मेरा आज का संस्मरण !
- ३ बजे की धूप में , कार स्टेपनी के पहिये के पंक्चर ठीक कराने एक दुकान के सामने गाड़ी रोक , देखा भयंकर गर्मी में दुकान में एक आदमी सो रहा था ! होर्न सुनकर धूप में बाहर आते उस व्यक्ति से, में उसका रेट पूंछा ! साहब २० रुपया !सोते हुए आदमी को जगाकर केवल २० रुपये में इतनी मेहनत करवाना मुझे अच्छा नहीं लगा ! जब मैंने उसे ५० रूपये देकर, चेंज लेने से मना कर दिया और उसको कहा कि मेरे हिसाब से यह वाजिब मेहनत का पैसा है इसे रख लो ! तो उसके शब्द थे आप कैसे आदमी हो साहब यहाँ लोग ५ रूपये के लिए भी मरने मारने पर उतारू होते हैं और आप ५० रुपये जमाने से ज्यादा दे रहे हो !
- इसी दिन अगली रेड लाइट चौराहे पर , एक सभ्रांत से दिखने वाले एक वृद्ध युगल सामने आकर खड़े हो गए और कहा कि " हम भिखारी नहीं है , पैसे कम हैं हो सके तो कुछ मदद करें " आम तौर पर संगठित भिखारियों को मैं कुछ नहीं देता, मगर इन वृद्धों में अपने माता पिता क्यों नज़र आये , मैं नहीं जानता और पर्स में से १०० रूपये का एक नोट जब उनको दिया तो उनकी आँखों की चमक और मेरे सर पर रखे कांपते हाथ को मैं महसूस कर पा रहा था !
बहुत ही ईमानदारी और बफादारी भरी विवेचना / अच्छी सोच को ब्लॉग पर उतार कर लोगों के सोच को प्रेरित करने के लिए धन्यवाद /
ReplyDeleteचाचा जी इस दुनिया में बहुत तरह तरह के लोग पाए जाते है...बहुत सारी विभिन्नताएँ होती है विचारो की,व्यवहारों की और संस्कारों की...बढ़िया संस्मरण...आप जैसे लोग भी बहुत कम पाए जाते हैं.. नमन करता हूँ आपके ऐसी नेक विचारों को,,प्रणाम
ReplyDeleteSatish jee ye kya ittefak hai kuch aisa hee mere sath bhee ghataa hai aaj......aur pooree jholee duao se bharee hai...........
ReplyDeleteaap hindu hai, isliye nahi, mai aap par garv kar sakataa hu, ki aap ek achchhe insaan hai. mujhase milane ke liye sharoz ke saath kitani door se aap aaye they. aap jaisaa man sabkaa ho jaye, to kahi koi sankat hi n rahe. svarg ho jaye desh. aapne rikshe vaale ke saath jo snehil vyavahaar kiyaa use dekh kar bas yahi kahanaa chahataa hu, ki
ReplyDeletemujhe ibaadat ki jab soojee
bujhataa ghar raushan kar aayaa.
और मुझे लगा कि वर्षों से बिना मंदिर गए ही , फिर मंदिर का प्रसाद मुझे मिल गया ! हर बार ऐसे बेतुके काम कर के मुझे ऐसा ही लगता है !
ReplyDeleteबहुत ख़ूब...
घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो, यूं कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए...
@ विनोद पाण्डेय !
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा विनोद ! मगर चाचा कहने के लिए तुम्हे कोई शुक्रिया नहीं दूंगा ! तुम्हार्री शख्शियत ही कुछ ऐसी है !
प्यार !
@ जय कुमार झा !
ReplyDeleteआप कुछ ऐसा कर रहे हो जिस को समझाने का दिल करता है ! शुभकामनायें !
Mann changa to kathauti mein Ganga !
ReplyDeleteआपके मन का दया भाव यदि सभी के मन में आजाये तो भारत शायद खुशहाल हो सके, क्यूंकि यहाँ लोग एक दुसरे की जेब काटने के लिए उतारू हैं , सरकार भी कभी एस टी टी के नाम पर कभी टेक्स के नाम पर
ReplyDeleteदिल दरिया है आपका ,मगर गरीब ब्राह्मण की दक्षिणा मार कर कौन से बड़े हिन्दू बन गए आप ?और यह भी की नेकी कर दरिया में डाल ब्लॉग पर मत कह ..दोष लगता है !
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक..........इस मार्मिकता को आज कोई समझ नहीं रहा है, बस स्वार्थ में लिप्त हैं.
