पहले दिन - यार यह मुझे सतीश सक्सेना बहुत अच्छा लगता है, उसके लेख पढ़े ?
दुसरे दिन - मज़ा आ गया बहुत ईमानदार व्यक्ति है ऐसे लोग कम ही हैं ...?
तीसरे दिन - इनको गुरु बनाने का दिल कर रहा है
चौथे दिन - अजीब बात है कैसे कैसे लोगों की तारीफें कर देते हैं गुरुदेव ! यह उस आदमी की तारीफ कर रहे हैं जो किसी लायक नहीं !
पांचवे दिन -( यह लेख तो बिलकुल बकवास लिखा है यह तो @*&%^# की भक्ति कर रहे हैं बहुत निराशा हुई इनके विचार जानकर !छटे दिन - यार आज मुझे गुरु पर बहुत गुस्सा आया इसका कमेन्ट देखकर ...मैं इसकी इतनी इज्ज़त करता हूँ और यह ऐसे घटिया लोगों को इज्ज़त दे रहा है !
सातवें दिन - इसका लेख पढ़ा ? वाइन के शौक़ीन है
आठवे दिन : अपने बराबर उम्र की महिला को माँ कह रहा है ...यह क्या बकवास है !
नौवें दिन : अच्छा है इसकी असलियत दिख गयी आगे से इससे दूरी बना लो !
और सतीश सक्सेना को वह समझदार ब्लागर दोस्त पहचान गया .......
दुसरे दिन - मज़ा आ गया बहुत ईमानदार व्यक्ति है ऐसे लोग कम ही हैं ...?
तीसरे दिन - इनको गुरु बनाने का दिल कर रहा है
चौथे दिन - अजीब बात है कैसे कैसे लोगों की तारीफें कर देते हैं गुरुदेव ! यह उस आदमी की तारीफ कर रहे हैं जो किसी लायक नहीं !
पांचवे दिन -( यह लेख तो बिलकुल बकवास लिखा है यह तो @*&%^# की भक्ति कर रहे हैं बहुत निराशा हुई इनके विचार जानकर !छटे दिन - यार आज मुझे गुरु पर बहुत गुस्सा आया इसका कमेन्ट देखकर ...मैं इसकी इतनी इज्ज़त करता हूँ और यह ऐसे घटिया लोगों को इज्ज़त दे रहा है !
सातवें दिन - इसका लेख पढ़ा ? वाइन के शौक़ीन है
आठवे दिन : अपने बराबर उम्र की महिला को माँ कह रहा है ...यह क्या बकवास है !
नौवें दिन : अच्छा है इसकी असलियत दिख गयी आगे से इससे दूरी बना लो !
और सतीश सक्सेना को वह समझदार ब्लागर दोस्त पहचान गया .......
gagar me sagar
ReplyDeletekoun koun kitne paani mein sabki hai pehchaan ...
ReplyDeleteपरख अपनी अपनी ....नज़र अपनी अपनी ...
ReplyDeleteआज कल दोस्ती मैगी नूडल्स हो रही है ...
सच बताउं सतीश सक्सेना जी बिलकुल भी ऐसे नहीं हैं ...यह तो देखने पर निर्भर करता है की वो किसको किस निगाह से देखता है ...है अक्सर फिर भी ऐसा होता है ....विचारणीय बिंदु हैं सब ...शुक्रिया
ReplyDeleteसतीश जी असल में यहाँ सब अपनी वाह वाही ही सुनने आते हैं यदि किसी को भी उसकी गलती इंगित कर दो तो वह आपा खो देता है। इसलिए ही ऐसे होता है। असल में टिप्पणी का अर्थ हो गया है कि उनके विचार की या पोस्ट का समर्थन करो केवल। भिन्न विचार हुए नहीं कि आप बुरे हो जाते हैं।
ReplyDeleteऐसा अनुभव मुझे भी कई बार हुआ है..कब किसके विचार किसके बारे मैं बदल जाएँ और क्यों बदल जाएं ,इस ब्लॉग जगत मैं पता नहीं रहता..
ReplyDelete.
जल्द ही एक ब्लॉग पोस्ट की तैयारी कर रहा हूँ..ब्लॉगजगत मैं टिकाऊ रिश्तों की तलाश मैं .....
ha ha ha ha ...
