कहाँ हैं आप सब ? क्यों नहीं बोल रहे अपने ही घर में हो रहे इस अघोषित शीतयुद्ध पर ?
उस घर में कभी शांति नहीं हो सकती जब तक बच्चों के वैमनस्य पर बड़े खामोश बैठे रहें ! यहाँ पर बड़ों से तात्पर्य उम्रदराज होने से नहीं बल्कि समझ और परिपक्वता से है ! आपस में एक दूसरे को बुरा भला कहते हम लोग, एक दूसरे की आस्थाओं ,मान्यताओं पर जम कर गालीगलौज करते हमारे देश वासी,नफरत के सैलाब की और बढ़ रहे हैं यह कोई शुभ शकुन नहीं है फिर आपकी खामोशी का क्या मतलब है ! मुझे नहीं लगता जहरीले माहौल पर न बोलना या उस समय उदासीन होना माहौल को शांत कर देगा !
उस घर में कभी शांति नहीं हो सकती जब तक बच्चों के वैमनस्य पर बड़े खामोश बैठे रहें ! यहाँ पर बड़ों से तात्पर्य उम्रदराज होने से नहीं बल्कि समझ और परिपक्वता से है ! आपस में एक दूसरे को बुरा भला कहते हम लोग, एक दूसरे की आस्थाओं ,मान्यताओं पर जम कर गालीगलौज करते हमारे देश वासी,नफरत के सैलाब की और बढ़ रहे हैं यह कोई शुभ शकुन नहीं है फिर आपकी खामोशी का क्या मतलब है ! मुझे नहीं लगता जहरीले माहौल पर न बोलना या उस समय उदासीन होना माहौल को शांत कर देगा !
ये बबूल के बीज घर में डाले जा रहे हैं और समझदार लोग भी रोते हुए इन्हें सींच रहे हैं ! अपमान के कष्ट में रोते हुए इन विद्वान्, मगर कम उम्र जिद्दी बच्चों को, समझाने की शक्ति, किसी एक के बस की नहीं है अगर हम सबके हाथ नहीं मिले तो यह सुगन्धित दिया बुझ जाएगा जिसे जलाए रखने का प्रयत्न हम जैसे कुछ लोग कर रहे हैं !
अतः आप सबसे प्रार्थना है कि एक ही घर के दो बच्चों में, बढती वैमनस्यता की खाई पाटने में मदद करने आगे आयें जिससे कि हँसते हुए, साथ बैठने उठने का जज्बा पैदा हो ! मुझे पूरा विश्वास है कि देश का जनमानस इस अपील पर अवश्य ध्यान देगा ! अविश्वास के माहौल में कम से कम एक बात मान जाएँ !
सतीश जी बच्चों की बतकही हम देख सुन रहे हैं -हा हा .बोलने की कौनो जरूरत नहीं समझी ....
ReplyDeleteमैं ठहरा नास्तिक आदमी -न तो' सनातनी' हिन्दू को प्रिय और न किसी ' सच्चे ' मुसलमान को ही ....इसलिए मेरा बोलना बिलकुल भी ठीक नहीं है ! इसलिए चुप हूँ !