ReplyDeleteजय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
ReplyDeleteना जाने क्यूँ हर बार एक ही प्रतिक्रिया देने को दिल करता है... लेकिन दिल तो पागल है.. हर बार तो “Nice”, बहुत बढिया, उम्दा प्रस्तुति, क़ाबिले तारीफ, नहीं लिख सकता...कहीं न कहीं ख़ुद को पाता हूँ आपकी सम्वेदनाओं में … एक ऐसा ही अनुभव लिखने को हूँ... याद रखूँगा वो आपको समर्पित हो...
ReplyDeletesir, apne bahut achhi ghatna , jo ki ek insaniyat ki pahchan ha, bayan ke ha.apne ek justice ka kam kiya ha. lekin apki is ghatna ka tital kuch samajh nahi aaya? " garv ha ki m hindu hun " yahan hindu - ke kya bat gayi... aap to ek sachhe insan ho...jati-dharm, madir-masjid ,aadi sabhi se upar hokar ek insan ki bhalai ke liye karm karte ho or aapki fitrat ke anuroop sayad hamesa karte rahoge,... aapki imandari or insaniyat barkarar rahe.
ReplyDeleteअरविंद मिश्र जी के लिए बस इतना ही नम्र निवेदन है कि सतीश भाई जैसे लोग ब्लऑग पर उए घटना बयान कर न तो वाहवाही की कामना रखते हैं न सम्वेदनाओं के विज्ञापन की... हम आज तक नेकी करके दरिया ही में तो डालते आए हैं जिसका नतीजा है कि नेकियाँ दरिया में दफ्न होकर रह गईं... आज उनको सतीश जी जैसे लोग निकाल कर लाए हैं…सोच ही तो है जिसकी रफ्तार प्रकाश की रफ्तार से भी ज़्यादा है...
ReplyDeleteइससे और लोग भी प्रेरणा लेंगे...
ReplyDeleteनेकी करना हमेशा अच्छा होता है,मगर दुख तब होता है जब कोई आपको अपनी मजबूरी सुनाकर भावुक करदे और बाद मैं आपको पता चले की ठगे गये, बाबा खड़क सिंह की कहानी तो आपने ज़रूर पढ़ी होगी...
ReplyDelete@ वर्मा !
ReplyDeleteमज़ा आ गया आपके प्रश्न में, जवाब देकर अपने आपको अनुग्रहीत मानूंगा ! मैं वह हिन्दू नहीं हूँ, जिसका अर्थ लोग हिन्दू समझते हैं ! हिन्दू नामक मानसिकता हूँ मैं, जो बहुत संवेदनशील और मानवीय है ! मैं धार्मिक न होकर अपने आपको मानव बनाने के प्रयत्न में लगा रहता हूँ जिसमें अब तक सफल नहीं हुआ हूँ ! यह शीर्षक इस समय ब्लाग जगत की कुछ विवादों को लेकर लिखा गया है, कम से कम हम धर्म को लेकर, दूसरों को बुरा नहीं कहते ! कभी मंदिर और पूजा, पाठ,और व्रत न करने वाले इस नास्तिक ने किसी का दिल, जानबूझ कर ना दुखाने का व्रत लिया है ! ईश्वर शक्ति दे !
शुभकामनयें आपको !
@ संवेदना के स्वर ,
कृपया जब भी लिखें , मुझे मेल अवश्य करें ! अपनी तारीफ अच्छी लगती है सो आपका आभारी हूँ ! हाँ आपके बारे में अधिक जानना चाहता हूँ , आपके ब्लाग पर कुछ भी नहीं है ! आशा है बताएँगे ! !
सादर
सतीश जी मंदिर तो मै भी नही जाता,मंदिर जब भी गया मन बेचेन हुआ है, बस मै भी कुछ अलग करता हुं जिस से मेरे को शांति मिलती है, ओर वही मेरी पुजा है, जब भी मंदिर गया बीबी या मां के करण लेकिन कभी दिल से नही... कारण मै दिखावा पसंद नही हुं, जो बाहर से दिखता हुं वेसा ही अंदर से हुं, किसी को पसंद आये तो ठीक नही तो राम राम
ReplyDeleteयह दिल पागल नहीं है
ReplyDeleteऔर पागलों के लिए भी नहीं है
यही जान पाया हूं मैं अब तक।
aapki 'Hindu' ki paribhasha achhi lagi....Waise wo post padhkar clear bhi ho rahi thee....Lekin achha kiya aapne clarify kar diya....others might be in doubt.
ReplyDeleteकिसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार,
ReplyDeleteकिसी का दर्द मिल सके तो ले उधार,
किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार,
जीना इसी का नाम है...
माना अपनी ज़ेब से फ़कीर हैं,
फिर भी यारों दिल के हम अमीर हैं,
मिटे जो प्यार के लिए वो ज़िंदगी,
चले बहार के लिए वो ज़िंदगी,
किसी को हो न हमें तो ऐतबार,
जीना इसी का नाम हैं...
जय हिंद...
सतीश जी आपका यह लेख बहुत ही भावुक है, दिल को छू गया है. मगर मेरी एक सलाह है, जीवों के लिए जो संवेदनाएं प्रकट करते हो कभी-कभी उनके पालनहार प्रभु के लिए भी थोडा समय निकला करो. सबके सामने किसी धार्मिक स्थल में ना सही, मगर एकांत में तो यह कार्य अवश्य ही हो सकता है, जहाँ हमारे और प्रभु के सिवा कोई तीसरा नहीं होता. और वही उससे मिलने का सबसे सही और निजी तरीका होता है, क्योंकि इसमें कोई दिखावा नहीं होता.
ReplyDeleteबहुत कमाल का लेख पर सकसेना साहब हिन्द मे रहने वाले सभी नागरिक हिन्दु है
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ReplyDeleteहिंदू, मुसलमान बनना अलग बात है। नेक इंसान बनना बहुत बडी बात होती है। आ मंदिर नहीं गए, मगर मानवता की सेवा कर ली। दरअसल शांति मदिर, मस्जिद में जाने से नहीं, इंसानियत की सेवा से ही मिलती है। आपके जज्बे को सलाम।
ReplyDelete@ श्री या मिस या श्री मति अनाम,
ReplyDeleteआप जैसे संकीर्ण ह्रदय लोग इससे अधिक अंदाजा लगा भी नहीं सकते सकते !
इस लेख का तात्पर्य मेरी दानशीलता का प्रचार नहीं बल्कि मैनें एक दिन, मंदिर में चढ़ावा पर खर्च करने वाले पैसे, कुछ जरूरतमंद लोगों की मदद में खर्च कर, एक धार्मिक कृत्य किया !
यही मेरी पूजा थी और अक्सर ऐसे ही मैं पूजा करता हूँ !
जहाँ तक मेरी वाहवाही लूटने का प्रश्न है सो वह फैसला मेरे पाठकों पर छोड़ दें, एक दिन में लगभग २० कमेंट्स मेरी उम्मीद से अधिक हैं , मैं खुद अपने आपको अच्छा लेखक नहीं मानता मगर फिर भी जो कुछ लिखता हूँ , उसका विश्लेषण करने की क्षमता पाठकों में खूब है !
अपने मित्रों और मेरे कथन को पसंद करने वालों के लिए ही मेरे लेख समर्पित हैं ! यकीनन यह लेख वही पसंद करेंगे जिन्हें मेरी ईमानदारी पर भरोसा है न कि वे लोग जो मुझे पसंद ही नहीं करते ! आपकी शैली से आपके व्यक्तित्व और दुर्भावना का पता चल रहा है ! आप अपनी शान में कसीदे पढने वालों के ब्लाग पढ़ते / पढ़ती क्यों हो ? अपने मित्रों को बोलो भविष्य में मुझे न पढ़ें ! और यहाँ न आयें , ऐसा करके आप मुझे बेवजह महत्व दे रहे हो !
शायद आपके मित्रों और आपकी समझ में फिरदौस के कमेंट्स भी समझ नहीं आये ...जो मेरी पोस्ट के और मेरा मंतव्य समझने के लिए काफी हैं ..बशर्ते ईमानदारी हो !
"घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाये "
@शाहनवाज साहब ,
ReplyDeleteमैं अधार्मिक नहीं हूँ और अगर मैं इंदु पूरी का सन्दर्भ दूं तो ईश्वर के सबसे प्यारे बच्चों में से एक हूँ ! उसके बताये गए सारे कर्तव्य करने का प्रयत्न करता हूँ ! मंदिर, मस्जिद और चर्च हर की पूजा दिल से करता हूँ , मगर रूढ़िवादिता का विरोधी हूँ ! अपनी बचत का कुछ हिस्सा ,जरूरत मंदों की मदद पर, खर्च करता रहा हूँ और इसे मैं अपनी सबसे बड़ी पूजा मानता हूँ !
