Saturday, April 10, 2010

ये पुरुष -सतीश सक्सेना

मैं मेट्रो द्वारा घर से आफिस जाते हुए,एक बात अक्सर नोट करता हूँ उसे लेकर जो कुछ दिमाग में आया  वह  "मानसिक हलचल "करने के लिए स्वाभाविक था ! सोचा क्यों न आप सबसे बाँट लूं  !  

  • अधिकतर जगह पर खड़ी महिलाओं के सामने बैठे पुरुषों  को गहरी नींद आ रही होती है  , चेहरे पर भारी थकान का भाव, जैसे कई दिनों बाद सोने को मिला है !

12 comments:

  1. बिना तीर के ही तीर चला दिया है। बेचारे थकते बहुत है ना, यदि यह भाव ना रहे तो फिर शर्मा-शर्मी खड़ा होना पड़ेगा ना? समझा करो भाई।

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  2. नींद नहीं आएगी
    तो सीट चली जाएगी।

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  3. सतीश भाई,
    सोते हुए को तो आप उठा सकते हैं...लेकिन जो जागते हुए भी सो रहा हो, उसे कौन उठा सकता है...

    खड़ी महिलाओं को देखकर सोने का नाटक सीट खाली न करने के लिए हो सकता है...

    लेकिन कुछ महानुभाव तो ऐसे भी होते हैं जो साथ बैठी महिला के साथ ही सोने का ड्रामा करते हुए करीब से करीब आने की कोशिश करते रहते हैं...

    जय हिंद...

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  4. लेकिन सतीश जी इन सोने वाले महानुभावों को जगाना महिलाएं भी खूब जानती हैं.

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  5. सीट के लिए नींद बहुत जरुरी है. :)

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  6. आँख खुली और सीट गई।

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  7. नीद का क्या है यह कही आ सकती है.
    और फिर
    कभी कभी महिलाओ के सामने नीद गायब भी हो जाती है.

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  8. हा! हा! हा! क्या तीर चलाया है आपने। लगता है काफी पुराना अनुभव है आपके पास सोने का।

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  9. जहाँ ध्यान देने से कुछ देना पड़ जायेगा, ध्यान क्यों देना ?

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- सतीश सक्सेना

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