Friday, December 30, 2016

मक्कारों के दरवाजे से ये दीप नहीं बुझने पाए ! -सतीश सक्सेना

पहचान करो  गद्दारों की,
खादी पहने मक्कारों की !
दोनों हाथों से लूट रहे ,
इस घर के बेईमानों की !
इनकी चौखट पर जा जाकर
इक दीप जलाएंगे ऐसा 
जिससे विशेष पहचान रहे
दुनियां में इन दरवाजों की 
बारिश हो या तूफ़ान मगर यह दीप नहीं बुझने पाये !

धूर्तों के  दरवाजे  जाकर 
इक अक्षयदीप जलाना है 
जो देशभक्त का रूप रखे
उनका चेहरा दिखलाना है
बस्ती समाज बरबाद किये
बरसों से  श्वेत दीमकों ने !
जाकर थूकें, घर को खाते 
इन ध्यान लगाए बगुलों पर  
बेईमानी के उद्गम  पर,  श्रमदीप नहीं बुझने पाये ! 

यह दीपक आँखें खोलेगा
मूर्खों को राह दिखायेगा  
मानव की सुप्त चेतना को
ये दरवाजे, दिखलायेगा !
धूर्तों के चेहरे, नोच तुम्हें 
असली चेहरे दिखलायेगा
भ्रामक विज्ञापन के जरिये  
आस्था गरीब की बेच रहे ,
बाबाओं के दरवाजे से, जनदीप नहीं बुझने पाये !

6 comments:

  1. As usual शानदार पोस्ट .... Bahut hi badhiya .... Thanks for this!! :) :)

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  2. क्या बात है खींच कर लपेट लेते हैं आप बहुत तीखे तेवरों के साथ । नव वर्ष की मंगलकामनाएं ।

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  3. बहुत खूब ... और सच कहा है ... ऐसे गद्दारों को ढूंढ के निकालना होगा ... पहचानना होगा ... लाजवाब लिखा अहि सतीश जी नव वर्ष मंगल मय हो ...

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  4. बहुत उम्दा। आपको एवं आपके समस्त परिवारिजनों को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें।

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  5. दो टूक शब्दों में खरी -खरी
    बहुत खूब!
    नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!

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  6. सुन्दर शब्द रचना

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एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

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