विवाह पर गीत गाने की परम्परा, हमारे समाज में शुरू से ही है , सजधज कर मांगलिक अवसर पर महिलाओं द्वारा, ढोलक की थाप पर, यह गीत गुनगुनाइए एक बार …दूसरी बार रचना की है किसी विवाह गीत की अगर आप पसंद करें तो सफल मानूं !
कैसे जाओगे यहाँ से, लेके प्यार सजना ?
सजके आये हो हमारे द्वार,खूब सजना !
कैसे जाओगे यहाँ से , ले उधार सजना !
फेरे डाले हैं यहाँ पे तुमने सात, सजना !
कैसे जाओगे यहाँ से, लेके हार सजना !
कैसे जाओगे यहाँ से, लेके हार सजना !
कसमें खायीं हैं,हमारे घर सात सजना
कैसे दोगे तुम प्यार का, उधार सजना !
गांठें बाँधी हैं , ननद ने , हमारी सजना !
कैसे जाआगे छुटाके,पल्लू यार सजना !
खाना मामा ने खिलाया हमें साथ सजना !
कैसे खाओगे अकेले, अबकी बार सजना !
सारे नाचे हो गली में आके,आज सजना !
sundar geet.... vivah geet likhne ki parampara khatm ho gai hai.... nay samay aur sandarbh ko leke vivah geet rachiye... achha lagega...
ReplyDeleteबहुत सुंदर गीत
ReplyDeletebahut bahut achha............
ReplyDeleteबहुत सुंदर.
ReplyDeleteबहुत प्यारा विवाह गीत है !
ReplyDeleteवैसे इतने सुन्दर गीत पर कुछ कहना तो नहीं चाहिए पर क्या करूँ मेरा अनुभव कहता है विवाह के भी दो पहलु होते है सुन्दर गीतों से जो शुरुवात होती है वही बाद में बेसुरे तू-तू मै-मै के कोलाहल में परिणित हो जाती है :)
कभी गाँव में विवाह पर बहुत सुन्दर लोकगीत हुआ करते थे !
ये ही कटु सत्य है, ज्यादातर तू-तू मैं-मैं राग आधारित गीत ही शेष रह जाते हैं.:)
Deleteरामराम.
बढ़िया भाव-
ReplyDeleteउत्कृष्ट प्रस्तुति-
आभार भाई जी-
रोचक भाव-गीत । प्रवाह-पूर्ण सुन्दर प्रस्तुति । मज़ा आ गया ।
ReplyDeleteसुन्दर गीत ... इसको कोई लयबद्ध भी कर दे तो मज़ा आ जायेगा शादियों में ...
ReplyDeleteह्म्म! बढ़िया है ...
ReplyDeleteहम्म...औरतें सामूहिक रूप से शादी के गीत बड़े ही शौक और पसंद से गाती हैं...मगर ये तो पता ही नहीं था कि बाहर बैठे पुरुष इसे मन लगाकर बड़े ध्यान से सुनते रहते हैं:):):):)
ReplyDeleteअरे !!
Deleteयह मेरी रचना है मैडम :)
सच्ची ...ये तो आपकी ही रचना है...वापस अभी पढ़ा...
Deleteगीत बनने योग्य है...लय भाव बहुत अच्छे|
होता है होता है
ReplyDeleteसबको पता होता है
औरतों को भी
सब पता होता है
किसको कितना होता है
प्यार ऐसा ही होता है
कोई कहता है
कोई नहीं कहता है
समझना इसको
सबके बूते का
बिल्कुल नहीं होता है
किये जाओ किये जाओ :)
एक समय था बारातियों को उलाहनों और तानों से खूब सुनाया जाता था...खूब सुनाया आपने...
ReplyDeleteबहुत सुंदर गीत......
ReplyDeleteगाँवों में विवाह के अवसर पर गाली-गीत भी होते हैं ,जो समधी -पक्ष को सुनाए जाते हैं जो गाली नही स्नेह का प्रतीक माने जाते हैं । सुनकर त्यौरियाँ नही चढतीं मुस्कराहट बिखरती है । इनके लिये कवि वृन्द ने ठीक ही कहा है ---फीकी पै नीकी लगै ,कहिये समय विचारि , सबकौ मन हरषित करै ,ज्यों विवाह में गारि । आजकल फिल्मी गानों के चलते कौन पूछता है ढोलक पर गाए जाने वाले इन मधुर लोकगीतों को ...। आपका प्रयास अच्छा है ।
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर गीत
ReplyDeleteबहुत सुंदर गीत
ReplyDeleteबहुत सुंदर गीत
ReplyDeleteकिसी समय बारातियों को ऐसी तरह खूब उलाहने सुनने को मिलते थे ..एक अलग ही मजा था उसका ..अब बहुत कम हो गया है यह ...आपने इस कड़ी में सुन्दर गीत प्रस्तुति किया ..इसके लिए धन्यवाद ....
ReplyDeleteआपकी यह सामाजिक सरोकार प्रियता अनुकरणीय और स्मरणीय है
ReplyDeleteअरे वाह........... :)
ReplyDeleteलयबद्ध गीत रचने में आपको स्वाभाविक महारत हासिल है, बहुत सुंदर गीत.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteभाई साहब, इस गीत को पढते हुए ढोलक की थाप बैकग्राउंड में खुद ब खुद बजने लगती है!! कमाल किया है आपने. मन झूम झूम गया!
ReplyDeleteसुन्दर गीत
ReplyDeleteवाह अर्चना जी ने तो समा ही बाद दिया ... मेरी मुराद पूरी कर दी ...
ReplyDeleteबहुत भावप्रबल गीत … अर्चना जी कि मधुर आवाज़.... बहुत अच्छा लगा।
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