बुझती नज़रों में कितने, तूफ़ान छिपाए बैठा है !
धनाभाव भी तोड़ न पाया साहस बूढी सांसों का,
जाने पर भी, उनके कर्जे ,मर के मिटा न पाएंगे !
अपने पुरखों के कितने,अहसान छिपाए बैठा है !
कबसे बुआ नहीं आ पायीं अपने घर में रहने को,
अपने सर पर पापा के, भुगतान छिपाए बैठा है !
आस्तीन में रहने वालों से, थोड़ा हुशियार रहें
जाने कितने बरसों के अपमान छिपाए बैठा है !
दुश्मन शांत न सोने देगा, गद्दारों का ध्यान रहे,
क्या मालूम वो कितने इत्मीनान छिपाए बैठा है !
गोली है बंदूक है बारूद छुपाये बैठा है
ReplyDeleteआम आदमी इज्जत की खातिर
बस थोड़ा अपना ईमान बचाये बैठा है:)
बहुत सुंदर .रामनवमी की शुभकामनाएं !
ReplyDeleteबेहद प्यारी और कड़वी सच्चाई।
ReplyDeleteआम आदमी तो अरमानों की पोटली लिए ही जिंदगी भर घूमता रहता रहता इसी उम्मीद में कि कभी ना कभी अरमानो को हकीकत की राह मिलेगी.
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति. अभिनन्दन.