सन २००८ में मेडिसिन क्षेत्र में फ्रेंच नोबल पुरस्कार विजेता डॉ लिउक मोंतान्येये ने अंततः यह स्वीकार किया है कि होमिओपैथी की मान्यताओं का मज़बूत साइंटिफिक आधार है ! जिन होमिओपैथिक सिद्धांतों को अब तक एलोपैथिक मान्यताओं के आधार पर क्वेकरी करार दिया जाता रहा है , अब इस महान साइंटिस्ट के द्वारा यह नया रहस्योदघाटन होमिओपैथी के अविश्वासियों के लिए एक गहरा झटका है !
एक होमिओपैथी के जानकार के लिए यह कोई अचरज की बात नहीं है इससे पहले भी अनगिनत एलोपैथिक डॉ , एलोपैथी को त्याग कर होमिओपैथी की प्रैक्टिस शुरू करते रहे हैं !
उदाहरण के लिए आर्सेनिक अल्बम दवा का एक बूँद टिंक्चर लेकर ९९ भाग एल्कोहल में मिलाने पर, यह आर्सेनिक अल्बम १ बन जाता है ! अब इस आर्सेनिक अल्बम १ नामक दवा से एक बूँद लेकर ९९ भाग एल्कोहल में मिलाने से नयी दवा आर्सेनिक एल्बम २ कहलाएगी ! आर्सेनिक एल्बम २ से एक बूँद लेकर ९९ भाग एल्कोहल में मिलाने के बाद आर्सेनिक अल्बम -३ नामक दवा तैयार होती है ! इस प्रकार आर्सेनिक अल्बम ३ में एक बूँद आर्सेनिक टिंक्चर का १० लाखवा भाग पाया जाएगा ! निश्चित तौर पर इस तरह बनायी गयी आर्सेनिक ३० अथवा आर्सेनिक २०० या आर्सेनिक १००००० में एक बूँद का कौन सा परमाणु होगा , गिनती लगाना असंभव होगा ! किसी भी एलोपैथिक लैब में, ३ पोटेंसी के बाद की दवा चाहे उस पर कोई नाम क्यों न लिखा हो, रिजल्ट शुद्ध एल्कोहल ही आता है ! यही कारण है कि एलोपैथिक सिस्टम ने इसे कभी मान्यता नहीं दी , और दवा के रिजल्ट को वे आस्था और विश्वास के कारण ठीक होने की बात कह कर अमान्य ठहराते रहे !
डॉ जगदीश चन्द्र बसु ने यह साबित किया था कि पौधों में जीवन है और उनमें संवेदनशीलता ठीक जीवों की संवेदन शीलता से मिलती है ! पौधों का व्यवहार भी इंसानों की तरह मृदु ,स्नेही और क्रूर होता है ! इनसे बनायी गयी दवाओं का असर, उनके व्यवहार से मिलते जुलते इंसानों पर सबसे अच्छा होगा !
अगर आप अपने व्यवहार से मिलते हुए पौधे को ढूंढ निकालें तो यकीनन उससे बनायी गयी औषधि आपके लिए संजीवनी बूटी का कार्य करेगी ! एक बार अगर आपने अपनी संजीवनी बूटी किसी होमिओपैथ की सहायता से ढूँढ ली तो शरीर में चाहें कोई भयंकर बीमारी क्यों न हो यह संजीवनी की तरह ही कार्य करेगी !और आपकी संजीवनी ढूँढने का यह कार्य होमिओपैथी रिपर्टरी करती है ! मानवीय गुण और शारीरिक लक्षणों के लाखो लक्षण लिखे हैं इस किताब में , यह किताब नहीं हज़ारों होमिओपैथ, जिनमें अधिकतर एलोपैथिक डाक्टर थे , की दिन रात की लगन और परिश्रम का नतीजा है जो बीसियों वर्षों और एलोपैथिक डाक्टरों के विरोध के बाद भी इस संसार में आई !
भयानक और असाध्य बीमारियाँ को समाप्त करने के लिए आपको एक बार होमिओपैथी की इस गीता की शरण में जाना पड़ेगा , किसी विद्वान् डाक्टर के १-२ घंटे के परिश्रम के बाद आपकी संजीवनी बूटी या उससे मिलती जुलती कुछ दवाये आपके सामने आ जाएँगी ! अगर आप मैटिरिया मेडिका में, इन दवाओं के चरित्र के बारे में पढेंगे तो आपको लगेगा कि आप अपने चरित्र के बारे में ही पढ़ रहे हैं ! और यकीन रखिये इस सेलेक्टेड औषधि की एक बूँद आपको आपरेशन टेबल पर जाने से आसानी से रोक देगी !
होम्योपैथी के बारे में बेहतरीन जानकारी! बहुत खूब!
