खुशदीप सहगल के द्वारा अपनाए जा रहे देसी ट्रेफिक नियमों की लिस्ट देख , हमारा भी, देसियों के द्वारा अपनाए जा रहे कुछ और नियम, बताने का दिल कर गया ! सो हमारे कुछ देसी रूल देखिये !
- विश्वस्तरीय मेट्रो की सफाई देख कर बड़ा गुस्सा आता है ....उस पर लिख रखा है कि थूकने पर जुरमाना ! स्टील के थूकदान में थूकना अच्छा नहीं लगता ! मुँह में भरी पीक, निगाह बचा कर कोने में पिचकारी मानने में कितना आनंद है, यह जानने के लिए पान खाना सीखिए !
- ट्रेफिक लाइट पर खड़े खड़े, गाड़ी से फालतू कागज़, रबर मैट को सड़क पर झाड़ना, खाली फ़ूड रैपर , पानी की बोतल आदि सड़क पर फेंकने में कोई बुराई नहीं है ! समय बचता है !
- ग्रीन लाइट पर भी , पैदल चलने वालों को , तेज निकलती गाड़ियों को, हाथ से रुकने का इशारा देते हुए,निकलने का मज़ा ही कुछ और है ! पैदल चलने वालों का चालान नहीं होता अतः निश्चिन्त रहें !
- आपात स्थिति में, रास्ते से हटने के लिए सायरन बजाती एम्बुलेंस , के आगे अपनी गाडी को रखें और चलते जाएँ ! रास्ता साफ़ मिलता है ! एम्बुलेंस में, जीवन से जद्दोजहद करते व्यक्ति से, कौन हमारा कोई रिश्ता है ?
- जगत माता के नाम पर, जागरण के लिए पैसे उगाहने के लिए कोई मना नहीं कर पायेगा ! फिर उस रात पूरे मोहल्ले के बच्चों को पढने मत दीजिये ! वृद्ध और बीमारों को नींद आये न आये , क्या फर्क पड़ता है ?
- शाम को पार्क में बैठ परिवार के साथ पिकनिक मनाइये और खाली बियर केन,चिप्स पैकेट प्लास्टिक थैली और बोतल वहीँ डाल दीजिये ताकि सनद रहे कि हम यहाँ बैठे थे !
व्यंग्य के माध्यम से हमें हमारे सत्य से परिचित कराती पोस्ट!:)
ReplyDeletesatish ji yeha sab aadate hame by birth mile huye hai phir kaise koi ise najarandaj kar sakta hai bhala..........vakai bahut khub..........
ReplyDeletebahut khoob
ReplyDeletewaah !
ReplyDeleteउपर की फोटो में कौन कौन हैं, यह पहेली भी तोपूछ लीजिए।
ReplyDeleteजबलपुर की बलशाली आयोजनी से अवश्य मिलिएगा
क्या करें जनाब हम लोगों को भी जानवरों की तरह
ReplyDeleteदिन भर मुंह चलाने की आदत हो गयी है , जब देखो कुछ न कुछ मुंह में भरे हुए हैं पान , गुटखा , खैनी के रूप में अब मुंह में रहगा तो भई बाहर भी चितकारी के रूप में निकलेगा
dabirnews.blogspot.com
बहुत सही कहा .....
ReplyDeleteलो जी कर लो बात ....अब तो खेर नहीं ...वाह सतीश जी वाह ..क्या निगाह पाई है ...शुक्रिया
ReplyDeleteहा हा हा...
ReplyDeleteमस्त...एक से बढ़कर एक उपाय..
हमारी देसी आदतों का संस्करण प्रस्तुत करने के लिए ..... हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत सटीक दिया...
ReplyDeleteसर जी! हम पोस्ट के अंत में, व्यंग वाला डिस्क्लेमर ढूढ़ रहे हैं? नहीं मिल रहा?
ReplyDeleteआप तो ऐसे न थे?
http://theuglyindian.com/intro3.html
ReplyDeleteise blog ko dekhiye aur promote kariyega........haa har tab jaroor dekhiyega.......
Aabhar .
उपरोक्त टिप्पणी एक व्यंग था, अन्यथा न लिया जाये :)
ReplyDeleteaisi samjhaish ki yse koi jaroorat nahi thi....o isliye ki is tarah ke
ReplyDeletesadgun to hamare bhartiya sankriti ke jaiwik gun hain......
aur bina disclm ke chatakh vyangya...
aap to aise na the.....
pranam.
सच तो ये ही कि हम नही सुधरने वाले
ReplyDeleteआप चाहे कितनी ही पोस्ट लिखकर हम पर व्यंग करते रहेा
अच्छा लगा पोस्ट पढ
ये भारतीय नागरिक के मूल अधिकार है ?
ReplyDeleteऔर वो ‘स्टाफ है’ को भूल गये।
ReplyDeleteहर जगह काम आता है।
व्यंगात्मक शैली में जागरूक करने वाली पोस्ट ....आभार
ReplyDeleteहम नही सुधरने वाले
ReplyDelete.............सतीश जी
@अविनाश वाचस्पति ,
ReplyDeleteलाल कमीज वाले अविनाश वाचस्पति थैले वाले हैं, जिन्होंने थैला दिखा कर इतने लोगों को बुला लिया और दिया कुछ नही :-(
@ संवेदना के स्वर ,
हा..हा..हा..हा...
