जिनेवा में, यू एन स्कुआयर पर, हाल ऑफ़ नेशंस के सामने एक विशाल कुर्सी जिसकी एक टांग टूटी हुई है , लोगों के स्वाभाविक आकर्षक का केंद्र है ! ५.५ टन वजनी और ३९ फीट ऊंची यह विशाल टूटी टांग वाली लकड़ी की कुर्सी , विरोध करती है विभिन्न देशों में, जमीन में छिपी लैंड माइंस और खतरनाक क्लस्टर बमों का ,जो सैनिकों और बच्चों में भेद नहीं करते ! इन गंदे बमों से विश्व में हर साल सैकड़ों बच्चे अपाहिज हो जाते हैं !
विश्व में ९० देश लैंड माइंस से प्रभावित माने जाते हैं जिनमे से २५ बेहद संवेदनशील बताये गए हैं ! २३ मिलियन माइंस के साथ मिश्र सबसे आगे है ,उसके बाद इरान ,अंगोला, इराक, अफगानिस्तान, कम्बोडिया, बोस्निया तथा क्रोशिया आते हैं, जहाँ हर ३३४ आदमियों में से १ इंसान अपाहिज है ! !
एक क्लस्टर बम के अन्दर लगभग १५० रंगीन चमकीले खिलौने नुमा बम होते हैं जो बम के गिरते ही चारो और बिखर जाते हैं , यह बिना फटे रंगीन टुकड़े बरसों बाद भी जीवित एवं विनाश लीला के लिए प्रभावी होते हैं ! ये रंगीन, छोटे खिलौने नुमा, आकर्षक आकार जो सोफ्ट ड्रिंक केन जैसे लगते हैं , बच्चों को स्वभावतः ही आकर्षित करते हैं ! अधिकतर, युद्ध के बरसों बाद भी , मासूम बच्चे इनके शिकार होते हैं ! यह मानवता की क्रूरतम छवि है जिसका विरोध इस कुर्सी के द्वारा किया गया है !
विश्व में ९० देश लैंड माइंस से प्रभावित माने जाते हैं जिनमे से २५ बेहद संवेदनशील बताये गए हैं ! २३ मिलियन माइंस के साथ मिश्र सबसे आगे है ,उसके बाद इरान ,अंगोला, इराक, अफगानिस्तान, कम्बोडिया, बोस्निया तथा क्रोशिया आते हैं, जहाँ हर ३३४ आदमियों में से १ इंसान अपाहिज है ! !
एक क्लस्टर बम के अन्दर लगभग १५० रंगीन चमकीले खिलौने नुमा बम होते हैं जो बम के गिरते ही चारो और बिखर जाते हैं , यह बिना फटे रंगीन टुकड़े बरसों बाद भी जीवित एवं विनाश लीला के लिए प्रभावी होते हैं ! ये रंगीन, छोटे खिलौने नुमा, आकर्षक आकार जो सोफ्ट ड्रिंक केन जैसे लगते हैं , बच्चों को स्वभावतः ही आकर्षित करते हैं ! अधिकतर, युद्ध के बरसों बाद भी , मासूम बच्चे इनके शिकार होते हैं ! यह मानवता की क्रूरतम छवि है जिसका विरोध इस कुर्सी के द्वारा किया गया है !
जमीन के अन्दर छिपे हुए यह घातक लैंड माइंस और खिलौने की भांति लगते यह क्लस्टर बम मानवता के प्रति अपराध है ! अधिकतर नागरिकों को और बच्चों को निशाना बनाते यह छिपे हुए बम बरसों बाद भी अपना कहर बरपाते रहते हैं !
हॉल ऑफ़ नेशंस के सामने स्थापित इस टूटी कुर्सी का मकसद, संयुक्त राष्ट्र संघ में आने वाले ,विश्व के पोलिटिकल नेताओं और और अन्य सम्मानित लोगों को लैंड माइंस और क्लस्टर बमों को उपयोग में न लाने का अनुरोध है ! लैंड माइंस द्वारा निर्दोष अपाहिजों की याद दिलाती यह कुर्सी क्या अपने मकसद में कामयाब हो पायेगी ..
हॉल ऑफ़ नेशंस के सामने स्थापित इस टूटी कुर्सी का मकसद, संयुक्त राष्ट्र संघ में आने वाले ,विश्व के पोलिटिकल नेताओं और और अन्य सम्मानित लोगों को लैंड माइंस और क्लस्टर बमों को उपयोग में न लाने का अनुरोध है ! लैंड माइंस द्वारा निर्दोष अपाहिजों की याद दिलाती यह कुर्सी क्या अपने मकसद में कामयाब हो पायेगी ..
महत्त्वपूर्ण जानकारी मिली...काश यह कुर्सी अपने मकसद में कामयाब हो
ReplyDeleteबेहतरीन जानकारी..... आशा करता हूँ कि यह कुर्सी अपने मकसद में कामयाब हो पाए.
ReplyDeletejaankari dene ke liye abhar........:)
ReplyDeleteहत्त्वपूर्ण जानकारी...
ReplyDeleteमहत्त्वपूर्ण जानकारी देने के लिए धन्यवाद .. काश मानवता के प्रति ऐसे अपराध न हो ...
ReplyDeleteaise prayas prashansneey hai .
