"मेरे गीत " पर, २४ मई २००८ को पहली कविता "पापा मुझको लम्बा कर दो " प्रकाशित की गयी थी, जिसकी रचना ३०-१०-१९८९ को हुई जब मेरी ४ वर्षीया बेटी के मुंह के शब्द कविता बन गए ! इस कविता का एक एक शब्द उस नन्हें मुख की मनुहार का सच्चा वर्णन है जो उसने अपने पापा से कही थी ! यह बाल कविता स्वर्गीय राधेश्याम "प्रगल्भ" को समर्पित की गई थी, जो कि उस समय "बालमेला" नाम की पत्रिका का संपादन कर रहे थे !
और आज ४०० प्रविष्टियों एवं १६२०६ टिप्पणियों एवं १,९६,३७२ पेज व्यू के साथ "मेरे गीत" को, अलेक्सा ट्रैफिक रैंक के अनुसार भारत में १८६२६ एवं विश्व में १८१०३७ रैंक पर पाकर , खासा संतोष अनुभव कर रहा हूँ !
शुरुआत में लेखन पर अधिक जोर था , मेरे एक पाठक ने उस समय लिखा था कि मेरे गीत पर गीत कम होते हैं , कहीं दिल को छू गया और कविता ,पद्य लेखन शुरू किया और अब जब मैं गीत ग़ज़ल अधिक लिख रहा हूँ तो कुछ लोग मुझे कवि भी कहने लगे हैं !
आजकल लेखन में अक्सर मौलिकता की कमी पायी जाती है , मेरी कोशिश रही है कि किसी अन्य मशहूर कवि का प्रभाव मेरी रचनाओं में न आ सके जो कुछ निकले प्रभावी अथवा अप्रभावी मेरे दिल से निकले चाहे लोग पसंद करें या न करें , और शायद मैं इसमें कामयाब रहा हूँ ! इस पूरे रचना काल में मैंने कभी व्याकरण और शिल्प के सुधार की आवश्यकता के कारण अपनी रचना को नहीं बदला ! मुझे लगता है , ईमानदार भाव अभिव्यक्ति, मौलिक और विशिष्ट होनी चाहिए न कि उसे पुरानी एवं खूब बखानी गयी शैली में बाँध दिया जाय !
कुछ ऐसा राग रचें मिलकर,
सुनकर उल्लास उठे मन से !
कुछ ऐसी लय संगीत बजे
सब बाहर आयें ,घरोंदों से !
गीतों में यदि झंकार न हो,तो व्यर्थ रहे महफ़िल सारी !
रचना के मूल्यांकन में है , इन शब्दों की जिम्मेदारी !
ब्लॉग जगत में सब लेखक हैं अतः पाठकों का अभाव रहता है , बहुत कम लोग ऐसे हैं जो मित्रों को ध्यान से पढ़ते हैं शायद इतना समय ही नहीं है अतः अक्सर बेहद उत्कृष्ट ब्लॉग लेखकों को भी, लोग पढ़ने से वंचित रह जाते हैं ! अफ़सोस है कि नवोदित लेखकों को, जो प्रोत्साहन हम सबसे मिलना चाहिए नहीं मिल पाता ! मेरा विचार है कि बड़े लेखकों द्वारा प्रोत्साहन के अभाव एवं विपरीत माहौल में और उत्कृष्ट लिखना चाहिए, मुझे विश्वास है आज नहीं तो कल कलम अपनी पहचान करा देगी !
ज़ख़्मी दिल का दर्द,तुम्हारे
और आज ४०० प्रविष्टियों एवं १६२०६ टिप्पणियों एवं १,९६,३७२ पेज व्यू के साथ "मेरे गीत" को, अलेक्सा ट्रैफिक रैंक के अनुसार भारत में १८६२६ एवं विश्व में १८१०३७ रैंक पर पाकर , खासा संतोष अनुभव कर रहा हूँ !
