ब्लॉग वाणी को पुनर्जीवित करने का प्रयास, अंततः सिरिल गुप्ता के पत्र के साथ, समाप्त हो गया ! हाँ, फोन पर उनसे बात करते समय ,आवाज से झलकता हुआ दर्द, छिपाने के बावजूद, महसूस हो गया ! बार बार पूंछने पर भी उन्होंने वे कारण नहीं बताये जो ब्लोगवाणी बंद कराने के लिए जिम्मेवार रहे थे मगर उनका दिल दुखाया गया, यह अंदाज़ तो हो ही गया !
ब्लॉग जगत में ताजे बने लेखकों की भीड़ में ,जिसमें संत पुरुषों से लेकर थर्ड ग्रेड शोहदे शामिल है ,अच्छे काम करते कुछ लोगों को, बिना उनका काम समझे , अपमान किया जाए तो इसमें आश्चर्य कैसा ?? संगति का असर तो झेलना ही पड़ेगा ! आश्चर्य तब होता है जब खासे स्थापित लोग भी, निर्दोषों पर ऊँगली उठा कर, झूठे आरोप लगाते नज़र आते हैं ! आने वाले समय में ऐसे "चरित्रवान " लोग, नंगे नज़र आयेंगे ऐसा मेरा विश्वास है क्योंकि उस समय ब्लॉगजगत में अंधों की संख्या यकीनन कम होगी !
खैर भारी मन से , कल भटकते हुए, मैं पुरविया की दुकान पर पंहुचा तो वे सतीश सक्सेना और डॉ अरविन्द मिश्रा :-) की परेशानी में अनूप शुक्ल की तरह दुखी बैठे थे ! दीपक बाबा, कौशल मिश्रा को सुनकर आप भी मुस्कराए बिना नहीं रहेंगे ! आप पुरविया के ब्लॉग पर कमेंट्स की ताजगी देखिये .....
दीपक बाबा said...
सतीश सक्सेना said...
मनोज कुमार said...
सतीश सक्सेना said...
टूटी पान की दूकान के बाहर फूटपाथ पर , हमारे पुरविया और दीपक बाबा सर पर हाथ रखे ,दूसरों की चिंता में घुल रहे हैं कि इनके पान का क्या होगा ....की चिंता कर रहे हैं ! जय हो महाराज !
दीपक बाबा said....
सतीश सक्सेना said...
दीपक बाबा said...
सतीश सक्सेना said..
ब्लॉग जगत में ताजे बने लेखकों की भीड़ में ,जिसमें संत पुरुषों से लेकर थर्ड ग्रेड शोहदे शामिल है ,अच्छे काम करते कुछ लोगों को, बिना उनका काम समझे , अपमान किया जाए तो इसमें आश्चर्य कैसा ?? संगति का असर तो झेलना ही पड़ेगा ! आश्चर्य तब होता है जब खासे स्थापित लोग भी, निर्दोषों पर ऊँगली उठा कर, झूठे आरोप लगाते नज़र आते हैं ! आने वाले समय में ऐसे "चरित्रवान " लोग, नंगे नज़र आयेंगे ऐसा मेरा विश्वास है क्योंकि उस समय ब्लॉगजगत में अंधों की संख्या यकीनन कम होगी !
खैर भारी मन से , कल भटकते हुए, मैं पुरविया की दुकान पर पंहुचा तो वे सतीश सक्सेना और डॉ अरविन्द मिश्रा :-) की परेशानी में अनूप शुक्ल की तरह दुखी बैठे थे ! दीपक बाबा, कौशल मिश्रा को सुनकर आप भी मुस्कराए बिना नहीं रहेंगे ! आप पुरविया के ब्लॉग पर कमेंट्स की ताजगी देखिये .....
दीपक बाबा said...
मिसिर जी, सही लपेट रहे हो ........ अभी 'मजनू' भी आ रहे होंगे ....... वही जवाब देंगे..
@ पुरविया
@ बाबा
तुम जैसे जवान होंगे घर में, तो हमें ही मंजनू बनाना पड़ेगा ....
दिन ही बुरे हैं घर के बच्चों को क्या दोष दें ..
सही है! लगे रहो दोनों यही पर :-(
दिन ही बुरे हैं घर के बच्चों को क्या दोष दें ..
सही है! लगे रहो दोनों यही पर :-(
लग तो ऐसे ही रहा है जैसा आपने कहा है कि ऐसा लगता है किसी पान की दूकान को नगर निगम का दस्ता गिरा गया हो, जब धडाधड महाराज ही नहीं हैं तो बहुत से लोगों तक अपनी बात पहुँचाना भी दुष्कर कार्य है!
