Friday, December 24, 2010

कैसी रीति समाज की -सतीश सक्सेना

वागर्थ पर डॉ कविता वाचक्नवी की एक रचना पढ़ते हुए , निकट भविष्य में, गुडिया की विदाई का चित्र, आँखों के सामने आ गया ! और भरे मन से क्या लिखा, यह मुझे नहीं पता ....
यह रचना पढ़कर, आँखें क्यों भर आयीं ? इसका वर्णन शब्दों में करना, कम से कम मेरे लिए असंभव है ! ऐसी मार्मिक रचना के लिए उनको हार्दिक बधाई ! 
अपने मन के भाव, जैसे उस दिन लिखे गए , वही आपके सम्मुख रख रहा हूँ ...   


गुडिया द्वारा चावल , मुट्ठी में भरते ही 
आँख छलछला उठीं 
अपनी लाडली का यह  स्वरुप 
कैसे  देख पाऊंगा ..मैं पिता 
कैसी यह घडी, कैसा यह चलन
नहीं समझ सका, कभी यह मन  !
मुझे सबसे अधिक प्यार करने वाली ही , 
इस घर में सबसे कमज़ोर है, मेरे होते हुए भी  
शायद सबसे अधिक, उसे ही मेरी जरूरत है !
और सबसे पहले, उसे ही निकाल रहा, मैं खुद 
कह रहा कि , यह तेरा घर नहीं  !
भाई को सौंपती, अपने पिता को 
कि भैया ! पापा का ख़याल रखना  
कहती, यह मासूम जा रही है 
एक नयी जगह , मेरी बेटी  !
जिसको, भय वश मैंने, कभी नयी जगह, 
अकेला नहीं जाने दिया ....
यह जा रही है , नए लोगों के बीच रहने 
अकेली ! बिना अपने पिता ...
जिसे मैंने कभी नए लोगों से नहीं मिलने  दिया 
क्योंकि यहाँ भेडिये ज्यादा मिलते हैं, इंसान कम 
मेरे कठोर शरीर का , सबसे कोमल टुकड़ा
मुझसे अलग होकर जा रहा है, घने जंगल में 
यह पिता क्या करे  ?? बताओ मेरी कविता  ??
तुम सिर्फ रुला सकती हो .....
मुझे तुम क्या बताओगी ...??

63 comments:

  1. सतीश जी , यह रचना तो सभी बेटी के पिताओं को रुला देगी ।
    कोमल अहसासों को कितना संवेदनापूर्ण शब्दों में उतारा है आपने ।
    सच है बेटी पिता की कमजोरी होती है । लेकिन आजकल बेटियां ही पिता की ताकत भी बनती हैं ।
    यह मैं देख चुका हूँ ।
    अति सुन्दर रचना ।

    ReplyDelete
  2. एक नयी जगह , मेरी बेटी
    जिसको, भय वश मैंने कभी नयी जगह,
    अकेला नहीं जाने दिया ....
    यह जा रही है नए लोगों के बीच रहने
    अकेली ! बिना अपने पिता ...
    सच मे क्या कहूँ अँखें छलक आयीं। अब सोचिये हमने तीन तीन विदा की हैं और एक झलक देखने के लिये कितने दिन महीने इन्तजार करना पडता है। मार्मिक अभिओव्यकति। कविता जी को बधाई।

    ReplyDelete
  3. आँखें नम कर देने वाली कविता। घर की चहचहाती चिड़िया दूसरे घर रहने चली जाती है।

    ReplyDelete
  4. हम स्वयं बेटियों के पिता हैं...इन भावनाओं को याद कर मन भर आया.. यह कविता हर पिता के मन की अभिव्यक्ति है!!

    ReplyDelete
  5. अभी हाल ही में मेरी चचेरी बहन की शादी हुयी है ... आपकी कविता ने उसकी विदाई याद करवा दी ! बेहद उम्दा रचना ... आभार !

