Thursday, October 10, 2013

जब से तालिबान जन्में हैं, विश्व में नफरत आई है - सतीश सक्सेना

तालिबानियों ने,गैरों से द्वेष की फितरत पायी है !
जहाँ गए ये,उठा किताबें, वहीँ हिकारत पायी है !

हैरत में हैं लोग,  इन्होने नफरत  , खूब उगायी है !
इनकी संगति में नन्हों ने ,खूब  अदावत पायी है !

लगता पिछली रात , चाँद ने , अंगारे बरसाए थे !
बहते पानी में भी हमने , आज  हरारत  पायी है ! 

हवा,नदी,मिटटी की खुशबू,कब्ज़ा कर के खायेंगे !  
अपनी मां के टुकड़े करने की भी हिम्मत पायी है !

घर के आँगन में ,बबूल के पौधे ,रोज़ सींचते हैं !
इन्हें देखकर बच्चे सहमें, ऎसी  सूरत  पायी है  !

38 comments:

  1. बहुत सुन्दर .
    नई पोस्ट : मंदारं शिखरं दृष्ट्वा
    नवरात्रि की शुभकामनाएँ .

    ReplyDelete
  2. सटीक बात कही आपने, बहुत ही सशक्त रचना.

    रामराम.,

    ReplyDelete
  3. बेहद ख़ूबसूरत तरीके से कही गई मार्मिक गजल। आपका आभार आदरणीय सतीश सक्सेना जी।

    ReplyDelete
  4. अपनी धुन के पक्के लोग ऐसे ही होते हैं भाईजी :)

    You might also like: में शहरोज़ साहब वाली पोस्ट खुल नहीं रही है, देखिये तो क्या लोचा है?

    ReplyDelete
    Replies
    1. वह पोस्ट अनावश्यक होने के कारण अब हटा दी गयी है , मगर फीड में होने के कारण अभी भी लिंक दिख रहा है !

      Delete
  5. हवा,नदी,मिटटी की खुशबू,को भी बाँट के खायेंगे !
    इन्होने माँ के टुकड़े करने,की भी शोहरत पायी है !
    ..........बहुत सार्थक सटीक अभिव्यक्ति ..

    ReplyDelete

  6. सुन्दर प्रस्तुति-
    आभार आदरणीय-

    नवरात्रि / विजय दशमी की शुभकामनायें-

    ReplyDelete
  7. हवा,नदी,मिटटी की खुशबू,को भी बाँट के खायेंगे !
    इन्होने माँ के टुकड़े करने,की भी शोहरत पायी है !
    सही बात कही है सटीक पंक्तियाँ !

    ReplyDelete
  8. इस दिनों तो भरपूर प्रोडक्शन हो रहा है साहब :)

    लगे रहिये ...

    ReplyDelete
  9. बेहद सटीक और सशक्त रचना....

    सादर
    अनु

    ReplyDelete
  10. बहुत सुन्दर .सटीक .......

    ReplyDelete
  11. क्या बात है सतीश भाई तालिबान (छात्र )होने का मतलब समझा दिया।

    ReplyDelete
  12. हवा,नदी,मिटटी की खुशबू,को भी बाँट के खायेंगे !
    इन्होने माँ के टुकड़े करने,की भी शोहरत पायी है !

    घर के आँगन में,बबूल के वृक्ष को, रोज़ सींचते हैं !
    इन्हें देखकर , बच्चे सहमें , ऎसी सूरत पायी है !

    क्या बात है सतीश भाई सक्सेना भाई तालिबान (छात्र )होने का मतलब समझा दिया। अब इंसानों के बस्ती में तालिबान ही होते हैं। आखिरी दो शैरों को हमने थोड़ा यूं लिया है :

    हवा नदी मिट्टी की खुश्बू को भी बाँट के खायेंगे ,

    माँ के टुकड़े करने की कसमें जो इन्होनें खायीं हैं।

    घर आँगन में रोज़ इन्होनें पेड़ बबूल के बोये हैं ,

    इन्हें देखकर ,बच्चे सहमें ,ऐसी सूरत पाई है।

    ReplyDelete
  13. हवा,नदी,मिटटी की खुशबू,को भी बाँट के खायेंगे !
    इन्होने माँ के टुकड़े करने,की भी शोहरत पायी है !

    निःशब्द करती बेहतरीन गीत अंतर्मन को झकझोरती

    ReplyDelete
  14. गम्भीर मामला है ! बात तो सही है लेकिन इतनी आसान नहीं है !

    ReplyDelete
  15. घर के आँगन में,बबूल के वृक्ष को, रोज़ सींचते हैं !
    इन्हें देखकर , बच्चे सहमें , ऎसी सूरत पायी है
    ...
    फितरत कहाँ बदलती हैं
    ..बहुत सटीक ..

    ReplyDelete
  16. हवा,नदी,मिटटी की खुशबू,को भी बाँट के खायेंगे !
    इन्होने माँ के टुकड़े करने,की भी शोहरत पायी है !

    सटीक रचना ....

    ReplyDelete
  17. " शठे शाठ्यं समाचरेत् ।"

    ReplyDelete
  18. बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आप की इस प्रविष्टि की चर्चा शनिवार 12/10/2013 को त्यौहार और खुशियों पर सभी का हक़ है.. ( हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल : 023)
    - पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर ....

    ReplyDelete
  19. हवा,नदी,मिटटी की खुशबू,को भी बाँट के खायेंगे !
    इन्होने माँ के टुकड़े करने,की भी शोहरत पायी है
    !सुन्दर सटीक खरी खरी बातें,

    ReplyDelete
  20. विडम्बना और त्रासदी

    ReplyDelete
  21. लगता पिछली रात , चाँद ने , अंगारे बरसाए थे !
    इस ठहरे पानी में हमने , आज हरारत पायी है !

    सुंदर सटीक सार्थक अभिव्यक्ति ,,,,बधाई ....
    नवरात्रि की शुभकामनाएँ ...!

    RECENT POST : अपनी राम कहानी में.

    ReplyDelete
  22. dil ke aangaaron se kam nahi bahut badhiya .....

    ReplyDelete
  23. सुंदर रचना...

    ReplyDelete
  24. सशक्‍त रचना के लि‍ए बधाई

    ReplyDelete
  25. बहुत सुंदर |

    मेरी नई रचना :- मेरी चाहत

    ReplyDelete
  26. सटीक रचना

    ReplyDelete
  27. सफ़े पलट के तालिब कुछ न पाएगा
    इश्क़ कर के देख, खुदा मिल जाएगा.

    ReplyDelete
  28. bahut sunder kavita. padh kar hamesha ki tarah accha laga.

    ReplyDelete

एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

Related Posts Plugin for Blogger,