मैंने जिन लोगों की मदद करने की कोशिश की , उनमें से बहुत कम हैं जिनको मैंने याद रखा है , लेकिन कुछ को
कभी नहीं भुला पाता क्योंकि उन्हें पहचानने में मैंने गलती की ! मैंने वहाँ धोखा खाया और गलत आदमी की नकली भावनाओं में बहकर, उसपर विश्वास करने की मूर्खता की !
और यह बेवकूफी करते समय मैं परिपक्व उमर का था , समझ नहीं आता कि दोष, मैं अपनी भावुकता और जल्दवाजी को दूं अथवा कुपात्रों की चालबाजी को, जो आसानी से मेरा दिल जीतने में कामयाब हो गए !
ऐसी घटनाओं से यह चालबाज लोग यह नहीं सोचते कि इन घटनाओं के होते, लोगों का किसी की मदद करने से ही भरोसा न उठ जाए ! आपने एक बार धोखा दे कर, अपना मामूली फायदा उठा लिया अगर ऐसा न करते तो शायद किसी बड़ी मुसीबत के समय यह नाचीज़ तुम्हे भयानक मुसीबत से बचाने में कामयाब हो जाता !
एक डर और, इन कुपात्रों के कारण ऐसा न हो कि लोगों का जरूरतमंदों की मदद करने से भरोसा ही उठ जाये !
डॉ अमर ज्योति का एक शेर, एक चेतावनी के तौर पर याद आ रहा है !
" आप बोलें तो फूल झरते हैं
आपका ऐतबार कैसे हो !"
( यह वाकयात मेरे कडवे अहसासों का एक हिस्सा हैं इसका किसी व्यक्तिविशेष से सम्बन्ध नहीं है !)
कभी नहीं भुला पाता क्योंकि उन्हें पहचानने में मैंने गलती की ! मैंने वहाँ धोखा खाया और गलत आदमी की नकली भावनाओं में बहकर, उसपर विश्वास करने की मूर्खता की !
और यह बेवकूफी करते समय मैं परिपक्व उमर का था , समझ नहीं आता कि दोष, मैं अपनी भावुकता और जल्दवाजी को दूं अथवा कुपात्रों की चालबाजी को, जो आसानी से मेरा दिल जीतने में कामयाब हो गए !
ऐसी घटनाओं से यह चालबाज लोग यह नहीं सोचते कि इन घटनाओं के होते, लोगों का किसी की मदद करने से ही भरोसा न उठ जाए ! आपने एक बार धोखा दे कर, अपना मामूली फायदा उठा लिया अगर ऐसा न करते तो शायद किसी बड़ी मुसीबत के समय यह नाचीज़ तुम्हे भयानक मुसीबत से बचाने में कामयाब हो जाता !
एक डर और, इन कुपात्रों के कारण ऐसा न हो कि लोगों का जरूरतमंदों की मदद करने से भरोसा ही उठ जाये !
डॉ अमर ज्योति का एक शेर, एक चेतावनी के तौर पर याद आ रहा है !
" आप बोलें तो फूल झरते हैं
आपका ऐतबार कैसे हो !"
( यह वाकयात मेरे कडवे अहसासों का एक हिस्सा हैं इसका किसी व्यक्तिविशेष से सम्बन्ध नहीं है !)
सतीश भाई,
ReplyDeleteबचपन में इक कहानी पढी थी बाबा खड़क सिंह की...लेकिन क्या करे अपनी आदत से मजबूर हैं या फिर दूसरे की परेशानी नही देखी जाती.
हम तो चोर हैं दूसरे की आँख से आँसू चुराते है.
बाक़ी अल्लाह पर छोड़ देते हैं, कर भला तो हो भला. अब तक खुद को ना पहचान पाए दूसरे को क्या समझे झूठा या सच्चा..
सतीश साहब यकीनन आप सही हैं, की इन धोकेबाज़ों के करण लोग सच मैं जो ज़रुरत मंद हैं, उनपे भी शक करते हैं. भगवान् ने हम को जितनी अक्ल दी है, उसका इस्तेमाल करते हुए अपना धर्म निभाते रहो, यही सही रास्ता है. शक के कारण कोई ज़रुरत मंद दरवाज़े से लौट जाए यह सही नहीं, चाहे २ झूठे फैदा ले जाएं चलता है.