शुरुआत में लेखन पर अधिक जोर था , मेरे एक पाठक ने उस समय लिखा था कि मेरे गीत पर गीत कम होते हैं , कहीं दिल को छू गया और कविता ,पद्य लेखन शुरू किया और अब जब मैं गीत ग़ज़ल अधिक लिख रहा हूँ तो कुछ लोग मुझे कवि भी कहने लगे हैं !
आजकल लेखन में अक्सर मौलिकता की कमी पायी जाती है , मेरी कोशिश रही है कि किसी अन्य मशहूर कवि का प्रभाव मेरी रचनाओं में न आ सके जो कुछ निकले प्रभावी अथवा अप्रभावी मेरे दिल से निकले चाहे लोग पसंद करें या न करें , और शायद मैं इसमें कामयाब रहा हूँ ! इस पूरे रचना काल में मैंने कभी व्याकरण और शिल्प के सुधार की आवश्यकता के कारण अपनी रचना को नहीं बदला ! मुझे लगता है , ईमानदार भाव अभिव्यक्ति, मौलिक और विशिष्ट होनी चाहिए न कि उसे पुरानी एवं खूब बखानी गयी शैली में बाँध दिया जाय !
कुछ ऐसा राग रचें मिलकर,
सुनकर उल्लास उठे मन से !
कुछ ऐसी लय संगीत बजे
सब बाहर आयें ,घरोंदों से !
गीतों में यदि झंकार न हो,तो व्यर्थ रहे महफ़िल सारी !
रचना के मूल्यांकन में है , इन शब्दों की जिम्मेदारी !
ब्लॉग जगत में सब लेखक हैं अतः पाठकों का अभाव रहता है , बहुत कम लोग ऐसे हैं जो मित्रों को ध्यान से पढ़ते हैं शायद इतना समय ही नहीं है अतः अक्सर बेहद उत्कृष्ट ब्लॉग लेखकों को भी, लोग पढ़ने से वंचित रह जाते हैं ! अफ़सोस है कि नवोदित लेखकों को, जो प्रोत्साहन हम सबसे मिलना चाहिए नहीं मिल पाता ! मेरा विचार है कि बड़े लेखकों द्वारा प्रोत्साहन के अभाव एवं विपरीत माहौल में और उत्कृष्ट लिखना चाहिए, मुझे विश्वास है आज नहीं तो कल कलम अपनी पहचान करा देगी !
ज़ख़्मी दिल का दर्द,तुम्हारे
शोधग्रंथ , कैसे समझेंगे ?
हानि लाभ का लेखा लिखते ,
कवि का मन कैसे जानेंगे ?
ह्रदय वेदना की गहराई, तुमको हो अहसास, लिखूंगा !
तुम कितने भी अंक घटाओ,अनुत्तीर्ण का दर्द लिखूंगा !
हानि लाभ का लेखा लिखते ,
कवि का मन कैसे जानेंगे ?
ह्रदय वेदना की गहराई, तुमको हो अहसास, लिखूंगा !
तुम कितने भी अंक घटाओ,अनुत्तीर्ण का दर्द लिखूंगा !
हमने हाथ में, नहीं उठायी ,
तख्ती कभी क्लास जाने को !
कभी न बस्ता, बाँधा हमने,
घर से, गुरुकुल को जाने को !
काव्यशिल्प, को फेंक किनारे,मैं आँचल के गीत लिखूंगा !
प्रथम परीक्षा के,पहले दिन,निष्काषित का दर्द लिखूंगा !
तख्ती कभी क्लास जाने को !
कभी न बस्ता, बाँधा हमने,
घर से, गुरुकुल को जाने को !
काव्यशिल्प, को फेंक किनारे,मैं आँचल के गीत लिखूंगा !
प्रथम परीक्षा के,पहले दिन,निष्काषित का दर्द लिखूंगा !
शब्द अर्थ ही जान न पाए ,
विद्वानों का वेश बनाए !
क्या भावना समझ पाओगे
धन संचय के लक्ष्य बनाए !