टूटी पान की दूकान के बाहर फूटपाथ पर , हमारे पुरविया और दीपक बाबा सर पर हाथ रखे ,दूसरों की चिंता में घुल रहे हैं कि इनके पान का क्या होगा ....की चिंता कर रहे हैं ! जय हो महाराज !
वैसे लिखा बढ़िया है ! !
@ सतीश सक्सेना
@ इनके पान का क्या होगा....
हमरे तो वैसे ही बेकार पान है.......... जो लोग बढिया पान खिलाते थे..... उनका क्या होगा.? सक्सेना जी पहले उनकी चिंता कीजिए....
हमें तो बाबा और पुरविया की दूकान का ही पान अच्छा लगता है ...धक्का काहे दे रहे हो यार !
वैसे ही सर फटा जा रहा है आज ..
कल शाम छत्तीस गढ़ भवन में कुछ गरम शरम मीटिंग है चलोगे ...तुम्हारे साथ ठीक रहेगा !
चलने का मन हो, तो फोन कर लेना.....
कल शाम छत्तीस गढ़ भवन में कुछ गरम शरम मीटिंग है चलोगे ...तुम्हारे साथ ठीक रहेगा !
चलने का मन हो, तो फोन कर लेना.....
आप तो आइसे बात कर रहे हैं जैसे आपका फोन न. १०० या १०१ हो.......
सतीश सक्सेना said..
बाबा !
बाबा !
तुम थानेदार क्यों नहीं बन जाते यार...... !
९८११०७६४५१
बिना किसी दिखावे के , ब्लोगर मित्रों के बीच, इस प्रकार की बातचीत दुर्लभ दिखती है ! अधिकतर ब्लॉग जगत में लोग लिखते समय "आदरणीय "और "जी "अवश्य लगाते हैं जबकि दिल में एक दूसरे के प्रति कोई प्यार नहीं होता ऐसे सम्मान का क्या फायदा जिसमें प्यार का अभाव हो और संबोधन में नाटकीयता साफ़ झलक रही हो ! डांटने का अधिकार का तो यहाँ सर्वथा अभाव ही है....
सिरिल जी के खत के साथ ब्लोगवाणी के पुनर्जन्म की ख्वाहिश खत्म हुई ....
ReplyDeleteबाकी पुरबिया जी का ब्लॉग देख लिया :):)
अभी तक मुस्कराहट बिखरी है होठों पर!!
ReplyDeleteजो लोग नि:स्वार्थ सेवा करते हैं उन्हें ऐसे ही भुगतना पड़ता है। इस बारे में बहुत कटु अनुभव हैं लेकिन सेवा करना क्यों छोड़ना?
ReplyDelete@अधिकतर ब्लॉग जगत में लोग लिखते समय "आदरणीय "और "जी " लगते हैं.....
ReplyDeleteये परिपाटी भी आप जैसे स्थापित ब्लोगर भाइयों ने शुरू की है.
और बुरी भी नहीं है............. बढिया है अगर दिल से है तो.
ReplyDeleteसतीश जी,
ReplyDeleteयह दुखद है, कुछेक स्वार्थी तत्वों के कारण सभी ब्लॉगर यह समस्या झेल रहे है।
यह कोई मजाक नहिं है, पान की दुकानें सलामत है और मॉल टूट गया है। जिस मॉल के एकीकृत प्रबंध के कारण ही यह दुकानें बढिया विकास कर रही थी।
संकलक तो कदाचित बना लिया जायेगा,लेकिन विभंग और धमासान करने वाले तत्व भी यहाँ ही रहेंगे। कभी मस्ती में तो कभी ईष्यावश भेद-भाव, पक्षपात आरोप मंडित होते रहेंगे। ठठा-मस्करी से भी बाज़ नहिं आयेंगे।
एक बार अपने ब्लॉग अहंकार से उपर उठ कर हिन्दी ब्लॉग जगत के विकास पर सोचो……… निस्वार्थ निष्पक्ष संकलक की उपयोगिता समझ में आयेगी।
मुझे कोई शर्म नहिं मैं एक बार पुनः 'ब्लॉगवाणी'अनुनय करूँ, कि गिने चुने विध्वंशकारी तत्वो की बात से आहत न हों और माननीय सभ्य ब्लॉगरों की बात को मान देकर,पुनः प्रसारण प्रारंभ करें।
यही आह्वान मैं 'चिट्ठाजगत'से भी करूँगा वे सम्पर्क स्थापित कर स्थिति स्पष्ठ करे।
...तो अब नया एग्रीगेटर बनेगा !