    ReplyDelete
  6. एक नयी जगह , मेरी बेटी
    जिसको, भय वश मैंने कभी नयी जगह,
    अकेला नहीं जाने दिया ....
    यह जा रही है नए लोगों के बीच रहने
    अकेली ! बिना अपने पिता ...

    बहुत ही नाजुक से अहसासों को आपने शब्‍द दिये हैं भावमय करती प्रस्‍तुति ।

    ReplyDelete
  7. अच्छा है जो ये कविता मेरे पापा न नहीं पढी वर्ना पक्का रो देते... कोई भी विदाई का विडियो या गाना देखकर अब उनकी भी ऑंखें भर आती हैं, छुपाने कि कोशिश बहुत करते हैं पर नाकाम कोशिश... thank you so much for sharing these beautiful feelings of a "PAPA"...

    --

    ReplyDelete
  8. Bahut komal shabdon men aapne ek pita ke roop men apane manobhaw wyakt kiye hain. parantu yahee to reet hai kuch hee sal pahale aapki patni bhee apano ko rulate hue khud rote hue aapke ghar aaee thee. Beti ke sath sab achcha achcha hee hoga yahee shubh kamana.

    ReplyDelete
  9. सतीश भाई,
    पहली बात तो दराल सर की भावना ही हर बिटिया के पिता की भावना है...

    मेरी पत्नी एक ज़िम्मेदार मां की तरह जब भी बिटिया पर ज़्यादा लाड दिखाने पर मुझे आगाह करती है या किसी निश्चल शरारत पर समझाने की बात कहती है, तो मेरा यही जवाब होता है...पहले इसे इसका बचपन खुल कर हम जीने दें...बिटिया बिना कुछ समझाए ही क्लास में टॉप फाइव में हमेशा रहती है...हमें और क्या चाहिए...

    जय हिंद..

    ReplyDelete
  10. satishji,
    yah rachna to hriday par seedhe chot karti hai. nihshabd karti hai.
    beti se pyara pita ke liye aur koi nahi.kintu niyati to niyati hi hai.
    atyant marmik post.

    ReplyDelete
  11. सतीश जी, ये वे भावनाएँ हैं जिन्हें अभिव्यक्त करने में कोई भी पिता संकोच करता है और इस आग में भीतर ही भीतर झुलसता रहता है। आप ने इस की आँच हम तक भी पहुँचा दी है।
    बहुत ही भावपूर्ण रचना है।

    ReplyDelete
  12. आपने तो एक पिता के दिल के मर्म को खोल कर रख दिया है | लेकिन लड़की जहाँ जा रही है वहां भी तो माता-पिता का साया मिलता ही है |..........................अतिउत्तम ......................

    ReplyDelete
  13. ....
    ....
    bhavuk kar dete hain aap to....

    pranam.

    ReplyDelete
  14. क्या कहें दुनिया की रीत निभानी भी पड्ती है और सहन भी नही होती कैसी विडंबना है………………कविता के भाव बहुत गहरे हैं।

    ReplyDelete
  15. जज्बातों का सैलाब उँडेल कर रख दिया है | जिस दृश्य को मै हमेशा अनदेखा करना चाहता हूँ आज फिर वो आपने दिखा दिया है | क्या करे एक इकलोती बेटी का पिता हूँ |

    ReplyDelete
  16. आँखें नम कर देने वाली कविता।

    ReplyDelete
  17. बेटी की बिदाई का मार्मिक चित्रण. प्रकृति का नियम है की बेटी पराया धन होती है.इसे पालन करना ही पड़ता है सबको.बेहतरीन लेखन की बधाई

    ReplyDelete
  18. मेरे कठोर शरीर का , सबसे कोमल टुकड़ा
    मुझसे अलग होकर जा रहा है, घने जंगल में

    हरेक पिता की भावनाओं को आपने शब्दों में बहुत सुंदरता से पिरोया है..जो पिता को सबसे प्यारी हो वही सबसे दूर चली जाए, कितना कठोर नियम है समाज का..लेकिन आज बेटियाँ दूर होते हुए भी पिता का सबसे मज़बूत संबल और जीने का उद्देश्य होती हैं..बहुत मार्मिक रचना.

