वागर्थ पर डॉ कविता वाचक्नवी की एक रचना पढ़ते हुए , निकट भविष्य में, गुडिया की विदाई का चित्र, आँखों के सामने आ गया ! और भरे मन से क्या लिखा, यह मुझे नहीं पता ....
अपने मन के भाव, जैसे उस दिन लिखे गए , वही आपके सम्मुख रख रहा हूँ ...
गुडिया द्वारा चावल , मुट्ठी में भरते ही
नहीं समझ सका, कभी यह मन !
मुझे सबसे अधिक प्यार करने वाली ही ,
इस घर में सबसे कमज़ोर है, मेरे होते हुए भी
शायद सबसे अधिक, उसे ही मेरी जरूरत है !
और सबसे पहले, उसे ही निकाल रहा, मैं खुद
कह रहा कि , यह तेरा घर नहीं !
कि भैया ! पापा का ख़याल रखना
कहती, यह मासूम जा रही है
एक नयी जगह , मेरी बेटी !
जिसको, भय वश मैंने, कभी नयी जगह,
अकेला नहीं जाने दिया ....
अकेला नहीं जाने दिया ....
यह जा रही है , नए लोगों के बीच रहने
अकेली ! बिना अपने पिता ...
अकेली ! बिना अपने पिता ...
क्योंकि यहाँ भेडिये ज्यादा मिलते हैं, इंसान कम
मेरे कठोर शरीर का , सबसे कोमल टुकड़ा
मुझसे अलग होकर जा रहा है, घने जंगल में
यह पिता क्या करे ?? बताओ मेरी कविता ??
सतीश जी , यह रचना तो सभी बेटी के पिताओं को रुला देगी ।
ReplyDeleteकोमल अहसासों को कितना संवेदनापूर्ण शब्दों में उतारा है आपने ।
सच है बेटी पिता की कमजोरी होती है । लेकिन आजकल बेटियां ही पिता की ताकत भी बनती हैं ।
यह मैं देख चुका हूँ ।
अति सुन्दर रचना ।
एक नयी जगह , मेरी बेटी
ReplyDeleteजिसको, भय वश मैंने कभी नयी जगह,
अकेला नहीं जाने दिया ....
यह जा रही है नए लोगों के बीच रहने
अकेली ! बिना अपने पिता ...
सच मे क्या कहूँ अँखें छलक आयीं। अब सोचिये हमने तीन तीन विदा की हैं और एक झलक देखने के लिये कितने दिन महीने इन्तजार करना पडता है। मार्मिक अभिओव्यकति। कविता जी को बधाई।
आँखें नम कर देने वाली कविता। घर की चहचहाती चिड़िया दूसरे घर रहने चली जाती है।
ReplyDeleteहम स्वयं बेटियों के पिता हैं...इन भावनाओं को याद कर मन भर आया.. यह कविता हर पिता के मन की अभिव्यक्ति है!!
ReplyDelete:(
ReplyDeleteअभी हाल ही में मेरी चचेरी बहन की शादी हुयी है ... आपकी कविता ने उसकी विदाई याद करवा दी ! बेहद उम्दा रचना ... आभार !
ReplyDeleteएक नयी जगह , मेरी बेटी
ReplyDeleteजिसको, भय वश मैंने कभी नयी जगह,
अकेला नहीं जाने दिया ....
यह जा रही है नए लोगों के बीच रहने
अकेली ! बिना अपने पिता ...
बहुत ही नाजुक से अहसासों को आपने शब्द दिये हैं भावमय करती प्रस्तुति ।
अच्छा है जो ये कविता मेरे पापा न नहीं पढी वर्ना पक्का रो देते... कोई भी विदाई का विडियो या गाना देखकर अब उनकी भी ऑंखें भर आती हैं, छुपाने कि कोशिश बहुत करते हैं पर नाकाम कोशिश... thank you so much for sharing these beautiful feelings of a "PAPA"...
ReplyDelete--
Bahut komal shabdon men aapne ek pita ke roop men apane manobhaw wyakt kiye hain. parantu yahee to reet hai kuch hee sal pahale aapki patni bhee apano ko rulate hue khud rote hue aapke ghar aaee thee. Beti ke sath sab achcha achcha hee hoga yahee shubh kamana.
ReplyDeleteसतीश भाई,
ReplyDeleteपहली बात तो दराल सर की भावना ही हर बिटिया के पिता की भावना है...
