Thursday, January 19, 2023

बतलायें, तपोवन कहां लिखूं -सतीश सक्सेना

साधारण जनमानस में गुरु बेहद आवश्यक हैं, लोग अक्सर पूछते दिखते है, यह किसने कहा ? यह कहाँ लिखा है ? किसी सम्मानित से दिखने वाले व्यक्ति में उन्हें गुरु दिखने लगता है, और उनके व्यवहार में विनम्रता तुरंत नज़र आने लगती है !

गुरुओं ने इसे अंगीकार कर लिया, गुरु सत्संग में पहुँचने पर सबसे पहले शिष्य को बिना बोले, सिर्फ़ सुनना अनिवार्य शर्त है , बोलना ही मना है, और पूछना अशिष्टता ! सो गुरु लोग सबसे पहले बेहतरीन सांस्कृतिक सा नाम पहले धारण करते हैं, दाढ़ी आवश्यक है और अगर आचार्य रवींद्र नाथ जैसी हो तो क्या कहने ! बिना कुर्ता , क्लीनशेव व्यक्तित्व को शिष्य कभी गुरु नहीं बनायेंगे ! सो जो साथी ज्ञान देने में माहिर हैं उन्हें चाहिये एक बढ़िया सा नाम, और सौम्य वेशभूषा, कुछ दिन मजमा लगाने के बाद, लच्छे दार लुभावनी भाषा, बढ़ती शिष्य मंडली देखकर अपने आप आ जाएगी !

राजकुमार सिद्धार्थ ने किसी को गुरु नहीं बनाया, उनमें बिना किसी जानवर के भय के बालसुलभ निडरता बचपन से ही थी, वे ख़ुद से ही प्रश्न करते ख़ुद में ही उत्तर की तलाश करते और उन्हें हर बार शरीर और अनुभव सिखाता रहा ! जानवर एक शांत चित्त व्यक्ति अपने पास पाकर खुश थे, उन्हें इस व्यक्ति से कभी ख़तरा महसूस नहीं हुआ सो उन्होंने सिद्धार्थ पर भी कभी आक्रमण नहीं किया बल्कि वे उनसे प्यार करते थे , शायद यही से अहिंसा का जन्म हुआ

उन्होंने महसूस किया कि इंसान को जीवित रहने के लिए शुद्ध हवा में साँस लेना सबसे आवश्यक है , उन्हें दिन में चार पाँच बार प्यास लगती और भूख सिर्फ़ एक बार, खाने में जो फल, मूल, पत्ता, जीभ को कड़वा लगता उसे थूकना पड़ता था उन्होंने उसे हमेशा त्याज्य माना और जो मीठा लगा उसे खाने योग्य !

बिना गुरु ही वे एकाग्रचित्त हो साँसों पर अधिकार कर पेट में कंपन पैदा करना सीख गए जिससे उनका शरीर स्वस्थ रहे , वे ही सर्वोच्च योगी थे जिनका कोई गुरु नहीं था ! सो मेरा ख़ुद का विश्वास है कि हम सब अपने अंदर निहित, आंतरिक गुरु को तलाश करें, जो कि शरीर को पूरे जीवन बेहद शक्ति देने में समर्थ है न कि धन की तलाश में जुटे आडंबरी गुरुओं की तलाश में समय व्यर्थ कर ख़ुद को मूर्ख साबित करें !

प्रणाम आप सबको

8 comments:

  1. बुद्ध के प्रथम गुरु आलार कालाम थे और दूसरे उद्दक रामपुत्र , जिनसे उन्होंने योग की शिक्षा ली। उसके बाद भी वे अनेक योगियों से मिले और अंत में स्वयं ज्ञान प्राप्त किया। आपका यह कहना सही है कि हमें आडंबरी बाबाओं से दूर रहना चाहिए।

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  2. चिन्तनपरक सृजन ।

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  3. आपका कहना सही है

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  4. सही कहा आडम्बरी गुरुओं से तो बिना गुरु ही बेहतर ।
    स्वयं को आत्मसात कर सकें तो गुरु की आवश्यकता न हो ।
    बहुत सुंदर लेख ।

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  5. एकलव्य भी बिना गुरु के ही पारंगत हो गया था धनुर्विद्या में ।।

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  6. प्रत्येक व्यक्ति हेतु बुद्ध का संदेश था - अप्प दीपो भव (अपने दीपक स्वयं बनो)। जब किसी आदर्श गुरू को पाना संभावित न हो तो व्यक्ति अपने मन का ही दीप प्रज्वलित करके प्रकाश का अर्जन करे, यही यथोचित है। मैं आपसे पूर्णतः सहमत हूँ। वैसे जिसे सच्चा गुरू प्राप्त हो जाए, उससे अधिक सौभाग्यशाली कोई नहीं।

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- सतीश सक्सेना

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