कितने मीठे से लगते थे,किस्से अपनी नानी के
किसे बताएं किस्से अपने बचपन की नादानी के
घुटने तुड़ा तुड़ा के सीखे, सारे सबक जवानी के !
कैसे तब हम,हुक्म अदूली, करते थानेदारों की !
सुनाके यारों को हँसते हैं,वे किस्से निगरानी के !
कैसे कैसे काम किये थे, हमने अपने बचपन में
टूटी चूड़ी, फटी चिट्ठियां,टुकड़े बचे निशानी के !
होते आये, युगों युगों से, अत्याचार स्त्रियों पर !
सुने तो हैं ,हमने भी किस्से, देवों की हैवानी के !
राजा रानी ही रहते थे, नायक सदा कहानी के !
घुटने तुड़ा तुड़ा के सीखे, सारे सबक जवानी के !
कैसे तब हम,हुक्म अदूली, करते थानेदारों की !
सुनाके यारों को हँसते हैं,वे किस्से निगरानी के !
कैसे कैसे काम किये थे, हमने अपने बचपन में
टूटी चूड़ी, फटी चिट्ठियां,टुकड़े बचे निशानी के !
होते आये, युगों युगों से, अत्याचार स्त्रियों पर !
सुने तो हैं ,हमने भी किस्से, देवों की हैवानी के !
रात्रि जागरण,माँ की सेवा से ही,खर्चे चलते है !
दारू पीकर,नाच नाचकर,गाते भजन,भवानी के!
कितने नखरे महिलाओं के,अभी झेलने बाकी हैं !
गुस्सा होना,धमकी देना, थोड़े लफ्ज़ गुमानी के !
गुस्सा होना,धमकी देना, थोड़े लफ्ज़ गुमानी के !
कैसे तुम्हें बताएं किस्से , बचपन की नादानी के !
ReplyDeleteघुटने तुड़ा तुड़ा के सीखे, सारे सबक जवानी के !
वाह !!
बचपन की नादानियों के लिए ही तो सारी उम्र तरसते हैं
पर ये वो बादल हैं जो बस एक बार ही बरसते हैं.... :)
अरे भाई तोबा कीजिये इस उम्र में घुटने तुड़वाने की बात सुनकर ही गश आ रहा है !खुदा खैर करे !
ReplyDeleteजिसकी लाठी भैंस उसी की तुम मानो या न मानो । नारी नहीं बराबर नर के तुम मानो या न मानो । उसे कभी विश्राम नहीं है तीज-तिहार हो या इतवार । हाथ बँटाता नहीं है कोई तुम मानो या न मानो । 'शकुन' कोई तरक़ीब बता वह भी जीवन सुख से जी ले । जीवन यह अनमोल बहुत है तुम मानो या न मानो ।
ReplyDeleteकाफी मेहनत कि गई है-
ReplyDeleteशुभकामनायें आदरणीय-
@ *कैसे तुम्हें बताएं किस्से , बचपन की नादानी के !
ReplyDeleteनदी तट पर
गीली रेत पर
नंगे पैर चलते
कितने सारे बटोरे थे
शंख-सीपियाँ मुझे
आज भी याद है !
साँझ अस्त होते
सूरज को पश्चिम
दिशा में रोक रखने का
वो असफल प्रयत्न मुझे
आज भी याद है !
हा हा हा...घुटने तुडवा कर ही जवानी के सबक सीखे इससे तो अच्छा था पहले ही "ताऊराम बापू" से दीक्षा ग्रहण करली होती.:)
ReplyDeleteरामराम.
आखिरी तीन शेर कुछ कम जचें, बाकी बहुत अच्छे हैं।
ReplyDeleteवाह क्या बात है .. सुन्दर रचना आभार
ReplyDeleteबचपन की यादों में उतार ले गए आप सतीश जी ... सुन्दर रचना ...
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग कि नयी पोस्ट आपके और आपके ब्लॉग के ज़िक्र से रोशन है । वक़्त मिलते ही ज़रूर देखें ।
ReplyDeletehttp://jazbaattheemotions.blogspot.in/2013/11/10-4.html
सुन्दर लय में बंधा शानदार गीत
ReplyDeleteरात्रि जागरण, माँ की सेवा से ही, खर्चे चलते है !
ReplyDeleteदारू पीकर,नाच नाचकर,गाते भजन,भवानी के!
अब तो यह ही रह गया है,इनका बस चले तो सभी को मांसाहारी भी बना दे.अच्छा व्यंग,
वाह जी क्या बात है
ReplyDeleteआपके अंदाज़ ही अलग है हर बात सिखाने के
बहुत सुंदर !
ReplyDeleteबुढ़ापे में कुछ कोई सीखना चाहे तो ?
क्या तुड़वालें ?
शानदार रचना
ReplyDeleteउर्जा का संचार करते पंक्ति
ReplyDeleteव्यंग्य पूर्ण लाजबाब रचना ।
ReplyDeleteव्यंग्य पूर्ण सुन्दर रचना ।
ReplyDeletesacchaai me lipti rachna ....
ReplyDeleteबेहतरीन ग़ज़ल...
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
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