मेरी पत्नी एक ज़िम्मेदार मां की तरह जब भी बिटिया पर ज़्यादा लाड दिखाने पर मुझे आगाह करती है या किसी निश्चल शरारत पर समझाने की बात कहती है, तो मेरा यही जवाब होता है...पहले इसे इसका बचपन खुल कर हम जीने दें...बिटिया बिना कुछ समझाए ही क्लास में टॉप फाइव में हमेशा रहती है...हमें और क्या चाहिए...
जय हिंद..
satishji,
ReplyDeleteyah rachna to hriday par seedhe chot karti hai. nihshabd karti hai.
beti se pyara pita ke liye aur koi nahi.kintu niyati to niyati hi hai.
atyant marmik post.
सतीश जी, ये वे भावनाएँ हैं जिन्हें अभिव्यक्त करने में कोई भी पिता संकोच करता है और इस आग में भीतर ही भीतर झुलसता रहता है। आप ने इस की आँच हम तक भी पहुँचा दी है।
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण रचना है।
आपने तो एक पिता के दिल के मर्म को खोल कर रख दिया है | लेकिन लड़की जहाँ जा रही है वहां भी तो माता-पिता का साया मिलता ही है |..........................अतिउत्तम ......................
ReplyDelete....
ReplyDelete....
bhavuk kar dete hain aap to....
pranam.
क्या कहें दुनिया की रीत निभानी भी पड्ती है और सहन भी नही होती कैसी विडंबना है………………कविता के भाव बहुत गहरे हैं।
ReplyDeleteजज्बातों का सैलाब उँडेल कर रख दिया है | जिस दृश्य को मै हमेशा अनदेखा करना चाहता हूँ आज फिर वो आपने दिखा दिया है | क्या करे एक इकलोती बेटी का पिता हूँ |
ReplyDeleteआँखें नम कर देने वाली कविता।
ReplyDeleteबेटी की बिदाई का मार्मिक चित्रण. प्रकृति का नियम है की बेटी पराया धन होती है.इसे पालन करना ही पड़ता है सबको.बेहतरीन लेखन की बधाई
ReplyDeleteमेरे कठोर शरीर का , सबसे कोमल टुकड़ा
ReplyDeleteमुझसे अलग होकर जा रहा है, घने जंगल में
हरेक पिता की भावनाओं को आपने शब्दों में बहुत सुंदरता से पिरोया है..जो पिता को सबसे प्यारी हो वही सबसे दूर चली जाए, कितना कठोर नियम है समाज का..लेकिन आज बेटियाँ दूर होते हुए भी पिता का सबसे मज़बूत संबल और जीने का उद्देश्य होती हैं..बहुत मार्मिक रचना.
ISI PAR CHAND LINE PESH AHI.
ReplyDeleteहर घर में बेटी की
होती यही कहानी,
ना पिता के घर की,
ना ही ससुर के घर की,
हर घर को वही बनाती
फिर भी होती है वो पराई.......
बहनों की विदाई याद आ गयी
ReplyDeleteबिटिया तो अभी बहुत छोटी है
कुछ कह नहीं पा रहा
आपको चरण-स्पर्श
उफ़्फ़!
