Friday, March 27, 2015

आम आदमी भी कितने अरमान छिपाए बैठा है ! - सतीश सक्सेना

आम आदमी भी कितने अरमान छिपाए बैठा है !
बुझती नज़रों में कितने, तूफ़ान छिपाए बैठा है !

धनाभाव भी तोड़ न पाया साहस बूढी सांसों का, 
सीधी साधी आँखों में अभिमान छिपाए बैठा है !

जाने पर भी, उनके कर्जे ,मर के मिटा न पाएंगे  !
अपने पुरखों के कितने,अहसान छिपाए बैठा है !

कबसे बुआ नहीं आ पायीं अपने घर में रहने को,
अपने सर पर पापा के, भुगतान छिपाए बैठा है !

आस्तीन में रहने वालों से, थोड़ा हुशियार रहें
जाने कितने बरसों के अपमान छिपाए बैठा है !

दुश्मन शांत न सोने देगा, गद्दारों का ध्यान रहे,
क्या मालूम वो कितने इत्मीनान छिपाए बैठा है !

4 comments:

  1. गोली है बंदूक है बारूद छुपाये बैठा है
    आम आदमी इज्जत की खातिर
    बस थोड़ा अपना ईमान बचाये बैठा है:)

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  2. बहुत सुंदर .रामनवमी की शुभकामनाएं !

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  3. बेहद प्यारी और कड़वी सच्चाई।

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  4. आम आदमी तो अरमानों की पोटली लिए ही जिंदगी भर घूमता रहता रहता इसी उम्मीद में कि कभी ना कभी अरमानो को हकीकत की राह मिलेगी.

    सुंदर अभिव्यक्ति. अभिनन्दन.

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- सतीश सक्सेना

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