ReplyDeleteअपना दिल साफ हो , अच्छी बात है ।
ReplyDeleteआप रहमदिल दिल हों , अच्छी बात है ।
लेकिन कोई आपको बेवक़ूफ़ बना जाये , यह बुरी बात है ।
इसके लिए मैं तो खुद को ही दोष दूंगा ।
पग पग पर मायाचारी है,कौन सई राह चुनें
ReplyDeleteदिल में भरी उस अनुकम्पा का क्या करें
उस साधु की तरह जो बार बार बिच्छु को बचाता है,और बिच्छु बार बार डंक मरता है,
साधु अच्छी सीख देता है, यदि बिच्छु अपनी प्रकृति(डंक की) नहिं त्याग रहा,तो मैं क्यों अपने स्वभाव (परमार्थ)को त्यागुं।
ज़्यादा मीठा डायबिटीज़ पैदा करता है... वैसे ही मीठे बोल तो ठीक हैं लेकिन बहुत ज़्यादा….. हूँ... अत्यधिक नेह भी मधुमेह पैदा करता है!!! वैसे आपने जैसे अपने भलई के किस्से हमसे शेयर किए, ये भी करते तो हमारा भला होता...
ReplyDeleteयाद कीजिए बाबा भारती की बात जो उन्होंने खड़गसिंह से कही थी इस बात का ज़िक्र किसी से मत करना, लोगों का लाचार पर से यकीन उठा जाएगा. (अगर मिले तो)!
अक्सर चीज़ें वैसी नहीं होतीं जैसी कि वे दिखाई देती हैं .
ReplyDeleteलोगों के धोकेबाज़ होने कि वजह से नेकी का रवय्या तर्क नहीं किया जा सकता .
Log to pehle hi sangdil ho chuke hain , apki post padhkar ab unko apni kanjusi ke liye dalil bhi mil jayegi . apko apne lutne ka charcha aam nahin karna chahiye tha .
ReplyDeleteभैय्या कहावत तो है ही :"नेकी कर दरिया में डाल"
ReplyDeleteडॉ अनवर जमाल,
ReplyDeleteशुक्रिया आपका, अच्छा लगा कि आप मुझे समझते हैं , मैं अपनी आदत से मजबूर हूँ !
मैं छिपाना जानता तो जग मुझे साधू समझाता
शत्रु मेरा बन गया है, छल रहित व्यवहार मेरा !
Satish ji,
ReplyDeleteUsually it happens with honest and caring people. Selfish people fail to give due respect.
But do not worry. Such people will realize their mistake one day .
They will repent for their errors.
नेकी कर दरिया में डाल
ReplyDeleteऐ पथिक खुद को संभाल
सतीश भाई साहब,
ReplyDeleteप्रणाम !
आज तो आपने अपना दर्द बाहर निकाल कर रख दिया है इस पोस्ट के रूप में ! आपसे जब जब बात हुयी है यह तो समझ में आया था कि आपने ज़िन्दगी को बेहद करीब से देखा है पर जब जब आप ज़िन्दगी जैसी किसी खुबसूरत मगर खतरनाक चीज़ के बेहद करीब हो जाते हो तो कुछ छोटी मोटी चोटे लग ही जाती है !
आप जैसे भी है बिलकुल सही है सो ऐसे ही बने रहे .........यही इस छोटे भाई की विनती है आपसे !
सादर |
आपकी बात में दम है,
ReplyDeleteएक भुक्त भोगी हम है ।
आपकी बातों से सहमत हूं. पर क्या करें अपना धर्म भी तो नहीं छोड़ा जा सकता...वो उनका कर्म है.
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteदूध का जला छाछ फूंक फूंक कर पीता है .भविष्य में ध्यान रखियेगा.
ReplyDeleteमेरे साथ भी हो चुका है ,पैसे गए अलग बात है ,इस तरह की मदद मांगने वालों पर से विश्वास उठ गया वो बुरा हुआ.
सतीश जी यूँ तो कहते हैं कि "नेकी कर दरिया में डाल" परन्तु कोई बेबकूफ बना कर मदद ले ये किसी भी तरह जायज नहीं हो सकता ..सावधान रहना जरुरी है .
ReplyDeleteसतीश भाई,
ReplyDeleteसांप का धर्म है डसना, लेकिन संत का धर्म है दूसरों का भला सोचना...जिस तरह सांप अपना धर्म नहीं छोड़ता, उसी तरह संत को भी दूसरे की प्रवृत्ति की वजह से अपना धर्म नहीं छोड़ना चाहिए...
जोत से जोत मिलाते चलो, प्रेम की गंगा बहाते चलो...
जय हिंद...
ReplyDeleteसही बात है, सौ रूपये दान कर दो, सँतोष होता है ।
झूठ गढ़ कर यदि कोई दस रूपये झटक ले, बड़ा रँज़ लगता है ।
वैसे इसके अपवाद भी हैं, अगर कोई हसीना ( age-no-bar, ) लूट भी ले..
