आंसू और पसीना पर , दोनों पानी हैं !
दोनों का ही अर्थ जाहिलों में पानी है !
बेचारी कहते हैं ये सब जग जननी को
युगों युगों से ही सम्मान, यहाँ पानी है !
पुरुष कद्र न कर पायेगा अहम् में अपने
नारी छली गयी सदियों से, बस रानी है !
पिता पुत्र पति नौकर चाकर या राजा हो
पुरुषों की नजरों में, सब पानी पानी है !
इनकी तारीफों का पुल ही बांधे रहिये
नारी इन नज़रों में, बस बच्चे दानी है !
दोनों पानी छिन जाएंगे, तब समझेंगे
अभी तो पानी पर श्रद्धा, पानी पानी है !
बिन पानी जब तड़पेंगे तब कदर करेंगे
बहा न आंसू और पसीना, सब पानी है !
लाजवाब
ReplyDeleteउत्कृष्ट, सदा की भांति; समसामयिक भी, कालजयी भी।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, सार्थक और भावपूर्ण रचना।कितना कुछ कह दिया आपने आदरणीय
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteवाह , कितने व्यापक स्तर पानी के रूप सजाए हैं आपने .
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