ReplyDeleteregards
मेरी अपनी मान्यता -सज्जन को सब सज्जन लगते हैं और दुष्ट और दुर्जन को हर सामने का आदमी काईयाँ !
ReplyDeleteबचो गुरु सतीश !
अजी मारो गोली बकवासियों की बुडबकताई को..................... एक-एक स्पष्टीकरण में आप मत खो जाईयेगा.....................अब आप दिल्ली के करीब या कहिये दिल्ली में रहतें है तो दिलों में तो रहेंगे ही :) अब कोई के दिल में सम्मान से विराजेंगे तो किसी के दिल में उसके दिल के हिसाब से ;).........आप तो फोटू-फाटू खेंचकर दिल्ली की कोई जानकारी बताओ................ताज़ा दिल्ली की ताज़ा खबर या पुरानी दिल्ली की पुरानी यादें
ReplyDeleteझुण्ड बना रखे हैं लोगों ने। वे दूसरों से भी चाहते हैं कि वो हमारे झुण्ड में रहे। उनके झुण्ड में नहीं गया या हर झुण्ड से उदासीन रहा तो इसकी असलियत खुल गयी।
ReplyDeleteआप उनके करीब है ,कम से कम भौगोलिक रूप से तो जरुर ..कभी समझाईये इतना न हंसा करे ..
ReplyDeleteकुछ कुछ होने लगता है !
हा हा हा :)
ReplyDeleteकमेंट व्यक्ति पर नहीं, लेख पर होना चाहिए। लेख कभी अच्छा, कभी खराब लग सकता है।
ReplyDeleteएक ब्लॉगर तो बुद्धिजीवी वर्ग से होता है .. प्रतिक्रिया समझदारी से दी जानी चाहिए!!
ReplyDeleteहा हा हा...
ReplyDeleteअक्सर ऐसा होता है। पहली बार किसी के बारे में जो विचार बनते हैं वो बाद में बदल जाते हैं। अभी उनके विचार और बदलेंगे। फिर उन्हे लगेगा के सबसे पहले ही सही समझा था।
सोमेश
डॉक्टर की दुकान में ग्राहकों की भीड़
bastavik samaj ka hissa hi ye samaj
ReplyDelete(blogwood) bhi hai ......
shayad aapke 'mitra'ko abhi ta khud
ko pachanne me safalta nahi mila...
so sahaj hi o apko pahchanne me asafal rahe......
itne niyamit hone ke bawjood aapke
dost ko pahchan nahi paya.....
pranam....
जाकि रही भावना जैसी
ReplyDeleteप्रभु मूरत देखहिं तिन तैसी
... सर जी! ब्लोगजगत नये जमाने की पाठशाला है, एक मायने में हम सब कभी शिष्य़ हैं तो कभी गुरू..कभी स्वंम के सन्दर्भ में तो कभी दूसरे की समझ में!
सभी फ़ोटो एक्दम धासूं हैं,आप की जीवंतता छलक छलक जा रही है।
सतीश जी,
ReplyDeleteअहा!! बहुत ही शोधपूर्ण अभिव्यक्ति दी।
दसवाँ दिन: (चित्र देखकर)यह ब्लॉगर चाय के प्याले से मधुमस्ती छलका रहा है। शराब की दुकान में आबकारी अधिकारी सा नजर आ रहा है। :))
और ग्यारहवें दिन... कौन सतीश सक्सेना ?
ReplyDelete@लगता है बंदे दे देख लिया होगा .......
ReplyDeleteबाबा जैसे ब्लोगर को भी इज्ज़त देते हो.
@ इसका लेख पढ़ा ? वाइन के शौक़ीन है
अरे कभी बाबा को बुलाया नहीं..... अकेले अकेले गुरु .. अटल जी के शब्दों में "ये अच्छी बात नहीं."