माँ की दवा, को चोरी करते, बच्चे की वेदना लिखूंगा !
श्रद्धा तुम पहचान न पाए,एकलव्य की व्यथा लिखूंगा !
विद्वानों का वेश बनाए !
क्या भावना समझ पाओगे
धन संचय के लक्ष्य बनाए !
माँ की दवा, को चोरी करते, बच्चे की वेदना लिखूंगा !
श्रद्धा तुम पहचान न पाए,एकलव्य की व्यथा लिखूंगा !
अंत में सब मित्रों का आभार व्यक्त करना चाहूंगा, जिन्होंने जब तब मेरे ब्लॉग का ज़िक्र कर मेरा उत्साह वर्धन किया निस्संदेह उनका उपकार है मेरे ऊपर , इसके बिना शायद कलम में वह ताकत नहीं होती जिसके कारण मैं आत्मसंतुष्टि महसूस करता हूँ , मैं अपने मित्रों के इस उत्साह वर्धन को अपना सबसे बड़ा पुरस्कार मानता हूँ !
अपने मित्रों के स्नेह के, आभारी हैं मेरे गीत !!
गीतों में यदि झंकार न हो,तो व्यर्थ रहे महफ़िल सारी !
ReplyDeleteरचना के मूल्यांकन में है , इन शब्दों की जिम्मेदारी !
बेहद सशक्त भाव लिये ... उत्कृष्ट पोस्ट
सादर
बहुत बहुत बधाई-
ReplyDeleteऐसे ही आप सदा रचते रहें मोहक और सन्देशपूरक गीत-
सादर
आपके गीत दिल को छूते हैं। विषय की विविधता है। मौलिकता है। जब आपकी किताब प्रकाशित कर रहा था, तब आपने कहा था कि किसी विद्वान को दिखा दू किताब, लेकिन मुझे विश्वास था आपकी मौलिकता पर। पहले भी कहा था, आज भी कह रहा हूँ, तुलसीदास लिख कर चले गए, विद्वत जन आज भी सुधार कर रहे हैं उनमे। आप निश्चिंत हो, लिखते रहें। बधाई और शुभकामनाएं !
ReplyDeleteसुन्दरतम भावों का अविरल प्रवाह , विशालाक्षा (७)
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई .....!!!
ReplyDeleteएक आग्रह है प्रकाशित कविता भी हम सब पढ़ पाते और अच्छा लगता ......
और आज ४०० प्रविष्टियों एवं १६२०६ टिप्पणियों एवं १,९६,३७२ पेज व्यू के साथ "मेरे गीत" को, अलेक्सा ट्राफिक रैंक के अनुसार भारत में १८६२६ एवं विश्व में १८१०३७ रैंक पर पाकर , खासा संतोष अनुभव कर रहा हूँ !
ReplyDeletebadhaii swikarey
आपने सदा ही उपेक्षितों के लिए कलम उठाई है..जिनका दर्द कोई नहीं समझता उनकी पीड़ा को शब्द दिए हैं...मेरे गीत को शुभकामनायें !
ReplyDeleteजय हो !
ReplyDeleteआपमे गद्य व कविता दोनों विधाओं के लेखन की नैसर्गिक प्रतिभा है. निरंतर लेखनी चलाते रहिये, यही निवेदन है. बहुत बहुत बधाईयां और शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
बधाई एवं शुभकामनाएं।
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई ! एवं शुभकामनाएँ !!
ReplyDeleteआपकी रचनाओं का सतत प्रवाह जारी रहे !!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (30-11-2013) "सहमा-सहमा हर इक चेहरा" “चर्चामंच : चर्चा अंक - 1447” पर होगी.
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
सादर...!
~जो सजे-सँवरे.. वो सादगी क्या..
ReplyDeleteजो बंधन में बँधे.. वो अभिव्यक्ति क्या... ~
इस मुक़ाम पर पहुँचने पर आपको दिल से बधाई!