ReplyDeleteबाहर मानसून का मौसम है,
लेकिन हरिभूमि पर
हमारा राजनैतिक मानसून
बरस रहा है।
आज का दिन वैसे भी खास है,
बंद का दिन है और हर नेता
इसी मानसून के लिए
तरस रहा है।
मानसून का मूंड है इसलिए
इसकी बरसात हमने
अपने ब्लॉग
प्रेम रस
पर भी कर दी है।
राजनैतिक गर्मी का मज़ा लेना
इसे पढ़ कर यह मत सोचना
कि आज सर्दी है!
मेरा व्यंग्य: बहार राजनैतिक मानसून की
सतीश साहब हौम्योपैथी के कद्रदान हम भी है
ReplyDeleteहौम्योपैथी है तो बहुत अच्छा लेकिन मंहगा बहुत है हमारे यहां, ओर लम्बा इलाज चलता है इस का, लेकिन इस के सिंद्धांत बिलकुल सही है
ReplyDeleteसतीश भाई साहब,
ReplyDeleteप्रणाम!
बहुत ही उम्दा आलेख लिखा है आपने आज ! मेरे घर पर भी हम लोग होम्योपैथी पर काफी भरोसा करते है ! यह भी सच है होम्योपैथी में काफी ऐसी दवाइयाँ भी है जो एक बार को मरते को भी नया जीवन दे दे !
Sir!! aap to Homeopathy ke bhi bahut achchhe jaankar hain...!! aapka blog sach me ek asset hai, bahut achchhe jaankaariyan milte rahtee hai.....!!
ReplyDeleteSir!! lekin aapke blog ki heading aapke post ko justify nahi kartee.....!!
chhoti muh badi baat kahi hai, bura na manenge........:)
@ मुकेश कुमार सिन्हा,
ReplyDeleteयह ब्लाग मैंने अपनी रचनाओं के लिए जिसमें गीत और लेख दोनों ही शामिल हैं , पिछले लेखों में आप मेरे गीत पढ़ सकते हैं ...
बेहतरीन जानकारी!
ReplyDeleteत्वचा रोग में विशेषकर लाभकारी है ।
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी दी है....आभार.
ReplyDelete@@ प्रतिभाजी की रचनाओं को चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर लिया गया है..
सुन्दर ढंग से समझाया । सिद्धान्त तो ठीक लगता है, वैज्ञानिक देर सबेर कारण ढूढ़ लेंगे ।
ReplyDeleteसतीश भाई!
ReplyDeleteआप का बहुत आभारी हूँ, इस आलेख के लिए। 1982 से मैं इस के संपर्क में आया था। इस से पूर्व मैं आयुर्वेद में विशारद और जीव विज्ञान का स्नातक था। मैं ने इस पद्धति को बहुत उपयोगी पाया और अपने घर में अपनाया। मेरे दोनों बच्चों ने एलोपैथी या आयुर्वेदिक दवाएँ केवल तभी ली हैं जब होमियोपैथी उपलब्ध नहीं हुई है। बच्चे अब 25-27 वर्ष के हैं। होमियोपैथी की उपयोगिता के इस से अच्छा सबूत नहीं हो सकता।
यह मिथक गलत है कि होमियोपैथी महंगी है और इलाज देर से करती है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि बीमारी कितनी पुरानी है। भारत के चिकित्सक जर्मन दवाइयों का प्रयोग करते हैं और फिर भी यह सस्ती होती है।
होम्योपैथी के बारे में हम को तो कुछ नही मालूम, आपके इस लेख से अच्छी जानकारी मिली है, इक दो बार इस्तेमाल किये है मगर कुछ खास फ़र्क़ महसूस नही हुआ, मुझे लगता है हौम्योपैथी के अच्छे जानकार से ही इलाज करवाना चाहिए. क्या ही अच्छा हो अगर आप दिल्ली और उस के आसपास के मशहूर डॉक्टर के नाम भी बता दे.
ReplyDelete(1)आज दुनियाँ में वैज्ञानिकों और चिकित्सकों का एक बड़ा खेमा है जो होम्योपैथी को पूरी तरह से अवैज्ञानिक मानता है -मान्यता है कि होम्यो औषधियों का तनु से तनुतर संकेन्द्रण क्रमशः और भी 'पोटेंसी ' का होने लगता है ....वर्षो पहले नेचर पत्रिका के तत्कालीन सम्पादक जान मैडाक्स ने वैज्ञानिकों की टीम के प्रयोग के दौरान यह देखा था कि होम्यो औषधियां अपनी तनुता में उस स्तर तक जा पहुँचती हैं जहां वस्तुतः सम्बन्धित दवा का एक भी मालीक्यूल नहीं रह जाता -तो क्या पानी में इन औषधियों के मालीक्यूल की कोई छाया प्रभावी होती है ? जो इलाज की प्रक्रिया शुरू करती है ....मतलब दवा का लेशमात्र भी न होना उतना ही कारगर बनता जाता है ? आखिर यह कैसे संभव है ?