चलो हम पर अगर चैतन्य भरोसा कर लें तो औरों की परवाह नहीं :-)), आप इसे व्यंग्य ही समझें !
अब इस कमेन्ट के बाद बोलने को कुछ नहीं बचा
अच्छी सीख दे रहे हैं. यही तो भारतीय की पहचान है. जगत माता के जागरण के नाम पर जो कुछ होता है उसे देख हर साल हमारे एक मित्र कहा करते हैं देखो गुंडा देवी बैठा दी गयी है.
ReplyDelete
ReplyDelete@ संजय ,
आज के सबसे अच्छा कमेन्टकार कलाकार संवेदना के स्वर ( चैतन्य ) रहे ....
आप तो ऐसे न थे ...
हम ब्लोगर हैं और हम नहीं बदलेंगे हमारे बारे में असलियत काफी बाद पता चलती है !
@ नीरज जाट,
ReplyDeleteअरे यार वाकई भूल गया नीरज ! घुमक्कड़ी के रहते सबसे अधिक बसों में कंडक्टर को तुम्ही धमकाते हो !
" स्टाफ हैं " :-)
व्यंग्य के माध्यम से जागरूक करती पोस्ट्।
ReplyDeleteसक्सेना जी, काहे सुबह सुबह दिल्ली वालों को मिर्च लगा रहे हैं.......
ReplyDeleteबहुत बढिया व्यंग...
काहे को और नुस्खे सिखा रहे हो। ये तो सारे ही सभी को आते हैं। हा हा हाहा।
ReplyDeleteसतीषजी, आपके द्वारा दर्शाई सभी देशी आदतें हमारी भारतीय संस्कृति का अनिवार्य अंग ही तो हैं, दूसरे प्रभावित लोगों को इनसे जो शूल चुभने जैसी पीडा होती है तो हुआ करे, आपने तो अपनी ओर से दूसरों को होने वाली चुभन का प्रतिनिधित्व करते केक्टस को भी साथ में दर्शा ही दिया है ।
ReplyDeleteऔर हाँ उपर के पहेलीनुमा चित्र में आपने लाल शर्ट में अविनाशजी को तो बता दिया लेकिन श्रद्धेय गुरुजी श्री समीरजी भी तो यहीं दिख रहे हैं ।
सतीश जी व्यंग के लहजे में बहुत ही अर्थ पूर्ण बात कह गयें आप. मानना पड़ेगा आपकी इस दी गयी सीख को.
ReplyDeleteउपेन्द्र
सृजन - शिखर पर ( राजीव दीक्षित जी का जाना )
बिलकुल सही
ReplyDeleteचलिये, बहुत कुछ और पता लग गया अपने बारे में।
ReplyDeletelaajawaab vyangya likha hai
ReplyDeleteव्यंग के माध्यम से जागरूक करती बातें
ReplyDeleteआपात स्थिति में, रास्ते से हटने के लिए सायरन बजाती एम्बुलेंस , के आगे अपनी गाडी को रखें और चलते जाएँ ! रास्ता साफ़ मिलता है ! एम्बुलेंस में, जीवन से जद्दोजहद करते व्यक्ति से हमारा कोई रिश्ता नहीं
यह तो बहुत दुःख देती है..
व्यंग्य शानदार है ...बाकी वैसे सब सही ही है ...व्यंग्य कहाँ है ..!
ReplyDeleteव्यंग्य व्यंग्य में राह सीधी दर्शा दी?
ReplyDeleteसार्थक
मर्द बेचारे बीवीयों के डर से अपने ही घर में खुलकर यहाँ वहाँ थूक भी नहीं पाते , इसीलिए वे घर की सारी घुटन बाहर निकालते हैं ।
ReplyDelete@ अमित जी की नज़्र करता हूँ-
रहता है जिसके दिल में प्यार सदा
वह करता है जग पर उपकार सदा
किरदार आला, ज़ुबाँ शीरीं है अमित तेरी
होता है जग में, ऐसे बंदों का उद्धार सदा
............
वाह सतीश जी पहले एक प्रेमकवि अब एक व्यंग्यकार धीरे धीरे आपके अलग अलग रूपों से परिचित हो रहा हूँ, आपका नया पाठक हूँ न। अगली फुरसत में ही आपकी पुरानी पोस्टोँ को खँगालूंगा।
ReplyDeleteसोमेश
कभी हमारे शब्द साधना में भी आइए।
ये शिक्षा तो ताऊ की बपौती है आपने कैसे और किसकी आज्ञा से दी? आपका चालान काटा जायेगा.:)
ReplyDeleteरामराम
सतीश जी ज्ञानवर्धक पोस्ट . ज्ञान बढ़ा की क्या क्या होता है दिल्ली मैं, अजी वही होता है जो मुंबई मैं भी होता है. फिर रोकेगा कौन ऐसी हरकतों से?
