गहरे दर्द, का अभ्यस्त पाया है !
भरोसा ही सदा हमने,यहाँ क्षतिग्रस्त पाया है !
मुफलिसी में भी,मेरे द्वार से खाली न जाओगे
हमें लोगों ने खस्ता हाल में विश्वस्त पाया है !
हमें लोगों ने खस्ता हाल में विश्वस्त पाया है !
बहुत अच्छी रचना है।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत गज़ल है आपकी...
ReplyDeleteबधाई मित्र...
गहराई कम बता कर डुबाया है :)
ReplyDeleteबहुत खूब !
वाह वाह।
ReplyDeletesacchi bat ......
ReplyDeleteअजब हालात है यारों अब इस दुनिया का
ReplyDeleteजिन्हें भामाशाह समझा उन्हें लाचार पाया है
तुम्हारी चोट से ऐसे,कदम क्यों लडखडाये है
ReplyDeleteहमें लोगों ने गहरे दर्द, का अभ्यस्त पाया है !
चोट कोई भी हो पहले तो वाकई कदम लड़खड़ाते है लेकिन चोटे मनुष्य के व्यक्तित्व को निखारती भी है इसलिए चोट देने वाले मेरे ख्याल से बधाई की पात्र है ! बहुत सुन्दर शेर है सभी !
बहुत खूब!
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteहमें दर्द का अभ्यस्त पाया —गालिब साहेब ने लिखा—मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी कि आसां हो गई
गैर तो गैर थे अपनों का सहारा न हुआ
तूफानों में मस्त रहना — तुम्ही घबराये बाधा से तो बाधा कौन टालेगा— तुम्हारे हाथ गर कांपे तो बत्ती कौन बालेगा।
दूर रहने की कोशिश गालिब साहब भी करते रहे और यहां तक कह दिया — पड़िये गर बीमार तो कोई न हो तीमारदार और अगर मर जाइये तो नौहाख्वां कोई न हो
और अन्तिम ' सच्चा दोस्त वही जो 'उसकी' जरुरत पर
हमारे पास आये।
वाह वाह …… हिंदी के शब्दों के बखूबी इस्तेमाल किया है आपने..... शानदार
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत गजल .
ReplyDeleteधूमिल का लिखा याद आ गया।... मैंने हरेक को आवाज़ दी है, हरेक का दरवाजा खटखटाया है मगर बेकार…मैंने जिसकी पूँछ उठायी है उसको मादा पाया है। ---धूमिल।
ReplyDeleteदस्तकों का अब किवाड़ों पर असर होता नहीं
ReplyDeleteहै हथेली खून से अब तरबतर कोई सुनता नहीं
भरोसा भी क्षतिग्रस्त.. वाह! बहुत कुछ कहता है..
ReplyDeleteभला कैसे भरोसा कर लें हम सब कुछ भला होगा।
ReplyDeleteकि जब सरकार के इकबाल का रवि अस्त पाया है॥
तुम्हारी चोट से ऐसे,कदम क्यों लडखडाये है
ReplyDeleteहमें लोगों ने गहरे दर्द, का अभ्यस्त पाया है !
................. बहुत सुन्दर शेर
ये तो आपने सही कहा कि जब भी किसी की बहुत जरुरत पड़ी है ...वो कभी साथ खड़ा नहीं मिला
ReplyDeleteदमदार..
ReplyDeleteसुन्दर शब्द,खूबसूरत भाव--उम्दा।
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