ReplyDeleteमैं भी होम्योपैथी पर विज्ञान की पद्धति में अटूट श्रद्धा के कारण चाते हुए भी विश्वास नहीं रख पाता -मगर एक वैज्ञानिक नजरिया प्रेक्षणीय ज्ञान(आब्जर्वेशनल नालेज ) और अनुभूत ज्ञान (एम्पिरिकल नालेज ) पर भी आधरित है -अब डॉ दराल भी कह रहे हैं कि त्वचा रोगों में यह कारगर है -हमने भी ऐसे कई दावे सुने हैं ....
(2)होम्योपैथी सेल्फ हीलिंग का सिद्धांत बयाँ करती है- आईये एक परीक्षण करे -एक स्वस्थ व्यक्ति को होम्यो औषधि का डोज दिया जाय -क्या वह उसी व्याधि से त्रस्त हो जाएगा जिससे जुडी वह औषधि है ? ह्मोम्यो- सिद्धांत के अनुसार तो ऐसा ही होना चाहिए .. कभी कर के देखते हैं !
ReplyDeleteमैंने खुद या अपने परिवार के लिए कभी भी होम्यो पैथी का इस्तेमाल नहीं किया -और सभी तो भले चंगे हैं (मतलब यह कोई तर्क नहीं है )
पूरी दुनियाँ में वैकल्पिक और पारम्परिक चिकत्सा पद्धतियों को लेकर नयी जागरूकता देखी जा रही है ...मुझे खुशी होगी अगर होम्योपैथी अपना प्रभुत्व और प्रामाणिकता के साथ कायम कर सके ....भारत में तो अभी यह हारे का हरिनाम ही बनी हुयी है .....
(3)
ReplyDeleteमुझे लगता है इस विषय पर और विस्तार से लिखने और परीक्षण की जरूरत है ...
बेहतरीन जानकारी!
ReplyDelete@ डॉ अरविन्द मिश्र जी !
ReplyDelete(१) इन दवाओं के अत्यधिक तरलीकृत होने पर इन दवाओं की शक्ति नष्ट नहीं होती, बल्कि शीशी की दवा ख़त्म हो जाने पर अगर हम उसमें पानी भर दें तो फिर वही दवा उसी शक्ति की दुबारा बन जाती है ! और यह आश्चर्यजनक तथ्य हज़ारों बार एलोपैथिक डाक्टरों के द्वारा सिद्ध हो चूका है ! यही तथ्य , हजारो जगह पर इन दवाओं द्वारा, असाध्य बीमारियों को ठीक करने के बावजूद, साइंस कभी स्वीकार नहीं कर पाया ! इस पर विस्तृत रूप से फिर कभी लिखूंगा !
अब पहली बार एक आधिकारिक बयान आया है जिसमें डॉ लियूक मोंतान्येये ने, इसे अपनी तरह से पारिभाषित किया है ! मेडिसिन में नोबल पुरस्कार विजेता के बयान पर भी कट्टरपंथियों के विचार आने की सम्भावना है ! डॉ अरविन्द ! आपका विचार जानना चाहूंगा ??
(२) जी हाँ अगर किसी व्यक्ति को उदाहरण के लिए संखिया की थोड़ी थोड़ी मात्र रोज दी जाये तो कुछ समय बाद उस व्यक्ति में संखिया का प्रूविंग शुरू हो जाएगा और उसके दुष्प्रभाव दिखने लगते हैं ! इन्ही दुष्प्रभावों से मिलते जुलते प्रभावों वाली बीमारी अगर किसी बीमार में दिखती है तो शक्तिकृत ( तरलीकृत ) संखिया से उसे फायदा होगा !
(३) होमिओपैथी के प्रसार और अविश्वास का प्रमुख कारण , अशिक्षित डॉ तथा शिक्षित डॉ द्वारा विधि पूर्वक इलाज़ न करना है ! एक असाध्य बीमार को ठीक करने हेतु, उसका मानसिक व्यवहार और शरीर पर वातावरण एवं अन्य परिस्थितियों का असर जानना बेहद ज़रूरी है ! इस प्रक्रिया में कम से कम १ घंटा और कई बार पूरा दिन लग सकता है , चूंकि १०० रुपये देकर इतना श्रमसाध्य कार्य बहुत मुश्किल है अतः अधिकतर डॉ शोर्टकट करके दवाएं देकर काम चलाते हैं, इस कारण बीमार को काफी समय लगता है या वह ठीक नहीं हो पाता !
३ जगह पर स्लिपडिस्क लेकर बेहद गंभीर अवस्था में मेरे परिवार की एक लडकी की दवा ढूँढने में मुझे ४ घंटे लगे थे ! मगर सही दवा के चुनाव का असर यह था की लगभग एक माह से बिना सहारे न उठ पाने वाली यह लडकी, अगले दिन बाज़ार घूम कर आयी और गंगाराम हॉस्पिटल में उसे ओपरेशन की आवश्यकता नहीं पडी !