ReplyDeleteबढ़िया व्यंग्य है..पर दुखद सच भी....लोगों की ये सारी कारगुजारियां तो नज़र आती ही रहती हैं.
ReplyDeleteटिप्पणियां पढ़ कर दुःख हुआ..अधिकतर लोगों ने लिखा है हम नहीं सुधरेंगे...
ReplyDeleteबहुत ऐसे भी हैं जो इसे व्यंग्य समझ रहे हैं, क्या ये विचारणीय विषय नहीं मात्र एक व्यंग्य है ????
या फिर शायद मैं ही कुछ ज्यादा सेंटी हो गया हूँ....
मेरा तो मानना है कि..
हम बदलेंगे, देश बदलेगा...
आपको क्या लगता है कि हम बिगड़े हुए हैं ????
मुझे ऐसा नहीं लगता, क्यूंकि वही लोग जो यहाँ कचरा फैलाते हैं उन्ही को अगर विदेशों की साफ़ सुथरी गलियों में भेज दिया जाये तो वहां वे वैसा नहीं करते....
मामला कुछ और है, क्या है पता नहीं...
अरे साहब आजाद देश में रहने का यही तो मजा है और देखो लोग क्या क्या बातें बना रहे हैं. लाहौल विला कुवत...
ReplyDeleteकुछ साल पहले जब हम जॉब में थे... ऑफिस के बाहर लगी फुलवारी में गुटखा खाने वाले लोग थूकते रहते थे... जीएम बहुत परेशान थे...हज़ार नोटिस नोटिस लगाए, मगर कोई फ़ायदा नहीं हुआ...हमने सलाह दी कि गुलाबों के पास कुछ तुलसी के गमले रखवा दें...ऐसा किया भी गया...लेकिन अफ़सोस लोगों ने तुलसी के साथ भी वही सब किया...
ReplyDeleteहमारे अब्बू बहुत नियम पर चलने वाले हैं... नियमों का ख़ुद तो पालन करते हैं, बल्कि दूसरों से भी कराते हैं...
हमारी किसी भी आदत से दूसरों को परेशानी नहीं होनी चाहिए...
हर चीज़ के लिए हम सरकार को ज़िम्मेदार नहीं ठहरा सकते... अपने आसपास हर जगह सफाई रखना हमारी भी ज़िम्मेदारी में शामिल है... हर इंसान इस बात को समझ ले तो बहुत सी समस्याएं ख़ुद ही हल हो जाएं...
ReplyDeleteहमें अपने गरेबान में झाँकने को विवश कर दिया भाई आपने !
ReplyDeleteसूक्षम तस्वीर शानदार है । बाकि तो सब सच्चाई है ।
ReplyDelete@ डॉ अनवर जमाल ,
ReplyDeleteअमित शर्मा के बारे में आपके ख़याल पसंद आये ...वह इस योग्य हैं !
@ ताऊ रामपुरिया ,
ताऊ तुमसे ही तो पूछा था ...उस समय क्या नींद में था ??
@ फिरदौस खान ,
अफ़सोसहै, किसी को थूकते देख, राह चलते लोग टोकने की हिम्मत भी नहीं करते ! बुरी बात का विरोध न होने से आने वाली पीढ़ी पर बहुत खराब असर पड़ेगा ! बुराई का विरोध अवश्य होना चाहिए अथवा समाज के अस्तित्व की आवश्यकता ही क्या है !
हमारे सिविक सेन्स पर करारा कटाक्ष ......
ReplyDeleteये सभी नुस्खे तो एक आम हिन्दुस्तानी जन्म से सीखकर आता है :)
ReplyDelete.
ReplyDelete.
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जैसे रूल आपने बताये वैसे ही करेंगे सर जी...
आजादी है किसके लिये ?
...
सुंदर, प्रेरक पोस्ट।
ReplyDeleteसतीश भाई,
ReplyDeleteअब मुआ खंभा सामने आ जाए तो कमबख्त टांग तो उठेगी ही...अब इसमें टांग बेचारी का क्या कसूर..खंभा ही सारे फसाद की जड़ है...
जय हिंद...
सत्य वचन ..
ReplyDeleteसुन्दर सीख !
ReplyDeleteसुपर व्यंग्य; बेहतरीन प्रस्तुति ,बधाई !
ReplyDeleteट्रैफिक रूल्स पर करार व्यंग अच्छा लगा,सतीश जी.
ReplyDeleteदेसी पुराण पर खुशदीप और आप मिल कर एक पुस्तक छपवा लीजिये। खूब बिकेगी। बधाई।
ReplyDeleteवाह... बढ़िया व्यंग हैं...
ReplyDeleteवो पंक्तियाँ याद आ गईं...
एक उल्लू ही काफी है बर्बाद गुलिस्तान करने को... हर दाल पे उल्लू बैठा है, अंजाम-ए गुलिस्तान क्या होगा...
पर सतीश जी... जो लोग ये व्यंग पढ़कर भी न सुधरें???
हाँ, ढीठ बनने का अपना अलग मज़ा है... उसमें भी कोई टैक्स नहीं लगता...