ReplyDeleteरुला दिया आपने।
सतीश जी इस कविता के लिए शुक्रिया
ReplyDeleteभाई को सौंपती, अपने पिता को
ReplyDeleteकि भैया पापा का ख़याल रखना
यह कहती यह मासूम जा रही है
यही तो बेटियों की ख़ुसूसियत होती है कि विभिन्न विचारधारा ,विभिन्न परिवेश के हर सदस्य को अपना बना लेती हैं
दुआ है कि ऊपर वाला सभी लड़कियों को आप जैसा पिता दे
निश्चय ही ह्रदय को कम्पित कर देने वाली कविता
ReplyDeleteभावमय प्रस्तुति ।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसतीश भाई बेटी को इतना मत डराइए और उन्हें भी नहीं जिनकी बेटियां नहीं हैं। संयोग से मेरी भी अपनी बेटी नहीं है। पर दो बेटे हैं । अब यह तय है कि उनकी शादी होगी तो जो घर में आएगी वह किसी की बेटी ही होगी ।
ReplyDelete*
वैसे मैं आपको बता दूं साल भर पहले मुझे एक बेटी मिल गई है। इस बेटी के मिलने पर मैंने अपने ब्लाग यायावरी में एक पोस्ट लिखी है -मिलना एक बेटी का- । यह भी संयोग ही है कि यह बेटी कल मुझ से मिलने आई थी और आज दो घंटे पहले ही गई है। और मैं यह पोस्ट पढ़ रहा हूं।
*
बहरहाल मैं आपकी भावनाएं समझ सकता हूं,एक ईमानदार और संवदेनशील पिता की भावनाएं हैं। बधाई और शुभकामनाएं।
24 December, 2010 15:29
सतीशजी, बेटियां कहीं भी चले जाए लेकिन माता-पिता के दिल में रहती हैं। उनकी हर तकलीफ में बेटी साथ होती है। आज वे ही सुखी हैं जिनके बेटी है। विदा करते समय दर्द तो बहुत होता है लेकिन वही दर्द उस समय खुशियों में बदल जाता है तब उसके साथ आया हमारे घर का पाहुना अपना सा बन जाता है। एकदम अपना सा।
ReplyDeleteपढते हुए भी मन मायूस हो रहा है कैसे लिख पाए होंगे आप यह मन के भाव।
ReplyDeleteकोमल संवेदनाओं की कमजोरी भी और कोमल भावनाओं की ताक़त भी होती है बेटियां।
तीसरे चित्र की व्याख्या:
लादती है सीने पर मुलायम मिट्टी,
हटाती है फिर सीने से भार बेटियां॥
जमाने की रीत है......... पल भर कित्ता मुश्किल लगता है.... और बिछुड़ने का गम......... पर उसके बाद तो त्यौहार सा होता है जब ये बुलबुल रूपी बिटिया........ बाबुल के घर २-४ दिन के लिए आती है....... सही में किसी त्यौहार से कम नहीं होता..........
ReplyDeleteजमाने की रीत है............. किना जामियां ते कें ले जानिया....
किसने पैदा की पाली पोसी और कौन ले जाएगा.
तीन बहनों में से सबसे छोटी वाली को बिटिया सामान ही विदा किया था. .......
भावुकता से भरी कविता.....
ReplyDeleteसतीश जी मैंने सिर्फ ऊपर की २ पंक्तियाँ पढ़ी ..बाकी की नहीं पढ़ पाई.माफ कीजियेगा .
ReplyDeleteपूरा पढ़ लेती तो सारा दिन रोती.और आज क्रिसमस ईव है .फिर कुछ भी काम नहीं हो पाता :)
कविता के भाव बहुत गहरे हैं।
ReplyDeleteमेरे पास इस कविता की तारीफ के लिए अल्फाज़ नहीं हैं..
ReplyDeletebahut hi sunder bhavabhivyakti.
ReplyDeleteमै स्वयं बेटियों का पिता हूँ .. यह कविता हर पिता के मन की अभिव्यक्ति है!
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी रचना,
अंकल, मेरी बहन की शादी होने वाली है, तो आप सोच ही सकते हैं की कविता पढते वक्त मुझे कैसा लग रहा होगा.
ReplyDeleteजो आपके ब्लॉग का शीर्षक है, एकदम यही बात एक दफे मेरी माँ ने कहा था "कैसी रीत है ये दुनिया का की जिस बेटी के नखरे इतने दिन लोग उठाते हैं, उसे ही अपने घर से विदा कर देते हैं"
लेकिन क्या करें रीत तो यही है न...
और नए जीवन की शुरुआत तो भी इसी से होती है न..
बहुत भाव मयी रचना ....बेटी की ऐसी ही चिन्ता होती है ...
ReplyDeletebetiya bas pita ki kamjori hoti hain lekin satish ji yaad rakhiye ye betiya pita ka pyar pa kar ander se itni mazboot bhi ho jati hain ki pita ka sir hamesha uncha rakhti hain aur dono pariwaron ko tamaam khushiya bhi yahi deti hain. aakhir in betiyon ke ideal to inke pyare papa hi hote hain na jo har sthiti ka saamna karna jaante hain.isliye chinta mat kariye. bado ka aashirwaad unke sath hai.
ReplyDeletebhawbhini kavita .bahut achchi lagi.
ReplyDeleteकमाल की अभिव्यक्ति है, बेहतरीन!
ReplyDeleteबेहद भावमयी मर्मस्पर्शी रचना ..................