सतीश जी ,
ReplyDeleteबाप रे , कैसी धमकी दे कर आये हैं चर्चा मंच पर :):)
शायद दस दिन बाद की मुलाक़ात है ....हा हा
चर्चा मंच पर आने के लिए शुक्रिया
हमने तो पहले दिन से पहचान लिया था आपको। खाँटी हैं आप, इसलिये अच्छे लगते हैं।
ReplyDeleteहा हा हा ..कुछ ज्यादा ही सच कह दिया :) संगीता जी की बात से सहमत "दोस्ती मग्गी नूडल्स हो गई है"
ReplyDeleteएक पॉड्कास्ट बनाने का मन है ---सोच रही हूँ पोस्ट पर बनाउँ या टिप्पणियों पर...हा हा हा..
ReplyDeleteलगता है "चियर्स अप" पर मुन्ना भाई की स्टाइल में शोध करना पडेगा.... हा हा हा
ReplyDeleteअजी जेसे भी हे हमे क्या,कोई हमारे दिल से तो निकाल कर दिखाये, हमे तो बिलकुल अपने जेसे लगे, मस्त रहो बाबा ओर फ़ोटू खुब खींचो, अगली बार मिलेगे तो दो चार पेग भी लेगे मिल बेठ कर, कुछ तो लोग कहेगे.... लोगो का काम हे कहना....
ReplyDeleteकुछ चुभा तो है आपको, और हम इतने बड़े नहीं या नजदीक नहीं कि पूछ सकें।
ReplyDeleteअपनी संवेदनशीलता, भावुकता, ईमानदारी आदि-आदि अगर बनाये रखना है, बचाये रखना है, तो ये सब झेलना ही होगा।
@ बहन अजित गुप्ता जी से सहमत !
ReplyDeleteमेरा तजर्बा भी यही है कि अगर ब्लाग लेखक की किसी बेजा बात की मुख़ालिफ़त कर दी जाए तो फिर वह उस प्रेम और प्रशंसा को भी भुला देता है जो कि उसकी ग़लती की मुख़ालिफ़त करने वाला 7 पोस्टस में पहले दे चुका है या अपने कमेंट्स में हमेशा देता है।
परमानेंट सी नाराज़गी पाल ली जाती है ।
2, कमेँट देने वाले की अच्छी आफत है ।
मुख़ालिफ़त करे तो ब्लागर नाराज़ ।
और अगर तारीफ़ करे तो दूसरे ब्लागर्स उसे 'भांड' की उपाधि देते हैं ।
वाक़ई बड़ी आफ़त है ।
@ आली मर्तबत जनाब सतीश साहब ! आपके लेख से मुझे अपने अहसास ताज़ा करा दिये ।
सच यही है कि आदमी बस अपने दर्द को पहचानता है , उस दर्द को नहीं जो कि जाने अन्जाने वह दूसरों को देता है ।
ऐसे लोगों के लिए इस ग़ज़ल में एक अच्छा पैग़ाम है -
अपना ग़म भूल गए तेरी जफ़ा भूल गए
हम तो हर बात मुहब्बत के सिवा भूल गए
हम अकेले ही नहीं प्यार के दीवाने सनम
आप भी नज़रें झुकाने की अदा भूल गए
अब तो सोचा है दामन ही तेरा थामेंगे
हाथ जब हमने उठाए हैं दुआ भूल गए
शुक्र समझो या इसे अपनी शिकायत समझो
तुमने वो दर्द दिया है कि दवा भूल गए
फ़ारूख़ क़ैसर की एक ग़ज़ल , जो दिल को छूते हुए आत्मा में जा समाती है ।
सीमा गुप्ता जी से सहमत....
ReplyDeleteफ़ोटू मस्त है........सक्सेना जी
ReplyDeleteसतीश भी , आदमी खुद को तो कभी पहचान नहीं पाया । फिर दूसरों को कैसे पैमाने पर तोल सकता है ।
ReplyDeleteव्यक्तिगत मांप दंडों से बचे रहना ही बेहतर है ।
सतीश जी प्रणाम,
ReplyDeleteअनवर ज़माल जी ने पैरा १ और २ में जो कहा है उससे सहमत हूँ. साथ ही ये जोड़ना चाहता हूँ कि हमें सच्चाई से अपने दिल कि बात सामने रखनी चाहिए और कभी भी जो हम कह रहे हैं उसी को अंतिम सत्य मानकर व्यवहार नहीं करना चाहिए. हो सकता है कि जो बात हमने सोची भी ना हो वो कोई दूसरा कह दे और वही सत्य हो. तो अगर हम खुला दिमाग और बड़ा दिल रखकर अपनी बात कहेंगे और विरोधी स्वरों के लिए भी मन में जगह रखेंगे तो हमें कभी भी किसी भी बात का बुरा नहीं लगेगा. मैं तो हमेशा वही कहता हूँ जैसा मुझे लगता है. अगर मेरे मित्र से मेरे विचार भिन्न हैं तो भी मैं उन्हें प्रकट कर ही देता हूँ और ऐसा ही हक अपने मित्रों को भी देता हूँ....जी हाँ सच कह रहा हूँ......