सक्सेना जी आपका प्रयास बहुत अच्छा है हम दावे से कह सकते हैं कि हर हिन्दू लेखक आपसे सहमत है।समस्या तो उनसे है जो आतंकवाद की हर घटना के वाद उसे जायज ठहराने की कोशिस करते हैं ।पकड़े गए आतंकवादियों को निर्देष वताते हैं ।देश में रहकर वन्देमातरम् का विरोध करते हैं।गरीवी का रोना रोते हैं पर गरीवी जड़ को समाप्त करने वाले परिवारनियोजन का विरोध करते हैं।विशेषा अधिकार मांगते हैं पर संविधान का मान-सम्मान करने से पीछे हट जाते हैं।
ReplyDeleteआज तक हम जितने भी हिन्दूओं से मिले किसी को भी किसी मन्दिर,मस्जिद,गुरूद्वारे ,गिरजाघर जाने में कोई समस्या नहीं पर हिन्दूओं के मन्दिर जाने पर इनको समस्या है इसीलिए ये मन्दिरों पर हमला वोलते हैं भारतीय त्यौहारों पर दंगा भड़काते हैं।
अन्त में सेकसेना जी हम इतना ही कहेंगे कि अगर हिन्दू हिंसक होता तो दंगा हिन्दूबहुल क्षेत्रों में होता न कि मुसलिम बहुल क्षेत्रों में।अगर हिन्दू इनके जैसा होता तो जिस तरह इन्होंने मुसलिम कशमीरघाटी से हिन्दूओं का सफाया कर दिया उसी तरह आज तक सारे हिन्दू बहुल भारत से इनका सफाया किया जा चुका होता पर ऐसा नहीं हुआ क्यों क्योंकि हिन्दू इनके जैसा नहीं।इनमें भी अच्छे लोग हो सकते हैं पर वो भी इन बर्वर अत्याचारों के विरूद्ध वोलते नहीं
उपयुक्त व सामयिक कथन ।
ReplyDeletesamjhane se samajh aa jae to samjhiye ki ise samajh kee mai kayal hoo.................
ReplyDeletekhoon ek hai..................
dard ek hai....................aur ye nafrat kee deevare humne hee khadee kee hai hum sabheeko milkar ise todna hoga.............................
saathee hath badana sabhee se isee apeel mai mai bhee Satish jee ke sath hoo............
सहमत हूँ आपसे सतीश भाई।
ReplyDeleteमंदिर को जोड़ते जो मस्जिद वही बनाते
मालिक है एक फिर भी जारी लहू बहाना
मजहब का नाम लेकर चलती यहाँ सियासत
रोटी बड़ी या मजहब हमको जरा बताना
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
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ReplyDeleteप्रतिक्रिया छापने के लिए धन्यावाद भाई आगे सीधी बात करेंगे बहुत जल्दी
ReplyDelete@ हिन्दू टाइगर,
ReplyDeleteआपके आने और विचार व्यक्त करने का शुक्रिया भाई ! कृपया मेरे विचारों को एक बार ध्यान से पढ़ अवश्य लें ! एक प्रार्थना और जब भी किसी कारण का विरोध करना हो तो उनकी जगह अपने आपको रख कर सोच अवश्य लें कि कहीं आप ही तो गलती नहीं कर रहे ! एक व्यक्ति विशेष की भूल को, सारे समाज की भूल बताने वालों को इतिहास सिर्फ मूर्ख सिद्ध करता आया है ! कट्टर भावनाएं रखने वाले दूसरों की कट्टरता पर उंगली न उठायें तो कम से कम ईमानदार तो कहलायेंगे ही !सादर
@ अरविन्द मिश्रा,
जितना मैंने आपको पढ़ा है आप एक स्वच्छ और ईमानदार तो हैं ही ...हाँ थोडा चोट अधिक करते हैं ... :-(
इस विषय पर आपके विचारों की ..भविष्य को देखते हुए...बहुत आवश्यकता है गुरुदेव ! आशा है निराश नहीं करेंगे ....
@ उड़न तश्तरी,
महाराज नीचे आक़र सिर्फ एक घंटा अपनी लेखनी का इस विषय पर दे दें, तो मेरी मेहनत सफल हो जायेगी ! सादर
@ अपनत्व,
महिलाएं इस विषय पर बहुत कम ध्यान दे रही हैं अगर आपका आशीर्वाद मिला तो शायद बहुत दीपक जल पायें !