आज मैं एक समस्या से ग्रसित हूँ सतीश जी और जानना चाहती हूँ यदि उसका होम्यो में इलाज हो तो इस वक्त मैं ऑपरेशन से बच सकूंगी
Deleteपिछले लगभग १५-२० दिन से AIIMS के चक्कर लगाने पर आज आखिर तारीख मिल गयी ऑपरेशन की लेकिन अभी सर्जरी के लिए ७-८ महीने का वक्त दिया है . पिछले ३ सालों से दर्द बढ़ता जा रहा था . यहाँ तक कि कुछ लोगों को खास तौर से मेरे साहित्यिक मित्रों को ऐसा लगता था मैं सच नहीं कहती लेकिन सच हमेशा सच ही रहता है .नहीं सोचा था ऐसा होगा लेकिन इन्वेस्टीगेशन सब सच कह देती हैं . एल 5 स्पाइन पर tumour निकला है जिस कारण चलना फिरना मुश्किल हो रहा था .
एलोपैथी में तो सिर्फ ऑपरेशन ही इलाज है लेकिन क्या कोई और थेरेपी है जिसमे इसका इलाज हो ?
यदि कोई जानकार जानता हो तो बताये . मैं ये ऑपरेशन नहीं करवाना चाहती क्योंकि इसमें ऐसा रिस्क है जो और complication पैदा कर सकता है .
bahut achhi post !
ReplyDeleteI also believe in homeopathy.
A much needed post. Beautifully written.
Thanks for the information.
दिल्ली के पास , डाक्टर फ़ितरतुल्लाह अंसारी सिकंद्राबाद ज़िला बुलंदशहर के मशहूर होम्योपैथ गुज़रे हैं । Clinically dead हो चुके अपने बच्चे को उन्होंने Carboveg की खुराक दी और जीवन लौट आया । ऐसे तीन चार मरीज और भी हैं । जो मिलना चाहे आकर मिल सकता है ।
ReplyDeleteआज भी हमारे बुजुर्ग होमियोपैथी दवा पर ज़्यादा भरोसा करते है बस एक बात है किसी भयंकर बीमारी का तुरंत इलाज नही हो पाता जिस वजह से एलोपैथी लोगो को अधिक जम रही है..वैसे आपने इसके इतिहास पर बढ़िया प्रकाश डाला..जानकारी बढ़ी...आभार चाचा जी
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ReplyDelete.
ReplyDelete.
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आदरणीय सतीश सक्सेना जी,
आपका बहुत सम्मान करता हूँ पर होम्योपैथी का नहीं अत: यह उत्तर दे रहा हूँ आशा है अन्यथा नहीं लेंगे और क्षमादान भी देंगे!
"इन दवाओं के अत्यधिक तरलीकृत होने पर इन दवाओं की शक्ति नष्ट नहीं होती, बल्कि शीशी की दवा ख़त्म हो जाने पर अगर हम उसमें पानी भर दें तो फिर वही दवा उसी शक्ति की दुबारा बन जाती है ! और यह आश्चर्यजनक तथ्य हज़ारों बार एलोपैथिक डाक्टरों के द्वारा सिद्ध हो चूका है ! यही तथ्य , हजारो जगह पर इन दवाओं द्वारा, असाध्य बीमारियों को ठीक करने के बावजूद, साइंस कभी स्वीकार नहीं कर पाया ! इस पर विस्तृत रूप से फिर कभी लिखूंगा !
अब पहली बार एक आधिकारिक बयान आया है जिसमें डॉ लियूक मोंतान्येये ने, इसे अपनी तरह से पारिभाषित किया है ! मेडिसिन में नोबल पुरस्कार विजेता के बयान पर भी कट्टरपंथियों के विचार आने की सम्भावना है !"
नेट पर इस बात का यह जवाब लिखा है कई जगह:-
Homeopaths have adopted this "memory of water" nonsense in an attempt to recover from the disaster that arises whenever anyone who can think thinks about the ramifications of continuous dilution. In order to explain how something can continue to act even after all of its molecules have disappeared, it was necessary to invent the concept of "memory of water". Despite there being severe logical, philosophical and scientific reasons why any "memory of water" is a vacuous idea, and despite the fact that nobody has even come up with any even remotely feasible way of testing the concept, the homeopaths have simply willed it into existence. They then refer back to the weird way water molecules react with each other to say "see, some of these temporary structures could code for molecules that they have seen before".
The real problem for them is that, even if "memory of water" was both possible and proven, it would not make homeopathy any less ridiculous. You see, homeopaths go further by claiming that they can selectively control what it is that water remembers. We have the situation where they are claiming to do the impossible while working with something that does not even exist in the first place.
Let's look at making a typical homeopathic remedy. I have randomly chosen a treatment for cholera, which simply consists of a 30X preparation of REMEDYXXX. I won't bore you with the procedure because it just consists of successive dilutions and succussions. It's the final product I'm interested in.