लगता है मिश्र जी की चाय का असर है, हमसे बिना पूछे अकेले अकेले पियेंगे तो यही होगा.:) भुगतिये अब.
ReplyDeleteरामराम.
@ अजित गुप्ता ,
ReplyDeleteसहमत हूँ आपसे ..हमें स्वस्थ विरोध सहन करना सीखना होगा !
@ डॉ अरविन्द मिश्र ,
@ "मेरी अपनी मान्यता -सज्जन को सब सज्जन लगते हैं और दुष्ट और दुर्जन को हर सामने का आदमी काईयाँ !"
यही यहाँ अक्सर महसूस होता है अगर आप किसी लेख को शक के साथ ही पढना शुरू करते हैं तो इससे अच्छा है की वह लेख ही न पढ़ें तभी अच्छा होगा बंद दिमाग लेकर आप किसी से न्याय नहीं कर सकते न खुद से और न लेखक से !
@ संजय झा,
ReplyDeleteआपका परिचय नहीं मालूम यार ....कृपया बताएं ताकि दोस्तों की जानकारी रहे !
@ संवेदना के स्वर ,
धन्यवाद , आप दोनों यारों का नया फोटो पसंद आया ! सलिल भाई का फोटो भी बदलवाओ यार प्लीज़ :-))
अभी तो आगे आगे देखिये होता है क्या ? बेहतर है अपने कान और आँख बंद कर लो :):):)
ReplyDelete@ सुज्ञ ,
ReplyDeleteहां...हा....हा....हा.....
यह आबकारी अधिकारी हा...हा...हा...पहले पता होता तो यह फोटो नहीं लगाता !
@ राजेश भाई ,
आपको भी डाल सकता हूँ,
बड़ी देर की मेहरबान आते आते
;-)
@ दीपक बाबा,
परवाह नहीं करते बाबा अब तुम्हारी संगत में फायदा तो है ...
यह तो फोटू खिचाया था कुछ खास लोगों को इम्प्रेस करने को ..
@ संगीता स्वरुप ,
ReplyDeleteसो मैम !
मैं कामयाब होगया अपने मकसद में ...हा..हा..हा...हा...
जिसकी टिप्पणी देखनी थी,अभी तक उसकी टिप्पणी नहीं आयी है , मै फिर लौट कर आता हूँ |
ReplyDelete@ नीरज जाट ,
ReplyDeleteसही पकड़ा चौधरी ...यही समस्या है यहाँ !
@ सोमेश ,
हा...हा...हा...हा...
तुम समझदार रहे ! गुरु चीज हो तुम्हे गुरुओं में शामिल किया जाता है !
@ अभि,
हा...हा...हा...हा...थैंक्स यार !
@ प्रवीण भाई ,
आभार आपका...
@ शिखा मैम,
ReplyDeleteसही पहचाना ! अब ...??
:-))
@ अर्चना मैम,
यह नया प्रयोग करने जा रहीं हैं फिर आपके दरवाजे पर लाइन लगना शुरू...आप पहले से ही VVIP श्रेणी में आ चुकीं हैं सावधान !
:-)
@ महेंद्र भाई ,
आपने भी अपना आइटम ढून्ढ लिया, भाभी जी का ध्यान रहे ! शुभकामनायें !
@ राज भाई ,
अब जब आओ तब ध्यान रखियेगा ...
मज़ा आ गया सतीश भाई.... यही है कुछ लोगों का चरित्र..गागर में सागर भर दिया. कम शब्दों मे कितने ही चरित्र बेनकाब हो गए. बधाई. दिल्ली आया तो अब मिल कर ही जाऊँगा... वो मुलाकात अब तक ज़ेहन मे है.