सादर
@ प्रवीण पाण्डेय,
आप बेहतरीन विचारों के धनी हैं, आपका हर लेख एक प्रभाव छोड़ने में सक्षम है , कृपया इस विषय पर अवश्य लिखें
कट्टरवादियों के कारण सचमुच हिंदू मंस्लिम मुद्दे पर न बोलना ही उचित होता है .. इसलिए मैं टिप्पणियां नहीं किया करती .. यहां भारतवर्ष में कौन हिन्दू और कौन मुस्लिम हैं .. सबमें एक ही खून दौड रहा है .. क्यूंकि सबके पूर्वज तो भारतीय ही थे .. मुट्ठी भर विदेशियों के कारण किसी का खून नहीं बदल गया है .. मैं मंदिर में पूजा करूं या मस्जिद में नमाज पढूं .. ईश्वर की पूजा तो होगी ही .. इससे भी मेरा कुछ नहीं बिगड जाएगा .. पर इस धर्म को राष्ट्र से भी ऊपर मान लेना गलत है .. हमें किसी के बहकावे में नहीं आना चाहिए .. इतिहास गवाह है कि विदेशियों ने विभिन्न आधार पर हमें बांटकर ही हमें पराधीन किया है .. इसके अलावे मैं वर्षों पूर्व के लिखे धर्मग्रंथों के अनुरूप अपनी जीवनशैली क्यूं रखूं .. 'सनातन धर्म' के अनुसार हर क्षेत्र में चिंतन करने के लिए एक खुला आसमान है .. 'धर्म' को भी समय , काल और परिस्थिति के अनुसार परिवर्तनीय होना चाहिए .. आज दीपावली मनाने के क्रम में घर , द्वार , खेत खलिहान की सफाई की जाती है .. बरसात के तुरंत बाद आनेवाले इस त्यौहार को मनाना आज भी हमारी जीवनशैली के अनुरूप है .. इसलिए इसे मनाने में कोई आपत्ति नहीं .. पर जिस दिन किसी त्यौहार के मनाने में सामूहिक तौर पर हमें बाधा आएगी .. हमलोग इसे मनाना बंद कर देंगे .. धर्म का यही स्वरूप मुझे अच्छा लगता है !!
ReplyDeleteसतीश भाई,
ReplyDeleteये क्या हो रहा है, मेरा कमेंट दो बार छपा और दोनों बार गलती से मुझसे ही डिलीट हो गया...फिर भेज रहा हूं...
इंसान का इंसान से हो भाईचारा,
यही पैगाम हमारा, यही पैगाम हमारा...
आपकी इस मुहिम में हर सही सोच वाला आदमी साथ है...लेकिन सच कड़वा होता है और गले से मुश्किल से नीचे उतरता है...हां, गांधी के सच के सीने में गोली उतारने वाले ज़रूर हर युग में मिल जाएंगे...
जय हिंद...
सतीश जी ,बहुत ही संवेदन शील विषय है ये चाहते हुए भी लिखने की हिम्मत नहीं कर पाती ,अगर किसी को मेरे देश प्रेम पर शक होने लगा तो सहन कर पाना नामुम्किन होगा ,
ReplyDeleteजिस दिन हम मुसल्मान या हिन्दु बन कर सोचना छोड़ देंगे और हिंदुस्तानी बन कर सोचने लगेंगे समस्या उसी दिन हल हो जाएगी ,
डॉ.अनवर जमाल या हिन्दु टाइगर्स जैसे भाइयों से मेरी यही प्रार्थना है कि कृप्या सब को ग़लत ना समझें किसी के व्यक्तिगत विचारों को पूरी क़ौम की विचार धारा न समझें ,
जो भी व्यक्ति किसी दूसरे के लिए ग़लत सोचे वो कहीं न कहीं ख़ुद ग़लत हो सकता है,ऐसे लोगों के लिए मुझे बस इतना ही कहना है........
तुम अपने ज़ह्न के इन बदनुमा ख़यालों को
ख़ुदा के वास्ते बच्चों में मुन्तक़िल न करो
अगर किसी को किसी बात से ठेस पहुंचे तो माफ़ी चाहती हूं
मेरे पड-दादाजी कि आलमारी में काफी किताबें उर्दू में थी, कैसे समझ में आये ? फिर मैंने हमारे गाँव के सांई चाचा को अपनी परेशानी बताई. 95 साल कि उम्र चलने फिरने में परेशानी. फिर भी मेरे साथ गए(पता है कहाँ? हमारे मंदिर में जिसकी हम १३ पीड़ियों से पूजा करते आरहे है.)