How does the preparer ensure that only the REMEDYXXX is remembered and nothing else? Remember how I mentioned that water is an almost universal solvent? How was the preparation controlled to eliminate the possibility that the water remembered any of the non-REMEDYXXX molecules that it might have come in contact with? For example, if it had instead remembered the molecules in the glass preparation vessel, we might have ended up with a treatment for silicosis. What if the preparer had breathed out through her mouth and the air above the preparation vessel had become contaminated by mercury vapour coming off her fillings. Some of this could have become dissolved in the water and then we might have come up with a treatment for _____ (fill in whatever mercury in fillings is causing this week). If she smoked, we might get a cure for lung cancer. If some of the nitrogen in the lab air had got into the water, a cure for the bends might have resulted, and a tiny fragment of asbestos blown in from a nearby demolition site might have been remembered and a treatment for mesothelioma been produced. None of these would be of any use to the poor person sitting outside waiting for a cure for diarrhoea (well, sometimes sitting, sometimes hurrying to sit elsewhere).
आभार!
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ReplyDeleteA relevant link;
ReplyDeletehttp://veerubhai1947.blogspot.com/2010/07/blog-post_6164.html
a relevant link-
ReplyDeletehttp://veerubhai1947.blogspot.com/2010/07/blog-post_6164.html
हम भी भरोसा करते है इस पैथी पर | और इसे आजमाया भी है यदि दवा का चुनाव सही हो जाये तो यह सटीक कार्य करती है |
ReplyDeleteमेरे एक मित्र का चरित्र लाइकोपोडियम से हुबहू मिलता था उन्हें जब भी कोई दिक्कत होती मैं लाइकोपोडियम की एक बूंद उनकी जीभ पर डाल देता और उनका रोग ठीक हो जाता |
एक मित्र का चहरा २५% मस्सों से भरा भर गया था चेहरे पर मस्सों की एक परत सी बन गई थी कुछ दिन उन्होंने किसी होम्योपेथ से इलाज कराया तो चेहरा एकदम साफ़ हो गया |
एक और मित्र भी चेहरे पर मस्सों से दुखी थे उन्हें मैंने कुछ दिन थूजा खिलाई उनके मस्से भी जाते रहे | मेरे खुद के सिर में एक कठोर छोटी सी गाँठ बनी हुई थी उसके लिए मैंने करीब तीन माह तक कल्केरिया फ्लोरिका १२ xका सेवन किया उस कठोर गांठ का पता ही नहीं चला कहाँ गयी |
इसलिए मेरे लिए होम्योपेथी पर भरोसा नहीं करने का कोई कारण ही नहीं बचता |
@प्रवीण शाह,
ReplyDeleteडॉ लिउक मोंतान्येये के विचारों का अच्छा हिंदी ट्रांसलेशन "राम राम भाई " नामक ब्लाग पर उपलब्ध है, लिंक दे रहा हूँ कृपया अवश्य पढियेगा !
http://veerubhai1947.blogspot.com/2010/07/blog-post_6164.html
होमियो -पैथी की बुनियाद है यह तो ...
लुक के अनुसार रोग पैदा करने वाले जीवाणु और विषाणु के डी एन ए के विलियन (सोल्युसंस )कम आवृत्ति के रेडियो -तरंगे (विद्युत् -चुम्बकीय विकिरण )निकाल सकतें हैं (निसृत ,उत्सर्जित ,एमिट )कर सकतें हैं .यह तरंगें आस पास के जल को "नेनो -स्ट्रक्चर्स "में समायोजित होने अरेंज होने के लिए प्रेरित कर देतीं हैं .इतना ही नहीं अब यह जलीय -अनु (वाटर मोलिक्युल्स )खुद भी रेडियो तरंगे छोड़ने लगतें हैं .जल का तरंगे छोड़ते रहने का गुण ज़ारी रहता है ,चाहें विलियन को कितना भी तनुकृत ,कम स्ट्रेंग्थ का ,यानी दायाल्युत करते चलो ।फिर -
चाहें तनुकृत होते होते ओरिजिनल डी एन ए ही प्रभावी तौर पर ला पता हो जाएँ ।
अब ज़रा गौर कीजिये -यही तो होमियो -पैथी की आधार -भूमि है ,बुनियाद है ,यहाँ -वाटर केंन रितेंन दी "मेमोरी "ऑफ़ सब्स्तेंसिज़ विद विच ईट हेड बीन इन कोंटेक्ट .इसी याददाश्त का ,एमिसन ज़ारी रहने का ,डॉ. दोहन और शोषण कर सकतें हैं ।
होमिओ -पैथी का सीधा सा सिद्धांत है "किसी विष (तोक्सिन )की न्यूनतम राशि (मात्रा ,मिनिमम अमाउंट ऑफ़ ए सब्सटेंस )उन लक्षणों को ठीक कर सकती है जो इस तोक्सिन की बड़ी मात्रा (लार्ज अमाऊ -नट्स )से पैदा होजातें हैं .यानी ज़हर की न्यूनतम राशि ,अधिकतम की काट है .ज़हर ही ज़हर को मारता है .
