Tuesday, November 15, 2016

सच कहूँ तो देश मेरा , जाहिलों का देश है - सतीश सक्सेना

सच कहूँ तो देश मेरा ,जाहिलों का देश है !
मूढ़,मूरख औ निरक्षर,काहिलों का देश है !

ढोर झुंडों की तरह आपस में लड़ते ही रहे 
जाति धर्मों में बंटे, लड़ते जिलों का देश है !

सुना करते थे बड़ों से कभी हम भी,मगर अब 
रक्षकों से ही लुटे , जर्जर किलों का देश है !

लड़कियां बाज़ार में चलतीं सहमती सी हुईं  
डूबतों को ताकते, जड़ साहिलों का देश है !

ढोंगियों के सामने, घुटनों पर बैठे हैं सभी !
संत बनकर ठग रहे, व्यापारियों का देश है !

देश मेरा भी जगेगा जल्द लेकिन इन दिनों,
स्वर्ण सपने बेंचते , कुछ धूर्तों का देश है !

7 comments:

  1. बहुत सुंदर सटीक रचना

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  2. क्या खींचते हैं आप चित्र मजा आ जाता है पर इन मिर्चियों के जलने का धुआँ अपनी ही आँखों में चिलचिली मचाता है ।

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  3. बहुत सुन्दर

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  4. बहुत गहरा और सटीक तमाचा है समाज पर ... लाजवाब गीत ...

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  5. सार्थक प्रस्तुती

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  6. देश के जागने की ही उम्मीद है।

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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