ReplyDeleteवहां जाकर उन्होंने देखा 15 -20 किताबें तो तत्कालीन जयपुर स्टेट के राजकीय नियमावली से सम्बंधित थी(मेरे पड-दादाजी राज सवाई जयपुर में इंजीनियर थे), 5 -7 ज्योतिष की, और एक गीताजी का उर्दू अनुवाद था. बाकी पुस्तकें गल जाने के कारण छेड़ना ठीक नहीं समझा.
जरीना चाची ने रमजान के महीने में हमारे मंदिर के लाउड-स्पीकर को माँगा मस्जिद में लगाने के लिए, दादा जी ने उतार के दे दिया.
हुसैन मेरा ख़ास दोस्त है. हुसैन, मै, कपिल, नमो, गुड्डू ( सांई चाचा का पोता ) रात में 1 -2 बजें तक बातें करतें रहते थें. अब भी कभी गाँव जाता हूँ . तब वोही हाल है .
चाचा ने दिया नहीं बुझाया, ज़रीना चाची ने दिया नहीं बुझाया, हम ने दिया नहीं बुझाया. कभी जिन्दगी में ऐसी गलीच बाते दिमाग में नहीं आई.
यह तो मेरे आस-पास के बिलकुल नगण्य उदहारण है मेरे गाँव के उदाहरणों को पढते पढ़ते ही साल बीत जायेंगे. पूरे हिदुस्थान की तो बात ही छोड़ो . दिए क्या अखंड ज्योत जल रही है, प्रेम की .
लेकिन जब घर में भाई बहन ही आपस में झगड़ बैठते अपनी बात पर. तो जब आपस में विचार मंथन चल रहा है तो आरोप प्रत्यारोप भी होंगे ही. फिर उसको लाइट लेने में क्या हर्ज़ है .
मेरे पड-दादाजी कि आलमारी में काफी किताबें उर्दू में थी, कैसे समझ में आये ? फिर मैंने हमारे गाँव के सांई चाचा को अपनी परेशानी बताई. 95 साल कि उम्र चलने फिरने में परेशानी. फिर भी मेरे साथ गए(पता है कहाँ? हमारे मंदिर में जिसकी हम १३ पीड़ियों से पूजा करते आरहे है.)
ReplyDeleteवहां जाकर उन्होंने देखा 15 -20 किताबें तो तत्कालीन जयपुर स्टेट के राजकीय नियमावली से सम्बंधित थी(मेरे पड-दादाजी राज सवाई जयपुर में इंजीनियर थे), 5 -7 ज्योतिष की, और एक गीताजी का उर्दू अनुवाद था. बाकी पुस्तकें गल जाने के कारण छेड़ना ठीक नहीं समझा.
जरीना चाची ने रमजान के महीने में हमारे मंदिर के लाउड-स्पीकर को माँगा मस्जिद में लगाने के लिए, दादा जी ने उतार के दे दिया.
हुसैन मेरा ख़ास दोस्त है. हुसैन, मै, कपिल, नमो, गुड्डू ( सांई चाचा का पोता ) रात में 1 -2 बजें तक बातें करतें रहते थें. अब भी कभी गाँव जाता हूँ . तब वोही हाल है .
चाचा ने दिया नहीं बुझाया, ज़रीना चाची ने दिया नहीं बुझाया, हम ने दिया नहीं बुझाया. कभी जिन्दगी में ऐसी गलीच बाते दिमाग में नहीं आई.
यह तो मेरे आस-पास के बिलकुल नगण्य उदहारण है मेरे गाँव के उदाहरणों को पढते पढ़ते ही साल बीत जायेंगे. पूरे हिदुस्थान की तो बात ही छोड़ो . दिए क्या अखंड ज्योत जल रही है, प्रेम की .