Posted by veerubhai (आभार सहित)
लिंक बताने के लिए शुक्रिया अरविन्द भाई !
ReplyDeleteवीरू भाई ने डॉ लिउक के कथन को प्रष्ठभूमि में रखते हुए में बेहतरीन विवेचना की है , प्रवीण जी के लिए दे रहा हूँ !
"अब ज़रा गौर कीजिये -यही तो होमियो -पैथी की आधार -भूमि है ,बुनियाद है ,यहाँ -वाटर केंन रितेंन दी "मेमोरी "ऑफ़ सब्स्तेंसिज़ विद विच ईट हेड बीन इन कोंटेक्ट .इसी याददाश्त का ,एमिसन ज़ारी रहने का ,डॉ. दोहन और शोषण कर सकतें हैं ।
होमिओ -पैथी का सीधा सा सिद्धांत है "किसी विष (तोक्सिन )की न्यूनतम राशि (मात्रा ,मिनिमम अमाउंट ऑफ़ ए सब्सटेंस )उन लक्षणों को ठीक कर सकती है जो इस तोक्सिन की बड़ी मात्रा (लार्ज अमाऊ -नट्स )से पैदा होजातें हैं .यानी ज़हर की न्यूनतम राशि ,अधिकतम की काट है .ज़हर ही ज़हर को मारता है"
Posted by veerubhai (आभार सहित)
लिंक बताने के लिए शुक्रिया अरविन्द भाई !
ReplyDeleteवीरू भाई ने डॉ लिउक के कथन को प्रष्ठभूमि में रखते हुए में बेहतरीन विवेचना की है , प्रवीण जी के लिए दे रहा हूँ !
अब ज़रा गौर कीजिये -यही तो होमियो -पैथी की आधार -भूमि है ,बुनियाद है ,यहाँ -वाटर केंन रितेंन दी "मेमोरी "ऑफ़ सब्स्तेंसिज़ विद विच ईट हेड बीन इन कोंटेक्ट .इसी याददाश्त का ,एमिसन ज़ारी रहने का ,डॉ. दोहन और शोषण कर सकतें हैं ।
होमिओ -पैथी का सीधा सा सिद्धांत है "किसी विष (तोक्सिन )की न्यूनतम राशि (मात्रा ,मिनिमम अमाउंट ऑफ़ ए सब्सटेंस )उन लक्षणों को ठीक कर सकती है जो इस तोक्सिन की बड़ी मात्रा (लार्ज अमाऊ -नट्स )से पैदा होजातें हैं .यानी ज़हर की न्यूनतम राशि ,अधिकतम की काट है .ज़हर ही ज़हर को मारता है .
Posted by veerubhai (आभार सहित)
सभी तरह की वैकल्पिक चिकित्सा पद्धितियों पर खूब अनुसन्धान होने चहिये. मनुष्य की बीमारीयां भी रोज़ रोज़ बड़्ती जो जा रहीं हैं.
ReplyDeleteमस्सों के लिये हौम्योपैथी में राम बाण ईलाज़ मैने अपनी पत्नी पर होते देखा है. उनके हाथ पर एक काफी बड़ा मस्सा हो आया था जो कई बरस रहा और फिर थूजा नाम की दवाई से वो 20 दिन में गायब हो गया.
जो काम करें वो दवा. दुआ भी एक दवा ही तो है. Placebo effect भी एक प्रकार का ईलाज़ है.
विज्ञान ने क्या अंतिम सत्य घोषित कर दिया है क्या ?
बेहतरीन जानकारी!
ReplyDeleteप्रवीण त्रिवेदी ╬ PRAVEEN TRIVEDI has left a new comment on your post
ReplyDelete"मानवता के लिए प्रकृति की एक महान भेंट होमिओपैथी -...":
बेहतरीन जानकारी!
लिंक बताने के लिए शुक्रिया अरविन्द भाई !
ReplyDeleteवीरू भाई ने डॉ लिउक के कथन को प्रष्ठभूमि में रखते हुए में बेहतरीन विवेचना की है , प्रवीण जी के लिए दे रहा हूँ !
अब ज़रा गौर कीजिये -यही तो होमियो -पैथी की आधार -भूमि है ,बुनियाद है ,यहाँ -वाटर केंन रितेंन दी "मेमोरी "ऑफ़ सब्स्तेंसिज़ विद विच ईट हेड बीन इन कोंटेक्ट .इसी याददाश्त का ,एमिसन ज़ारी रहने का ,डॉ. दोहन और शोषण कर सकतें हैं ।
होमिओ -पैथी का सीधा सा सिद्धांत है "किसी विष (तोक्सिन )की न्यूनतम राशि (मात्रा ,मिनिमम अमाउंट ऑफ़ ए सब्सटेंस )उन लक्षणों को ठीक कर सकती है जो इस तोक्सिन की बड़ी मात्रा (लार्ज अमाऊ -नट्स )से पैदा होजातें हैं .यानी ज़हर की न्यूनतम राशि ,अधिकतम की काट है .ज़हर ही ज़हर को मारता है .