ReplyDeletekash maanavjati ahinsa me aastha dikhatee aur jeeo aur jeene do ka naara apnatee.............
shantipoorn tareeke se bhee pratirodh zahir kiya ja sakta hai....jaise ki kursee kar rahee hai.........
bahut sunder abhivykti.......
Aabhar.
कहाँ है वह लोग जो हिंदी ब्लॉग्गिंग की सार्थकता पर सवाल उठाते है ?
ReplyDeleteसतीश भाई साहब .......नमन करता हूँ आपको ! इस मुद्दे पर शायद ही कभी कुछ लिख गया हो किसी भी हिंदी ब्लॉग पर ! बेहद उम्दा और प्रभावशाली लेखन !
यह टूटी टांग वाली कुर्सी तो जाने कब से फोटो खिंचवा रही है ।
ReplyDeleteलेकिन वहां जाने वाले नेताओं पर क्या असर पड़ा ?
मानव ही शैतान भी है ।
इस मुद्दे पर प्रभावशाली लेख .. उम्दा प्रस्तुति..... आभार
ReplyDeleteमहत्त्वपूर्ण जानकारी मिली...काश यह कुर्सी अपने मकसद में कामयाब हो
ReplyDeleteसम्वेदनशील जानकारी से पूर्ण विह्वल करने वाली रचना..
ReplyDeleteयुद्ध कि मार झेल चुके देशों के नागरिकों में युद्ध कि याद ताजा रखने के यन्त्र हैं ये लैंड माइन्स. नए अछूते विषय पर कलम चलने के लिए बधाई. .
ReplyDeleteमहत्त्वपूर्ण जानकारी देने के लिए धन्यवाद ..
ReplyDeleteदो टांग वाले इंसान के आगे
ReplyDeleteइस तीन टांग वाली कुर्सी की क्या बिसात
कितना ही कोशिश कर लें
नहीं हो सकती मानवता की बरसात।
महत्त्वपूर्ण जानकारी है...
ReplyDeleteकाश यह कुर्सी अपने मकसद में कामयाब हो पाए ?
अच्छी जानकारी ...!
ReplyDeleteवहाँ एक तोप भी रखी हुई है जिसकी नली में गाँठ बाँधी हुई है.
ReplyDelete@ अभिषेक ओझा,
ReplyDeleteअफ़सोस है हम वहां कोच से उतर नहीं पाए थे अतः तोप नहीं दिखी !
सार्थक पोस्ट के माध्यम से महत्वपूर्ण जानकारी.
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
महत्वपूर्ण जानकारी चाचा जी..मुझे कुछ भी पता नही था इस बारे में आप की यह प्रस्तुति विश्वस्तरीय एक बड़े महत्वपूर्ण पहलूँ पर प्रकाश डालती है...आभार.
ReplyDelete@
ReplyDeleteएक क्लस्टर बम के अन्दर लगभग १५० रंगीन चमकीले खिलौने नुमा बम होते हैं जो बम के गिरते ही चारो और बिखर जाते हैं , यह बिना फटे रंगीन टुकड़े बरसों बाद भी जीवित एवं विनाश लीला के लिए प्रभावी होते हैं ! ये रंगीन छोटे खिलौने नुमा आकर्षक आकार जो सोफ्ट ड्रिंक केन जैसे लगते हैं बच्चों को स्वाभाविक ही आकर्षित करते हैं ! अधिकतर युद्ध के बरसों बाद मासूम बच्चे इनके शिकार होते हैं !
जाने क्यों मैला आँचल का अंत याद आ गया। एक तरफ लेखक रंग बिरंगी रोशनी में चमकती चाँद लिए वैज्ञानिकों द्वारा संहारक अस्त्रों के निर्माण का दृश्य उकेरता है तो दूसरी ओर गीता के श्लोक के साथ शिशु जन्म और फिर उस पर वात्सल्य उड़ेलती एक नारी का जो उसकी माँ नहीं है लेकिन उसका नाम 'ममता' है।
इस पोस्ट के लिए आभार। कुछ है जो लिख नहीं पा रहा।
जी मानवता के प्रति इस घृणित कुचक्र की जानकारी पर मन दुखी हो गया !
ReplyDeleteसतीश भाई,
ReplyDeleteअब तो अपने देश में भी नक्सल प्रभावित इलाकों में बूबी ट्रैप्स का इस्तेमाल किया जाने लहलीगा है...लेकिन आज़ सबसे पहली ज़रूरत उन नेताओं की कुर्सियों की टांग तोड़ने की है जो सिर्फ अपनेु राजनीतिक फायदे के लिए नक्सलियों से गुपचुप हाथ मिलाते हैं...कहा जाता है कि बस्तर में कोई भी नेता नक्सलियों से सौदा किए बिना चुनाव नहीं जीत सकता...अवैध तौर पर माइनिंग करने वाले नक्सलियों को चौथ देकर ही अपना काला कारोबार करते रहते हैं...नेताओं को कभी कुछ नहीं होता...बस हमारे जवान ही नक्सलियों की बिछाई बारूदी सुरंगों में फंस कर शहीद होते रहते हैं...
जय हिंद...
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteA very immpressive article.... thank you sir
ReplyDeleteसार्थक आलेख। बारूदी सुरंगें दक्षिण एशिया के दो बडे आतंकवादी गिरोहों तालेबान और माओवादी का प्रिय हथियार हैं।
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