ReplyDelete
ReplyDelete@ मो सम कौन ,
नहीं संजय ,
कुछ चुभने वाली बात नहीं , यह लेख बहुत पुराना है, आज कुछ लिखने को नहीं था सो यह डाल दिया बाद में घबराया हुआ भी हूँ !
मैंने अपने एक प्यारे( बहुत प्यारा ) के प्रति गुस्से में लिखा था ! सोचता हूँ दुनियां में मैं ही सबसे अच्छे दिल वाला हूँ ( बुड्ढा साला )
मैं बहुत प्यार करता हूँ , यह लगने के चक्कर में अपनों को, कई बार कड़वा बोलता हूँ या उनसे बोलना कम कर देता हूँ, यकीनन मेरा यह अपराध मुझसे अधिक मेरे अपने को दुःख देता है !
अपनों को कष्ट देने की इस मानसिक बीमारी से अपने आपको बड़ा सुख मिलता है !
क्या किया जाए ?
बताओ यार ???
:-))
ReplyDelete@भाई डॉ अनवर जमाल ,
गुरु, आप भी आ गए गद्दी छोड़ इस मजाकिया पोस्ट पर :-) गंभीर लोगों के आने से सारा ज्ञान गड़बड़ा जाता है ...अब क्या करें ??
खैर आपका पहला पैरा :
यह शिकायत आपकी यकीनन मेरे खिलाफ है, सर माथे पर हुज़ूर ! मगर सवाल " बेजा बात " का ही है ...
इसे दोनों नज़रिए से देखी जाए उस्ताद नहीं तो आप अपने दोस्त के प्रति अन्यायी माने जायेंगे...
एक बात और ...
जब दो "तथाकथित" मित्रों के बीच नाराजी हो जाए तो वज़न अधिक प्यार करने वाले को दिया जाता है शक करने वाला उसके सामने कहीं नहीं खड़ा हो सकता , यह ध्यान रखियेगा !
उम्मीद है नीतिज्ञ होने के नाते आप का दिल इसे अवश्य स्वीकारेगा ! राजनीतिज्ञ के नाते स्वीकार करेगा इसमें मुझे संदेह है !
आपके बाकी पैरा साधारण हैं जिसके जवाब में कुछ कहना नहीं बनता है !
आपके प्रति कहीं न कहीं गहरी शिकायत के बावजूद आदर अब भी है
सो सादर..
ReplyDelete@ विचार शून्य ,
आप अनवर जमाल से सहमत हैं जानकर वाकई अच्छा लगा आपको मैं गंभीर गुरु की श्रेणी में रखता हूँ ...
अनवर भाई की बात के कई अर्थ होते हैं ...उन्हें समझाना आसान नहीं ....सो आम उदाहरणों में उन्हें प्रयोग न करें तो ठीक रहेगा !
मगर मुझे भी आपसे शिकायत है कि आप शक बहुत करते हैं जो एक संवेदनशील के लिए शोभा नहीं देता ...बुरा न माने मैंने आपको काफी पढ़ा है और मुझे बहुत पसंद हैं आप ...
जिन लोगों से सीखता हूँ उनमे एक आप भी हैं
...
@ ताऊ ,
ReplyDeleteयार तुम जिस दिन मिलोगे उस दिन जो कहोगे पिला दूंगा ....आओ तो सही !
@ नरेश सिंह राठौर,
मैं आपकी बात समझा नहीं नरेश भाई ??
andaaje bayaan blogger ki, per kalam aapki ...
ReplyDeleteaur uska andaaj hamesha hi khaas
@सतीश भाई,
ReplyDelete24 अक्टूबर 2009 को एक पोस्ट लिखी थी-
http://deshnama.blogspot.com/2009/10/blog-post_8421.html
उसी का सार-
जहां एक ब्लॉगर मौजूद... आवाज़ देकर हमें तुम बुलाओ
जहां दो बलॉगर मौजूद... ब्लॉगर मीट
जहां तीन ब्लॉगर मौजूद... रौला-रप्पा
जहां चार ब्लॉगर मौजूद... तेरी ये...तेरी वो...तेरा फलाना...तेरा ढिमकाना...