Posted by veerubhai (आभार सहित)
होम्योपेथी में मेरा विश्वास नही था.कुछ साल पहले मेरे घुटने का लिगामेंट फट गया.(कारण?? नही बताऊंगी. आप सब हंसेंगे.अपनी ननद की पोती की शादी में चार दिन तक इतना नाची कि... डॉक्टर्स को भी विश्वास नही हुआ.हा हा हा ऐसिच हूँ मैं)
ReplyDeleteहाँ तप,उसके लिए और्थोपेदिक ने कहा कि अहमदाबाद जा के ऑपरेशन करवाना पडेगा घुटने का.पर....आप मेरा नाम मत लेना बस एक बार होम्योपेथिक डॉ से मिल लीजिए.
और एक महीने में मेरा पैर एकदम अच्छा हो गया वो भी मात्र पांच-छः सौ की दवा से.
और आये दिन हो जाने वाली गुर्दे की पथरी तो मेरी इसी से निकल जाती है.तब से लगने लगा कि कुछ तो दम है इसमें.
हौम्योपैथी के बारे में बहुत बढ़िया सारगार्वित जानकारी देने के लिए आभार . हौम्योपैथी के कोई साइड इफेक्ट भी नहीं हैं ... और विदेशों की तुलना में यहाँ भारत में ये दवाएं सस्ते में उपलब्ध हो जाती हैं ... इन दवाओं के द्वारा असाध्य से असाध्य रोगों का जड़ से निदान किया जा सकता है..
ReplyDeleteनहीं सर भारत में क्षेत्र की बात करें तो जिला जालौन से ताल्लुक रखता है बंदा... चलिए अंततः माना तो.. :) हम तो कबसे मानते हैं..
ReplyDeleteहोमिओ -पैथी का सीधा सा सिद्धांत है "किसी विष (तोक्सिन )की न्यूनतम राशि (मात्रा ,मिनिमम अमाउंट ऑफ़ ए सब्सटेंस )उन लक्षणों को ठीक कर सकती है जो इस तोक्सिन की बड़ी मात्रा (लार्ज अमाऊ -नट्स )से पैदा होजातें हैं । आखिर वैक्सीन भी तो इसी सिध्दांत पर बनाये जाते है । वैकल्पिक चिकित्सा पर आजकल काफी जोर दिया जा रहा है, उस संदर्भ में आपका ये लेख बहुत उपयोगी है ।
ReplyDeleteसतीश भाई , अब में क्या कहूँ ?
ReplyDeleteमेरे लिए तो इतना ही बहुत है,
आप जैसे दो चार मुहब्बत वाले आ जाएँ तो दिल खुश हो जाता है. बस आप अपना प्रेम बनाए रखें रही बात गूगल की ये तो फिर भी मशीन है यहाँ तो अच्छे भले आदमी का भी कभी मूड ख़राब हो जाता है.
क्या कहा जाये … होम्योपैथी के प्रति ऐसे विरोध आज से नही बल्कि हैनिमैन के समय से ही रहा है लेकिन इसके वावजूद इस पद्दति मे लोगों का विशवास सिर्फ़ आशवसन और भ्रम से नही बल्कि समय –२ पर मिल रहे अनगिनत परिणामों से है । तथ्यों की बात करें तो नैदानिक परीक्षणॊं ( clinical trials ) मे होम्योपैथी की विशव्सीयनता को सिद्ध करना बहुत मुशकिल है क्योंकि यह एक व्यक्तिपरक चिकित्सा पद्दति है ( individualized therapy ) , एक ही समय मे एक ही रोग मे दस विबिन्न रोगियों मे दवायें अलग-२ निकलती हैं , सिर्फ़ एक ही दवा एक रोग मे कारगर नही हो सकतॊ , रोग की उत्पति, उसके कारण , रोगी की मन: स्थिति , रोग किन कारणॊ से बढ रहा है या घट रहा है , दवा के सेलेक्शन मे इन कई बातों का ध्यान रखना बहुत आवशयक है जो नैदानिक परीक्षणॊ मे एक ही दवा को लेकर नही की जा सकती लेकिन इसके बावजूद ऐसे कई परीक्षणॊं मे होम्योपैथी कारगर भी सिद्ध होती रही है देखें अवशय :
ReplyDeletehttp://hpathy.com/homeopathy-scientific-research/
http://homeopathyresearches.blogspot.com
होम्योपैथी -तथ्य एवं भ्रान्तियाँ " प्रमाणित विज्ञान या केवल मीठी गोलियाँ "( Is Homeopathy a trusted science or a placebo )
अब में क्या कहूँ ? अब सबों को जवाब दें की पश्चिम में भी मान्यता मिल गयी है..कुछ देशों में ..धीरे-धीरे सभी मानेंगे .अब तो यहाँ की सरकार भी इस दिशा में कई कदम उठा रही है.