तो बाकी ज़िन्दगी बसर करने को ग़ुज़र चुकी उस ख़ूशबू की ख़लिश ही क़ाफ़ी है ।
Dear Blog Owner,
Please feel free to delete this comment, if you think it is offending !
Minors are discouraged to read this comment.
डॉ अमर कुमार जी अब अपने उरूज पर हैं ....अपनी पर जब जब ए हैं तब तब बेइंतिहा भाए हैं...
ReplyDeleteबाकी संवेदना के स्वर ने एक बड़ी उम्दा बात उद्धृत कर गए हैं ...
कबीर ने कहा था -
कबीरा आप ठ्गायिये और न ठगिये कोय
और ठगे दुःख होत है आप ठगे सुख होय ..
आपकी सिफारिश पर अभी तक एक निकार रखा है भेज नहीं पाया ..
अज सोचता हूँ जिम्मेदारी से मुक्त हो लूं ...
ले जा भाई मेरा क्या ले जाएगा...
ReplyDeleteहोता रहता है..
भावुक लोगों के साथ ऐसा ही होता है। फिर भी भावुकता इन्सानियत के लिये वरदान है। कोई आपके साथ धोखा करता है तो उसे उसकी करनी का फल जरूर मिलेगा। असल मे आज पात्र कुपात्र की पहचान करना मुश्किल हो गया है।शुभकामनायें
ReplyDeleteबेगाने धोखाधडी करे तो उनसे छुटकारा आसान ...मगर आस्तीन के साँपों का क्या किया जाए ...!!
ReplyDeleteआपकी गलती नहीं है ... आप परोपकारी हैं ये कोई बुरी बात नहीं है ... कुछ लोग मदद के काबिल नहीं होते ...
ReplyDelete.
ReplyDelete.
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मैंने जिन लोगों की मदद करने की कोशिश की , उनमें से बहुत कम हैं जिनको मैंने याद रखा है , लेकिन कुछ को कभी नहीं भुला पाता क्योंकि उन्हें पहचानने में मैंने गलती की ! मैंने वहाँ धोखा खाया और गलत आदमी की नकली भावनाओं में बहकर, उसपर विश्वास करने की मूर्खता की !
आदरणीय सतीश सक्सेना जी,
"अक्सर चीज़ें वैसी नहीं होतीं जैसी कि वे दिखाई देती हैं।
लोगों के धोखेबाज़ होने कि वजह से नेकी का रवय्या तर्क नहीं किया जा सकता।
Log to pehle hi sangdil ho chuke hain , apki post padhkar ab unko apni kanjusi ke liye dalil bhi mil jayegi .
apko apne lutne ka charcha aam nahin karna chahiye tha ."
आदरणीय डॉक्टर अनवर जमाल जी की ऊपर कही हर एक बात सोलह आने सही है और मैं उस से सहमत हूँ...और कुछ इन्हीं वजहों से मैं बहुत इज्जत करता हूँ उनकी...जबकि मेरे उनसे मतभेद कम नहीं...पर मनभेद कभी नहीं हुआ।
आप का जवाब में लिखा शेर अच्छा है... पर ऊपर उठिये सतीश जी इन सब से...मत कीजिये पश्चाताप लुटने का...नंगे आये थे और नंगे ही चले जायेंगे...कौन किसी को धोखा दे या लूट सका है आज तक ?...गये तो सभी नंगे ही हैं... माल के साथ कोई गया हो तो बताइयेगा...
हम सब एक स्वभाव लेकर पैदा होते हैं...एक संकुचित दिमाग का आदमी कभी दरियादिल नहीं हो सकता... आप बड़े दिल के आदमी हैं...अपना स्वभाव नहीं छोड़िये...मारिये गोली दुनियादारी को!
आभार!
...
जरूरतमंद की मदद करना शायद मनुष्य की प्रवर्ती है, कुछ की ज्यादा और कुछ की कम....अब इस बीच कौन झूट बोल कर दगा दे गया ये जानना बेहद मुश्किल है, बस यही की अपना कर्म किये चले, बाकि तो ऊपर वाला सब देख ही रहा है...
ReplyDeleteregards
satish jee kuch to seekhane ko fir bhee mil hee gaya.....
ReplyDeleteiseeko log smartness samjhane lage hai..........
आप बहुत भोले इन्सान हैं.... बहुत ही इमोशनल.... मुझे ऐसा लगता है कि जिसने आपको धोखा दिया है ...उसका कमेन्ट नहीं आया.....
ReplyDeleteneki josh aur jajbaat ki jagah hosh aur ehtiyaat se ki jaaye to natije behtar hote hai.