लेकिन जब घर में भाई बहन ही आपस में झगड़ बैठते अपनी बात पर. तो जब आपस में विचार मंथन चल रहा है तो आरोप प्रत्यारोप भी होंगे ही. फिर उसको लाइट लेने में क्या हर्ज़ है .
सतीश जी ,धर्म का जो स्वरुप हम आज देख रहे है वह इतना विकृत और रूढ़ सा हो गया है की कुछ भी कहना व्यर्थ ही लगता है -
ReplyDeleteपरहित सरिस धर्म नहीं भाई पर पीड़ा सम नहीं नहि अधमाई
यह मेरा सूत्र वाक्य है -बस! अभी बस इतना ही कहकर अनुमति चाहता हूँ !
सतीष जी
ReplyDeleteहम साथ हैं इसमे कोई शक न हो
मैं संगीता पूरी जी की बातो से सहमत हूँ। कि हैं तो सब भारतीय ही ना। लेकिन सक्सेना जी उनका क्या करे जो खड़े होकरके हमें ललकारते हैं। हमें मजबूर करते हैं कि हम उनके खिलाफ कुछ बोले।
ReplyDeleteआखिर मुस्लमान इतने कट्टर क्यों होते हैं। हम सभी लोग एक दुसरे को समझा रहे हैं कि कभी भी गलत शब्दों का इस्तेमाल ना करे। लेकिन आप लोग उनके ब्लॉग पर जा कर के देखे कि डॉ अनवर को लोग कितनी शाबाशी दे रहे हैं।
मैं तो खुद भी कहता हूँ कि इस्लाम मैं कोई भी कमी नहीं है। और न ही कभी एक हिन्दू एक मुस्लमान से लड़ता है , लड़ाई तो सिर्फ अरबियन सभ्यता और भारतीय सभ्यता के बीच मैं होती है।
हिन्दू मुसलमान तो सदियों से साथ रहते आये है,ये सब तो इन नेताओं का किया धरा है!इसलिए इन नेताओं को पहचान कर बहिष्कार करना होगा,तभी शन्ति हो पायेगी!आपने इतना बड़ा मुद्दा उठाया ,यही सोच इस देश के नेता रखते तो सब ठीक हो जाता!धर्म और राजनीती का घोलमाल करने वाले नेता ही सारे फसाद की जड़ है...
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ReplyDeletePRNAAM SATISH JI MAI JAB SE AAP SE PAHLI BAAR MILA TAB SE HI BHUT PRBHBIT HUN ,, AUR AAP NE SAKARATMK KAARY PARARAMBH KAR DIYA HAI MAI YEK BAAR FIR NATMASTAK HUN
ReplyDeleteSAADAR
PRAVEEN PATHIK
9971969084
मुहम्मद उमर कैरानवी,
ReplyDeleteआपकी प्रतिक्रिया बेहद घटिया और और घमंडी है आप जैसे लोगों के कारण ही यह जहरीला विष लोगों के मस्तिष्क में भरा जा रहा है ! अगर मैं यह बहुसंख्यक लोगों से प्रार्थना कर रहा हूँ तो किसी भय से नहीं बल्कि स्नेह और प्यार के कारण कर रहा हूँ और मेरी यह मान्यता है कि मुस्लिम सम्प्रदाय में प्यार की कमी नहीं है ! दुःख सिर्फ आप जैसे लोगों को को है जिन्हें यह प्यार की भाषा नहीं अच्छी लगती ! भविष्य में आप इस ब्लाग पर न आयें और डॉ अनवर जमाल जैसे लोगों को भड़काने का प्रयत्न करते रहें जिससे मेरे किये हुए पर भी पानी फिरे !
इश्वर आप जैसों को सद्बुद्धि दे !