    ReplyDelete
  19. ISI PAR CHAND LINE PESH AHI.
    हर घर में बेटी की
    होती यही कहानी,
    ना पिता के घर की,
    ना ही ससुर के घर की,
    हर घर को वही बनाती
    फिर भी होती है वो पराई.......

    ReplyDelete
  20. बहनों की विदाई याद आ गयी
    बिटिया तो अभी बहुत छोटी है
    कुछ कह नहीं पा रहा
    आपको चरण-स्पर्श

    ReplyDelete
  21. उफ़्फ़!
    रुला दिया आपने।

    ReplyDelete
  22. सतीश जी इस कविता के लिए शुक्रिया

    ReplyDelete
  23. भाई को सौंपती, अपने पिता को
    कि भैया पापा का ख़याल रखना
    यह कहती यह मासूम जा रही है

    यही तो बेटियों की ख़ुसूसियत होती है कि विभिन्न विचारधारा ,विभिन्न परिवेश के हर सदस्य को अपना बना लेती हैं
    दुआ है कि ऊपर वाला सभी लड़कियों को आप जैसा पिता दे

    ReplyDelete
  24. निश्चय ही ह्रदय को कम्पित कर देने वाली कविता

    ReplyDelete
  25. भावमय प्रस्‍तुति ।

    ReplyDelete
  26. सतीश भाई बेटी को इतना मत डराइए और उन्‍हें भी नहीं जिनकी बेटियां नहीं हैं। संयोग से मेरी भी अपनी बेटी नहीं है। पर दो बेटे हैं । अब यह तय है कि उनकी शादी होगी तो जो घर में आएगी वह किसी की बेटी ही होगी ।
    *
    वैसे मैं आपको बता दूं साल भर पहले मुझे एक बेटी मिल गई है। इस बेटी के मिलने पर मैंने अपने ब्‍लाग यायावरी में एक पोस्‍ट‍ लिखी है -मिलना एक बेटी का- । यह भी संयोग ही है कि यह बेटी कल मुझ से मिलने आई थी और आज दो घंटे पहले ही गई है। और मैं यह पोस्‍ट पढ़ रहा हूं।
    *
    बहरहाल मैं आपकी भावनाएं समझ सकता हूं,एक ईमानदार और संवदेनशील पिता की भावनाएं हैं। बधाई और शुभकामनाएं।

    24 December, 2010 15:29

    ReplyDelete
  27. सतीशजी, बेटियां कहीं भी चले जाए लेकिन माता-पिता के दिल में रहती हैं। उनकी हर तकलीफ में बेटी साथ होती है। आज वे ही सुखी हैं जिनके बेटी है। विदा करते समय दर्द तो बहुत होता है लेकिन वही दर्द उस समय खुशियों में बदल जाता है तब उसके साथ आया हमारे घर का पाहुना अपना सा बन जाता है। एकदम अपना सा।

    ReplyDelete
  28. पढते हुए भी मन मायूस हो रहा है कैसे लिख पाए होंगे आप यह मन के भाव।

    कोमल संवेदनाओं की कमजोरी भी और कोमल भावनाओं की ताक़त भी होती है बेटियां।

    तीसरे चित्र की व्याख्या:

    लादती है सीने पर मुलायम मिट्टी,
    हटाती है फिर सीने से भार बेटियां॥

    ReplyDelete
  29. जमाने की रीत है......... पल भर कित्ता मुश्किल लगता है.... और बिछुड़ने का गम......... पर उसके बाद तो त्यौहार सा होता है जब ये बुलबुल रूपी बिटिया........ बाबुल के घर २-४ दिन के लिए आती है....... सही में किसी त्यौहार से कम नहीं होता..........

    जमाने की रीत है............. किना जामियां ते कें ले जानिया....
    किसने पैदा की पाली पोसी और कौन ले जाएगा.

