मैं मेट्रो द्वारा घर से आफिस जाते हुए,एक बात अक्सर नोट करता हूँ उसे लेकर जो कुछ दिमाग में आया वह "मानसिक हलचल "करने के लिए स्वाभाविक था ! सोचा क्यों न आप सबसे बाँट लूं !
- अधिकतर जगह पर खड़ी महिलाओं के सामने बैठे पुरुषों को गहरी नींद आ रही होती है , चेहरे पर भारी थकान का भाव, जैसे कई दिनों बाद सोने को मिला है !
ha haha
ReplyDeleteBILKUL SAHI KAHA AAPNE.
ReplyDeleteबिना तीर के ही तीर चला दिया है। बेचारे थकते बहुत है ना, यदि यह भाव ना रहे तो फिर शर्मा-शर्मी खड़ा होना पड़ेगा ना? समझा करो भाई।
ReplyDeleteनींद नहीं आएगी
ReplyDeleteतो सीट चली जाएगी।
सतीश भाई,
ReplyDeleteसोते हुए को तो आप उठा सकते हैं...लेकिन जो जागते हुए भी सो रहा हो, उसे कौन उठा सकता है...
खड़ी महिलाओं को देखकर सोने का नाटक सीट खाली न करने के लिए हो सकता है...
लेकिन कुछ महानुभाव तो ऐसे भी होते हैं जो साथ बैठी महिला के साथ ही सोने का ड्रामा करते हुए करीब से करीब आने की कोशिश करते रहते हैं...
जय हिंद...
लेकिन सतीश जी इन सोने वाले महानुभावों को जगाना महिलाएं भी खूब जानती हैं.
ReplyDeleteसीट के लिए नींद बहुत जरुरी है. :)
ReplyDelete:).......:)
ReplyDeleteआँख खुली और सीट गई।
ReplyDeleteनीद का क्या है यह कही आ सकती है.
ReplyDeleteऔर फिर
कभी कभी महिलाओ के सामने नीद गायब भी हो जाती है.
हा! हा! हा! क्या तीर चलाया है आपने। लगता है काफी पुराना अनुभव है आपके पास सोने का।
ReplyDeleteजहाँ ध्यान देने से कुछ देना पड़ जायेगा, ध्यान क्यों देना ?
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