पहचान करो गद्दारों की,
खादी पहने मक्कारों की !
दोनों हाथों से लूट रहे ,
इस घर के बेईमानों की !
इनकी चौखट पर जा जाकर
इक दीप जलाएंगे ऐसा
जिससे विशेष पहचान रहे
दुनियां में इन दरवाजों की
बारिश हो या तूफ़ान मगर यह दीप नहीं बुझने पाये !
धूर्तों के दरवाजे जाकर
इक अक्षयदीप जलाना है
जो देशभक्त का रूप रखे
उनका चेहरा दिखलाना है
बस्ती समाज बरबाद किये
बरसों से श्वेत दीमकों ने !
जाकर थूकें, घर को खाते
इन ध्यान लगाए बगुलों पर
दोनों हाथों से लूट रहे ,
इस घर के बेईमानों की !
इनकी चौखट पर जा जाकर
इक दीप जलाएंगे ऐसा
जिससे विशेष पहचान रहे
दुनियां में इन दरवाजों की
बारिश हो या तूफ़ान मगर यह दीप नहीं बुझने पाये !
धूर्तों के दरवाजे जाकर
इक अक्षयदीप जलाना है
जो देशभक्त का रूप रखे
उनका चेहरा दिखलाना है
बस्ती समाज बरबाद किये
बरसों से श्वेत दीमकों ने !
जाकर थूकें, घर को खाते
इन ध्यान लगाए बगुलों पर
बेईमानी के उद्गम पर, श्रमदीप नहीं बुझने पाये !
यह दीपक आँखें खोलेगा
मूर्खों को राह दिखायेगा
मानव की सुप्त चेतना को
ये दरवाजे, दिखलायेगा !
आस्था गरीब की बेच रहे ,
बाबाओं के दरवाजे से, जनदीप नहीं बुझने पाये !
धूर्तों के चेहरे, नोच तुम्हें
असली चेहरे दिखलायेगा
भ्रामक विज्ञापन के जरिये असली चेहरे दिखलायेगा
आस्था गरीब की बेच रहे ,
बाबाओं के दरवाजे से, जनदीप नहीं बुझने पाये !
As usual शानदार पोस्ट .... Bahut hi badhiya .... Thanks for this!! :) :)
ReplyDeleteक्या बात है खींच कर लपेट लेते हैं आप बहुत तीखे तेवरों के साथ । नव वर्ष की मंगलकामनाएं ।
ReplyDeleteबहुत खूब ... और सच कहा है ... ऐसे गद्दारों को ढूंढ के निकालना होगा ... पहचानना होगा ... लाजवाब लिखा अहि सतीश जी नव वर्ष मंगल मय हो ...
ReplyDeleteबहुत उम्दा। आपको एवं आपके समस्त परिवारिजनों को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें।
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ReplyDeleteदो टूक शब्दों में खरी -खरी
बहुत खूब!
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!
सुन्दर शब्द रचना
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