बिना जिगर हम जिंदा हैं पर यार बड़े शर्मिन्दा हैं !
कितनी बार मरे हैं , लेकिन यार बड़े शर्मिन्दा हैं !
किसके हाथों में हाथ दिया !
किसके संग कसमें खायीं थी
किसके जीवन में साथ दिया !
आंसू,मनुहार,सिसकियों का,
अपमान हमारे, हाथ हुआ !
अपमान हमारे, हाथ हुआ !
अब सब जग के आंसू पोंछें, पर यार बड़े शर्मिन्दा हैं !
उस घोर अँधेरे जंगल में,
कैसे मनुहारें सिसकी थीं
किसके सपनें बर्वाद हुए
कैसी दर्दीली हिचकी थीं
तब किसने माँगा साथ मेरा,
उस समय कदम न उठ पाये !
अब सारी दुनियां जीत चुके, पर यार बड़े शर्मिन्दा हैं !
कितने सपने कितने वादे
बिन आँखे खोले टूट गए !
बिन आँखे खोले टूट गए !
कितने गाने कितनी गज़लें
गाये बिन, हमसे रूठ गए !
मुंह खोल नहीं पाये थे हम,
सारे जीवन,घुट घुट के जिए !
चलना जब था तब चल न सके, अब यार बड़े शर्मिंदा हैं !
मुंह खोल नहीं पाये थे हम,
सारे जीवन,घुट घुट के जिए !
चलना जब था तब चल न सके, अब यार बड़े शर्मिंदा हैं !
कितना अच्छा होता यदि हम
मिलते ही नहीं इस बस्ती में !
कितना अच्छा होता यदि हम
हँसते ही नहीं, उस मस्ती में !
उस राह दिखाने वाले को,
हमने ही अकेला छोड़ दिया !
खुद ही घायल कर अपने को,हम यार बड़े शर्मिन्दा हैं !
कितनी नदियां धीरे धीरे
कैसे नालों में बदल गयीं !
जलधाराएं मीठे जल की
कैसे खारों में बदल गयीं !
कैसे नालों में बदल गयीं !
जलधाराएं मीठे जल की
कैसे खारों में बदल गयीं !
अपने घर आग लगा हँसते,
मानव जीवन का सुख लेते
कहने को यूँ हम जिन्दा हैं , पर यार बड़े शर्मिंदा हैं !
मानव जीवन का सुख लेते
कहने को यूँ हम जिन्दा हैं , पर यार बड़े शर्मिंदा हैं !
उस राह दिखाने वाले को, हमने ही अकेला छोड़ दिया !
ReplyDeleteखुद ही घायल करके खुद को,हम यार बड़े शर्मिन्दा हैं !
बहुत सुंदर और भावपूर्ण रचना.
अपने घर आग लगा हँसते,कहते हैं अभी हम ज़िंदा हैं !
ReplyDeleteपूंछो न अभी क्यों जिन्दा हैं , पर यार बड़े शर्मिंदा हैं
gahan bhavon ko sanjoye hai aapki abhivyakti .aabhar
अपने घर आग लगा हँसते,कहते हैं अभी हम ज़िंदा हैं !
ReplyDeleteपूंछो न अभी क्यों जिन्दा हैं , पर यार बड़े शर्मिंदा हैं !
सुन्दर शब्द रचना...
http://savanxxx.blogspot.in
एक एक शब्द दिल को छूता हुआ..बहुत भावपूर्ण और मर्मस्पर्शी प्रस्तुति...
ReplyDelete
ReplyDeleteकितने सपने कितने वादे
बिन आँखे खोले टूट गए !
कितने गाने कितनी गज़लें
गाये बिन, हमसे रूठ गए !
मुंह खोल नहीं पाये थे हम, सारे जीवन घुटते ही रहे !
चलना था जब,हम चल न सके,हर राह बड़े शर्मिंदा हैं !
बहुत प्रभावशाली पंक्तियाँ...जब जागें तभी सवेरा...प्रेरणा देती रचना...
बहुत ही अच्छी रचना।
ReplyDeleteवाह ।
ReplyDeleteपर ये नहीं है क्या असल शर्म :
शर्म से जिसे मर जाना चाहिये था
कभी किसी जमाने में
वो तो चुल्लू भर पानी में
डूब डूब कर भी जिंदा है
उसकी शर्म हया को लेकर
पर यार मेरा शर्मिंदा है :)
बिना जिगर हम जिंदा हैं पर यार बड़े शर्मिन्दा हैं !
ReplyDeleteकितनी बार मरे हैं , लेकिन यार बड़े शर्मिन्दा हैं !
बहुत सुन्दर भावपूर्ण गीत है !
" मैं छिपाना जानता तो जग मुझे साधू समझता
ReplyDeleteशत्रु मेरा बन गया है छल - रहित व्यवहार मेरा । "
निराला
'अपने घर आग लगा हँसते,कहते हैं अभी हम ज़िंदा हैं !'
ReplyDelete- इस पीढ़ी की स्वीकारोक्ति ही मुखर हो गई है आपके शब्दों में !
कितना अच्छा होता यदि हम
ReplyDeleteमिलते ही नहीं इस बस्ती में !
कितना अच्छा होता यदि हम
हँसते ही नहीं, उस मस्ती में !
उस राह दिखाने वाले को,हमने ही अकेला छोड़ दिया !
खुद ही घायल करके खुद को,हम यार बड़े शर्मिन्दा हैं ---दिल से निकले आपके जज्बात हैं --आह से निकलता वाह है--शानदार अभिव्यक्ति।