सतीश जी, यह मुद्दा दुनिया को अपने विचारों से रंगने का है। इसके पीछे सत्ता का नशा है। अब कठिनाई यह है कि एक सारी दुनिया पर राज करना चाहता है और दूसरा स्वयं को बचाना और अपने घर को सुरक्षित रखना चाहता है। अब आप दोनों को ही एक तराजू में तौल देंगे तो न्याय नहीं होगा। यह मुद्दा ब्लाग का भी नहीं है और जो भी इस मुद्दे पर लिख रहे है वे अपनी ऊर्जा नष्ट कर रहे हैं। दुनिया में जितने भी धर्माचार्य हैं वे इस मुद्दे को सुलझा सकते हैं इसके अतिरिक्त और कोई नहीं। वे जिस दिन अनुभव करेंगे कि हिंसा का वातावरण बढ़ता जा रहा है और दुनिया से हिंसा समाप्त होनी चाहिए तब कोई न कोई फैसला हो जाएगा। मैं भी इस मुद्दे पर अपनी टिप्पणी नहीं लिखती लेकिन आपने या किसी और ने लिखा कि महिलाओं की टिप्पणी नहीं आ रही है इसलिए लिख दिया। अब आपके हाथ में इसे प्रकाशित करना या नहीं करने का अधिकार है। महिला नहीं लिख रही इस कारण हमने तो अपना कर्तव्य पूरा किया अब देखते हैं कि यह प्रकाशित भी होती है या नहीं।
ReplyDeleteमैं तो नास्तिक हूँ, और रिलिज़न की जगह सामाजिकता को मनुष्य का नियामक समझती हूँ ..इसलिए चुप हूँ
ReplyDeleteSamay mile to yah aalekh zaroor padhen:
ReplyDelete"Pyarki Raah dikha duniyako"
Tatha:
"Meree aawaaz suno"
Link:
http://lalitlekh.blogspot.com
http://shamasansmaran.blogspot.com
Jo prayas aapka hai,vahi mera hai..
हम आपके साथ हैं.
ReplyDeleteआदरणीय सतीश जी ,
ReplyDeleteउसूलन अब धर्म जाति जैसे विषयों पर लिखने पढने का मन नहीं करता है इसलिए शायद यहां भी पढ के निकल जाता , मगर आपने बात ही कुछ ऐसी कह दी और सभी से रूबरू हुए तो ठहर के बिना कुछ कहे निकल जाने को मन गंवारा नहीं हुआ ।
सच कहूं तो अब लगता है कि बस अब समय आ गया कि कि धर्म और जाति शब्दों को समय के गर्त में गाड देना चाहिए क्योंकि ये सब इंसान से उसकी इंसानियत की पहचान छीन कर उसे नया ही रंग रूप दे रहे हैं । यहां ब्लोगजगत में जो कुछ भी हो रहा है उस पर कोई टीका टिप्पणी नहीं करूंगा और अब तो ये कहने का मन भी नहीं करता कि ये करन चाहिए वो करना चाहिए । कोई भी बडी आसानी से समझ सकता है कि ये सब किसी न किसी खास एजेंडे ...आप लाख तर्क दे दें मैं नहीं मानूंगा कि इससे अलग कुछ भी है ....के तहत किया जा रहा है ।
मेरा इस संबंध में सीधा और स्पष्ट सा मत है , यदि संकलक ऐसे कट्टर विचारधाराओं , चाहे वो हिंदू हो या मुस्लिम ..या कोई और ही ..ब्लोग्स को पूर्णतया बैन नहीं भी करना चाहते तो कम से कम उन पोस्टों ,को जरूर ही प्रकाशित करने से रोक दिया जाना चाहिए जो माहौल दूषित करते हैं ...वैसे देर सवेर ये करना ही पडेगा और ये होगा ही ..मुझे सिर्फ़ मानवता नाम का धर्म ही दिखाई, सुनाई देता है
अजय कुमार झा
मैं इन संकीर्ण मुद्दों पर ज्यादा कमेन्ट करना नहीं चाहता हूँ...आधे-अधूरे कमेन्ट के बजाय मैं अपने विचार अपने पोस्ट के माध्यम से रखना पसंद करता हूँ...
ReplyDelete.
