Friday, November 1, 2013
क्या आप फिरदौस खान को जानते हैं - सतीश सक्सेना
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फिरदौस खान
18 comments:
एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !
- सतीश सक्सेना
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मन से हिन्दू/मुस्लिम/ईसाई क्यूँ होना...
ReplyDeleteमन से बस इंसान न हुआ जाय ???
सादर
अनु
बहुत अच्छी रचना...
ReplyDeleteमेरी नयी रचना के लिये पधारें...
http://www.kuldeepkikavita.blogspot.com
फिरदौस जी के बहुत सुन्दर सुविचार हैं ....आखिर जात धर्म से पहले तो सभी इंसान जो हैं ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति प्रेरक प्रस्तुति
सब मिलाकर एक सही इंसान -सुन्दर विचार
ReplyDeleteनई पोस्ट हम-तुम अकेले
मैंने इन के विचारो को जिस तरह जाना ... उस अनुभव के बाद इन से दूरी बनाए रखना ही उचित समझा ... छद्म धर्मनिरपेक्षता कोई मतलब नहीं होता |
ReplyDeleteJab hum naye naye the to aapki posts par inke comments dikhte thay. Tab shayad padha bhi tja inko. Bahut achchhe vichar hain..
ReplyDeleteजींस पैंट बिंदी का भी धर्म होता है क्या?
ReplyDeleteदिमाग से पैदल कई तरीके के होते हैं
इन्ही सब बातों से तो पता चलता है !
जी हाँ फिरदौस जी कि लेखनी से वाकिफ हूं, एक-दो बार गुफ़तगू भी हुई है। गंगा जमुनी संस्कृति को पोषित करती उनकी कलम को सलाम है।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार आदरणीय -
शुभकामनायें भी-
फिरदौस जी की सहिष्णु विचारधारा को सलाम!!
ReplyDeleteजानते तो नहीं लेकिन इतना जानते हैं कि गलत को गलत कहने का साहस वाकई काबिले तारीफ़ है .
ReplyDeleteकाश ऐसी भावना सभी देशवासियों की हो !!
ReplyDeleteफिरदौस जी की बहुत सी बातें पसंद हैं मगर कुछ से असहमत भी हूँ... हालाँकि सबका सोचने का अपना-अपना नज़रिया होता है। मेरी सोच यह है कि अपनी धार्मिक आस्थाओं पर चलने के बावजूद सबके साथ प्यार-मौहब्बत से रहा जा सकता है। धर्म मानवता सिखाता है, बशर्ते की धर्म का दिखावा भर ना हो...
ReplyDeleteहम चाहे किसी भी धर्म का पालन करते हों, हमारे अन्दर इंसानियत और भाई चारे की भावना होनी चाहिए।
हमने तो उन्हें खूब शिद्दत से जाना
ReplyDeleteउन्होंने मगर कभी न खबर ली मेरी
आपकी नज़रो का यह है दिलकश नज़ारा
आज फिर से मैंने चश्में बद्दूर को जाना
इनका परिचय भी तो आना चाहिए था।
ReplyDeleteअनेकता में एकता यह एक अच्छी बात है लेकिन इन सबका मेरे अनुसार धर्म से कोई संबंध नहीं है ! फिरदौस जी बहुत अच्छा लिखती है मैंने इनको पढ़ा है, दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ स्वीकारे !
ReplyDeleteऐसी ही शख्सियतों की जरूरत है आज.
ReplyDeleteदीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं.
रामराम.
आज इन्सान होना ही काफी है ... अगर हो सकें तो ...
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