जहां चार से ज़्यादा ब्लॉगर मौजूद... शांति...बीच-बीच में कराहने की आवाज़ें...एंबुलेस में सारे ढोए जा रहे हैं...
जय हिंद...
सतीश जी कौन क्या सोचता है यह आप मत सोचिये। आप तो बस अपनी सच्चाई बनाए रखिए। रही बात दूसरों के सोच की तो यह उनकी परेशानी है आपकी नहीं।
ReplyDelete.
ReplyDelete.
.
आदरणीय सतीश सक्सेना जी,
अब आप अगर इतनी 'उलाहनात्मक' पोस्ट लिखेंगे तो मुझ जैसे तो टिपियाते भी घबरायेंगे... आखिर न हम हम नीतिज्ञ हैं न राजनीतिज्ञ... 'लोकाचार से अनभिज्ञ' हूँ मैं... अत: भूल चूक माफ करियेगा... :)
...
एक अर्ज मेरी भी...
ReplyDeleteचाय का कप और दारु की बोतल दोनों एक साथ-
उसमें भी चाय के साथ झूम रहे हैं और बाटल के साथ पूरी गम्भीरता दिखा रहे हैं आप ?
तो गलतफहमियां तो स्वाभाविक तौर पर हो ही सकती है.
थैले पर हमारे नजरें टिकाईं आपने
ReplyDeleteऔर उसको बचाने के लिए थैलियां
कई गवानी पड़ीं
हम तो जांच नहीं बिठायेंगे
कोई पहचाने, मत पहचाने
माने या न माने
हम तो अपने साथ
सतीश भाई को ही बैठायेंगे
बैठाने से पहले
गले उनके पड़ जायेंगे।
क्योंकि
अविनाश मूर्ख है
सतीषभाई,
ReplyDeleteईमानदार सच तो ये है कि आपके लेख पर टिप्पणी करने में भी मुझे डर लगने लगा है कि क्या पता कब मेरी कौनसी बेलाग बात आपको बुरी लग जावे ? आखिर हरफनमौला ही तो हूँ । फिर भी मजाक की बात को मजाक में ही स्वीकारने के लिये आपको धन्यवाद.
सुशील भाई !
ReplyDeleteअब इतना बेकार आदमी भी नहीं हूँ मैं :-)
बड़े महान लोग हैं। नौ दिन में भी सतीश सक्सेना की असलियत न पहचान पाये। सब इधर-उधर की बातें करते रहे। :)
ReplyDeleteवैसे यह शेर पढ़ा जाये स्व.वली असी जी का:
तकल्लुफ़ से, तसन्नों से, अदाकारी से मिलते हैं,
हम अपने आप से भी बड़ी तैयारी से मिलते हैं।
इधर हालिया २४-३६ घंटे का तो कोई सवालिया अनुभव नहीं हुआ :) , नहीं तो जो अंधे शुद्धतावादी ( जिनकी अंतिम खोल मजहबी होती है ) हैं वे खामखा का राग-अलाप जारी हो :) ! बहरहाल ... इसी से जुड़ी बात है , जो आपके पोस्ट से भी जुड़ती है , और वह है की कौन क्या कहता है यह कभी प्राथमिक न ही हो , क्योंकि सबके निष्कर्ष आग्रहों-दुराग्रहों के अपने कयास भर होते हैं . इसलिए अपने विवेक के उजाले में स्वयं को देखा जाय यही उत्तम है . 'अप्पो द्वीपो भव' ! आभार !
ReplyDeleteमैंने तो पोस्ट के निचले सिरे से ऊपर की ओर गया!
ReplyDelete(आगे कुछ कहने की ज़रूरत ही नहीं)
फोटो के साथ मस्त बातें। सच में, पल-पल में बदल जाते हैं नजरिए।
ReplyDeleteसबसे पहले शुक्रिया कि आप हमारे मंच पर आये.
ReplyDeleteआप के लिखने का अंदाज़ बहुत ही निराला है अपने ही बारे में कोई ऐसे लिखता है भला??:)
..यह शेर बहुत बढ़िया लगा ..साथ लिये जा रहे हैं -
तकल्लुफ़ से, तसन्नों से, अदाकारी से मिलते हैं,
हम अपने आप से भी बड़ी तैयारी से मिलते हैं।
वाह! अनूप जी का भी जवाब नहीं!शेर का वज़न इस मौके पर चार गुना बढ़ गया.
