तालिबानियों ने,गैरों से द्वेष की फितरत पायी है !
जहाँ गए ये,उठा किताबें, वहीँ हिकारत पायी है !
हैरत में हैं लोग, इन्होने नफरत , खूब उगायी है !
इनकी संगति में नन्हों ने ,खूब अदावत पायी है !
लगता पिछली रात , चाँद ने , अंगारे बरसाए थे !
बहते पानी में भी हमने , आज हरारत पायी है !
हवा,नदी,मिटटी की खुशबू,कब्ज़ा कर के खायेंगे !
अपनी मां के टुकड़े करने की भी हिम्मत पायी है !
घर के आँगन में ,बबूल के पौधे ,रोज़ सींचते हैं !
इन्हें देखकर बच्चे सहमें, ऎसी सूरत पायी है !
जहाँ गए ये,उठा किताबें, वहीँ हिकारत पायी है !
हैरत में हैं लोग, इन्होने नफरत , खूब उगायी है !
इनकी संगति में नन्हों ने ,खूब अदावत पायी है !
लगता पिछली रात , चाँद ने , अंगारे बरसाए थे !
बहते पानी में भी हमने , आज हरारत पायी है !
हवा,नदी,मिटटी की खुशबू,कब्ज़ा कर के खायेंगे !
अपनी मां के टुकड़े करने की भी हिम्मत पायी है !
घर के आँगन में ,बबूल के पौधे ,रोज़ सींचते हैं !
इन्हें देखकर बच्चे सहमें, ऎसी सूरत पायी है !
बहुत सुन्दर .
ReplyDeleteनई पोस्ट : मंदारं शिखरं दृष्ट्वा
नवरात्रि की शुभकामनाएँ .
सटीक बात कही आपने, बहुत ही सशक्त रचना.
ReplyDeleteरामराम.,
बेहद ख़ूबसूरत तरीके से कही गई मार्मिक गजल। आपका आभार आदरणीय सतीश सक्सेना जी।
ReplyDeleteअपनी धुन के पक्के लोग ऐसे ही होते हैं भाईजी :)
ReplyDeleteYou might also like: में शहरोज़ साहब वाली पोस्ट खुल नहीं रही है, देखिये तो क्या लोचा है?
वह पोस्ट अनावश्यक होने के कारण अब हटा दी गयी है , मगर फीड में होने के कारण अभी भी लिंक दिख रहा है !
DeleteI see.... got it Bhai ji.
Deleteसटीक .......
ReplyDeleteहवा,नदी,मिटटी की खुशबू,को भी बाँट के खायेंगे !
ReplyDeleteइन्होने माँ के टुकड़े करने,की भी शोहरत पायी है !
..........बहुत सार्थक सटीक अभिव्यक्ति ..
सुन्दर प्रस्तुति-
आभार आदरणीय-
नवरात्रि / विजय दशमी की शुभकामनायें-
बहुत बढ़िया।
ReplyDeleteहवा,नदी,मिटटी की खुशबू,को भी बाँट के खायेंगे !
ReplyDeleteइन्होने माँ के टुकड़े करने,की भी शोहरत पायी है !
सही बात कही है सटीक पंक्तियाँ !
इस दिनों तो भरपूर प्रोडक्शन हो रहा है साहब :)
ReplyDeleteलगे रहिये ...
बेहद सटीक और सशक्त रचना....
ReplyDeleteसादर
अनु
बहुत सुन्दर .सटीक .......
ReplyDeleteसशक्त रचना...
ReplyDeleteक्या बात है सतीश भाई तालिबान (छात्र )होने का मतलब समझा दिया।
ReplyDeleteहवा,नदी,मिटटी की खुशबू,को भी बाँट के खायेंगे !
ReplyDeleteइन्होने माँ के टुकड़े करने,की भी शोहरत पायी है !
घर के आँगन में,बबूल के वृक्ष को, रोज़ सींचते हैं !
इन्हें देखकर , बच्चे सहमें , ऎसी सूरत पायी है !
क्या बात है सतीश भाई सक्सेना भाई तालिबान (छात्र )होने का मतलब समझा दिया। अब इंसानों के बस्ती में तालिबान ही होते हैं। आखिरी दो शैरों को हमने थोड़ा यूं लिया है :
हवा नदी मिट्टी की खुश्बू को भी बाँट के खायेंगे ,
माँ के टुकड़े करने की कसमें जो इन्होनें खायीं हैं।
घर आँगन में रोज़ इन्होनें पेड़ बबूल के बोये हैं ,
इन्हें देखकर ,बच्चे सहमें ,ऐसी सूरत पाई है।
सटीक
ReplyDeleteविचारणीय।
ReplyDeleteहवा,नदी,मिटटी की खुशबू,को भी बाँट के खायेंगे !
ReplyDeleteइन्होने माँ के टुकड़े करने,की भी शोहरत पायी है !
निःशब्द करती बेहतरीन गीत अंतर्मन को झकझोरती
गम्भीर मामला है ! बात तो सही है लेकिन इतनी आसान नहीं है !
ReplyDeleteघर के आँगन में,बबूल के वृक्ष को, रोज़ सींचते हैं !
ReplyDeleteइन्हें देखकर , बच्चे सहमें , ऎसी सूरत पायी है
...
फितरत कहाँ बदलती हैं
..बहुत सटीक ..
हवा,नदी,मिटटी की खुशबू,को भी बाँट के खायेंगे !
ReplyDeleteइन्होने माँ के टुकड़े करने,की भी शोहरत पायी है !
सटीक रचना ....
" शठे शाठ्यं समाचरेत् ।"
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आप की इस प्रविष्टि की चर्चा शनिवार 12/10/2013 को त्यौहार और खुशियों पर सभी का हक़ है.. ( हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल : 023)
- पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर ....
बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteHow to use cookie with javascript code for downloading site
हवा,नदी,मिटटी की खुशबू,को भी बाँट के खायेंगे !
ReplyDeleteइन्होने माँ के टुकड़े करने,की भी शोहरत पायी है
!सुन्दर सटीक खरी खरी बातें,
विडम्बना और त्रासदी
ReplyDeleteलगता पिछली रात , चाँद ने , अंगारे बरसाए थे !
ReplyDeleteइस ठहरे पानी में हमने , आज हरारत पायी है !
सुंदर सटीक सार्थक अभिव्यक्ति ,,,,बधाई ....
नवरात्रि की शुभकामनाएँ ...!
RECENT POST : अपनी राम कहानी में.
dil ke aangaaron se kam nahi bahut badhiya .....
ReplyDeleteसुंदर रचना...
ReplyDeleteसशक्त रचना के लिए बधाई
ReplyDeleteबहुत सुंदर |
ReplyDeleteमेरी नई रचना :- मेरी चाहत
इस वक्त में भी रहना ही होगा
ReplyDeleteसटीक रचना
ReplyDeletesundar rachana prastuti ... abhaar
ReplyDeleteसफ़े पलट के तालिब कुछ न पाएगा
ReplyDeleteइश्क़ कर के देख, खुदा मिल जाएगा.
bahut sunder kavita. padh kar hamesha ki tarah accha laga.
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