ReplyDeleteSachmuch dil ki bat kahi hai apne. Main khud kabhi kabhi aise galti kar deta hun
ReplyDeleteबहुत अच्छी पोस्ट हम सब कभी न कभी कहीं न कहीं रोज ही ठगे जाते हैं पर क्या करें किसी पर तो भरोसा करना भी पड़ता है
ReplyDeletebaba kharag singh ki kahanee mujhe bhi yaad aa gayee........:)
ReplyDeletewaise sabse behtar yahi hai ki jayda iss vishay par soche hi nahi.......:)
Dhokha karna achchhi baat nahin. Wah bhi aap jaise insaan se jo baaki logon ke dukh dard ko apna dukh-dard samajh kar baant leta hai. Jisne na jaane kitne logon ko madad pahunchai hai.
ReplyDeleteसतीश भाई
ReplyDeleteमैंने काफी धोखेबाजों की मदद की है
मदद के बाद धोखेबाजों ने पलटकर ही नहीं देखा
मुझे तो तकलीफ उन लोगों से भी होती है जो लोगों से पैसा लेकर उनका काम भी नहीं करते
मैं ऐसे लोगों के बारे सोचता हूं कि सिर्फ एक बार ही तो कांठ की हांडी चढ़ती है न...
आपने बढि़या लिखा है.
कुछ घटनाएं याद आ गई.
आख़िर में यही कहूँगा, अगर आप जैसे लोगो ने भलाई करनी छोड़ दी तो फिर समझिए क़यामत क़रीब है.
ReplyDeleteआप अपना कर्म करते रहिए, यक़ीन मानिए बहुत तस्कीन मिलती है.
किसी एक की ग़लती की सज़ा सबको तो नही मिलनी चाहिए.
2000 करोड़ की संपत्ति की मालकिन, एक नव-यौवना को तलाश है मिस्टर राइट की!
ReplyDeleteक्या अब आपका नंबर है? ;-)
सतीश जी ... आप कितना भी कोशिश कर लें अगर आप विश्वास करने की आदत रखते हैं तो हमेशा करेंगे ... चाहे कोई विश्वास घात करेगा ... कुछ देर को परेशान होंगे पर फिर से विश्वास करेंगे ... ये आपकी अच्छी आदत है ... जो जाना बहुत मुश्किल है ...
ReplyDeletestish ji aapki is post pr itni tippniyaan he ke pehle to mujhe jalan hone lgi he dusre aapki post men aek aesi hqiqt he jo jntaa tk phunchnaa bhi zruri he men khud is trh ki thgi kaa shikaar hotaa rhaa hun voh khte hen na pehli baar dhokaa diyaa to yeh teri ghlti he lekin dusri baar dhokaa khaayaa to yeh meri ghlti he bs isi trz pr logon ko aapne jo sikh di he voh qaabil taarif he. akhtar khan akela kota rajsthan
ReplyDeleteAre aapne to sachmuch chaunka diya, yaad rahegi ye ghatna.
ReplyDeleteबात तो सही है..पर बार बार धोखा खा कर भी एक बार और विश्वास करने का ही मन करता है और शायद, तभी तक इन्सानियत भी जिन्दा है.
ReplyDeleteऐसा खूब होता है जी, आप जैसे नेकदिल लोगों के साथ
ReplyDeleteलेकिन इन लोगों की वजह से कई बार सचमुच के जरूरतमंद लोगों की मदद करने में डर लगने लगता है
प्रणाम
आपको वो बिच्छु और संत वाली कहानी तो याद होगी ना ???? की कैसे अपने स्वाभाव के वशीभूत संत एक डूबते बिच्छु को बार-बार पानी से बाहर निकलने की कोशिश करते है, और बिच्छु अपने स्वाभाव के वशीभूत हर बार संत के डंक मार देता है>>>>>>>>>> बाकि तो आप समझ ही रहें है.............
ReplyDeleteआपको वो बिच्छु और संत वाली कहानी तो याद होगी ना ???? की कैसे अपने स्वाभाव के वशीभूत संत एक डूबते बिच्छु को बार-बार पानी से बाहर निकलने की कोशिश करते है, और बिच्छु अपने स्वाभाव के वशीभूत हर बार संत के डंक मार देता है>>>>>>>>>> बाकि तो आप समझ ही रहें है.............
ReplyDeleteअब क्या किया जाय?दुनिया में सब तरह के लोग होते है पर धोखा भी एक ही बार तो खाया जाता है ?
ReplyDeletekyaa kahein...?
ReplyDeletewo meraa etbaar kar lete
ReplyDeletejo, main itnaa kharaa nahin hotaa...
:)
wo meraa etbaar kar lete
ReplyDeletejo, main itnaa kharaa nahin hotaa...
:)