ऐसा तभी होता है जब हम लेख की जगह लेखक पर प्रतिक्रिया दे .
ReplyDeleteअब जब शुरुआत ही नासमझी से हो तो अंत तो ऐसा ही होगा न ,
पल-पल बदलते इस संसार में किसी व्यक्ति के जिस स्वरूप का ज्ञान हमें इस समय हो रहा है, वह सही है,जो पहले था वो गलत है, यह कहने का दुस्साहस करना ही अपने आप में निरी अबौद्धिकता का द्योतक है.
ReplyDeleteवैसे दूसरी तरफ यह बात भी विचारने की है, कि यहाँ जो कहा जाता है वो सच होता है या फिर लोगों को निरा सच ही दिखता है, इसलिए झट से सच कह डालते है :)
This comment has been removed by a blog administrator.
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ReplyDelete... लेकिन तरीक़ा हमारा ही चलेगा, चाहें हमारी भाभी हुज़ूर से फ़ैसला करा लीजिए
ReplyDelete@ गिरामी क़द्र जनाब सतीश साहब !
आपने पोस्ट को मजाक़िया और मुझे गंभीर बता दिया :) :)
नीतिज्ञ और राजनीतिज्ञ की दो हैसियतें भी आपने मेरे लिए तसलीम तो कीं लेकिन यह शुब्हा भी ज़ाहिर किया कि राजनीतिज्ञ तो शायद वह बात न माने जो कि आप कह रहे हैं ।
अब जबकि बक़ौल आपके पोस्ट मज़ाक़िया है तो लीजिए संभालिए मज़ाक़िया कमेंट :-)
Question : अगर नीति जानने वाला कोई गंभीर राजनेता किसी मजाक़िया पोस्ट पर ज़्यादा प्यार करने वाले की नसीहत भरी बड़ी टिप्पणी को एक वाक्य में कहना चाहे तो वह वाक्य क्या होगा ?
Answer: 'जल में रहकर मगर से बैर नहीं किया जाता'
:) :)
2- आप जो कहेंगे उससे तो राजनीतिज्ञ पहले सहमत होगा , नीतिज्ञ बाद में ।
3- मैं जिससे प्यार करता हूं उसमें कोई कमी रह जाए , यह मैं गवारा नहीं करता । मैं बता देता हूं । हां , बताने की तर्ज़ में मेरी तरफ़ से ज़्यादती मुमकिन है ।
4- मैं नाराज़ होते हुए भी अपनी प्यारी पर्सनैलिटी से प्यार जता सकता हूं , उसे मैं उस (जायज़) चीज़ का तोहफ़ा दे सकता हूं जो कि उसे पसंद हो ।
Flash back (12 पहले का सीन है )
शादी के शुरूआती महीनों में जब हम दोनों मियां बीवी आपस में लड़ा करते थे तो मैं अपनी ख़ानम के लिए काले रसगुल्ले लाया करता था जो कि उन्हें पसंद हैं और हंसते-बतियाते उन्हें अपने हाथ से खिलाया करता था ।
वह हैरत से पूछती थीं कि यह क्या तरीक़ा है नाराज़गी ज़ाहिर करने का ?
मैं कहता था कि 'घिसे-पिटे तरीक़े से क्या लड़ना ?
ऐसे तरीक़े से लड़ना चाहिए कि जिस तरीक़े से दुनिया में कोई न लड़ा हो ।'
खा पीकर फिर मैं 'गाने' का रियाज़ भी कर लेता था ।
वह पूछती थीं कि आपकी नाराज़गी तो कहीं से दिखी नहीं ?
मैं कहता था - 'आपसे नाराज़गी मेरे दिल में है । आपको मैंने इन्फ़ॉर्म कर दिया है । बस इतना काफ़ी है । मैं आप पर रौब ग़ालिब करने के चक्कर में ख़ामख़्वाह अपना मुंह फुलाकर उसका थोबड़ा क्यों बनाऊं ?'
वह पूछती थीं कि फिर आपकी नाराज़गी दूर होने का कैसे पता चलेगा ?
