Monday, March 30, 2015

कभी ऐसे भी मोड़ आते हैं -सतीश सक्सेना

कभी ऐसे भी  मोड़ आते हैं !
लोग मरघट में छोड़ जाते हैं !


जिसके हम दर्द में नहीं सोये 
कैसे वे सर भी फोड़ जाते हैं !

कैसे शमशान  में करें बातें,
जैसे आत्मा निचोड़ जाते हैं !

स्वप्न दुनियां से बचाये रहना
लोग चुप चाप तोड़ जाते हैं !

प्यार में दर्द भी बहुत होता   
श्याम बाहें, मरोड़ जाते हैं !

11 comments:

  1. न पूछ हूँ, आज मैं उदास क्यों
    कुछ दोस्त ,दिल भी तोड़ जाते हैं .....

    शुभकामनाये ....

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  2. स्वप्न दुनियां से बचाये रहना
    लोग चुपचाप तोड़ जाते हैं ..
    बहुत ही नाजुक ख्याल और कितना सच ... लोग आज की दुनिया में ऐसे ही हैं ...

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  3. मरघट पै यूँ ही छोड़ जायें
    अच्छा नहीं है क्या
    मरने से पहले निचोड़ ना पायें
    अच्छा नहीं है क्या ?

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  4. ये दुनिया है -और उसी के अनुभव है जिनसे किसी को छुटकारा नहीं .लेकिन यहीं कुछ ऐसा भी है जो इसे रहने और सहने योग्य बना देता है.

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  5. स्वप्न दुनियां से बचाये रहना
    लोग चुपचाप तोड़ जाते हैं !
    बिलकुल सही कहा, सभी सुन्दर सार्थक शेर !

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  6. कभी ऐसे भी मोड़ आते हैं !
    लोग मरघट पे छोड़ जाते हैं !

    वाह ! यही जीवन की सच्चाई है !

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  7. मरघट पर तो हर एक को जाना है...स्वप्न हैं तो टूटेंगे ही..इस सच को आखिर कब तक झुठलाना है..

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  8. कभी ऐसे भी मोड़ आते हैं !
    लोग मरघट पे छोड़ जाते हैं ---गजब पर सत्य है। मरघट पे छोड़ जायें क्या फर्क पड़ता है ,यहाँ तो जिंदगी में लोग छोड़ जाते हैं। वो मरघट फिर डरावना हो जाता है।

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  9. This is the pain, we all have to bear. World is practical - busy in its own ways. Understanding life is very complex.

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  10. वाह...कितना सच!!
    बहुत बहुत सुन्दर !

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- सतीश सक्सेना

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