Sunday, June 5, 2016

कैसी व्यथा लिखा के लाई अपनी मांग भराई में -सतीश सक्सेना

अक्सर हम लोग सोंचते हैं कि हम जो कुछ बेईमानी अथवा गलती कर रहे हैं वह दूसरों को नहीं मालूम पड़ेगी, जीवन की भयंकर भूल साबित होती है आपके आसपास उपस्थित लोगों  एवं बच्चों तक को, आपकी वह चालाकी मालुम पड़ जाती है और आप उनकी नज़रों से कब के गिर चुके हैं यह आपको पता ही नहीं चलता !
बेहतर है कि परिवार में रहते हुए जान बूझकर बेईमानी न करें यह आवश्यक है कि परिवार के लोगों का महत्व आप समय रहते समझ भी लें अन्यथा आपके कमजोर समय में यह लोग बेमन ही साथ देंगे और उस समय आप कहेंगे कि हमने इतना किया फिर भी आज हमारी जरूरत में यह लोग ऐसा व्यवहार कर रहे हैं !
भारतीय समाज में बेईमानी और चालाकी के चलते, बुढ़ापे में लोग कष्ट में जी रहे हैं , और इसकी दोषी जितनी नयी पीढ़ी है पुरानी उससे कम नहीं, अफ़सोस होता है कि उन्हें यह नहीं मालूम कि उन्होंने गलती कहाँ की है अपनी बेवकूफियों , चालाकी और सत्ता के नशे में किस किस का कितना अपमान किया है वह भूलकर मुखिया लोग, खराब समय पर अपनी किस्मत को कोसते  पाये जाते हैं ! 
अक्सर इसकी  शुरुआत घर में बहू के आते ही होती है , किसी अन्य घर की लाड़ली बेटी को हम घर लाते ही वे शिकंजे लगाने शुरू करते हैं जो कि अपनी बेटी पर लगते नागवार महसूस होते हैं , बेटी की ससुराल में अपना अपमान होना जहां हमें जहर लगता है वहीँ बहू के घर वालों की दिल से इज़्ज़त न करना और उनसे भरपूर सम्मान की अपेक्षा करना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं और ऐसा करते समय हम ये भूल जाते हैं कि इस दोमुंहे चरित्र को न केवल बहू ध्यान से देख रही है बल्कि आपका बेटा भी समझ रहा होता है !
आजकल की लड़कियां समर्थ हैं अगर किसी घर की पढ़ी लिखी नौकरपेशा बहू आपके घर आई है तो लाने से पहले उसका और उसके घर वालों का सम्मान करना अवश्य सीख लें अन्यथा यह याद रखें कि आपका बनाया घर और धन समय बीतने के साथ कानूनन आपकी उसी बहू का होगा जिसके घर वालों को आपने जी भर के गालियां दी हैं , यह भी  याद रखें कि कोई भी लड़की,चाहे आपकी हो या किसी और की, अपने पिता या मायके का अपमान कभी नहीं भुला सकती , आपके बुढ़ापे में बुरे दिनों में यह लड़की आपका कितना ख्याल रखेगी यह आपके द्वारा दिए गए स्नेह अथवा दर्द पर ही निर्भर करेगा !
घर के मुखिया सास अथवा ससुर द्वारा किये गए गलत व्यवहार पर उंगली उठाने वाला उस परिवार में कोई होता ही नहीं बल्कि उसके सही साबित होने की मुहर, घर वालों द्वारा तुरंत लग जाती है , गलत बात का विरोध न करने की सज़ा, इन परिवारों को ताउम्र भुगतनी पड़ती है ! आज पूर्वजों की शिक्षा "निंदक नियरे राखिये " मात्र मुहावरा बन कर रह गया है , हम सारी उम्र भूल कर ही नहीं सकते , इस ग़लतफ़हमी में शान से जीते रहने के शिकार हम लोग, जीवन में अपनी भूलों पर कभी नहीं पछताते  !
अपने द्वारा किये गए गलत व्यवहार को सुधारना बहुत मुश्किल नहीं सिर्फ खुले मन से क्षमा मांग लेना काफी होता है इससे भूल वश अथवा जानबूझकर की गईं गलतियों से आई कड़वाहट भी आसानी से समाप्त हो सकती है बशर्ते दिल बड़ा होना चाहिए !
दर्द और अपमान जितना हमें लगता है वह दूसरों को भी उतना ही महसूस होता है, इसे हमेशा याद रखें  .....
आपके सुंदर घर में आग कभी नहीं लगेगी !

ऐंठ छोड़िये, बातें करिये, जीने और जिलाने की ! 
अंतिम वक्त भुलाये बैठे,बातें सबक सिखाने की !
http://satish-saxena.blogspot.in/2014/10/blog-post_28.html

9 comments:

  1. आप हम सब के प्रेरक हैं. लिखते ही नहीं, जी कर दिखाते हैं.

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  2. बहुत सही बात ...........
    ऐंठ छोड़िये, बातें करिये, जीने और जिलाने की !
    अंतिम वक्त भुलाये बैठे,बातें सबक सिखाने की !

    बहुत सही सीख। समय रहते सबक जरुरी है

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  3. Sateek lek aur sundar kavita

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  4. बहूओं के साथ खराब व्यवहार करके लोग अपना ही परिचय तो देते हैं।ऐसे कुछ लोगों की आँखें खोलने के लिए उन्हें आईना दिखाना जरूरी है।हाँ में हाँ मिलाने की बजाय ऐसे लोगों को एहसास कराना चाहिए कि व जो कर रहे हैं वह सही नहीं ....

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  5. माइक्रोस्कोप को
    अपने पास में ही
    ढक्कन लगा
    कर रखते हैं
    लोग समझदार
    होते है जानबूझ
    कर टेलीस्कोप से
    दूर बहुत दूर
    की चिड़िया को
    देखने के
    आदी लगते हैं :‌)

    बहुत सुन्दर ।

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  6. "कवि कैसे वर्णन कर पाए, इतना दर्द लिखाई में"
    सादर

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  7. बहुत सुन्दर.....

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  8. बहुत खूब दिल को छू गई प्रस्तुति

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  9. दूर बहुत दूर
    की चिड़िया को
    देखने के
    आदी लगते हैं :‌)

    बहुत सुन्दर ।

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- सतीश सक्सेना

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