मेरा जवाब देता था कि मैं आपको ख़ुद इन्फ़ॉर्म कर दूंगा बस या आप पूछ लेना ।
तो हुज़ूर आपकी शिकायतें दुरूस्त , आप दुरूस्त और हम ग़लत , मानते हैं लेकिन भाई हमसे नाराज़ ज़रा नए अंदाज़ में तो होओ ।
शिकायतें और नाराज़गी
हुक्म और हुकूमत
सब आपकी चलेगी
लेकिन तरीका आपका नहीं चलेगा , तरीक़ा हमारा चलेगा ।
अच्छा भाभी हुजूर से पूछ लीजिएगा । अगर वे मेरे इज़्हारे नाराज़गी के तरीक़े को ग़लत बता दें तो फिर तरीक़ा भी आपका ही चलेगा ।
आदरणीय भाई साहब ! कमेंट पब्लिश किया तो हर बार Error दिखाई ।
ReplyDeleteमैं भी लगा ही रहा ।
30 बार try करके पेज रिफ़्रेश किया तो 3 कमेंट नज़र आए ।
2 को आप बख़ुशी मिटा सकते हैं ।
Good night .
........
ReplyDeleteसतीश जी कमाल है, इसे आप ब्लॉगर (दोस्त) कहते हैं। अक्सर सामने वाले को पहचानने के बाद दोस्ती हवा हो जाती है और जलन वहाँ अपना मजमा जमा लेती है। खू़ब कहा आपने।
ReplyDelete
ReplyDelete@ क्रियेटिव मंच ,
अनूप भाई की कृपा कम होती हैं, नखरों से आते जाते हैं मगर जब आ जाते हैं तब मौज साथ लाते हैं ! आप शौक से इस शेर का उपयोग कर सकते हैं !
आपका कार्य हिंदी ब्लॉगजगत के लिए अच्छा है ...ऐसे कार्य के लिए शुभकामनायें !
@ प. डी के शर्मा वत्स ,
शुक्रिया पंडित जी, दिल्ली ब्लोगर मीट और बाद में ज्योतिष के लेखों से मैं रूचि न होने का दोषी था, और आपको नहीं पहचान सका मगर जब ध्यान से आपको पढने लगा तब महसूस किया कि आप क्या हैं ! ब्लॉग जगत में ध्यान से न पढने की आदत सिर्फ एक बेवकूफी ही तो है जिसमें अक्सर हम सही की गलत और गलत को सही समझते हैं !
:-)
Gurudev,,,,,
ReplyDeletesaara tajurba aaj hi thok diya....
jai ho........
@ डॉ अनवर जमाल,
ReplyDeleteलम्बे और खूबसूरत कमेन्ट के लिए शुक्रिया !
चौधरी बात तो तू सही कहे है मगर परनाला फिर भी यहीं गिरेगा ...( मेरी तरफ से )
:-)
@ शिवम् मिश्रा,
आपका प्यार कुछ अधिक शुरू से ही मिलता रहा है कई बार मैं अपने कपडे देखने लगता हूँ , इतना साफ़ तो नहीं रहता ! :-)
आभार
@ बवाल,
अरे वाह कविवर , बड़े दिन बहार आई ! धन्यवाद
अजीत गुप्ता जी से सहमत
ReplyDeleteool jalool bate aur aapkee itnee tavajju paagayee........
ReplyDeletekuch jyada nahee ho gaya.......
shavdo ke peeche kiskee kya maansikta chipee hai pahchan pana itna aasan bhee nahee jaisa ki zahir hota hai.....par anubhav bhapna to sikha hee dete hai..
:-) :) :-) :)
ReplyDeleteयकीनन पहले पहल आपसे कुछ ज्यादा ही उम्मीदें बांध के दोस्ती कर डाली होगी उन्होंने ! वैसे तो आप वही हैं पर ख्याल उन्होंने बदले ! दिमाग उनका , सोच उनकी ! उन्हें अख्तियार है बदलते रहने का ! आप बस आप बने रहिये !
ReplyDeleteएक सवाल मेरे मन में भी है आपसे इस कदर उम्मीदें उन्होंने बांधी क्यों ? :)
यही है आदमी की असली पहचान। शुभकामनायें।
ReplyDelete