ReplyDeleteबहुत ही उपयोगी जानकारी आपके इस आलेख से मिली है. मेरे जीवन का मिशन सा बन गया है कि कोई मरीज़ आए तो उसे होमियोपैथ डॉक्टर के पास ले जाता हूँ. यदि किसी के पास पैसे नहीं हैं और उसकी तकलीफ़ आपात्स्थिति की नहीं है तो उसे मुफ़्त दवा दे देता हूँ. अधिकतर मामलों में इस सिस्टम को बहुत सफलता से कार्य करते देखा है. मेरी बड़ी बहन की बाई पास सर्जरी हुई थी. दो साल बाद भी उनकी छाती में ऑपरेशन के बाद वाला दर्द आता था. स्टैफीसैग्रिया 200 की तीन खुराकों ने उन्हें ठीक किया.
ReplyDeleteबाकी लोग माने या न माने लेकिन मै आपने पुरे जीवन मे होमिओपैथि के उपकार नही भूल सकता. मेरे दोनो पैरो का operation होने वाला था (Bilatteral hip joint avascular necrosis). लेकिन अंत समय मुझे होमिओपैथि के बारे मी पता चला जिससे मै आज चल फिर सकता हु...!!!!
ReplyDeleteहोमियोपैथी ने मेरी जान बचा ली !!
ReplyDeleteइग्नेसिया 200,काली फोस्फोरिकम 6x,कल्केरिया फ्लोरिका 6x..ने मुझे आत्महत्या करने से बचाया,
मै मासिक रूप से depressed हो गया था,मृत्यु भय,असाध्य रोग का भय,ऐसा लगता था मै मृत्यु की और बढ़ रहा हु,मेरा सरीर गल रहा है,रोना था,गाड़ियों के आवाज़ मेरे दिमाग को चिर रहे थे मानो अभी दिमाग काम करना बंद कर देगा मै गिर जाऊँगा, लेकिन एक बूँद इग्नेसिया 200 ने मुझे ठीक किया ।
itni jankari...mn abhibhut hua,hamre yahan bhi sabhi khate hain,khud mai kafi kuch janti hun is paithy ke liye....behad sarthak aalekh.
ReplyDeleteक्या नाम है सर इस किताब का? और ये कहाँ से उपलब्ध हो.सकेगी?
ReplyDeleteकौन सी किताब ??
Deleteआदरणीय सर
ReplyDeleteकाफी समय पहले मैंने होम्योपैथी के बारे में पूछा था तो आपने सत्यव्रत जी की किताबें खरीदने की सलाह दी थी....
मैंने चारों किताबें खरीदलीं और काफी कुछ जाना... फिलहाल बीजैन पब्लिशर्स की साइट पर जाकर कुछ और भी किताबें आर्डर की हैं
मुझे वाकई यह पैथी बहुत पसंद आ रही है और मेरा स्वयं का इलाज भी एक योग्य चिकित्सक की देखरेख में चल रहा है
मैं जानना चाहता हूँ कि क्या भविष्य में मैं अपनी एवं अपने परिवार की चिकित्सा इस पैथी की जानकारी लेकर कर सकता हूँ..... क्योंकि मेरे ही एक एलोपैथी के मित्र ने मुझे चेताया है कि बिना किसी डिग्री या शिक्षा के मुझे इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए
आप क्या कहेंगे इस बारे में?
मैं एक रिपर्टरी भी खरीदना चाहता हूँ.... केंट की रिपर्टरी हिन्दी में उपलब्ध है.... क्या उसे खरीदना ठीक रहेगा?
आप मुझे ९८११०७६४५१ पर फ़ोन कर सकते हैं
Deleteश्रीमान जी मेरा अनुभव भी काफी प्रेरक है मै स्वयं भी हौम्योैपैथी जानता हूँ 2 साल पहले मैने 5-6 हौम्योैपैथी दवाऐं जल्दी-जल्दी ले ली थीं जिनमे से कैंथरिस भी एक थी जिसका दुष्परिणाम यह हुआ कि मुझे पेशाब में खून आने लगा मतलब सिस्टाईटिस नामक बीमारी पैदा हो गई और करीबन 2-3 माह तक रही फिर एक दिन पडोस मे रहने वाले हौम्योपैथी के महान जानकार और गुणी व्यक्ति (भाई साहब) ने वर्तमान मे उपस्थित समसत लक्ष्णो का अवलोकन करके टैरेबिंथाना-30 दवा दी जिसके सेवन करने के 4 घण्टे बाद ही मूत्र का लाल रंग बदलकर हल्का होता हुआ 3 दिन मे दर्द वगैरह सभी लक्ष्ण नष्ट हो चुके थे जबकि अग्रेजी दवा से भी रोग काबू नही आ रहा था
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