.जब एक हिन्दू माँ अपने बच्चे को नमाज़ के समय मस्जिद भेज देती...( भाग-एक )
http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/04/blog-post_07.html
....विश्वास , अन्धविश्वास और कट्टरता में जो अंतर है...अगले पोस्ट में....
मै एक हिन्दु हू और अपने को सच्चा हिन्दु मानता हू और एक सच्चे मुसलमान की क्द्र करता हूं. कुछ लोग इस्लाम की भावनाओ के साथ खुद ही मज़ाक कर रहे है मोहम्म्द साहब को कल्कि अवतार से जोडना उनका मान्सिक दिवलियापन ही है .और ब्लाग के यह मुस्लिम प्रचारक खुद ही इस्लाम को कठ्घरे मे खडा कर देते है
ReplyDeleteक्या कहूँ सतीश जी?
ReplyDeleteब्लॉगिंग के प्रारंभिक काल में कुछ ऐसा हुआ कि अब धर्म व विवादास्पद राजनैतिक लेखों वाले ब्लॉग पर जाता ही नहीं। यदि कभी जाना हो भी जाए तो उद्देलित हो जाने के बावज़ूद बिना प्रतिक्रिया दिए वापस आ जाता हूँ
आपके लेखों में भी बहुत कुछ कह सकता हूँ किन्तु अपने निर्णय पर अड़ा हूँ। बस।
प्रिय सतीश आपके ब्लॉग पर टिप्पणी देने के जो निर्देश है उस वाबत पिछले माह की पाखी पत्रिका में पढ़ कर बहुत खुशी हुई आपने पत्रिका तो देख ही ली होगी | आज का लेख समयानुकूल है आपको पढ़ा साथ ही सारी टिप्पनिया भी पढी उसी में आप का जवाब भी देखा |आजकल आवश्यकता है इस प्रकार के लेखों की
ReplyDeleteप्रिय सतीश जी आपकी सोच बहुत अच्छी है आपने हमेशा की आज भी अच्छा लिखा है पर आप ब्लागजगत मे देखेँ अनवर भाई तो अभी आए है यहाँ तो हिन्दु टाइगर और गिरी जैसे लोग पहले ही बकवास कर रहे थे अनवर जी ने यहाँ का नज़ारा देखा तो उन्हे जवाब देने के लिए मजबूर होना पड़ा नही तो हमारा मिशन तो विशव शान्ति का है
ReplyDelete@ अमित शर्मा ,
ReplyDeleteआपका आचरण और समझ अनुकरणीय है, मेरी हार्दिक शुभकामनायें !
@अरविन्द मिश्र ,
आपके इस वाक्य में सब कुछ निहित है !
@गिरीश बिल्लोरे,
शुक्रिया गिरीश जी, आपने सब कुछ दे दिया
@तारकेश्वर गिरी ,
अफ़सोस जनक यही है , और बदकिस्मती से यह दोनों तरफ से ही हो रहा है , उम्मीद करते हैं की डॉ अनवर जमाल पहल करेंगे !
@अनिल पुसाद्कर,
आपका बहुत बहुत आभारी हूँ !
@अजय झा ,
धर्म जैसे विषयों पर मैं कभी नहीं लिखता , मेरा विषय आने वाली पीढ़ियों के सामने बिखेरे कांटे साफ़ करने का है , आपके विचारों से सहमत हूँ !
बाक़ी हैं कुछ सज़ाएं सज़ाओं के बाद भी
ReplyDeleteहम वफ़ा कर रहे हैं उनकी जफ़ाओं के बाद भी
मुनसिफ़ से जा के पूछ लो 'अनवर' ये राज़ भी
वो बे खता है कैसे , ख़ताओं के बाद भी .
आदरणीय , ज़्यादातर लोग कह रहे हैं कि वो आपके साथ हैं लेकिन समर्थन में १ और नापसंद में ६ वोट क्यूँ दिखाई दे रहे हैं ?
दूसरा वोट मैं दे रहा हूँ .
मैं आपके साथ हूँ, सहमत हूँ.
ReplyDeletehindu tigers और संगीता पुरी जी की टिप्पणियाँ ध्यातव्य हैं.
