लोग पूंछते परिचय मेरा, बेगानों का ,परिचय क्या ?
कलम अर्चना करते आये दीवानों का,परिचय क्या ?
कितना सुख है कमजोरों की, रक्षा में कुछ लोगों को
मुरझाये अंकुर सहलाती बदली का दूँ, परिचय क्या ?
प्यार,नेह, करुणा और ममता, घर से जाने कहाँ गए !
धर्मध्वजाओं को लहराते विष का दूँ,मैं परिचय क्या ?
जिस समाज में जन्म लिया था रहने लायक बचा नहीं
मानव मांस चबाने वाले, मानव का दूँ ,परिचय क्या ?
जहाँ लड़कियां घर से बाहर निकलें सहमीं, सहमीं सी !
धूल भरे माहौल में जन्में काव्यपुरुष का,परिचय क्या ?
कलम अर्चना करते आये दीवानों का,परिचय क्या ?
कितना सुख है कमजोरों की, रक्षा में कुछ लोगों को
मुरझाये अंकुर सहलाती बदली का दूँ, परिचय क्या ?
प्यार,नेह, करुणा और ममता, घर से जाने कहाँ गए !
धर्मध्वजाओं को लहराते विष का दूँ,मैं परिचय क्या ?
जिस समाज में जन्म लिया था रहने लायक बचा नहीं
मानव मांस चबाने वाले, मानव का दूँ ,परिचय क्या ?
जहाँ लड़कियां घर से बाहर निकलें सहमीं, सहमीं सी !
धूल भरे माहौल में जन्में काव्यपुरुष का,परिचय क्या ?
जहाँ लड़कियां घर से बाहर निकलें सहमीं, सहमीं सी !
ReplyDeleteधूल भरे माहौल में जन्में काव्यपुरुष का परिचय क्या ..
शायद पूरी मनुष्य जाती अपना परिचय नहीं दे पाए ... सारा समाज परिचय न दे पाए ... गहरी अनुभूति जनम लेती है हर शेर पढने के बाद ...
Sarthakta liye sashakt rachma....
ReplyDeleteजहाँ लड़कियां घर से बाहर निकलें सहमीं, सहमीं सी !
ReplyDeleteधूल भरे माहौल में जन्में काव्यपुरुष का परिचय क्या ?
बहुत सुंदर और सटीक पंक्तियाँ.
मानव मांस चबाने वालों का इससे बढ़िया परिचय और क्या हो सकता है ?
ReplyDeleteहर पंक्ित दिल को छूती है, जज्बातों से लबालब है आपकी रचना।
ReplyDeleteSatish ji, this is a true poet's introduction, natural like Valmiki.
ReplyDeleteआभार आपका !!
Deleteआप जिस गति से ऐसी कवितायेँ रचते जाते हैं , बड़ा विस्मय होता है . यह कोई साधारण बात नहीं है . नमन आपको .
ReplyDeleteओह , आपका स्वागत है निस्संदेह आपके द्वारा कहे गए शब्द मेरे लिए शक्ति देंगे , आदर सहित !
Deleteबहुत सुन्दर। व्यथा भी है और व्यंग्य भी।
ReplyDeleteकोटि कोटि नमन कि आज हम आज़ाद हैं
हमेशा की तरह सुन्दर - प्रस्तुति । बधाई ।
ReplyDeleteवाह !
ReplyDeleteह्रदय से बहता नैचुरल प्रवाह, हमेशा की तरह सुन्दर रचना !
ReplyDeleteबहुत खूब.... चार लाईनों में सब कुछ कह डाला ...
ReplyDeleteहमेशा की तरह सार्थकता,सटीक चोट, शब्दों की सहज़ता ---आपके गीत ही आपके परिचय हैं हर परिप्रेक्ष्य में।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteधूल भरे माहौल में जन्में काव्यपुरुष का परिचय क्या .... waah!
ReplyDeleteधर्मध्वजा जब अमृत की जगह विष बांटे तो उसका विरोध होना ही चाहिए..समाज को आईना दिखाती सशक्त रचना..
ReplyDeleteअन्याय और अत्याचार पर जिसका हृदय रो उठे ,उस अंतःकरण से उठते स्वर स्वयं अपना परिचय हैं !
ReplyDeleteApki rachnaon ka Kendra kafi naya hota hai, humesha naye vishyon ko hi aap choote hain... V nice! :]
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