Wednesday, November 6, 2013

घुटने तुड़ा तुड़ा के सीखे,सारे सबक जवानी के -सतीश सक्सेना

कितने मीठे से लगते थे,किस्से अपनी नानी के 
राजा रानी ही रहते थे, नायक सदा कहानी के !

किसे बताएं किस्से अपने बचपन की नादानी के
घुटने तुड़ा तुड़ा के सीखे, सारे सबक जवानी के !

कैसे तब हम,हुक्म अदूली, करते थानेदारों की !
सुनाके यारों को हँसते हैं,वे किस्से निगरानी के !

कैसे कैसे काम किये थे, हमने अपने बचपन में
टूटी चूड़ी, फटी चिट्ठियां,टुकड़े बचे निशानी के !

होते आये, युगों युगों से, अत्याचार स्त्रियों पर !
सुने तो हैं ,हमने भी किस्से, देवों की हैवानी के !

रात्रि जागरण,माँ की सेवा से ही,खर्चे चलते है ! 
दारू पीकर,नाच नाचकर,गाते भजन,भवानी के!

कितने नखरे महिलाओं के,अभी झेलने बाकी हैं !
गुस्सा होना,धमकी देना, थोड़े लफ्ज़ गुमानी के !

21 comments:

  1. कैसे तुम्हें बताएं किस्से , बचपन की नादानी के !
    घुटने तुड़ा तुड़ा के सीखे, सारे सबक जवानी के !

    वाह !!

    बचपन की नादानियों के लिए ही तो सारी उम्र तरसते हैं
    पर ये वो बादल हैं जो बस एक बार ही बरसते हैं.... :)

    ReplyDelete
  2. अरे भाई तोबा कीजिये इस उम्र में घुटने तुड़वाने की बात सुनकर ही गश आ रहा है !खुदा खैर करे !

    ReplyDelete
  3. जिसकी लाठी भैंस उसी की तुम मानो या न मानो । नारी नहीं बराबर नर के तुम मानो या न मानो । उसे कभी विश्राम नहीं है तीज-तिहार हो या इतवार । हाथ बँटाता नहीं है कोई तुम मानो या न मानो । 'शकुन' कोई तरक़ीब बता वह भी जीवन सुख से जी ले । जीवन यह अनमोल बहुत है तुम मानो या न मानो ।

    ReplyDelete
  4. काफी मेहनत कि गई है-
    शुभकामनायें आदरणीय-

    ReplyDelete
  5. @ *कैसे तुम्हें बताएं किस्से , बचपन की नादानी के !

    नदी तट पर
    गीली रेत पर
    नंगे पैर चलते
    कितने सारे बटोरे थे
    शंख-सीपियाँ मुझे
    आज भी याद है !
    साँझ अस्त होते
    सूरज को पश्चिम
    दिशा में रोक रखने का
    वो असफल प्रयत्न मुझे
    आज भी याद है !

    ReplyDelete
  6. हा हा हा...घुटने तुडवा कर ही जवानी के सबक सीखे इससे तो अच्छा था पहले ही "ताऊराम बापू" से दीक्षा ग्रहण करली होती.:)

    रामराम.

    ReplyDelete
  7. आखिरी तीन शेर कुछ कम जचें, बाकी बहुत अच्‍छे हैं।

    ReplyDelete
  8. वाह क्या बात है .. सुन्दर रचना आभार

    ReplyDelete
  9. बचपन की यादों में उतार ले गए आप सतीश जी ... सुन्दर रचना ...

    ReplyDelete
  10. मेरे ब्लॉग कि नयी पोस्ट आपके और आपके ब्लॉग के ज़िक्र से रोशन है । वक़्त मिलते ही ज़रूर देखें ।

    http://jazbaattheemotions.blogspot.in/2013/11/10-4.html

    ReplyDelete
  11. सुन्दर लय में बंधा शानदार गीत

    ReplyDelete
  12. रात्रि जागरण, माँ की सेवा से ही, खर्चे चलते है !
    दारू पीकर,नाच नाचकर,गाते भजन,भवानी के!
    अब तो यह ही रह गया है,इनका बस चले तो सभी को मांसाहारी भी बना दे.अच्छा व्यंग,

    ReplyDelete
  13. वाह जी क्या बात है
    आपके अंदाज़ ही अलग है हर बात सिखाने के

    ReplyDelete
  14. बहुत सुंदर !
    बुढ़ापे में कुछ कोई सीखना चाहे तो ?
    क्या तुड़वालें ?

    ReplyDelete
  15. शानदार रचना

    ReplyDelete
  16. उर्जा का संचार करते पंक्ति

    ReplyDelete
  17. व्यंग्य पूर्ण लाजबाब रचना ।

    ReplyDelete
  18. व्यंग्य पूर्ण सुन्दर रचना ।

    ReplyDelete
  19. बेहतरीन ग़ज़ल...

    ReplyDelete
  20. सुन्दर प्रस्तुति

    ReplyDelete

एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

Related Posts Plugin for Blogger,