.
ReplyDeleteइस पोस्ट को मेरा मौन समर्थन !
( जहाँ मर्डरेशन की कोई गुँज़ाइश ही नहीं.. है ना बँधु ? )
Sateesh sir kareeb 1-1 1/2 mahine pahle man bahut khinn ho gaya tha is tarah ke dono taraf se chalne wale teer-talwaron se aur is sab par ek shrankhla nikalne ka hi soch baitha tha kafi kuchh likh bhi rakha hai, lekin kai senior logon ne samjhaya ki in sab baton par dhyan mat do ye raah ki badhayen hain dhyaan na dene par apne aap hi hat jayengeen(mera bhi yahi manna hai ki jaise ishwar prapti ke marg me kai bhoot-pishach darane ka kaam karte hain ye sab wahi hain). bas isliye ab apnee dono aankhon par taange wale ghode ki tarah chamda laga kar chalta hoon.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDelete@ डॉ अयाज अहमद ,
ReplyDeleteडॉ साहब , सब लोग अपने नज़रिए से ही मामला देखते और सुनते हैं ..अगर हम अपने नज़रिए से देखेंगे तो एक तरफा न्याय होगा ! मैंने डॉ अनवर जमाल में बिना कोई कमी ढूंढे सिर्फ उन्हें सम्मान देते हुए उनका दर्द समझाने की कोशिश की है जिसका नतीजा यह लेख हैं ! अगर मैं उनकी पोस्ट पढना शुरू करता तो शायद यह विश्वास कभी नहीं पैदा होता जो उन्होंने मुझ पर किया है ! जब भी आप व्यक्तिगत कारण जाने बिना उंगली उठाएंगे तो बदले में तिरस्कार मिलने की उम्मीद अधिक होती है !
आदर सहित
@ डॉ अमर कुमार ,
आपका आभारी हूँ की आप भी यहाँ तक पहुँच गए , आपको मैं यहाँ ईमानदार लोगों में से एक मानता हूँ , कृपया मार्गदर्शन करें बहुत मुश्किल रास्ता है ....
@ डॉ अनवर जमाल ,
मुझे कल ही खुशदीप भाई से पता लगा कि लोग मुझे ब्लागवाणी पर नगेटिव वोट दे रहे हैं...मैंने उनसे ही कहा है कि वे मालूम कर लें कि मामला क्या है...
मुझे इसके बारे में कुछ नहीं मालूम और न ही अपनी लोकप्रियता की दिलचस्पी है मुझे मालूम है कि जो काम मैंने शुरू करने का प्रयत्न किया है उसमें मुझे कष्ट तो मिलने ही हैं , मगर भावुक आदमी होने के कारण पता नहीं कब तक कोशिश कर पाऊंगा ! आज मुहम्मद उमर कैरानवी भी एक गर्वीली बात कह गए जो अच्छी नहीं लगी .... मैं जिन्हें विद्वान् समझाता हूँ वे अगर ऐसा कह रहे हैं तो यकीनन वे अपना सम्मान नष्ट कर रहे हैं और मुझे यह अहसास दिला रहे हैं कि मैं कहीं गलत तो नहीं कर रहा !
सतीश भाई, मैं मुस्लिम हूँ, और हर धर्म और हर अच्छाई का सम्मान करता हूँ, यही मेरा धर्म भी सिखाता है. अगर कोई मेरे धर्म पर कोई सवाल करता है तो शांतिपूर्ण ढंग से उसका जवाब देने में विश्वास करता हूँ. मेरे विचार में स्वस्थ बहस किसी भी क्षेत्र में हो सकती है जैसे की विज्ञान के क्षेत्र में होती है. हाँ उकसाने वाली भाषा, आरोप, प्रत्यारोप निहायत गलत है.
ReplyDeleteमजहब नही सिखाता आपस में बैर रखना
ReplyDeleteकाश सच्चाई को हम समझ पायें और यह वैमनस्य खत्म हो जाये.