अभी तक दोस्तों के हाथ, कब के मर गए होते !
तेरे जज़्बात की हम को , अगर चिंता नहीं होती ,
तो हम होली दिवाली,माँ से मिलने घर गए होते !
अगर हम वाकई मन में ,यह शैतानी लिए होते !
तुम्हारे दिल के , अंदेशे भी , पूरे कर गए होते !
अगर हमने भी डर के ऐसे, समझौते किये होते !
तो बरसों की मेरी मेहनत, कबूतर चर गए होते !
अगर हम दोस्तों में ऐसे , कद्दावर नहीं होते !
अगर हम दोस्तों में ऐसे , कद्दावर नहीं होते !
हमारे घर की दीवारें , वे काली कर गए होते !
अगर तेरे ही जज़बातों की,कुछ चिंता नहीं होती !
ReplyDeleteतो हम होली दिवाली माँ,से मिलने घर गए होते !
वाह!!! बहुत खूब!!
सादर
अनु
उम्दा....
ReplyDeleteअगर तेरे ही जज़बातों की,कुछ चिंता नहीं होती !
ReplyDeleteतो हम होली दिवाली माँ,से मिलने घर गए होते !
एक विवशता की सार्थक अभिव्यक्ति के हार्दिक आभार बन्धु।
अगर हमने भी डर के ऐसे, समझौते किये होते !
ReplyDeleteतो बरसों की मेरी मेहनत,कबूतर चर गए होते !
बहुत सुंदर.
इस पोस्ट की चर्चा, बृहस्पतिवार, दिनांक :- 14/11/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -43 पर.
ReplyDeleteआप भी पधारें, सादर ....
क्या बात है आदरणीय-
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
शुभकामनायें-
और जो देख ले होती आपकी सदाबहार जवानी ,रूबरू होके ,
ReplyDeleteजाने कितने यार आपके , मारे खीज़ के ,खुद जल गए होते ........ :) :)
आजकल आप बहुत रफ़्तार में हैं और धार में भी , पढते पढते मूड बनता जा रहा है ......... :) :) जारी रहिए ...
बेलौस, बेबाक गीत। सुन्दर !
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ReplyDeletesundar prastuti bhaiya :)
ReplyDeleteअगर हम दोस्तों में ऐसे , कद्दावर नहीं होते !
ReplyDeleteहमारे घर की दीवारें , वे काली कर गए होते !
सही कहा सभी सटीक पंक्तियाँ !
aapki baton se aapki saafgoi jhalakti hai...bahut khub...
ReplyDeleteशुक्रिया वाणभट्ट जी !
Deleteबंदूक की गोलियां
ReplyDeleteकोई ऐसे ही
नहीं लिखता
वो जो लिखता है
उसे देखने का
चश्मा भी
ऐरे गैरे के पास
नहीं मिलता :P
आभार आपका भाई जी !
Deleteबहुत खुबसूरत रचना ...बधाई !!
ReplyDeleteहमें मालूम है कि आपका शायराने का अपना अनूठा अंदाज़ है, फिर भी अगर आप इसमे कुछ शास्त्रीय पना लाए तो इससे बहुत लाभ होगा।
ReplyDeleteबहरहाल स्टॉक में ये माल अच्छा आया है , जारी रखिये।
लगता है यह पोस्ट आपने ध्यान से पढ़ी है. . .
Deleteशास्त्रीय पना सीखा नहीं , अनपढ़ों से यह उम्मीदें , अब आप जैसों से सीखने की कोशिश करेंगे , कुछ दिनों में !
बशर्ते मुखौटा घर रख कर आयें ,
आते रहिये !
बहुत सटीक अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteनई पोस्ट लोकतंत्र -स्तम्भ
अगर हम दोस्तों में ऐसे , कद्दावर नहीं होते !
ReplyDeleteहमारे घर की दीवारें , वे काली कर गए होते !
.....वाकई..!!!!!
बहुत सटीक और सशक्त.
ReplyDeleteरामराम.
सुन्दर ,सार्थक रचना,बेहतरीन,
ReplyDeleteसादर मदन
क्या बात... खूब भालो.
ReplyDeleteओशेष धोन्नवाद , , ,
ReplyDelete:)
सच में, क्या बात
ReplyDeleteबहुत सुंदर
मित्रों कुछ व्यस्तता के चलते मैं काफी समय से
ब्लाग पर नहीं आ पाया। अब कोशिश होगी कि
यहां बना रहूं।
आभार
अभी मेरी पोस्टिंग दंतेवाड़ा में है। वहाँ के हालात और नक्सलवाद पर आपकी लिखी कविता अक्सर जेहन में आ जाती है। कनेक्टिविटी की दिक्कत होने के कारण हमेशा आपको पढ़ पाना संभव नहीं होता लेकिन जब भी पढ़ता हूँ एक सुखद अनुभव मेरे दिल में उतर जाता है।
ReplyDeleteक्या बात है आदरणीय सर। हमेशा की तरह सुन्दर कविता आभार।
ReplyDeleteक्या बात है !
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteक्या बात बात है, क्या जज़बा है।
ReplyDeleteबेहतरीन
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