    तीन बहनों में से सबसे छोटी वाली को बिटिया सामान ही विदा किया था. .......

    ReplyDelete
  30. भावुकता से भरी कविता.....

    ReplyDelete
  31. सतीश जी मैंने सिर्फ ऊपर की २ पंक्तियाँ पढ़ी ..बाकी की नहीं पढ़ पाई.माफ कीजियेगा .
    पूरा पढ़ लेती तो सारा दिन रोती.और आज क्रिसमस ईव है .फिर कुछ भी काम नहीं हो पाता :)

    ReplyDelete
  32. कविता के भाव बहुत गहरे हैं।

    ReplyDelete
  33. मेरे पास इस कविता की तारीफ के लिए अल्फाज़ नहीं हैं..

    ReplyDelete
  34. मै स्वयं बेटियों का पिता हूँ .. यह कविता हर पिता के मन की अभिव्यक्ति है!
    मर्मस्पर्शी रचना,

    ReplyDelete
  35. अंकल, मेरी बहन की शादी होने वाली है, तो आप सोच ही सकते हैं की कविता पढते वक्त मुझे कैसा लग रहा होगा.
    जो आपके ब्लॉग का शीर्षक है, एकदम यही बात एक दफे मेरी माँ ने कहा था "कैसी रीत है ये दुनिया का की जिस बेटी के नखरे इतने दिन लोग उठाते हैं, उसे ही अपने घर से विदा कर देते हैं"
    लेकिन क्या करें रीत तो यही है न...
    और नए जीवन की शुरुआत तो भी इसी से होती है न..

    ReplyDelete
  36. बहुत भाव मयी रचना ....बेटी की ऐसी ही चिन्ता होती है ...

    ReplyDelete
  37. betiya bas pita ki kamjori hoti hain lekin satish ji yaad rakhiye ye betiya pita ka pyar pa kar ander se itni mazboot bhi ho jati hain ki pita ka sir hamesha uncha rakhti hain aur dono pariwaron ko tamaam khushiya bhi yahi deti hain. aakhir in betiyon ke ideal to inke pyare papa hi hote hain na jo har sthiti ka saamna karna jaante hain.isliye chinta mat kariye. bado ka aashirwaad unke sath hai.

    ReplyDelete
  38. bhawbhini kavita .bahut achchi lagi.

    ReplyDelete
  39. कमाल की अभिव्यक्ति है, बेहतरीन!

    ReplyDelete
  40. बेहद भावमयी मर्मस्पर्शी रचना ..................

    ReplyDelete
  41. पहले से मत सोचिए -बड़ा दुखदायी होता है .
    सृष्टि की धुरी बेटी के हाथ में है ,इस घर में उसकी गुज़र कहाँ !एक संसार रचना है उसे .बाद में गर्व से पूरित हो जाएँगे उसे देख कर .

    ReplyDelete
  42. भावुक करता लेख।

    ReplyDelete
  43. .
    .
    .
    ओह सतीश जी,

    पहले कविता जी के ब्लॉग पर गया... और उन्होंने आंखें छलका दीं... फिर आपकी यह रचना... सेंटी हो गया आज तो... :(

    पिछले साल इन्हीं दिनों एक बार साढ़े चार साल की बिटिया ने एक बारात की विदाई देखते हुऐ पूछा था "पापा क्या दुलहन अपने पापा को छोड़ कर चली जायेगी?"... जवाब तो नहीं दे पाया उस समय... पर इसी बात को सोचते-सोचते पोस्ट लगाई ...चुल-बुल-बुल-बुल...... कभी समय हो तो देखियेगा।


    ...

    ReplyDelete
  44. पुत्री से विलग होने की प्रक्रिया पर छलकती पिता की वेदना को सुन्दर शब्द दिये है आपने .

    ReplyDelete
  45. आपको एवं आपके परिवार को क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनायें !

    ReplyDelete
  46. बेटी जब ससुराल जाती है तो पिता अपना आंसू रोक नहीं पाता।
    ....मन को नम कर देने वाली कविता।

    ReplyDelete
  47. ‘तुम सिर्फ रुला सकती हो‘..
    बेटी जब ससुराल जाती है तो पिता अपने आंसू रोक नहीं पाता।
    ....मन को नम कर देने वाली कविता।

    ReplyDelete
  48. भाउक कर देने वाली कविता है जी।

    ReplyDelete
  49. तुम सिर्फ रुला सकती हो .....
    मुझे तुम क्या बताओगी ...??
    xxxxxxxxxxxxxxxxx
    शायद यही वास्तविकता है ..........पता नहीं इस प्रश्न का क्या हल होगा .....बेहद मार्मिक रचना ...शुक्रिया

    ReplyDelete
  50. बेटियों के विदाई के विकल्प पर पुनर्विचार की गुंजायश बनती है ! देश में कुछ समाज अब भी हैं जहां बेटे विदा होते हैं !

    ReplyDelete
  51. बहुत मार्मिक रचना| बेहतरीन लेखन की बधाई।

    ReplyDelete
  52. इस पीड़ा को हम सभी जीते हैं ...
    हम बेटियों के माता -पिता ने भी जिया होगा ...!

    ReplyDelete
  53. आँखें नम कर जाने वाली रचना!

    ReplyDelete
  54. एक पिता के अंतर्मन की व्यथा का ऐसा सूक्ष्म और मर्मस्पर्शी चित्रण कि आंख भर आई. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

    ReplyDelete
  55. आपकी रचना बहुत अच्छी है |

    ReplyDelete
  56. क्या बोलू?क्या लिखूं? अपने हाथों अपनी अप्पू को विदा करने जा रही हूँ.वो कहती है- 'पापा!ये गोलियाँ खाने से इतने मिनट पहले देनी है,दिन मे ये,रात मे ये..और ये उनके जेवर,रूपये.ए.टी.एम्.कार्ड,ये डॉक्टर की फ़ाइल ...कभी भैया को,कभी भाभी को,कभी सर्वेंट को सबको कितने निर्देश देती रहती थी.
    सब लिख दिया आपने...एक पिता जो माँ बन गया हर बार.बाबु!तभी बेटी और माँ के मन को गहराई से समझते हो.कविता मे सबके दिल को शब्दों मे ढाल कर ....

    ReplyDelete
  57. जिसे मैंने कभी नए लोगों से नहीं मिलने दिया
    क्योंकि यहाँ भेडिये ज्यादा मिलते हैं, इंसान कम
    मेरे कठोर शरीर का , सबसे कोमल टुकड़ा
    मुझसे अलग होकर जा रहा है, घने जंगल में ...

    yeh paktiyaan sachaai, sneh, samajik vyang aur manavta ka ehsaas karati hain.
    Thanks for your kind efforts Satishji, apke bhavon ke kayal ho gaye hain...

    ReplyDelete
  58. ये ऐसा रिश्ता जिसमे आंसुओं के सिवा कुछ नहीं,नींव सिर्फ प्यार की जो होती है। आँखे भिंगो गई आपकी ये रचना --इतनी खूबसूरत भावों को शब्दों में पिरोने के लिये साधुवाद आपको।

    ReplyDelete

एक निवेदन !
आपके दिए गए कमेंट्स बेहद महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कई बार पोस्ट से बेहतर जागरूक पाठकों के कमेंट्स लगते हैं,प्रतिक्रिया देते समय कृपया ध्यान रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसमें बेहद शक्ति होती है,लोग अपनी अपनी श्रद्धा अनुसार पढेंगे, और तदनुसार आचरण भी कर सकते हैं , अतः आवश्यकता है कि आप नाज़ुक विषयों पर, प्रतिक्रिया देते समय, लेखन को पढ़ अवश्य लें और आपकी प्रतिक्रिया समाज व देश के लिए ईमानदार हो, यही आशा है !


- सतीश सक्सेना

Related Posts Plugin for Blogger,