ReplyDeleteपहले से मत सोचिए -बड़ा दुखदायी होता है .
ReplyDeleteसृष्टि की धुरी बेटी के हाथ में है ,इस घर में उसकी गुज़र कहाँ !एक संसार रचना है उसे .बाद में गर्व से पूरित हो जाएँगे उसे देख कर .
भावुक करता लेख।
ReplyDelete.
ReplyDelete.
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ओह सतीश जी,
पहले कविता जी के ब्लॉग पर गया... और उन्होंने आंखें छलका दीं... फिर आपकी यह रचना... सेंटी हो गया आज तो... :(
पिछले साल इन्हीं दिनों एक बार साढ़े चार साल की बिटिया ने एक बारात की विदाई देखते हुऐ पूछा था "पापा क्या दुलहन अपने पापा को छोड़ कर चली जायेगी?"... जवाब तो नहीं दे पाया उस समय... पर इसी बात को सोचते-सोचते पोस्ट लगाई ...चुल-बुल-बुल-बुल...... कभी समय हो तो देखियेगा।
...
पुत्री से विलग होने की प्रक्रिया पर छलकती पिता की वेदना को सुन्दर शब्द दिये है आपने .
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteबेटी जब ससुराल जाती है तो पिता अपना आंसू रोक नहीं पाता।
ReplyDelete....मन को नम कर देने वाली कविता।
‘तुम सिर्फ रुला सकती हो‘..
ReplyDeleteबेटी जब ससुराल जाती है तो पिता अपने आंसू रोक नहीं पाता।
....मन को नम कर देने वाली कविता।
भाउक कर देने वाली कविता है जी।
ReplyDeleteBahut Khubsurat Abhivyakti.
ReplyDeleteतुम सिर्फ रुला सकती हो .....
ReplyDeleteमुझे तुम क्या बताओगी ...??
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शायद यही वास्तविकता है ..........पता नहीं इस प्रश्न का क्या हल होगा .....बेहद मार्मिक रचना ...शुक्रिया
बेटियों के विदाई के विकल्प पर पुनर्विचार की गुंजायश बनती है ! देश में कुछ समाज अब भी हैं जहां बेटे विदा होते हैं !
ReplyDeleteबहुत मार्मिक रचना| बेहतरीन लेखन की बधाई।
ReplyDeletelove u papa.......
ReplyDeleteइस पीड़ा को हम सभी जीते हैं ...
ReplyDeleteहम बेटियों के माता -पिता ने भी जिया होगा ...!
आँखें नम कर जाने वाली रचना!
ReplyDeleteएक पिता के अंतर्मन की व्यथा का ऐसा सूक्ष्म और मर्मस्पर्शी चित्रण कि आंख भर आई. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
आपकी रचना बहुत अच्छी है |
ReplyDeleteक्या बोलू?क्या लिखूं? अपने हाथों अपनी अप्पू को विदा करने जा रही हूँ.वो कहती है- 'पापा!ये गोलियाँ खाने से इतने मिनट पहले देनी है,दिन मे ये,रात मे ये..और ये उनके जेवर,रूपये.ए.टी.एम्.कार्ड,ये डॉक्टर की फ़ाइल ...कभी भैया को,कभी भाभी को,कभी सर्वेंट को सबको कितने निर्देश देती रहती थी.
ReplyDeleteसब लिख दिया आपने...एक पिता जो माँ बन गया हर बार.बाबु!तभी बेटी और माँ के मन को गहराई से समझते हो.कविता मे सबके दिल को शब्दों मे ढाल कर ....
जिसे मैंने कभी नए लोगों से नहीं मिलने दिया
ReplyDeleteक्योंकि यहाँ भेडिये ज्यादा मिलते हैं, इंसान कम
मेरे कठोर शरीर का , सबसे कोमल टुकड़ा
मुझसे अलग होकर जा रहा है, घने जंगल में ...
yeh paktiyaan sachaai, sneh, samajik vyang aur manavta ka ehsaas karati hain.
Thanks for your kind efforts Satishji, apke bhavon ke kayal ho gaye hain...
ये ऐसा रिश्ता जिसमे आंसुओं के सिवा कुछ नहीं,नींव सिर्फ प्यार की जो होती है। आँखे भिंगो गई आपकी ये रचना --इतनी खूबसूरत भावों को शब्दों में पिरोने के लिये साधुवाद आपको।
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