ReplyDeleteसतीश जी ब्लॉगजगत मैं अच्छे लेखक बहुत हैं. लेकिन उनको पहचानने वाले कम हैं. अच्छे काम करते कुछ लोगों को, बिना उनका काम समझे , अपमान होना कोई नयी बात नहीं. अफ़सोस यह होता है की इस बात को समझते सभी हैं लेकिन ,अच्छे लोगों का साथ नहीं देते.
ReplyDeleteआज अमन का पैग़ाम मैंने चलाया बहुत से ब्लोगर का सहयोग मुझे बहुत ही जल्द मिल गया इसके लिए मैं शुक्रगुजार हूँ उन सबका. तारीफ भी लोगों ने की, पूजनीय जैसे शब्दों का इस्तेमाल तक कर डाला. एक दिन आप जैसे एक मित्र ने मुझे सलाह दी , कुछ चटपटा भी डाला करें, केवल शांति सदेश और समाज मैं अमन की कोशिश अधिक ब्लोगर को आकर्षित नहीं कर सकेगी.
मैंने भी महसूस किया अच्छे लेख और काम की सराहना बहुत होती है लेकिन उसको पढने वाले या सहयोग देने वाले कम ही मिलते हैं.
चना भून के खाने से लाख सेहत बनती हो मज़ा तो चाट मैं ही आता है न...
ब्लॉग दर्शन के परम तत्व जानने का मौका मिला .... ब्लाग जगत अब इतना सशक्त हो चुका है की अब ब्लागर बिना एग्रीगेटर के पचास साथ चिट्ठे पढ़ सकता है .... यही परम सत्य बर्तमान में दिखाई दे रहा है .... की भविष्य में वगैर एग्रीगेटर के गुजारा करना पड़ सकता है ...स्मरणीय रहे की सन २०1० में ब्लागिंग जगत की महान उपलब्धि रही है की दो शहीद (>a?>a?>) हो गए ...
ReplyDeleteमाफ़ी चाहते हैं सर, आपसे कुछ वायदा किया था...... पर आज कुछ ऐसे घरेलु प्रसंग में फंसे की समय ही नहीं मिल पाया........ फिर किसी और मौके पर मुलाकात होगी.
ReplyDeleteआभार.
bndhu vr sadr prnam aap ne mujhe blog pr aashish diya hridy se aabhari hoon
ReplyDeletemere liye yh amooly hai
kripa bneye rhiye mere liye yhi sb kuchh hai
blog vani ka fir se prsarn hona hi chahiye bahut aavshyk hai aap is aur prytn sheel hain jam kr prsnnta ho rhi hai aur asha bhi kiyh kary sire chdega hi
pun:hardik aabhar swikar kren
हमें तो भैय्या ये सिलसिला पता है...
ReplyDeleteनीचे पान की दुकान
ऊपर गोरी का मकान.... :)
@ दीपक बाबा,
ReplyDeleteआज अपने कुछ मित्र नाराज सकते हैं, छत्तीसगढ़ भवन में संतों की भीड़ जमा हुई थी और मेरे चक्कर में दीपक बाबा भी रह गए...
@ डॉ वेद व्यथित,
आप उन लोगों में से हैं जिनके कारण ब्लॉग जगत को पढने में मन लगता है , आपका आना सौभाग्य की बात है ! आभार !
@ सी एम् प्रसाद ,
मस्त रहा यह भाई जी ....
सादर
एक दुखद स्थिति है।
ReplyDeleteभैया वाकई मज़ा आ गया पढ़कर!
ReplyDeleteथर्ड ग्रेड शोहदे ? ये तो लिंग भेद हुआ :)
ReplyDelete@ अली भाई ,
ReplyDeleteक्यों पिटवाने के चक्कर में हो ...और आगे कुछ नहीं लिखूंगा !
ब्लॉगवाणी को अनुप्राणित करने के लिये क्या करना होगा?
ReplyDeleteमैं शुक्ल नहीं कृष्ण ही हूँ सतीश जी .....सुधार दें प्लीज !
ReplyDelete@डॉ अरविन्द मिश्र
ReplyDeleteमंद बुद्धि बालक को क्षमा करें गुरुवार ..सूधार कर दिया है :-)