आप सदा इसी तरह लिखते रहें! आपकी लेखनी अनवरत, बिना किसी भेद-भाव के... स्वाभाविक रूप से गीत गाती रहे... यही हमारी शुभकामनाएँ हैं! :-)
~सादर
सुन्दर भावों की शीतल निर्झरणी यूँ की सतत प्रवाहमान रहे. शुभकामनायें!
ReplyDeletewaah ..aage kya likhun samajh men nahi aaya ...
ReplyDeleteअविरल बहे निर्मल
ReplyDeleteधारा गीतों की
उत्साह रहे शिखर पर
हमेशा ही ऐसे
सीखें हम भी
कुछ कह लेना
निकलें कभी
उल्लूक पने से :)
सुन्दर भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति, बहुत बहुत बधाई !
ReplyDeleteइस पड़ाव पर
ReplyDeleteबधाई शुभकामनाएं आपको
बहुत बहुत बधाई ! एवं शुभकामनाएँ ...!
ReplyDelete========================
नई पोस्ट-: चुनाव आया...
सुन्दर और भावपूर्ण रचना |इसी तरह लिखते रहिये |
ReplyDeleteआशा
Mers is aabhasi jagat se parichay aapne karaya.. Aapko hamne sada agraj sa samman diya.. Aapki sabse badi visheshata aapka KHUD KO NA BADALNA hai.. Apni rai, apne aadarsh, apni samvedana par kabhi kisi ka prabhav nahin padne diya.. Aapki rachnayein hamesha hi imaandar rahin hain.. Aaj aapke is retrospective post ko mera salaam!!
ReplyDeleteKABHI BANAAWAT DIKHI NAHIN
KAAGAZ KE PHOOL NAHIN YE MEET
JO LIYA DIYA IS JEEVAN SE BAS
WO HI GAATE HAIN MERE GEET!
इस प्यार के लिए आभारी हूँ , सलिल !!
Deleteकभी बनावट नहीं दिखायी,फूल नहीं कागज के मीत !
लिया दिया जो कुछ जीवन से, वही तो गाते मेरे गीत !
............
Delete............
jo bhi aisi geet likhenge.....
mere jiwan ke aadhar banenge........
pranam.
शब्द बेचारे बौने पड रहे हैं आपकी अद्भुत-अभिव्यक्ति के सामने । मेरे पास एक ही शब्द है कहने को और वह है - " अनिवर्चनीय अभिव्यक्ति ।"
ReplyDeleteआपके गीत वाकई एक आवाज़ है जो कई बातों को अभिव्यक्ति देते हैं। … शुभकामनायें |
ReplyDeleteहे भगवान! अवकाश पर जाने की भूमिका तो तैयार नहीं हो रही है ?
ReplyDeleteआगे कहूँ तो संवेदना आपकी कविताओं का मुख्य अंतर्भाव है और जहाँ संवेदना है वहीं मनुजता है !
बढ़ते रहें ,और यश कमाएँ!
अपनी करो.
ReplyDeleteआपके गीतों में अद्भुत शब्द-सामर्थ्य है तथा शिल्प की कोई कमी द्रष्टव्य नहीं होती, 'कठिन काव्य के प्रेतों' को ऐसा भले ही लगे.उनमें एक लय रहती है जो अंतर्निहित संगीत का सृजन सा करती है और यही कविता की पहचान है.
ReplyDeleteज़ख़्मी दिल का दर्द,तुम्हारे
ReplyDeleteशोधग्रंथ , कैसे समझेंगे ?
हानि लाभ का लेखा लिखते ,
कवि का मन कैसे जानेंगे ?
....वाह! बहुत सुन्दर और सटीक पोस्ट...हार्दिक बधाई और शुभकामनायें!
आपको ४०० की बधाई, हम ३६२ तक तो पहुँच गये हैं और आपके अनुगामी हैं।
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें ...
ReplyDeleteआपके गीत ब्लॉग जगत की शान हैं...सतत लेखन के लिए बधाई...
ReplyDelete