Saturday, December 10, 2016

हेल्थ ब्लन्डर्स II - सतीश सक्सेना


मानवीय शक्ति अपरिमित है और हम उसका अपने मस्तिष्क की तरह शतांश भी उपयोग नहीं करते , अक्सर 40 वर्ष का होते होते अपने आपको समझाना शुरू कर देते हैं कि चढ़ना नहीं, दौड़ना नहीं , गिर जाओगे ! असुरक्षा इस कदर होती है कि शरीर को , दांतों को , मजबूत बनाने के लिए तुरंत डॉक्टर की शरण में भागते हैं बिना सोंचे कि न केवल हम अपने बेहद मजबूत शरीर , जो बिना दवा के 90 वर्ष के लिए डिजाइन है, को न केवल केमिकल जहर दे रहे हैं बल्कि दवा विक्रेताओं के निर्मम और निर्दयी उद्योग को बढ़ावा दे रहे हैं, जिससे अधिक मानव शरीर का नुकसान, विश्व में किसी ने नहीं किया है !
मैं जब भी सामान्य रोगों में एलोपैथिक दवा खाते किसी व्यक्ति को देखता हूँ तब मुझे उसके शरीर की सुरक्षा शक्ति की स्पष्ट चीत्कार सुनाई देती है , हमारा शरीर लंबे समय जीने के लिए डिज़ाइन है , जिसमें हर बीमारी का उपचार करने के लिए शक्तिशाली रोग प्रतिरोधक शक्ति निहित है जो कि संक्रमण होने पर शरीर में तुरंत सक्रिय हो जाती है और उसके एक्शन को मानव विभिन्न रूपों में जैसे प्यास,पसीना, बुखार, जुकाम ,खांसी,बीपी, गांठे, खुजली, आदि के रूप में अनुभव करता है और अगर ऐसा न होता तो लाखों वर्ष की मानव यात्रा यहाँ तक पंहुचती ही नहीं इसकी रक्षा के लिए मेडिकल व्यवसाय कुछ ही वर्षों से है !

शक्तिशाली धनवान मेडिकल व्यवसाय की मेहरबानी है कि हम शरीर की प्राकृतिक रोगनाशक शक्ति के हर आवश्यक उत्पन्न प्रतिक्रिया (बुखार , गांठे आदि ) से भयभीत होकर उसे गोलियां खाकर अथवा ऑपरेशन कराकर बेकार कर देते हैं और अपने ताकतवर शरीर को एक शक्तिशाली भयानक जकड़न के हवाले कर देते हैं जिसका इलाज मानव प्रदत्त उपचार मात्र है ! ऐसा करते हम भूल जाते हैं कि हम मानव शरीर के जटिल रक्षातंत्र को, अपने अविकसित मस्तिष्क ( ढाई प्रतिशत ) द्वारा निर्दयता पूर्वक बर्वाद कर रहे हैं ..... कैंसर की गांठों के ऑपरेशन एक सामान्य उदाहरण है , जिसे हमारे शरीर ने रोक लिया था और हमने उसे कटवाकर मुक्त दिया !

मानव शरीर की इस रक्षा शक्ति के दो उदाहरण देने आवश्यक हैं यहाँ ......
पंजाब के एक दबंग किसान को उसके दुश्मनों ने रात को जंगल में पकड़कर उसके दोनों हाथ और दोनों पैर काट डाले थे , डॉक्टरों को आश्चर्य था कि उसका खून नहीं बहा था , क्योंकि उसके मन में हाथ पैर कटते समय भय न होकर, उन लोगों से बदला लेने की भावना इतनी प्रबल थी कि उसकी सुरक्षा शक्ति ने उसका खून नहीं बहने दिया और वह जीवित बच गया !
जीवित रहने की प्रबल भावना के कारण ही उसकी प्रतिरोधक शक्ति ने उसकी रक्षा की !

हमारे देश में ही ऐसे कितने ही फौजी मिल जाएंगे जिनके शरीर में लगीं दसियों गोलियों में से डॉक्टरों द्वारा खतरनाक गोलियां ही निकाली जा सकीं बाकी शरीर में ही छोड़ दी गयीं , जहरीले लेड से बनीं गोलियों के चारो ओर शरीर की प्रतिरोधक शक्ति, एक जैली जैसा मजबूत कवच चढ़ा देती है जिसके अंदर से कोई भी इंफेक्शन , इन्फेक्टेड टिश्यू अथवा , जहर बाहर नहीं आ सकता मगर आज हम सबसे पहले इन सुरक्षा करती गांठों को काट कर निकाल देते हैं !

आश्चर्य जनक धूर्तता यह है कि हमारे पाठ्यक्रम में शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति के बारे में पढ़ाया ही नहीं जाता या हम ( मेडिकल व्यापारी ) पढ़ाना ही नहीं चाहते अन्यथा उनका पूरा व्यवसाय ही नष्ट हो जाने का खतरा है !

आज मैं बहुत थक गया हूँ , इस उम्र में अब यह हमारे काम नहीं , कभी हम भी मोटर साइकिल चलाते थे , जैसे वाक्य हमारी मजबूत आत्मिक शक्ति को कमजोर मानने के लिए मजबूर कर देते हैं ! ऐसे शब्दों का उपयोग की जगह कहना यही चाहिए कि मैं भी यह कर सकता हूँ और नौजवानों से अधिक बेहतर कर सकता हूँ क्योंकि मैं उनसे अधिक अनुभवी हूँ ! अपने शरीर की शक्ति पर विश्वास करें यह आपको शर्मिंदा नहीं होने देगी !

अपने ऊपर विश्वास पैदा करें कि आप यह कर सकते हैं !! सो आप कायाकल्प आसानी से कर सकते हैं !

1 comment:

एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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