रात में जमकर धोखा देते, दिन में कसमें यारी की !
साकी और शराब रोज़ हो , रस्में चारदीवारी की !
अक्सर बासिन्दे शहरों के , असमंजस में दिखते हैं !
अभिलाषाएं, धुएं में जीवित, चिंता है बीमारी की !
जब भी लगती आग, धमाका नहीं सुनाई पड़ता है !
ऎसी कौन सी ताकत होती, छोटी सी चिंगारी की !
पता नहीं ये शख्श भरोसे लायक,मुझे न लगता है,
मीठी मीठी बातें करता , पर ऑंखें मक्कारी की !
इस बस्ती में लोग हमेशा , मास्क लगाए रहते हैं !
सूरत से धनवान दीखते , आदत पड़ी भिखारी की !
साकी और शराब रोज़ हो , रस्में चारदीवारी की !
अक्सर बासिन्दे शहरों के , असमंजस में दिखते हैं !
अभिलाषाएं, धुएं में जीवित, चिंता है बीमारी की !
जब भी लगती आग, धमाका नहीं सुनाई पड़ता है !
ऎसी कौन सी ताकत होती, छोटी सी चिंगारी की !
पता नहीं ये शख्श भरोसे लायक,मुझे न लगता है,
मीठी मीठी बातें करता , पर ऑंखें मक्कारी की !
इस बस्ती में लोग हमेशा , मास्क लगाए रहते हैं !
सूरत से धनवान दीखते , आदत पड़ी भिखारी की !
क्या कहने।
ReplyDeleteसत्यवचन।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ग़ज़ल....
ReplyDeleteमौजूदा समाज के कडवे सत्य को उजागर करती....
सादर
अनु
सटीक वक्तव्य दिया है इस रचना ने।
ReplyDeleteइस बस्ती में लोग हमेशा, मास्क लगाये रहते है
ReplyDeleteसूरत से धनवान दिखते सीरत वही भिखारी की !
अब तो मास्क लगाने की इतनी आदत पड़ चुकी होती है कि,खुद को ही पता नहीं चलता असली चेहरा कौन सा है ! बिलकुल सही कहा सटीक रचना है !
हम हमारे आसपास की चीजों को तो अब बदल नहीं सकते, हाँ पर एक बात कर सकते है
ReplyDeleteखुद को बदलने की, फिर देखिये लगता है सब कुछ बदल गया है !
सहज सच्ची अभिव्यक्ति.....
ReplyDeleteबबुत खूब ... हर शेर धमाकेदार ... आज का चित्रण ...
ReplyDeleteकल 25/10/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
वाह ! बहुत उम्दा गजल, लाजबाब शेर ! बधाई
ReplyDeleteRECENT POST -: हमने कितना प्यार किया था.
क्या कहें ?
ReplyDeleteअल्मारी दिख तो रही है
ReplyDeleteबोतल नजर नहीं आ रही है
मैं तो खाली खुश हो बैठा
बात शराब और साकी से
जब देखा शुरु की जा रही है !
:) :) :)
...बहुत खूब... हरेक शेर बहुत उम्दा..!!
ReplyDeleteसच है .. मुखौटे हैं चारों ओर ... किस पर विश्वास करें !!
ReplyDeleteअच्छी रचना ,शुभकामनाएं !!
अकसर एक छोटी सी चिंगारी ही ...घर जला कर राख कर देती है
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति..
ReplyDelete2013/10/dont-say-you-dont-have-enough-time.html-
सूरत से धनवान दिखते , सीरत वही भिखारी की !
ReplyDeleteतन पर चढ़ाये चोले कितने , मन पर भी परते चढ़ती जाती हैं !
बहुत खूब !
आज के समाज /व्यक्ति का सटीक चरित्र चित्रण
ReplyDeleteनई पोस्ट मैं
बहुत सुंदर...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।
ReplyDeleteसत्य और बेबाक ..मेरे भी ब्लॉग पर आयें.. दीपावली की बधाई
ReplyDeleteबहुत सुंदर सही और सटीक।
ReplyDeleteवाह क्या बात है? आज तो समस्त ताऊ सदचरित्र महिमा का संपूर्ण बखान कर दिया आपने, आभार.
ReplyDeleteरामराम.
खुबसूरत अभिवयक्ति......
ReplyDeletesatya oe sundar....
ReplyDeleteऔर अधिक प्रासंगिक हो गयी है।
ReplyDeleteवाह सतीश जी !
ReplyDeleteएक सुन्दर सा विदाई-गीत तैयार कर लीजिए.
बहुत सुन्दर
ReplyDelete