Monday, December 5, 2016

मेरे जाने पर मेरी आँख, गुर्दे, ह्रदय, लीवर जलाना नहीं - सतीश सक्सेना

जिन मित्रों को मेरी उम्र पता चल जाती है वे मेरे नाम के साथ आदरणीय लगाना शुरू कर मुझे अपने से दूर कर देते हैं, मुझे लगता है आदर देने की जगह अपनापन और उन्मुक्त व्यवहार मिलता तो अधिक अच्छा था , उसमें मुझे अधिक फायदा होता ! अक्सर अधिक उम्र वालों को आदर देकर हम अपने से दूर रखने में सफल होते हैं जबकि उन्हें इस आदर से अधिक मित्रता की आवश्यकता अधिक होती है !
मेरे यहाँ कई मित्र हैं जिन्हें मैं बुड्ढा कहता हूँ , अपनी बेटी को नसीहत देते समय, बुढ़िया, और कई महिला मित्रों को उनके जबरदस्त स्नेही स्वभाव और अपनापन के कारण अम्मा कहने में आनंद आता है ! पूरे जीवन हम अपने आपको ढंके रहते हैं , घर परिवार , यहाँ तक कि बच्चों तक से औपचारिक व्यव्हार करने के आदि हो गए हैं ! आदर हो या स्नेह , खुल कर करें , यही ईमानदारी है ! अपनापन को दिखावा क्यों ?

बरसों से खूनदान के लिए कई हॉस्पिटल में अपना नाम लिखवा रखा है कि वे मुझे खून की कमी के वक्त बुला सकते हैं ! मरते दम तक किसी के काम आ जाएँ तो जीवन सफल हो इस इच्छा को निभाते हुए , बरसों पहले अपोलो हॉस्पिटल दिल्ली में अपने शरीर के सारे अंग और शरीर दान कर चुका हूँ !

यह लिख रहा हु ताकि सनद रहे और मित्र मेरी मृत्यु पर परिवार को मेरा संकल्प याद दिलाएं कि यह ऑंखें , गुर्दे, ह्रदय और लीवर किसी को जीवनदान देने में सक्षम हैं !

3 comments:

  1. हा हा
    आदर निकलता है कहीं से किसी के लिये
    तभी तो उसी को आदरणीय पुकारा जाता है
    उम्र 'उलूक' की भी इतनी नहीं हुई है
    बाल सफेद देख कर ही
    कोई ताऊ जी कह जाता है
    क्या रखा है कहने सुनने में जनाब
    जलाये रखिये अलख इसी तरह से
    बहुत कम होते हैं आप जैसे जिनसे
    सब कुछ साफ साफ कह दिया जाता है ।

    मंगलकामनाएं 'उलूक' की ।

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  2. very inspiring post..hindi font kam nhin kar rha..

    ReplyDelete

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- सतीश सक्सेना

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