जहाँ तक सनातन धर्म और विधिविधान का विषय है वहां घर में वे सारे कार्य हवन , आदि होते हैं जो बड़ों ने आदेशित कर रखे हैं !
सर जी , अच्छा और प्रेरक प्रसंग लिखा आपने , ऐसी घटनाएं अक्सर लोगों के साथ होती हैं, जिनके बारे मे हम अगर एक दूसरे से बाटें तो सबको कुछ सीख और प्रेरणा मिलेगी । इस लिए आप का धन्यवाद ।
ReplyDeleteपर , सक्सेना जी , यह क्यों कह रहे हो कि मै मंदिर कभी नहीं जाता , यार कभी कभी तो जाया करो । याद करो फिल्म "दीवार" , क्लाइमेक्स मे अमिताभ भी चले ही गये थे , तो क्या ख्याल है , क्लाइमेक्स का इन्त्जार क्यों किया जाय , आज ही हो आओ । फिर अपनी यात्रा का वृत्तान्त लिखना , हम भी इन्तजार करेंगे ।
satish ji... accha laga padh ke.. mandir ki baat hai to me bhi ek baat kahna chahunga.. mujhe kuch ghutan si hoti hai ab vikhyat sareekhe mandiron me jaane me, kyunki wahan jaane se pahle jo mandir aur bhavnaon ka vyaparikaran 11, 21, 51, 101 ke prasad ke roop me ho chuka hai,,, ghin si aati hai.. to jaisa aapne kiya aksar me aisa hi karta hoon.. mandir tak chala gaya to baas bahar kuch jarurat mandon ko kuch de ke bahar se hath jod leta hoon... sach bahut shant ho jata hai man....
ReplyDeleteyahi hindutwa hai .
ReplyDeleteapko aise bhagwan ka prasad milta rahe yahi subhkamna.
dhanyabad
yahi hindutwa hai .
ReplyDeletebhagwan ka prasad aise hi apko mila kare yahi ishwar se kamna.
dhanyabad
देखिए सतीस बाबू ,लगता है कोई बहुत फालतू बात लिख दिया है आपके लेख के बारे में. ठीक जवाब दिए हैं आप... एगो हमरा बिहारी कहावत इयाद आ गया.. हाथी चले बजार कुत्ता भूँके हजार... का किजिएगा ..अमदी के अंदर का इंसान मर गया है..और दुनिया में धोका भी बहुते हो गया है ..इसलिए किसी को बिस्वास भी मोस्किल से होता है..हम त आप लोग जैसन पढा लिखा अमदी नहीं हैं..बाकी एगो सायरी हमको भी बोल्ने का मन कर रहा है..मना मत किजिएगाः
ReplyDeleteमसअला ये भी तो है दुनिया का
कोई अच्छा है तो अच्छा क्यूँ है.
हँसिएगा मत हमरा बात सुनकर.. बहुत सा पढा लिखा लोग से निमन दिमाग है हमरे पास..
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ReplyDelete@ असलम कासमी ,
ReplyDeleteवाकई मुझे अपनी श्रद्धा और धर्म पर गर्व है , मगर टोपी लगा कर कोई धार्मिक नहीं बन जाता मियां , और वह तो अपने धर्म का भी उपहास कर रहा है जो दूसरों की श्रद्धा का मज़ाक उडाये ! आप छोटे दिल के इंसान हैं कृपया आगे से इस ब्लाग पर तशरीफ़ न लायें !
बाबा! क्या कहूँ? कोई कुछ भी बोले विचलित न हो,जो रास्ता चुना है सबसे बेहतरीन चुना है,जो कर रहे हो बहुत खूबसूरत कर रहे हो. इन सब से सुकून मिलता है न?अलौकिक सुख,असीम शांति मिलती है न .बस काफी है.जिन्हें यूँ अनुभव लेने हैं ले कर देखे. न लेना चाहे कोई बात नही . हर व्यक्ति को अप्नेधंग से जीने,बोलने,सोचने का हक है. हमारे काम को हर कोई सराहे जरूरी तो नही.
ReplyDeleteये सब अपने ढंग से करके हम जो कुछ पा रहे वो क्या कम है?
बाबा! जैसे जी रहे हो जियो क्योंकि ऐसे जीना हर किसी को नही आता,मगर 'वो' देख रहा है कि तुम 'उसे' ही पूज रहे हो.
अच्छा लगा तुमसे मिल कर क्योंकि..... ऐसीच हूँ मैं भी.
पर किसी की परवाह नही करती.किसी की भी नहीऔर शायद इसी कारण .....खौफ खाते हैं लोग .
हा हा हा